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आइवीएफ से जन्म लेंगी खुशियां

संतान सुख पाने के लोग न जाने कितनी मिन्नतें करते हैं, कहां-कहां उपचार कराते हैं, फिर भी कई लोगों को यह सुख नसीब नहीं होता. इनफर्टिलिटी की समस्या से जूझ रहे लोगों के लिए आइवीएफ तकनीक आज किसी वरदान से कम नहीं. आज यह तकनीक कहीं ज्यादा किफायती भी है. नि:संतान दंपती इसे अपना कर […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 14, 2016 8:47 AM
संतान सुख पाने के लोग न जाने कितनी मिन्नतें
करते हैं, कहां-कहां उपचार कराते हैं, फिर भी कई लोगों को यह सुख नसीब नहीं होता. इनफर्टिलिटी की समस्या से जूझ रहे लोगों के लिए आइवीएफ तकनीक आज किसी वरदान से कम नहीं. आज यह तकनीक कहीं ज्यादा किफायती भी है. नि:संतान दंपती इसे अपना कर अपनी गोद खुशियों से भर सकते हैं. इसकी िवशेष जानकारी दे रहे हैं कोलकाता व िदल्ली से हमारे विशेषज्ञ.
डॉ सुदर्शन घोष
दस्तीदार
बांझपन विशेषज्ञ, कोलकाता
ई-मेल : sudarshan.ivf@gmail.com
मो : 08981158177
इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (आइवीएफ) या टेस्ट ट्यूब बेबी तकनीक हताश दंपत्ति के मन में उम्मीद की नयी किरण जगाने का काम कर रही है. इसमें लेबोरेटरी में स्पर्म एवं ओवम का मिलन करा कर जीवन की रचना की जाती है. स्वाभाविक रूप से भ्रूण को विकसित करने के लिए उसे डिलिवरी तक मां के यूटेरस में रखा जाता है. वर्तमान में बांझपन के लिए फर्टिलिटी ड्रग्स को चिकित्सा विज्ञान में महत्वपूर्ण माना जा रहा है. ओवेरियन स्टीम्यूलेशन बढ़ाये जाने के कारण ही काफी अधिक संख्या में डिंबाणु मिलते हैं.
इससे काफी अच्छी क्वालिटी के भ्रूण तैयार होना संभव हो पाता है. आइवीएफ का खर्च कोलकाता में करीब 70 हजार रुपये आता है. अलग से 20-30 हजार रुपया दवाइयों पर खर्च आता है. आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के लिए 50 हजार रुपये में भी सुविधा है.
स्थिति के अनुसार उपचार
आइवीएफ करवाने से पहले जानना जरूरी है कि महिला को थायरॉयड या अन्य कोई बीमारी तो नहीं है. पीसीओएस की भी जांच जरूरी है. वजन का कम या अधिक होना और उम्र भी महत्वपूर्ण हैं. 34 साल से ज्यादा होने पर एग्स की क्वालिटी में गिरावट आती है. 33 साल की उम्र तक एग्स की गुणवत्ता अच्छी रहती है. आइवीएफ से पहले अच्छी लेबोरेटरी से एएमएच ब्लड टेस्ट करवाना चाहिए. महिला 30 साल या उससे कम की है, तो आइवीएफ की सफलता 50-70 प्रतिशत तक रहती है. वहीं अगर उम्र 34 साल से ज्यादा हो, तो सफलता दर 25-40 प्रतिशत तक रहती है.
इनफर्टिलिटी के कारण
भारत की कुल आबादी के 10 से 15% लोगों में इन्फर्टिलिटी है़ इनफर्टिलिटी का 35% कारण महिलाएं और 35% कारण पुरुष हैं. 20% कारण कंबाइंड हो सकते हैं और 10% कारणों का अब तक पता नहीं चल पाया है. भ्रांति के कारण लोग इन्फर्टिलिटी या बांझपन का सारा दोष महिलाओं पर थोप देते हैं. आज आधुनिक चिकित्सा में आइवीएफ व अन्य पद्धतियों से इनफर्टिलिटी का उपचार संभव है़ आइवीएफ में सफलता की दर महिलाओं की उम्र पर निर्भर करती है़ अगर महिला की उम्र 30 से कम है, तो आवीएफ में सफलता की दर 50% और 37 साल से ज्यादा है, तो सफलता की दर 25-30% हो सकती है़ इनफर्टिलिटी का एक बड़ा कारण ओबेसिटी भी है़ जंक फूड, हाइ कैलोरी फूड व एक्सरसाइज व शारीरिक श्रम की कमी से महिलाओं में मोटापा बढ़ रहा है़ इसके अलावा पीसीओएस के कारण भी वजन बढ़ जाता है, जिससे एग नहीं बन पाता है़ पीसीओएस का उपचार बिना आॅपरेशन किये दवाइयों से व लाइफ स्टाइल बदलने से संभव है़
एडवांस्ड आइवीएफ से इलाज तभी किया जाता है जब पुरुष के स्पर्म में कोई समस्या हो या जिनका स्पर्म नहीं मिलता हो, लेकिन टेस्टिस में स्पर्म है़ इसमें से एक बेहतरीन स्पर्म को लेकर भी दंपती को अपना जेनेटिक बच्चा दिया जा सकता है़
बातचीत : भारती जैनानी, कोलकाता
(इनफर्टिलिटी के उपचार व रिसर्च के मामले में घोष दस्तीदार इंस्टीट्यूट फॉर फर्टिलिटी रिसर्च, कोलकाता (जीडीआइएफआर) भारत का अग्रणी सेंटर बना हुआ है़ यहां के प्रमुख डॉ सुदर्शन घोष दस्तीदार 35 साल से इनफर्टिलिटी के क्षेत्र में अनुसंधान कर रहे हैं और अब तक 2600 सफल आइवीफ कर चुके हैं.)
