बच्चों की सुरक्षा के लिए आप उठाएं कदम
अपने बच्चों को ऐसे कोड बताइए जिनसे वे उनसे तो बच सकेंगे, जो बच्चों को यह कह कर साथ ले जाते हैं कि आपको मम्मी, पापा, चाचा ने बुलाया है. कोड ऐसे हों, जो अनकॉमन हों. जो जल्दी गेस न किये जा सकें. ये कोड किसी से भी शेयर न करें. जिस तरह से आसपास […]
अपने बच्चों को ऐसे कोड बताइए जिनसे वे उनसे तो बच सकेंगे, जो बच्चों को यह कह कर साथ ले जाते हैं कि आपको मम्मी, पापा, चाचा ने बुलाया है. कोड ऐसे हों, जो अनकॉमन हों. जो जल्दी गेस न किये जा सकें. ये कोड किसी से भी शेयर न करें. जिस तरह से आसपास अपराध बढ़ रहे हैं, उसमें खुद सतर्क रहना ही सही कदम है.
पिछले कॉलम के बाद दो मेल आये, जिनमें लिखा है कि “आपने कहा है कि बच्चे बिना पूछे किसी के साथ न जाएं और साथ बच्चों को सिखाया जाये कि वे सतर्क रहें. अगर आप सुझाव दे रही हैं, तो प्लीज रास्ता भी बताइए”. एक बेटी ने पूछा है कि “कैसे प्रिकॉशन लिये जा सकते हैं?” इसी तरह एक महिला ने लिखा है कि “अक्सर छोटे बच्चे किडनेपर के निशाने पर होते हैं. उन्हें समझ भी नहीं होती और हमें भी समझ नहीं आता कि उन्हें कैसे रोका जाये?” इसके लिए सीधा-सा रास्ता है आप बच्चों को बार-बार समझाएं. उन्हें स्टोरी सुनाकर बताएं कि कैसे और क्यों लोग बच्चों को उठा लेते हैं फिर कैसे उनसे भीख मंगवाते हैं, काम करवाते हैं. उम्हें पापा-मम्मा के बगैर और भूखा रहना पड़ता है.
आप अपने बच्चों को ऐसे कोड बताइए जिससे वे उनसे तो बच सकेंगे जो बच्चों को यह कहकर साथ ले जाते हैं कि आपको मम्मी, पापा, चाचा ने बुलाया है. कोड ऐसे हों, जो अनकॉमन हों. जो जल्दी गेस न किये जा सकें. वो कोई फूल, फल, शहर, नम्बर, नाम, रिश्ता किसी का नाम भी हो सकता है. ये कोड केवल आपके और आपके बच्चों के बीच ही होने चाहिए. किसी भी दोस्त से शेयर न करें. अगर यह कोड न बताने पर आपका कोई दोस्त नाराज भी हो जाये तो फिक्र मत करिएगा. यह किसी पर भी अविश्वास जैसा कुछ भी नहीं.
केवल और केवल आपके बच्चों की सुरक्षा के लिए उठाया गया कदम है. ऐसा नहीं कि दुनिया में अच्छे लोग हैं ही नहीं. अभी भी ऐसे लोग हैं जो दूसरों की खातिर अपने प्राण भी संकट में डाल देते हैं. मगर हमेशा ऐसे लोगों से समय पर मदद मिल जाये, यह जरूरी नहीं. हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि जिस तरह से आस-पास अपराध बढ़ रहे हैं, उसमें खुद सतर्क रहना ही सही कदम है. अपनी सुरक्षा हमें खुद ही करनी होगी.
