एड्स के मरीजों से होने वाले भेदभाव से हम सभी अच्छी तरह से परिचित हैं. ऐसे में उनका जीवन एड्स से लड़ते हुए या सबसे खुद को अलग कर गुजरता है. एड्स किसी भी उम्र के व्यक्ति को अपना शिकार बना लेता है. खास कर वो लोग जो अविवाहित हैं, एचआईवी संक्रमित होने के बाद उनका जीवन अकेले काटना मुश्किल हो जाता है.
इन कठिन परिस्तिथियों में उजाले के किरन बन कर आई हैं डॉक्टर अरुंधति सरदेसाई.
पुणे निवासी डॉक्टर अरुंधति सरदेसाई एचआईवी रोगियों का घर बसा कर उन्हें नया जीवन और नयी दिशा देने का कठिन काम करने में जुटी हैं.
डॉक्टर अरुंधति अब तक अपनी कोशिश से वो कई एचआईवी संक्रमित जोड़ों की शादी करवा चुकी हैं.
हमारे समाज में जहाँ एच.आई.वी पीड़ितों से लोग मिलने से कतराते हैं, वहीं उनके विवाह के बारे में सोचना किसी क्रांति से कम नहीं है.
डॉक्टर अरुंधति गैर सरकारी संस्था ‘मानव्य‘ के माध्यम से एड्स रोगियों को विवाह बंधन में बांध कर उनके अकेले जीवन में खुशियां लाती हैं.
डॉक्टर अरुंधति कहती हैं, "समाज में हर व्यक्ति को बराबरी का अधिकार है और हमारे प्रयास से एचआईवी संक्रमित लोगों को ऐसा इंसान मिल जाता है जो उन्हें समझ सके. इसकी मदद से वो एक सामान्य जीवन बिता सकते हैं."
मानव्य संस्था 5 सालों से इस काम में जुटी है और पुणे में फ़रवरी के महीने में एक मेला लगाती हैं जिसके तहत उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान और यहां तक कि नेपाल से भी एचआईवी संक्रमित लोग अपना जीवन साथी ढूंढने के लिए आते हैं.
डॉक्टर अरूंधति के अनुसार हर साल 150 से भी ज़्यादा लोग इस मेले में शिरकत करते हैं.
‘मानव्य‘ में शादी करने आए लोग एक फ़ॉर्म में खुद से जुड़ी सभी बातें लिख देते हैं और इस फ़ॉर्म की जांच के बाद ही वो शादी के लिए रजिस्टर कर सकते हैं.
अरूंधति बताती हैं, "इस फ़ॉर्म में पढ़ाई, परिवार के सदस्य, नौकरी, वेतन और मेडिकल रिपोर्ट के ब्यौरे भरे जाते हैं." और इसी बायोडाटा को एक स्टेज पर पढ़ा जाता है जो लड़का या लड़की इच्छुक होते हैं तो वे या तो यहीं शादी कर लेते हैं या फिर यहां जान पहचान बढ़ाने के बाद में शादी करते हैं.
इस मेले में शादी करने वाले जोड़े डॉक्टर अरूंधती की खुशियों की कामना करते हुए अपना नवजीवन शुरू करते हैं. मानव्य संस्था समाज के लिए एक उदहारण है जो बिना किसी भेदभाव के समान रूप से जीना सिखाता है.