मॉडर्न साइंस की देन है
आइवीएफ कौन करा सकता है
आइवीएफ उन महिलाओं के लिए है, जिनका ट्यूब ब्लॉक हो, वजन ज्यादा या बच्चेदानी में टीबी हुआ हो. जिन महिलाओं को एडवांस एंडोमेट्रियोसिस है, उनके एग की क्वालिटी अच्छी नहीं होती है, जिससे प्रेग्नेंसी में दिक्कत आ सकती है. ऐसी महिलाएं भी आइवीएफ से संतान सुख हासिल कर सकती हैं. जिन पुरुषों में स्पर्म की क्वालिटी अच्छी नहीं हो, वे भी आइवीएफ में जा सकते हैं.
कौन नहीं करा सकता
यदि किसी कारण से गर्भाशय निकाल दिया गया हो, कभी पेल्विक एब्सेस या फोड़ा हुआ हो. ओवरी सही तरीके से काम नहीं कर रही हो, तो यह ट्रीटमेंट नहीं हो पाता है. गर्भाशय नहीं होने की स्थिति में सेरोगेसी का सहारा लिया जाता है, जिसके लिए कुछ कानूनी प्रक्रिया अपनानी पड़ती है.
सक्सेस स्टोरी
रीना चौधरी (43 वर्ष) की शादी 2004 में हुई थी. इन्होंने पहले दो वर्षों के दौरान परिवार नियोजन के बारे में कुछ सोचा ही नहीं था. बाद में इच्छा होने और प्रयास करने के बावजूद भी गर्भधारण नहीं कर पा रही थीं, तो काफी चिंता होने लगी. तनाव के कारण वे डिप्रेशन की भी शिकार होने लगीं. कई डॉक्टरों को दिखाया, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. गर्भधारण न कर पाने का कारण पता नहीं चल पा रहा था. तब एक मित्र ने आइवीएफ की सलाह दी.
तब बिना समय गंवाये वे डॉ सुदर्शन घोष के क्लिनिक जीडीआइएफआर, कोलकाता में पहुंचीं. वहां जांच में पता चला कि ट्यूब ब्लॉक था. उसे एक माइक्रोसर्जरी के जरिये हटाया गया. कुछ और जांच हुई. छह महीने की दवा दी गयी. इलाज के दो साल के भीतर वह गर्भवती हो गयी. इस तकनीक की सफलता के लिए डॉक्टर द्वारा बतायी गयी कुछ सावधानियों का ध्यान रखना जरूरी है. ऐसा करने पर ही बहुत जल्दी उम्मीद के मुताबिक रिजल्ट मिलेगा. आज उनके दो बच्चे हैं, एक बेटा और एक बेटी.
भारत में पहला आइवीएफ
भारत में 1978 में पहली बार आइवीएफ तकनीक की मदद से बच्ची का जन्म कोलकाता में हुआ, जिसका नाम कनुप्रिया अग्रवाल है. उसे दुर्गा के नाम से भी जाना जाता है. उसी साल दुनिया की पहली टेस्ट ट्यूब बेबी इंगलैंड में हुई थी, जिसका नाम लुइस ब्राउन है और उसके दो महीने के बाद ही भारत में कनुप्रिया का जन्म हुआ. कनुप्रिया भारत की पहली और विश्व की दूसरी टेस्ट ट्यूब बेबी है.
