आदमी के जीन मुर्गे में भी! जी हाँ बात चौकाने वाली तो है लेकिन यह सच भी है. हालिया हुए एक शोध ने इस बारे में जानकारी दी है कि डर, चिंता वगैरह वाले तीन जीन ऐसे हैं जो मुर्गे और आदमी में समान हैं. अभी यह निश्चित नहीं किया जा सका है कि दोनों के जीन का प्रभाव कितने हद तक समान है.
हालाकि, आदमी के दिमाग को लेकर कई अध्ययन होते रहते ही हैं लेकिन स्वीडन के लिंकोपिंग विश्वविद्यालय में जीन वैज्ञानिक डॉ. डॉमिनिक राइट का यह शोध कुछ अलग किस्म की बातें भी बताता है.
यह शोध बताता है कि मुर्गे में दस जीन ऐसे हैं जो उसके दिमाग को संचालित करते हैं. इनमें से तीन ऐसे जीन आदमी में भी पाए जाते हैं जो सिजोफ्रेनिया और बायपोलर डिसऑर्डर जैसे मानसिक रोगों के कारण बनते हैं. इन पर आगे अध्ययन कर यह जानने की कोशिश की जा रही है कि इन रोगों के इलाज में किस तरह मदद मिल सकती है.
डॉ. राइट का कहना है कि जीन को लेकर अब तक हो रहे अध्ययन में अधिकतर यह जानने की कोशिश की जा रही है कि मानसिक रोग क्यों होते हैं और उनसे बचाव के क्या उपाय हैं. लेकिन वे इस प्रयास में हैं कि आदमी के व्यवहार को भी इसके जरिये विस्तार से समझा जा सके. यह जानने की कोशिश की जा रही है कि क्यों किसी आदमी को डर अधिक लगता है जबकि दूसरा आदमी बिल्कुल निडर होता है.
अटलांटा में एमोरी यूनिवसिर्टी स्कूल ऑफ मेडिसिन के वैज्ञानिकों के अनुसार, खौफ कुछ लोगों के डीएनए में होता है और यह डीएनए में एक से दूसरी पीढ़ी में गया रासायनिक बदलाव है.
फिलहाल, इस बारे में वैज्ञानिक किसी नतीजे पर नहीं पहुंचे हैं कि क्या ज्ञान और अनुभव भी एक से दूसरी पीढ़ी में जा सकता है? लेकिन उनका कहना है कि ज्ञान का एक से दूसरी पीढ़ी में जाना भी उसी तरह मुमकिन है जिस तरह खौफ.