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ग्लोबल वर्ल्ड में सार्क के सातों नेता

विकास, अलग पहचान और एकजुट होना जरूरी मानते हैं सार्क सम्मेलन से हरिवंश पाकिस्तान की खूबसूरत राजधानी इसलामाबाद में आयोजित 12वां सार्क सम्मेलन भी रिचुअल (परंपरा निर्वाह) है? यह सवाल, विदेशी मामलों के एक जानकार ने उठाया. उन्होंने कहा कि नेपाल में सार्क सम्मेलन हुआ, वहां सार्क देशों ने एक स्वर में तय किया कि […]

विकास, अलग पहचान और एकजुट होना जरूरी मानते हैं
सार्क सम्मेलन से हरिवंश
पाकिस्तान की खूबसूरत राजधानी इसलामाबाद में आयोजित 12वां सार्क सम्मेलन भी रिचुअल (परंपरा निर्वाह) है? यह सवाल, विदेशी मामलों के एक जानकार ने उठाया. उन्होंने कहा कि नेपाल में सार्क सम्मेलन हुआ, वहां सार्क देशों ने एक स्वर में तय किया कि हम अस्त्र-शस्त्र घटायेंगे. हथियारों पर खर्च कम करेंगे. उसके बाद भारत और पाक दोनों ने परमाणु विस्फोट किये. दोनों के रक्षा बजट बेतहाशा बढ़े. हथियारों की खरीद में प्रतियोगिता की स्थिति है. उन्होंने यह भी कहा कि दुनिया के स्तर पर रक्षा खचा में 37 फीसदी की गिरावट हई है, पर दक्षिण एशिया में हाल के वषा में यह 12 फीसदी बढ़ा है, जबकि 140 करोड़ (1.4 बिलियन) की आबादीवाले इन सात देशों में गरीबी, भुखमरी और बेरोजगारी अहम सवाल हैं.
इस पृष्ठभूमि में चार जनवरी को इसलामाबाद के जिन्ना कन्वेंशन सेंटर में सातों देशों के राष्ट्र प्रमुखों को सुनना, एक उम्मीद जगानेवाला अनुभव है. भारत के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा कि पाकिस्तान पहुंचने पर कल मैंने हवाई अड्डे पर एक बड़ी होर्डिंग देखी. उस पर बड़ा सुंदर स्लोगन था टूगेदर वी स्टैंड, ए बेटर चांस इन द वर्ल्ड (हम साथ-साथ ही दुनिया में खड़े रह सकते हैं). उन्होंने सही कहा कि यह महज स्लोग्न (नारा) नहीं है. आज की दुनिया में हकीकत है. उनका आह्वान था कि हम मिसट्रस्ट (अविश्वास) से ट्रस्ट (विश्वास), डिस्कार्ड (मतभेद) से कोनकॉर्ड (सहमति) और टेंशन (तनाव) से पीस (शांति) का माहौल बनायें. भारी तादाद में पाकिस्तान के इलीट क्लास ने उन्हें ध्यान से सुना और तालियां बजायीं. स्पष्ट है कि बदलती दुनिया से सार्क देश के नेता सजग हैं. डिजिटल डिवाइस के इस दौर में वे मानने लगे हैं कि साथ रहने-काम करने से ही प्रगति संभव है.
श्रीलंका की राष्ट्रपति चंद्रिका कुमारतुंगा ने अत्यंत साफ्ट बट सीरियस वायस (आहिस्ता पर गंभीर स्वर) में कहा कि साउथ एशिया को अब आइडेंटिटी (पहचान) की जरूरत है. हर प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति की चिंता उदारीकरण के इस दौर में अपनी पहचान तलाशने की रही. पाक के प्रधानमंत्री जमाली ने भी ग्लोबल दुनिया में साथ रहने-काम करने के महत्व को पहचाना. भूटान के युवा प्रधानमंत्री थिनले ने आइटी के दौर में अपनी प्रगति के लिए सक्रिय होने का आह्वान किया. बांग्लादेश की प्रधानमंत्री बेगम खालिदा जिया ने भी रोजगार-समृद्धि की बात की. मालदीव के राष्टपति अब्दुल गयूम ने बदली दुनिया से तालमेल की बात की, तो नेपाल के प्रधानमंत्री सूर्य बहादुर थापा ने दुनिया की एक चौथाई आबादी की दुर्दशा का उल्लेख किया.
मतभेदों के बावजूद एक साथ राष्ट्राध्यक्षों-प्रधानमंत्रियों का बैठना और चुनौतियों के लिए साथ खड़े होने की बात करना उल्लेखनीय है. हालांकि इन चर्चाओं में भी राजनीति झलकी. पाक के प्रधानमंत्री या पाक का शुरू से ही रुख है कि पहले पॉलिटिकल कानफ्लिक्ट (राजनीतिक झगड़े) निबटे तब एक आर्थिक जोन, एक करेंसी या साउथ एशियन आइडेंटी (पहचान) की बात हो. भारत का रुख है कि पहले आर्थिक मुद्दों को हम एड्रेस (हल) करें, साथ-साथ राजनीतिक सवालों के हल निकालें. इस मतभेद के बावजूद सार्क सम्मेलन सोशल चार्टर, साफ्टा और आतंकवाद के खिलाफ साथ काम करने के मोरचों पर सहमति उल्लेखनीय है.

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