आइवीएफ तकनीक अंतिम विकल्प के रूप में अपनाएं. जो लोग दो वर्ष से भी ज्यादा समय से प्रयास के बाद भी कंसीव नहीं कर पा रहे हैं या जिन महिलाओं का ट्यूब ब्लॉक हो चुका है, उन्हें इस ट्रीटमेंट के लिए तैयारी करनी चाहिए, अन्यथा अन्य विकल्पों पर गौर करें. यदि पुरुष का स्पर्म काउंट बिल्कुल कम है, तो उन दंपतियों को भी बिना समय गंवाये आइवीएफ का चयन करना चाहिए. अगर आपके पाटर्नर में स्पर्म काउंट कुछ कम है, तो आप आइवीएफ न करवा कर आर्टिफिसियल इनसेमिनेशन भी करवा सकती हैं. इसका खर्च आइवीएफ से कम होता है.
यदि आपकी उम्र 25 साल के आस-पास है, तो अभी आप निश्चिंत रहिए क्योंकि अभी आपके पास टेस्ट ट्यूब बेबी के लिए बहुत समय है. आमतौर पर इनफर्टिलिटी की समस्या 30 की उम्र पार कर चुकी महिलाओं के साथ होती है. 35-40 साल की महिलाओं को आइवीएफ तकनीक से बच्चे की चाह पर जल्द-से-जल्द फैसला लेना चाहिए, क्योंकि मेनोपॉज के नजदीक आने से भी आइवीएफ तकनीक में कई बाधाएं आ सकती हैं. इसमें आनेवाला खर्च इस बात पर भी निर्भर करता है कि दंपती खुद अपने अंडे और स्पर्म दे रहे हैं या फिर किसी डोनर से ले रहे हैं. िकसी डोनर से स्पर्म या अंडे लेने पर खर्च अिधक आ सकता है.
आइवीएफ की प्रक्रिया
इस तकनीक के अंतर्गत अंडाशय से अंडों को अलग करने के लिए आॅपरेशन किया जाता है. इसमें तकरीबन आधा घंटा लगता है. इन अंडों को लैब में स्पर्म के साथ रख कर फर्टिलाइज कराया जाता है.
पांच-छह दिनों तक फर्टिलाइज अंडों को लैब में चिकित्सक की देख-रेख में रखा जाता है. इसके बाद इन्हें गर्भ में रखा जाता है. आइवीएफ की एक साइकिल लगभग दो सप्ताह की होती है. दस दिन से 14 दिनों बाद चिकित्सक महिला का ब्लड टेस्ट कर प्रेग्नेंसी की जांच करते हैं. यदि महिला प्रेग्नेंट होती है, तो डॉक्टर की देख-रेख में रखा जाता है. यदि दो सप्ताह बाद भी प्रेग्नेंट नहीं हो पाती है, तो फिर प्रोजेस्ट्रॉन दिया जाता है. इसके बाद भी प्रेग्नेंट नहीं होने पर, दोबारा आइवीएफ की साइकिल करनी पड़ती है. इस तकनीक में अंडा और स्पर्म किसी डोनर से लिया जा सकता है. इस तकनीक से हेल्दी बच्चे होने के चांस भी ज्यादा होते हैं, क्योंकि इसमें अधिकांश कार्य लेबोरेटरी में डॉक्टरों की देख-रेख में किया जाता है.
समझें आइवीएफ को
इस तकनीक की खोज यूके के प्रो. रॉबर्ट एडवर्ड्स ने की थी. इसके लिए उन्हें नोबेल पुरस्कार भी दिया गया था. जो महिलाएं किसी कारण गर्भधारण करने में सक्षम नहीं होती हैं, इस तकनीक के जरिये उनमें आर्टिफिसियल गर्भ ठहराया जाता है. पहले बांझपन की शिकार महिलाओं के अंडाशय से अंडों को अलग किया जाता है. उसके बाद अलग किये गये अंडों का शुक्राणुओं से मिलन कराया जाता है. इसके बाद निषेचित अंडे को गर्भाशय में रख दिया जाता है. आइवीएफ तकनीक की खास बात यह है कि इससे वे महिलाएं भी मां बनने का सपना साकार कर सकती हैं, जो रजोनिवृत्त हो चुकी हैं. हालांकि 40 के बाद इस तकनीक की सफलता दर काफी कम देखी गयी है.
ये हो सकती हैं परेशानियां
हालांकि, आइवीएफ वर्तमान में सबसे विकसित तकनीक है, फिर भी विभिन्न हालातों में कई प्रकार के रिस्क भी देखने को मिलते हैं, जो निम्न हैं :
-एक से ज्यादा बच्चे का जन्म : इस तकनीक के कारण एक से अधिक बच्चे के जन्म होने के चांस अधिक होते हैं. गर्भाशय में फर्टिलाइज अंडे को धारण करते समय ऐसा हो जाता है. एक से अधिक बच्चे को जन्म देने में डिलिवरी काफी क्रिटिकल हो सकती है.
-प्री-मैच्योर डिलिवरी : लापरवाही और गलत खान-पान से आइवीएफ तकनीक से प्री-मैच्योर डिलीवरी हो सकती है.
बातचीत : कुलदीप तोमर, िदल्ली

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