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‘संज्ञा’ से ‘विशेषण’ बना पोस्को

-दक्षिण कोरिया से लौट कर हरिवंश- पोस्को का पूरा नाम है ‘पोहांग आइरन एंड स्टील कंपनी’. ओड़िशा में इसी पोस्को द्वारा स्टील कारखाना बैठाने की चर्चा है. यह एक कंपनी का नाम है, इस अर्थ में संज्ञा है. पर यह नाम कैसे ‘कोरियाई संकल्प, सामर्थ्य और असंभव को संभव करने का प्रतीक बन गया, इस […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 27, 2015 1:11 PM

-दक्षिण कोरिया से लौट कर हरिवंश-

पोस्को का पूरा नाम है ‘पोहांग आइरन एंड स्टील कंपनी’. ओड़िशा में इसी पोस्को द्वारा स्टील कारखाना बैठाने की चर्चा है. यह एक कंपनी का नाम है, इस अर्थ में संज्ञा है. पर यह नाम कैसे ‘कोरियाई संकल्प, सामर्थ्य और असंभव को संभव करने का प्रतीक बन गया, इस अर्थ में विशेषण है. वैसे ही जैसे एक इंसान, समाज या देश इतिहास या अतीत में एक निजी इकाई से उठ कर इतिहास बन जाता है. उदाहरण बन जाता है, अपने कर्मों से, अपने संकल्प-साधना और ध्येय से.

वैसे ही जैसे ‘सिंगापुर’ को मछुआरों के गांव के रूप में ली यूआन क्यू ने पाया और अपने नेतृत्व में विश्व स्तर का देश बना दिया. व्यक्ति से वह इतिहास बन गये. संज्ञा से विशेषण हो गये. जीते जी किंवदंती. उसी तरह जैसे सोनी की गाथा है. दूसरे विश्वयुद्ध में जापान तबाह-ध्वस्त हो गया था. कुछेक संकल्पवान युवकों ने बम से तबाह-ध्वस्त एक कमरे में सपना देखा. जापान को विश्व बाजार में सर्वश्रेष्ठ बनाने का. उनमें से ही एक थे, अकाई मोरितो, ‘सोनी’ कंपनी को शुरू करनेवाले.

टूटे कमरे में, साधनविहीन मुल्क में, कुछेक बेरोजगार सपना देखते हैं और उसे सच्चाई में बदल डालते हैं, यही है, मनुष्य का अपराजेय पौरुष, असाधारण संकल्प, सृजन की अद्भुत क्षमता. यही ताकतें-ऊर्जा ‘संज्ञा’ से ‘विशेषण’ बनाती हैं.

‘पोस्को’ संज्ञा से विशेषण कैसे बना? यह अध्ययन किया, ‘हार्वर्ड बिजनेस स्कूल’ ने. 1992 में. यह अध्ययन वर्षों पहले पढ़ा था. कोरिया की धरती पर पांव रखते ही वे स्मृतियां उभर आयीं.
1968 में वर्ल्ड बैंक के एक वरिष्ठ अधिकारी का निष्कर्ष था, कोरिया में ‘इंटीग्रेटेड स्टील मिल’ नहीं लग सकती. 23 वर्षों बाद उसी अफसर ने कहा : संक्षेप में कहूं, तो स्तब्ध हूं. पोस्को की सफलता से दुनिया की स्टील इंडस्ट्रीज बहुत कुछ सीख सकती है. मैं नहीं मानता कि मेरा निर्णय उन दिनों गलत था. (इस अधिकारी ने पोस्को स्टील शुरू करने संबंधी जो प्रस्ताव विश्व बैंक के पास ऋण देने के लिए दिया था, उस पर लिख दिया था, ‘नोट फिजिबुल’ (व्यावहारिक नहीं) और ऋण देने से मना कर दिया था.)

उस समय कोरियाई अर्थव्यवस्था की बदतर हालत देखते हुए पोस्को जैसा स्टील प्लांट खड़ा कर लेना असंभव था. इसी कारण इस स्टील प्लांट के वित्तीय ऋण प्रस्ताव पर मैंने लिखा कि स्टील कारखाना लगाना अच्छा निवेश नहीं होगा. मैं आज भी मानता हूं कि मेरी अनुशंसाएं-निष्कर्ष सही थे. पर मैं एक बड़ी चीज को नजरअंदाज कर गया. वह थी कि इस स्टील कंपनी के चेयरमैन पार्क और उनके सहकर्मियों में ‘असंभव’ को ‘संभव’ बनाने की क्षमता-कला.

