गर्भ धारण के प्रथम तीन माह में होने वाले गर्भपात का कारण खोजने के लिए बीएचयू के वैज्ञानिकों ने लखनऊ यूनिवर्सिटी के साथ मिल एक शोध किया जिसके परिणाम बताते हैं कि सही खान-पान ही शुरू के दिनों में होने वाले गर्भपात से बचा सकता है. पूरा लेख पढ़े…
बीएचयू के वैज्ञानिकों ने यूनिवर्सिटी ऑफ मैरीलैंड एवं सेंट्रल ड्रग्स रिसर्च इंस्टीट्यूट लखनऊ के साथ मिल एक शोध किया गया है. वैज्ञानिकों ने यह उपलब्धि एमडीएससी कोशिकाओं यानी ‘माइलाइड डिशव्ड सप्रेसर सेल्स’ पर शोध से हासिल की है. ये कोशिकाएं प्रारंभिक गर्भावस्था काल में गर्भ ठहराव में मदद करती हैं.
बदल रही जीवन शैली के कारण, दूषित पर्यावरण, सामाजिक व आर्थिक स्थिति, मानसिक तनाव, हार्मोन परिवर्तन, पोषक तत्वों में कमी, हाई ब्लडप्रेशर, गर्भावस्था में मधुमेह आदि से भी यह समस्या पैदा हो रही है.
इन कोशिकाओं की संख्या व कार्य क्षमता में कमी से गर्भपात की समस्या बढ़ जाती हैं. जो महिलाएं गर्भपात से गुजरी उन महिलाओं में फोलिक एसिड एवं विटामीन बी-12 की बहुत कमी पाई गई है. इन पोषक तत्वों के मेटाबोलिज्म में सहयोग करने वाले जींस में गड़बड़ी होने पर भी गर्भपात की स्थिति पैदा हो जाती है.
मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य विषय पर काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के मालिक्यूलर एंड ह्यूमन जेनेटिक्स विभाग की डॉ. किरन सिंह व उनकी शोध छात्र डॉ. रोहिणी नायर वर्षो से कार्य कर रही थी.
जेनेटिक कारणों को पता लगाने को एसएस अस्पताल के महिला एवं प्रसूति विभाग की पूर्व अध्यक्ष प्रो.अनुराधा खन्ना के को-गाइडेंस में हुए शोध में संतोषजनक परिणाम आए हैं. विभाग की ओपीडी में आने वाली 15 प्रतिशत महिलाओं में प्रारंभिक गर्भपात एवं 12 प्रतिशत महिलाओं में पूर्व प्रसव पीड़ा की समस्या पाई गई.
शोध प्रकाशन के बाद इन कोशिकाओं का गर्भावस्था में कार्य पर अनेक अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं भी शोध में जुट गई हैं.
यह शोध अंतरराष्ट्रीय जर्नल ‘अमेरिकन जर्नल रीप्रोडाक्टिव इक्यूनोलॉजी व फर्टिलिटी स्टर्लिटी’ में प्रकाशित किया गया है.