पाकिस्तान यात्रा : तक्षशिला में रखरखाव, बेहतर है नालंदा से
-हरिवंश- ताजा पाकिस्तान यात्रा का न भूलनेवाला प्रसंग है, तक्षशिला यात्रा. भारत से पाकिस्तान गयी पत्रकारों की बड़ी टोली, पाकिस्तानी सुरक्षा बंदोबस्त में तक्षशिला पहंची. तक्षशिला, इसलामाबाद से लगभग 35 किमी दूर है. उत्तर पूरब की ओर. चार लेन की सुंदर, चौड़ी सड़कें हैं. पाक ड्राइवर बताता है कि ये सुंदर सड़कें मियां साहब (नवाज […]
-हरिवंश-
ताजा पाकिस्तान यात्रा का न भूलनेवाला प्रसंग है, तक्षशिला यात्रा. भारत से पाकिस्तान गयी पत्रकारों की बड़ी टोली, पाकिस्तानी सुरक्षा बंदोबस्त में तक्षशिला पहंची.
तक्षशिला, इसलामाबाद से लगभग 35 किमी दूर है. उत्तर पूरब की ओर. चार लेन की सुंदर, चौड़ी सड़कें हैं. पाक ड्राइवर बताता है कि ये सुंदर सड़कें मियां साहब (नवाज शरीफ) की देन हैं.
इतिहास-अतीत के प्रसंग, इस यात्रा में स्वत: पलटते जाते हैं. बौद्ध ग्रंथों में तक्षशिला की चर्चा मिलती है. ”ह्वेनसांग ने इसे ता-चा-शि-लो कह कर पुकारा, ऐसा पाकिस्तान म्यूजियम का ब्रोशर बताता है. ईसा से 400 वर्ष पहले, चीनी यात्री फाहयान भी यहां आया था. इसी ब्रोशर के अनुसार उसने तक्षशिला को चाउ-चा-शि-लो पुकारा. तक्षशिला का इतिहास ईसा से छह सौ वर्षों पहले शुरू होता है. हालांकि लोक मान्यता है कि भरत के पुत्र, तक्ष के नाम पर तक्षशिला स्थापित हई. यह माननेवाले बाल्मीकि रामायण का हवाला देते हैं. बाद में इसकी ख्याति प्राचीन भारत के सबसे प्रमुख विद्यापीठ के रूप में हुई. तक्षशिला, नालंदा और विक्रमशिला, प्राचीन भारत के तीन ज्ञान केंद्र थे. बौद्ध दर्शन के भी पीठ. आधुनिक काल के हार्वर्ड, कैंब्रिज और ऑक्सफोर्ड.
पर इतिहास से कुछ और सूचनाएं मिलती हैं. तक्षशिला विद्यापीठ के कारण मशहूर होने से पहले बड़ा व्यावसायिक केंद्र था. चीन, यूनान, पर्शिया, अफगानिस्तान और भारत को जोड़ने का केंद्र. विभिन्न भाषाओं-संस्कृतियों का संगम स्थल. तक्षशिला के समृद्ध अतीत को याद करते-देखते, भारत के पत्रकारों को लगता है कि पिछले ढाई-तीन हजार वर्ष में दोनों देश (भारत-पाक) अपने उदार अतीत-बहुआयामी संस्कृति से कितना भटके हैं?
तक्षशिला म्यूजिम परिसर में भटकते हए पग-पग पर म्यूजियम की सुव्यवस्था और रख-रखाव देखा जा सकता है. बुतशिकन (मूर्ति भंजक) मुल्क में म्यूजियम का यह बंदोबस्त रख-रखाव. पाकिस्तान के बारे में अनेक भ्रम टूटते हैं. बुद्ध, इतिहास और अतीत मंथन, मेरे प्रिय विषय हैं. बिहार के नालंदा-राजगीर बार-बार खींचते हैं.
