जीवन को भारी न बना दे पाइल्स
डॉ मोनिका जैन सीनियर गैस्ट्रोइंट्रोलॉजिस्ट फोर्टिस हॉस्पिटल दिल्ली बेहिसाब खाना-पीना यानी कब्ज को दावत देना. अगर कब्ज की िशकायत पूरी तरह से जकड़ ले, तो यह पाइल्स होने की मुख्य वजह बन जाता है. इसके बाद िजंदगी भारी-सी लगने लगती है. अगर परिवार में किसी को यह रोग हो जाये, तो आगे की पीढ़ी को […]
डॉ मोनिका जैन
सीनियर गैस्ट्रोइंट्रोलॉजिस्ट फोर्टिस हॉस्पिटल
दिल्ली
बेहिसाब खाना-पीना यानी कब्ज को दावत देना. अगर कब्ज की िशकायत पूरी तरह से जकड़ ले, तो यह पाइल्स होने की मुख्य वजह बन जाता है. इसके बाद िजंदगी भारी-सी लगने लगती है. अगर परिवार में किसी को यह रोग हो जाये, तो आगे की पीढ़ी को भी इसके होने की आशंका बन जाती है. इसके बचाव व इलाज पर पूरी जानकारी दे रहे हैं हमारे विशेषज्ञ.
आजकल पाइल्स की समस्या काफी बढ़ गयी है. यह रोग कई कारणों से हो सकता है. प्रमुख कारण खान-पान में गड़बड़ी है, जिसके कारण कब्ज होता है. कब्ज के कारण ही मलद्वार पर जोर लगाना पड़ता है और यह समस्या होती है. हालांकि इसके अलावा भी कई अन्य कारण हैं. इस रोग का उपचार भी कई तरीकों से होता है. एलोपैथी, आयुर्वेद और होमियोपैथी में इसके अलग-अलग उपचार हैं. हालांकि इसका सबसे कारगर इलाज सर्जरी ही है. प्रस्तुत है पाइल्स पर विशेष जानकारी.
क्या है पाइल्स
पाइल्स या बवासीर में गुदा (एनस) के निचले और अंदरूनी हिस्से की नसों में सूजन आ जाती है. इसकी वजह से गुदे में जगह-जगह मस्से उभर जाते हैं. कई बार यह रोग गंभीर रूप धारण कर लेता है और ये मस्से बाहर आ जाते हैं, तो कभी अंदर रहते हैं. शौच करते वक्त जब इन नसों पर दबाव पड़ता है, तो असहनीय दर्द होता है. यह रोग आनुवंशिक भी होता है. अर्थात् यदि परिवार में किसी को यह समस्या रही है, तो इसके होने की आशंका बढ़ जाती है. उम्र बढ़ने के साथ-साथ यह समस्या भी बढ़ती जाती है.
क्यों होता है यह रोग
आंकड़े बताते हैं कि 50 वर्ष की उम्र पार कर चुके हर दूसरे व्यक्ति को कभी न कभी इस समस्या से दो-चार होना पड़ता है. ज्यादातर मामलों में पाइल्स लंबे समय तक कब्ज रहने से होता है. कब्ज के कारण शौच करते वक्त गुदा और मलद्वार की नसों पर जोर पड़ता है. धीरे-धीरे नसें कमजोर होती हैं, तो उनमें सूजन आने लगती है और खून बहने लगता है. बुजुर्गों में लघुशंका के समय ज्यादा जोर लगाने से भी यह रोग होता है. परिवार में रोग है, तो इसके होने की आशंका रहती है. गर्भवती में बढ़ते गर्भ के दबाव से भी यह समस्या हो सकती है.
