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आनुवांशिक आदतों के कारण भी हो सकता है ‘बाइपोलर डिसऑर्डर’

बाइपोलर डिसऑर्डर से ग्रसित रोगी की मनोदशा बारी-बारी से दो विपरीत अवस्थाओं में जाती रहती है. एक मनोदशा में रोगी सनक या उन्माद की अवस्था में चला जाता है तो दूसरी मनोदशा में वह अवसाद से घिर जाता है. अपनी तरह के अनूठे हालिया शोध में वैज्ञानिकों ने एक विशेष प्रकार के मानसिक विकार यानी […]

बाइपोलर डिसऑर्डर से ग्रसित रोगी की मनोदशा बारी-बारी से दो विपरीत अवस्थाओं में जाती रहती है. एक मनोदशा में रोगी सनक या उन्माद की अवस्था में चला जाता है तो दूसरी मनोदशा में वह अवसाद से घिर जाता है.

अपनी तरह के अनूठे हालिया शोध में वैज्ञानिकों ने एक विशेष प्रकार के मानसिक विकार यानी बाईपोलर डिसऑर्डर’ से संबद्ध दर्जन भर से अधिक वंशानुगत लक्षणों की पहचान करने में सफलता हासिल कर ली है. ये वंशानुगत लक्षण सोने-जागने की आदत या क्रिया-कलाप चक्र से संबंधित हैं.

टेक्सास विश्वविद्यालय के साउथवेस्टर्न मेडिकल सेंटर के जोसफ ताकाहाशी ने कहा, हमने नींद और क्रिया-कलाप से जुड़े 13 लक्षणों की पहचान की है, जिनमें से अधिकांशत: वंशानुगत होते हैं, जिनकी मदद से पता लगाया जा सकता है कि किसी व्यक्ति को बाइपोलर डिसऑर्डर है या नहीं. साथ ही हमने इनमें से कुछ लक्षणों का कुछ विशिष्ट गुणसूत्रों से संबद्धता का भी पता लगाया है.

बाइपोलर डिसऑर्डर से ग्रस्त रोगी की मनोदशा में नाटकीय परिवर्तन देखने को मिलता है. कभी तो वह बेहद उत्साहित रहता है तो कभी अत्यधिक दुखी, कभी अवसाद की स्थिति में रहता है तो कभी मिश्रित मनोदशा में. आनुवंशिक और पर्यावरणीय दोनों को बाइपोलर डिसऑर्डर का कारण माना जाता रहा है और वैज्ञानिक लंबे समय से मानते रहे हैं कि दैनिक चक्र में व्यवधान के कारण मनोदशा में बदलाव हो सकता है.

इस अध्ययन में कोस्टारिका और कोलंबिया से 26 परिवारों के 500 से अधिक सदस्यों को शामिल किया गया और पाया गया कि बाइपोलर डिसऑर्डर से ग्रस्त व्यक्ति देर से जागते हैं और लंबी नींद लेते हैं और सामान्य व्यक्तियों की तुलना में सम समय तक सक्रिय रहते हैं.

शोधकर्ताओं ने यह भी पाया कि जाग्रत अवस्था में बाइपोलर डिसऑर्डर से ग्रस्त व्यक्तियों में क्रिया-कलाप का स्तर कम होता है तथा सोने और जागने के उनके चक्र में काफी विविधता होती है.

लॉस एंजेलिस स्थित कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के नेल्सन फ्रेमर ने बताया, यह अध्ययन बाइपोलर डिसऑर्डर के मूल कारणों की पहचान में एक अहम कदम है और इस बीमारी की रोकथाम और उपचार के लिए नए तरीके ढूंढने का मार्ग प्रशस्त करता है.

यह शोध प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज’ पत्रिका के ताजा अंक में प्रकाशित हुआ है.

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