नालंदा-राजगीर की हर यात्रा में आप पा सकते हैं कि इन ऐतिहासिक जगहों के रख-रखाव में उपेक्षा और उदासीनता है. केंद्र और राज्य दोनों स्तरों पर. पाकिस्तान स्थित तक्षशिला म्यूजियम भव्य, साफ-सुथरा और करीने से व्यवस्थित है. 1918 में लार्ड चेम्सफोर्ड ने इसकी नींव रखी. लाहौर के मशहूर आर्किटेक्ट बीएम सुलिवान ने बिल्डिग की डिजाइन बनायी. इसका लोकार्पण अप्रैल 1928 में शिक्षा सदस्य सर मुहम्मद हबीबुल्ला ने किया. मशहूर सर जॉन मार्शल ने ही यहां (1913 से 1934 के बीच) भी खुदाई करवाई थी.
तक्षशिला घाटी है. बौद्ध स्तूप, मठ और गुफाओं का यह केंद्र रहा है. 18 किमी लंबाई और 8 किमी चौड़ाई में फैला था. चौतरफा पहाड़ियों से घिरा. हारो नदी के किनारे. म्यूजियम के आसपास सात प्रमुख खुदाई स्थल हैं. जहां अतीत के अवशेष मौजूद हैं.
म्यूजियम में बुद्ध की तरह-तरह की मूर्तियां हैं. भिन्न-भिन्न भंगिमाओं में. ईसा से दो-तीन सौ साल पहले की मूर्ति है, अभयमुद्रा में बुद्ध. जन्म से मृत्यु तक बुद्ध का जीवनचरित. महाभिनिष्क्रमण में. कंठ घोड़े और राजसी वस्त्रों से विदा लेते बुद्ध. यशोधरा को छोड़ने का मार्मिक दृश्य. बुद्ध पर मार का हमला. सुजाता की खीर. पहला प्रवचन. ध्यान में बुद्ध, अभयमुद्रा में बुद्ध. ये दृश्य देखते-देखते मैं अपने प्रिय स्थलों सारनाथ, बोध गया और नालंदा-राजगीर की पहाड़ियों में डूब जाता हूं. जहां बुद्ध ने मुक्ति के संदेश दिये. करुणा की बात की. मध्यम मार्ग का रास्ता दिखाया, शीत-ताप में सम होने का संदेश दिया. वही जगहें आज कितने ताप-तनाव में हैं. हजारों किमी दूर तक्षशिला की हवा में उस ताप-तनाव की गंध नहीं पाता.
भाड़-गहने भी हैं, म्यूजियम में गांधार कला के साक्षात जीवंत सौंदर्य. सात हजार दुर्लभ चीजें, तक्षशिला म्यूजियम में हैं. एक-एक मूर्ति, गहने, भाड़ या वस्तु का भव्य अतीत. इन चीजों को निखरते-परखते हम भारतीय पत्रकारों की टीम, तक्षशिला का अतीत खंगालने लगती है.
तक्षशिला पहले व्यावसायिक मंडी बना. यूनान, पर्शिया, अफगानिस्तान, चीन से लगातार आवागमन के कारण. यहां के व्यवसायियों ने अपने पुत्रों को शिक्षा देने के लिए विद्वानों को आश्रय देना शुरू किया. विद्यार्जन के लिए भवन का निर्माण कराने लगे. आचार्य के रहने-खाने का प्रबंध भी. फिर देश के विभिन्न भागों से विद्वान यहां आने लगे. बाद में व्यापारी संघों ने भी विद्या केंद्रों को आर्थिक मदद शुरू की.
इसी तरह तक्षशिला विद्या केंद्र बना. पूंजी-व्यवसाय ने ज्ञान को आश्रय दिया. पहले बिजनेस शुरू हुआ, तब तक्षशिला का ज्ञानपीठ बना. आज 21वीं शताब्दी में दुनिया के बड़े पूंजी घराने ही मिल कर श्रेष्ठ बिजनेस स्कूल वगैरह बना रहे हैं. तीन हजार वर्ष पुरानी पूंजी-ज्ञान संबंध. आज भी उसी ढर्रे पर.
