बीमार बना रही है दिल्ली…
वायु प्रदूषण का हमारे स्वास्थ्य पर गहरा असर पड़ता है. यह अस्थमा, दिल के दौरे और सीओपीडी को बढ़ावा देता है. इसकी वजह से ग्लोबल वार्मिग, मौसम में बदलाव और मानव सेहत पर प्रतिकूल प्रभाव हो रहे हैं. हालिया आंकड़ों ने दिल्ली में बढ़ रहे वायु प्रदूषण को लेकर चेताया है. घरों में इस्तेमाल होने […]
वायु प्रदूषण का हमारे स्वास्थ्य पर गहरा असर पड़ता है. यह अस्थमा, दिल के दौरे और सीओपीडी को बढ़ावा देता है. इसकी वजह से ग्लोबल वार्मिग, मौसम में बदलाव और मानव सेहत पर प्रतिकूल प्रभाव हो रहे हैं. हालिया आंकड़ों ने दिल्ली में बढ़ रहे वायु प्रदूषण को लेकर चेताया है.
घरों में इस्तेमाल होने वाले कई संसाधन प्रदूषण के लिए दोषी है. रेफ्रीजरेटर से निकलने वाली क्लोरोफलोरोकार्बन गैस पर्यावरण में मौजूद ओजोन की सतह को नुकसान पहुंचा रही है, जिससे त्वचा का कैंसर और मैलानोमा बढ़ रहा है.
अत्यधिक प्रदूषण जिसमें पी.एम 2.5 की अत्यधिक मात्रा हो उसके संपर्क में आने से मधुमेह का खतरा बढ़ जाता है. वायु प्रदूषण के साथ सांस प्रणाली, दिल और दिमाग का दौरा जैसी बीमारियों की वजह से होने वाली बीमारियों का सीधा संबंध जुड़ा हुआ है.
शोध अनुसार, धूल कणों की सघनता 10 माईक्रोग्राम कम होने से जीवन दर 0.77% प्रति साल बढ़ जाती है और संम्पूर्ण रूप से जीवन दर में 15% तक की बढ़ोतरी होती है.
इस समस्या पर इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) के मानद महासचिव पद्मश्री डा. के.के. अग्रवाल ने कहा, “हालिया शोध के अनुसार थोड़े समय के लिए कार्बन मोनोआक्साईड, नाईट्रोजन डायऑक्साइड और सल्फर डाईऑक्साइड जैसे प्रदूषण कारकों के संपर्क में रहने से दिल के दौरे का खतरा बढ़ जाता है. यह खतरा 0.6 से लेकर 4.5 प्रतिशत तक आबादी को प्रभावित कर सकता है.”
उन्होंने कहा, “इस समय दिल्ली की आबादी सबसे ज्यादा है, इसलिए वायु प्रदूषण के खतरों के बारे में जागरूक करना और सेहतमंद रहने के लिए उचित कदम उठाना बेहद आवश्यक है. जीवनशैली से जुड़े रोगों वाले मरीज, बच्चे और उम्रदराज लोग हाई रिस्क में आते हैं. इन लोगों को अत्यधिक प्रदूषित माहौल में ज्यादा समय नहीं रहना चाहिए, मास्क पहनना चाहिए और ज्यादा थका देने वाली बाहरी गतिविधियों से बचना चाहिए. देश में प्रदूषण कम करना हर नागरिक का फर्ज है.”
वायु प्रदूषण का संबंध बच्चों में फेफड़ों के विकास और बीमारियों से भी जुड़ा हुआ है। हवा की गुणवत्ता में सुधार से 11 से 15 साल तक के दमा वाले और बिना दमा वाले बच्चों में 1 सेकेंड में फोर्सड एक्सपीरेटरी और फोर्सड वाईटल कैपेसिटी में सुधार देखा गया है.
प्रदूषित हवा और फेफड़ों की बीमारी में सीधे संबंध की पहचान हो चुकी है, लेकिन प्रदूषण और दमा के संबंध के बारे में कोई स्पष्ट प्रमाण उपलब्ध नहीं हैं.
हमें प्रदूषण को कम करने के लिए कदम उठाने होंगे. हमारी आने वाली पीढ़ियों का भविष्य हमारे हाथों में है.