समय पर इलाज जरूरी
शुरुआती अवस्था में पाइल्स का ट्रीटमेंट दवाइयों से ही किया जा सकता है. मस्से छोटे होते हैं, इसलिए दवाइयों से ही इन्हें नष्ट किया जा सकता है. गंभीर रूप लेने के बाद यह दवाइयों से ठीक नहीं हो पाता. गंभीर अवस्था में डॉक्टर पहले इसे इन्जेक्शन से ठीक करने का प्रयास करते हैं. इसे इंडोस्कोपिक स्क्लेरोथेरेपी भी कहते हैं. इन्जेक्शन के कारण मस्से सूख जाते हैं. एक महीने बाद दोबारा इन्जेक्शन लगाया जाता है. बचे हुए मस्से दूसरे इन्जेक्शन से कंट्रोल हो जाते हैं. यदि पाइल्स गंभीर अवस्था में है, तो तीसरा और चौथा इन्जेक्शन लगाया जाता है.
एक बार इन्जेक्शन लगाने में तकरीबन दो से तीन हजार रुपये का खर्च आता है. रबड़ बैंड लिगेशन प्रक्रिया का इस्तेमाल भी काफी हो रहा है. इसमें पाइल्स की जड़ों में बैंड लगाया जाता है. इसके कारण एक तो खून बहने से रोका जाता है, दूसरा मस्से भी धीरे-धीरे सूख जाते हैं. इसके लिए अस्पताल में भरती होने की जरूरत नहीं होती.रोगी की स्थिति में सुधार आने पर बैंड बदले जाते हैं.
कब्ज से होता है यह रोग
आजकल खान-पान में गड़बड़ी के कारण पेट से जुड़ी कई प्रकार की समस्याएं होती हैं. कब्ज की समस्या बढ़ने के कारण बवासीर जैसे रोग भी बढ़े हैं. यह काफी कष्टदायक रोग है. हालांकि, सर्जरी और कई अन्य उपायों से इसका समुचित उपचार संभव है.
सर्जरी से होता है इलाज
पाइल्स को ट्रीट करने के लिए डॉक्टर दो तरह की सर्जरी अपनाते हैं, जो निम्न हैं :
हेमरॉयडेक्टोमी
इसे ओपन सर्जरी भी कहते हैं. यह तब की जाती है जब पाइल्स के लिए अन्य उपचार जवाब दे जाये. जब मस्से अत्यधिक बढ़ जाते हैं, तो हेमरॉयडेक्टोमी से ही उन्हें पूरे तरह से हटाया जाता है. इस सर्जरी के दौरान मरीज को एनेस्थीसिया देकर बेहोश किया जाता है. बाद में सर्जरी के दौरान गुदा के अंदरूनी और बाहरी मस्सों को काट कर शरीर से अलग कर दिया जाता है. सर्जरी के बाद दो-तीन दिनों तक मरीज को अस्पताल में ही रखा जाता है. रिकवरी में भी सप्ताह भर का समय लगता है.
हेमरॉयड स्टेपलिंग
इस सर्जरी में मरीज की नसों को ब्लॉक कर दिया जाता है. इस सर्जरी में मात्र 30-40 मिनट लगते हैं. इस सर्जरी में इन्फेक्शन होने का खतरा भी नहीं होता है. यह हेमरॉयडेक्टोमी सर्जरी की तुलना में आसान है और इसमें मरीज को कम दर्द महसूस होता है. सर्जरी के बाद रिकवरी भी बहुत जल्दी होती है. हालांकि इस सर्जरी में दोबारा पाइल्स होने की आशंका भी अधिक होती है.
बातचीत व आलेख : कुलदीप तोमर, दिल्ली
आयुर्वेद में क्या है उपचार
एक बहुत ही कष्टदायक रोग है. खान-पान एवं जीवन शैली इस रोग को बढ़ावा दे रही है. आयुर्वेद के अनुसार इसे अर्श कहते हैं. यह किसी भी उम्र के लोगों को हो सकता है. आयुर्वेद के अनुसार पाइल्स दो प्रकार का होता है-वातज और पित्तज.