यही ‘असंभव को संभव बनाने की क्षमता’ कोरियाई संस्कृति में है. पर पहले पोस्को स्टील प्लांट की चर्चा. वर्ल्ड बैंक के अधिकारी का यह बयान पूरी पृष्ठभूमि की झलक देता है. पोहांग, जहां यह स्टील प्लांट लगा है, तब एक मामूली कस्बा था. दक्षिण कोरिया के पूर्वी छोर पर. मुख्य धंधा मछली मारना था. कोरिया गरीब मुल्क था. ते-जून पार्क की आकांक्षा थी, स्टील कारखाना खोलने की. न पूंजी थी, न अन्य संसाधन. विकसित देशों ने ‘स्टील बनाने की तकनीक’, देने से मना कर दिया. ‘आयरन ओर’ (लौह-अयस्क) भी नहीं था, दक्षिण कोरिया में.

चेयरमैन पार्क जहां भी पूंजी या तकनीक की मदद के लिए जाते, लोग कमेंट करते, ‘रेत से स्टील बनेगा’. चूंकि पोहांग तटीय इलाका है, इसलिए पानी, रेत और मछली की वहां बहुतायत है. दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति उन्हीं दिनों अमेरिका गये. उनके साथ टीम में चेयरमैन पार्क भी गये. कोरिया के राष्ट्रपति ने अमेरिकी राष्ट्रपति से इस स्टील प्लांट को बैठाने में वित्तीय मदद की चर्चा की.

तब अमेरिकी राष्ट्रपति ने इस प्रस्ताव की छानबीन के लिए एक सिंडीकेट बनाया, जिसके प्रेसीडेंट फाय बनाये गये. पर यह प्रोजेक्ट धुन की तरह चेयरमैन पार्क व उनकी टीम पर सवार था. पुन: अमेरिका से मिले आश्वासन पर चेयरमैन पार्क एक अंतिम कोशिश करने वहां गये. चेयरमैन पार्क ने ‘उस दिन’ को याद करते हुए लिखा है, ‘अप्रैल 1969 में मैं प्रेसीडेंट फाय से मिलने गया. हमने पूरी रात बात की, पर निष्कर्ष था, नो टेक्नोलॉजी, नो मनी (न तकनीक मिलेगी, न पूंजी) पोस्को ने अनेक प्रतिभाशाली लोगों को नियुक्त कर लिया था, चूंकि कोई काम शुरू नहीं हो पा रहा था. इसलिए लोग अब छोड़ कर जाना चाहते थे. हम अत्यंत गंभीर संकटों-चुनौतियों से घिरे थे. यह मेरे लिए सबसे कठिन चुनौती-संघर्ष और संकट के क्षण थे.’

विश्व बैंक ऋण देने के प्रस्ताव को नामंजूर कर चुका था. चेयरमैन पार्क ने लिखा है कि प्रेसीडेंट फाय मेरे लिए दुखी थे. वह मेरी निराशा भांप चुके थे. इसलिए मुझसे अनुरोध किया कि मैं कुछ दिनों छुट्टियां बिताने उनके हवाई द्वीप स्थित बंगले पर चला जाऊं. उस हताश, पस्त और हारे मानस के साथ मैं हवाई गया. मैं बार-बार खुद से पूछ रहा था कैसे इस संकट से निकलूं. कोरिया पहुंचने पर मैं कितनी तरह की चुनौतियों से घिर जाऊंगा, इसी चिंता, उधेड़बुन में मुझे याद आया कि ऋण देने के लिए अमेरिका में जो सिंडीकेट बना था, (प्रेसीडेंट फाय उसी सिंडीकेट के अध्यक्ष थे) उसमें जापान नहीं था. फिर मेरे मन में जापान से ऋण लेने की बात आयी. जापान से यह ऋण मांगने का आधार भी मेरे मन में था. चूंकि जापान ने लंबे समय तक कोरिया पर शासन किया था, कब्जा किया था, इसलिए नैतिक आधार पर इस प्रोजेक्ट को ऋण देने के लिए वह सहमत हो जायेगा, ऐसा सोचा.
इस तरह अनेक अड़चनों को दूर कर एक अप्रैल 1970 को पोहांग स्टील कारखाने की नींव पड़ी. कोरिया के जीवन में यह यादगार क्षण था. कोरिया के औद्योगिकीकरण और आर्थिक विकास की दृष्टि से यह वह क्षण था, जिसने दक्षिण कोरिया का इतिहास बदल दिया. विकास की यात्रा का पहला कदम. धीरे-धीरे पोहांग दुनिया के दूसरे-तीसरे नंबर का स्टील प्लांट बन गया. जनवरी 1991 में इसी पोहांग स्टील की एक नयी यूनिट का विस्तार हो रहा था. तब चेयरमैन पार्क ने, विश्व बैंक के उसी अफसर को इस अवसर पर पोहांग में आमंत्रित किया, जिसने 1968 में इस स्टील प्लांट को ‘अनवायबुल’ (अव्यावहारिक) बताया था और ऋण देने से मना कर दिया था.

