हेपेटाइटिस-सी के वायरस से लड़ने के लिए सिप्ला ने नई दवा बाज़ार में उतारी है. हेपेटाइटिस के विश्वभर में 185 मिलियन लोग पीड़ित हैं, जिनमें 12-18 करोड़ भारतीय भी शामिल हैं.
हेपेटाइटिस लिवर में सूजन का एक प्रकार है. यह स्थिति गंभीर रूप धरण कर फिब्रोसिस अथवा लिवर कैंसर तक का रूप ले सकती है. हेपेटाइटिस वायरस, हेपेटाइटिस होने का सबसे बड़ा कारण होता है. लेकिन इसके साथ ही अल्कोहल और कुछ विषैली दवायें तथा ऑटोइम्यून डिजीज के कारण भी यह बीमारी हो सकती है.
हेपेटाइटिस-सी का रक्त जनित वायरस होता है जिसके कारण रोग अधिक जटिल और जानलेवा हो जाता है. आमतौर पर हेपेटाइटिस सी की आसानी से पहचान नहीं हो पाती है. जो लक्षण अभी तक पहचाने गए हैं उनमें भूख कम लगना, थकान होना, जी मचलाना, जोड़ों में दर्द और लीवर इंफेक्शन के साथ वजन कम होते जाना खास हैं.
हेपेटाइटिस-सी गंदा पानी पीने, संक्रमित रक्त चढ़ाने, शराब पीने, एक ही सीरिंज या शीशी से कई लोगों को इंजेक्शन लगाने और टैटू गुदवाने से सबसे ज्यादा फैलता है.
लीवर कैंसर के 25% और सिरोसिस के 27% मामले हेपेटाइटिस-सी के कारण होते हैं. पेट की नसों और आहार नली में सूजन के साथ-साथ लीवर इंफेक्शन की सबसे बड़ी वजह भी यही संक्रमण है.
हेपेटाइटिस-सी का अब तक कोई पुख्ता इलाज नहीं है लेकिन सिप्ला की इस नई दवा ‘Hepcvir-L’ के आने के बाद बेहतर इलाज की उम्मीद बढ़ी है.
प्रबंध निदेशक और वैश्विक मुख्य अधिकारी सुभांशु सक्सेना ने "Ledipasvir-Sofosbuvir के शुभारंभ पर कहा कि यह जीनोटाइप-1 हेपेटाइटिस-सी वायरस से पीड़ित रोगियों के लिए इष्टतम उपचार की ओर एक बेहतरीन कदम साबित होगा.
विशेषज्ञों का मानना है कि सिप्ला ने इस नई दवा को घरेलू बाज़ार में उतार कर हेपेटाइटिस से पीड़ित मरीजों को इलाज की नई राह दिखाई है.