चिकित्सा : अर्श कुठार रस दो-दो गोली दो बार तथा कंकायन वटी दो-दो गोली दो बार लेने से यह रोग ठीक हो जाता है. कभी-कभी आॅपरेशन की जरूरत पड़ती है. इसके लिए आयुर्वेद में क्षार सूत्र चिकित्सा पद्धति प्रचलित है.
इसमें पाइल्स के मस्से को धागे से बांध कर प्रतिदिन थोड़ा-थोड़ा कसा जाता है तथा काशिशादि तेल, हरिद्रा चूर्ण एवं अपमार्ग के दूध का लेप किया जाता है. धीरे-धीरे धागे को कसना पड़ता है. एक सप्ताह या 10 दिन बाद मस्से कट कर गिर जाते हैं. क्षार सूत्र बंधन चिकत्सा कई आयुर्वेदिक अस्पतालों में उपलब्ध है.
(आयुर्वेद विशेषज्ञ डॉ कमलेश प्रसाद से बातचीत)
होमियोपैथी में उपचार
– एसक्यूलस हिप : मलद्वार पर सुइयां चुभने जैसा एहसास हो और इसके कारण होनेवाला दर्द कमर तक जाये, हमेशा कब्ज रहे, शौच कड़ा और सूखा हो, तब इसे 200 शक्ति में चार बूंद सुबह-शाम लें.
– हेमामेलिस वर्ज : शौच करने के बाद मलद्वार से रक्त का स्राव अधिक हो, इसके अलावा मलद्वार में सूजन रहे, तो इसे रोकने के लिए यह दवा चिकित्सक के अनुसार लें.
– अमोन कार्ब : शौच के बाद बवासीर में काफी दर्द हो और अधिक मात्रा में खून निकले, मलद्वार में खुजली हो, लेटने पर आराम मिले, तब इस दवा की 200 शक्ति चार बूंद
सुबह-शाम लें.
– कैल्केरिया फ्लोर : इस रोग से हमेशा के लिए मुक्ति पाने के लिए इस दवा का उपयोग 200 शक्ति में सप्ताह में एक बार करें. इस दवा को छह महीने तक लेने से यह समाप्त हो जाता है.
बचाव : इस रोग के होने का मुख्य कारण कब्ज है. अत: इस रोग से बचाव के लिए कब्ज को दूर रखना जरूरी है. अत: ज्यादा तेल-मसालेवाली चीजें न खाएं. रोटी और हरी सब्जी को प्राथमिकता दें.
शौच के समय अधिक देर तक बैठ के जोर न लगाएं. इससे इस रोग के होने का खतरा बढ़ जाता है.
(होमियोपैथी विशेषज्ञ डॉ एस चंद्रा से बातचीत)
जानें पाइल्स के स्टेज
स्टेज-1 : यह प्रारंभिक अवस्था है, जिसमें गुदा के अंदरूनी और बाहरी हिस्से में नसों में सूजन आ जाती है. शौच के समय नसों पर दबाव पड़ता है और हल्का खून भी आता है.
स्टेज-2 : नसों में सूजन के कारण मस्से बनने शुरू हो जाते हैं. नसों में सूजन बढ़ जाती है और शौच के बाद अधिक खून निकलता है.
स्टेज-3 : इस अवस्था में पाइल्स गंभीर रूप धारण कर लेता है. इसमें शौच करने में अत्यधिक परेशानी होती है और कई बार शौच के दौरान सफेद म्यूकस भी निकलता है.
स्टेज-4 : इस अवस्था में मस्से मलद्वार से बाहर आ जाते हैं और फिर वापस अंदर नहीं जाते.
ये हैं शुरुआती लक्षण
पाइल्स के शुरुआती लक्षणों में गुदा के आसपास खुजली रहना व शौच
करते समय असहनीय दर्द होना है. इसके अलावा पाइल्स के निम्न लक्षण भी नजर आ सकते हैं :
– शौच से निवृत्त होने के बाद मलद्वार से खून बहना.
– मलद्वार से सफेद लिक्विड आना.