1991 में वही अफसर वर्ल्ड बैंक के ‘एशिया’ कार्यालय से बदल कर, प्रोन्नति पाते हुए विश्व बैंक के मुख्यालय अमेरिका पहुंच गये थे. तब वह बहुत बड़े पद पर थे. चेयरमैन पार्क के निमंत्रण पर विश्व बैंक के वह अफसर पोहांग पहुंचे, तो दंग रह गये. उसी अफसर की टिप्पणी ऊपर में दर्ज है, जिसमें कहा गया है कि इस प्रस्ताव पर विचार करते समय मैं यह भूल गया कि इस स्टील कंपनी के चेयरमैन पार्क और उनके सहकर्मियों में ‘असंभव’ को ‘संभव’ बनाने की क्षमता-कला है. पोस्को की सफलता के बारे में एक बार चेयरमैन पार्क से पूछा गया. उनका उत्तर था, ‘मैंने सिर्फ यही किया कि बुनियादी उसूलों पर टिका रहा. ईमानदारी, काम में पूर्णता (परफेक्शन), काम में बखूबी. चौकस. परफेक्शन यानी एक-एक छोटी चीज की अति सावधानी से प्लानिंग. सोल में पार्क के घर के आगे यह दर्ज था, ‘शॉट लाइफ फॉर इटरनल मदरलैंड’ (मातृभूमि के लिए समर्पित यह अल्प जीवन).

पार्क किंवदंती बन गये. एक प्रचलित चर्चा है. चीन के नेता देंग सियाओ पिंग ने जापान के निप्पन स्टील कंपनी से पोस्को जैसा स्टील प्लांट चीन में बैठाने को कहा. निप्पन स्टील कंपनी के चेयरमैन ने यह प्रस्ताव ठुकरा दिया. कहा यह प्रस्ताव, कीमत, निवेश और प्रयास के अनुकूल नहीं है, जब तक पार्क जैसा सक्षम ‘चेयरमैन’ आपके पास नहीं है. दिन-रात कभी भी अपने सहकर्मियों के बीच पार्क घूमते और उनसे कहते, इस बात का फख्र करो कि इस देश की सबसे महत्वाकांक्षी परियोजना में हम कार्यरत हैं. इस देश को जब हमारी जरूरत (पोस्को स्टील प्लांट) थी, तब हमारे पास तकनीक नहीं थी, पूंजी नहीं थी, संसाधन नहीं थे. इतना ही नहीं देश में और देश के बाहर हमारे इस प्रोजेक्ट के लिए लोगों का समर्थन नहीं था. किसी को यकीन नहीं था कि यह कारखाना यहां लग सकता है.
मुझे एहसास था कि मैं उस धरती पर हूं, जहां पोस्को की अविश्वसनीय सफलता की गाथा फिजाओं में है. जहां पार्क जैसों के संकल्प, तप और धुन आबोहवा में है. जहां एक ‘पोस्को’ के जन्म ने, सैमसंग, हुंडई, एलजी वगैरह जैसों की कतार खड़ी कर दी है. उस आबोहवा, माहौल और परिवेश को समझने की कोशिश करता हूं, जहां लोग ‘असंभव’ को ‘संभव’ बनाते हैं और ‘संज्ञा’ को ‘विशेषण.’

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