देर रात घर आनेवालों को घर के लोगों के साथ कुछ कोड बना लेने चाहिए. जैसे अगर बाहर खतरा है, कोई गन प्वाइंट पर आपसे घर खुलवाता है या आपको लगता है कोई पीछा करके आपके घर में घुसना चाहता है तो आप घर की बेल एक बार ही बजाएंगे. हाॅर्न दो बार बजाएंगे. अगर कोई आपसे दबाव में फोन करवा रहा है तो आप वही बोलें जो सामनेवाला कह रहा है, लेकिन उसी बीच खांसकर, लम्बी सांस लेकर या किसी भी तरीके से आपको यह बात फोन सुननेवाले तक पहुंचानी होगी कि आप सब खतरे में हैं, जिससे दरवाजा खोलने से पहले जरूरी फोन किये जा सकें. खराब स्थिति कहकर नहीं आती. इससे निपटने के लिए आपको चौकन्ना रहना पड़ेगा. एक बच्चे ने लिखा है कि “सभी माता-पिता अपने बच्चों के लिए अपना पूरा जीवन खर्च कर देते हैं. यह तो उनका फर्ज है. पंछी भी तो अपने बच्चों को पालते हैं और जब उड़ना सीख जाते हैं तो फिर उनके साथ नहीं रहते. फिर इनसान ही अपने बच्चों से क्यों इतनी उम्मीद लगाकर रखता है ?”.
बच्चो, यह सही है कि पशु-पक्षी सभी अपने बच्चों को पालते हैं लेकिन क्या आपको पता है कि पंछी अपने उस बच्चे को जिसे गंभीर बीमारी है या वह इतना घायल है कि आगे नहीं जा सकता, ऐसी सूरत में वह अपने बीमार बच्चे को घोंसले से बाहर कर देते हैं और घायल बच्चे को छोड़कर बाकी बच्चों के साथ आगे बढ़ जाते हैं.
यह हम इनसान ही हैं जो लाइलाज बीमारी से लड़ रहे बच्चों के इलाज में भी जमीन-जायदाद क्या माता-पिता खुद को भी बेच देते हैं, मगर बच्चों को बचाने का हर सम्भव प्रयास करते हैं. जीवन भर की पूंजी वे अपने बच्चों पर खर्च कर देते हैं. दो-तीन बच्चे मिलकर भी अपने बुजुर्ग मां-पिता को नहीं संभाल पाते, मगर माता-पिता अपने चार-पांच बच्चों को भी पाल लेते हैं. यह अंतर होता है इनसान और पशु-पक्षी में.
सभी माता-पिता अपने बच्चों के भरण-पोषण में अपनी पूरी जमा-पूंजी और ऊर्जा खर्च कर देते हैं, लेकिन क्या सभी बच्चे ऐसा करते हैं? क्या सभी कर्तव्य माता-पिता के हैं? बच्चों का भी तो फर्ज है कि अपने बुजुर्ग मां-पिता की देख-रेख करें. अगर वे अपने पूरे जीवन की पूंजी अपने बच्चों का भविष्य बनाने पर लगा देते हैं तो बच्चों का भी फर्ज है कि वे वृद्धावस्था में अपने माता-पिता का सहारा बनें. लेकिन प्यारे बच्चो, क्या सब बच्चे ऐसा करते हैं? अगर ऐसा होता तो आज वृद्धाश्रमों की जरूरत नहीं होती. वृद्धाश्रम होते ही नहीं. आप जानते हैं, पिता कैसा होता है?
पिता वह होता है जो अपने बच्चों को नये-नये कपड़े खरीदकर देता है और अपने ऑफिस पुराने कपड़ों में जाता है. खुद साइकिल से चलता है मगर बच्चे के लिए स्कूटी खरीदता है. बच्चों की हर फरमाइश पूरी करता है मगर खुद अभावों में जीकर भी खुश रहता है. मां खुद दवाई खाना भूल जाती है मगर बच्चों के लिए खाना बनाना नहीं भूलती. पहले आपको खिलाती है, फिर खुद खाती है. खुद कष्टों में जीती है मगर बच्चों की हर जरूरत पूरी करती है. रात में पढ़ाई आप करते हैं और उठकर आपके लिए चाय वह बनाती है. आप कहकर सो जाते हैं कि मुझे 4 बजे उठा देना.
जब वह थककर सोती है तो उठने की हिम्मत शेष नहीं होती. फिर भी अलार्म बजने पर पहले वह उठती है और आपको चाय-दूध बनाकर देती है. किस जतन से वह आपको पालते हैं और आप उन्हीं को भूल जाते हैं. उनके सपनों को अपने आकर्षण और प्यार में पड़कर चकनाचूर कर देते हैं. बच्चे कितना ही बड़ा कांड क्यों न करें, पेरेंट्स बच्चों को बचाने का पूरा प्रयास करते हैं मगर आप उन्हीं का भावनाओं का ध्यान नहीं रखते!
(क्रमश:)