– मलद्वार से मस्सों का बाहर आना आदि.
कैसा हो आहार
इसके उपचार के दौरान आहार का भी खास ध्यान रखना पड़ता है. इसमें कब्ज से बचाव पर भी ध्यान रखा जाता है.
खाएं फाइबरवाले फूड : खाने में फाइबर से भरपूर चीजों का प्रयोग करें. इससे पेट की कार्य प्रणाली सही बनी रहती है और कब्ज दूर होता है. इसके लिए भोजन में बार्ली, ओटमील, साबूत अनाज और हरी पत्तेदार सब्जियों को शामिल करें.
एंटीआॅक्सीडेंट : भोजन में फ्लेवनॉइड और एंटीआॅक्सीडेंट से भरपूर चीजों को शामिल करने से रक्त संचार में सुधार आता है. इससे मलद्वार के आसपास के टिश्यू में मजबूती आती है. इसके लिए नीबू, नारंगी आदि को भोजन में शामिल करें.
पानी अधिक पीएं : कम पानी पीने से आंत की दीवारें पानी अवशोषित कर लेती हैं. इसके कारण मल कड़ा हो जाता है. इसलिए पर्याप्त पानी पीएं. इससे पाचन भी बेहतर होता है और कब्ज भी नहीं होता है.
(सुमिता कुमारी, डायटीशियन)
बरतें ये सावधानियां
– कब्ज न होने दें.
– पौष्टिक व संतुलित आहार लें. खाने में हरी पत्तेदार व रेशेदार सब्जियों का सेवन करें और पानी खूब पीएं.
– ढीले अंडरवियर पहनें. इससे पाइल्स पर रगड़ नहीं लगेगी.
– शौच के वक्त जोर लगाने से बचें.
– गुदा के आसपास खुजली करने से बचें. इससे इन्फेक्शन का खतरा बढ़ जाता है.
पाइल्स, फिशर और फिस्टुला में क्या है अंतर
फिशर में गुदा के आसपास क्रैक जैसी स्थिति बन जाती है. यह क्रैक छोटे और बड़े दोनों प्रकार के होते हैं. कई बार इनसे भी खून आता है. अकसर मरीज फिशर से ग्रस्त होने के बाद भी खुद को पाइल्स से ग्रस्त समझता है. लेकिन फिशर और पाइल्स अलग-अलग रोग हैं. पाइल्स में गुदा के अंदर और बाहर नसों में सूजन आ जाती है. जबकि फिशर में ऐसा नहीं होता है.
भगंदर या फिस्टुला : इस रोग में गुदा द्वार के पास छेद बन जाता है, जिससे पस निकलता और रोगी को शौच के समय तेज दर्द होता है. समुचित इलाज न होने पर यह गंभीर होकर बाद में फोड़ा बन जाता है.
इसके प्रमुख लक्षण इस प्रकार हैं- गुदा में तेज दर्द होता है, जो बैठने पर बढ़ जाता है.
– गुदा के पास खुजली व सूजन होती है. -त्वचा लाल होकर फट सकती है और वहां से मवाद या खून रिसता है. -मल-त्याग के समय दर्द होता है.
उपचार : इस रोग का एकमात्र उपचार सर्जरी है.
परंपरागत सर्जरी : इसे फिस्टुलेक्टोमी कहा जाता है. इसमें सर्जरी के जरिये भीतरी मार्ग से लेकर बाहरी मार्ग तक की फिस्टुला को निकाल दिया जाता है. इस सर्जरी के बाद रिकवरी होने में छह सप्ताह से लेकर तीन माह का समय लग सकता है. वीडियो असिस्टेड एनल फिस्टुला ट्रीटमेंट (वीएएएफटी) : यह सुरक्षित और दर्द रहित उपचार है. इसमें रोगी को एक दिन में ही अस्पताल से छुट्टी मिल जाती है. इस सर्जरी में माइक्रो इंडोस्कोप का इस्तेमाल किया जाता है.