मैं पाटलिपुत्र प्रेमी, तक्षशिला आकर खो गया, क्योंकि चाणक्य ने तक्षशिला में रह कर ही पढ़ाई की. फिर आचार्य बने. फिर चंद्रगुप्त मौर्य को तक्षशिला भेजा. विद्यार्जन के लिए. सुना है, संस्कृत व्याकरण के आचार्य पाणिनि ने भी तक्षशिला में ही ज्ञान पाया था. महात्मा बुद्ध के समय मशहर वैद्य थे, जीवक. बौद्ध सूचनाओं के अनुसार तक्षशिला में ही उन्होंने शल्य क्रिया व चिकित्सा की शिक्षा पायी. जीवक के बारे में कहा जाता है कि जब वह तक्षशिला से शिक्षा पाकर लौट रहे थे, तो रास्ते में कई असाध्य रोगों का इलाज किया. उनके यश से खुश राजाओं ने उन्हें आभूषण व धन से लाद दिये. मगध पहंचने से पहले ही उनकी चर्चा वहां पहंच चुकी थी. बिंबसार ने उन्हें राजवैद्य बनाया. राजगीर में आज भी वैद्य जीवक के बारे में दंत कथाएं – लोक मान्यताएं आप सुन सकते हैं. वह महात्मा बुद्ध के भी वैद्य थे.
बौद्ध साहित्य के अनुसार तक्षशिला में 5000 से 10,000 छात्र विद्यार्जन करते थे. तक्षशिला के गौरवशाली होने के बारे में गुप्तकाल तक प्रमाण मिलते हैं. हालांकि कनिष्क साम्राज्य से ही तक्षशिला अपना गौरव खोने लगा. कनिष्क से पहले, 185 ईसा पूर्व तक यूनानियों का प्रभाव तक्षशिला पर बढ़ गया था.
पहली शताब्दी में कनिष्क के आगमन ने यूनानी कला को प्रोत्साहित किया. जब वह बौद्ध बन गया, तो तक्षशिला के विद्वानों का राज्याश्रय बंद हो गया.
हालांकि पाकिस्तान म्यूजियम द्वारा तैयार ब्रोशर में चाणक्य का नाम नहीं है. सिकंदर के तक्षशिला आगमन की बात नहीं है. तक्षशिला के शासक आंभि द्वारा सिकंदर को आश्रय देने की चर्चा नहीं है. पर ब्रोशर, इतिहास नहीं होता. चाणक्य का नेहरू ने किस पैशन (जजबात) से डिस्कवरी ऑफ इंडिया में उल्लेख किया है, यहां आकर स्मृति में कौंधता है. चाणक्य, आचार्य के आचार्य. मुझे मैकियावेली भी याद आते हैं. बहुत पहले अपनी बहुचर्चित कृति प्रिंस लिख कर मैकियावेली आधुनिक राजनीति के दावंपेंच को नैतिक जामा पहना गये. पर उनसे भी पहले चाणक्य ने माना, साधन से साध्य, सधते हैं. षड्यंत्र से भी राजसत्ता की सफाई जायज है. पर चाणक्य का एक और नुस्खा था, जिसने उन्हें महान लोगों की श्रेणी में पहंचाया. षड्यंत्र या ऐसी रणनीति, सिर्फ राजसत्ता की हिफाजत के लिए, निजी महत्वाकांओं की पूर्ति के लिए नहीं. निजी स्तर पर पाटलिपुत्र की झोपड़ी में रहते हए विशाल साम्राज्य को आकार देनेवाले आचार्य के सिद्धांत, आज पाकिस्तान-भारत दोनों के शासकों के लिए प्रासंगिक नहीं रहा.
तक्षशिला म्यूजियम से दो किमी दूर सिरकप भी हम गये. खुदाई के आधार पर इतिहासकार बताते हैं कि ईसा से दो सौ साल पहले यह बना. दो हजार फीट की खुदाई पर नियोजित ढंग से बनायी बस्ती मिली. बाजार, घर, राजा का आवास, जैन मंदिर वगैरह. बौद्ध स्तूप. सम्राट अशोक के पुत्र के रहने का वर्णन. सब जगह करीने से तख्तियां लगी हैं, जिन पर ये सूचनाएं दर्ज हैं. कहते हैं सेंट थामस भी सिरकप आये थे.
पास के मारगला पहाड़ियों की इन तलहटियों में पग-पग पर इतिहास है. भारत-पाक के अतीत हैं. विभिन्न संस्कृतियों के संगम की राख भी है. युद्ध-संहार जैसे अध्याय भी हैं. पर इतिहास के धवल पक्ष से, आज दोनों देशों में कोई सीखने को तैयार है?