बढ़ते बच्चों के लिए ‘कितना प्रोटीन है जरुरी’?

बढ़ते बच्चों को एक अच्छी डाइट की सबसे ज्यादा जरूरत होती है. सभी पैरेंट्स जानते है कि उनके बच्चे को क्या खिलाना है और क्या नहीं. लेकिन कई लोगों को यह नहीं पता कि उनके बढ़ते बच्चे को कितनी मात्रा क्या, कितना देना उचित होगा. कई बार पैरेंट्स को लगता है कि बच्चों को ज्यादा […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 25, 2016 6:00 PM

बढ़ते बच्चों को एक अच्छी डाइट की सबसे ज्यादा जरूरत होती है. सभी पैरेंट्स जानते है कि उनके बच्चे को क्या खिलाना है और क्या नहीं. लेकिन कई लोगों को यह नहीं पता कि उनके बढ़ते बच्चे को कितनी मात्रा क्या, कितना देना उचित होगा.

कई बार पैरेंट्स को लगता है कि बच्चों को ज्यादा खिला कर वह सही कर रहे है लेकिन यह गलत है. बच्चों के दिए जाने वाले पोषक तत्वों की सीमित मात्रा का होना बेहद जरुरी है. ऐसे ही प्रोटीन की अधिकता भी बुरी साबित हो सकती है. कैसे? आइये आपको बताते हैं…

नई दिल्ली के श्रीगंगा राम हॉस्पिटल में न्यूरोलॉजी के वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. सतीश सलूजा ने कहा, "शिशुओं में प्रोटीन की अत्यधिक मात्रा बच्चे के बड़े होने के साथ मोटापे की कोशिकाओं (फैट सेल्स) की संख्या बढ़ाती है और उनमें इन्सुलिन और आईजीएफ-1 (लीवर द्वारा बनाया जाने वाला हॉर्मोन, जो इंसुलिन की तरह काम करता है) का उत्सर्जन बढ़ जाता है. इसके कारण वजन और मोटापा तेजी से बढ़ता है, जिससे डायबिटीज़ और हृदय रोग जैसी कई अन्य स्वास्थ्य समस्याओं का खतरा बढ़ जाता है."

प्रोटीन की अधिकता से होने वाली स्वास्थ्य समस्याएं

-प्रोटीन की जरूरत से ज्यादा मात्रा लेने से शिुश की अपरिपक्व गुर्दो पर भी बुरा प्रभाव पड़ सकता है.

-मनुष्य के शरीर में अतिरिक्त प्रोटीन जमा नहीं होता है, बल्कि शरीर इसे तोड़कर बाई-प्रोडक्ट बनाता है, जिसका मूत्र के साथ शरीर से बाहर निकलना जरूरी होता है.

-किडनी तेजी से काम करना शुरू करता है और सिस्टम में जमा होने वाले कीटोन्स को बाहर निकालने की कोशिश करता है, जिससे बच्चे की किडनी पर काफी दबाव पड़ता है.

-अत्यधिक प्रोटीन खून में यूरिया, हाइड्रोजन आयन एवं अमीनो एसिड (फिनाईलेलेनाइन, ट्रायोसाइन) की मात्रा बढ़ाता है, जिससे मेटाबॉलिक एसिडोसिस होती है. मेटाबॉलिक अनियमितताओं से दिमाग के विकास पर बुरा प्रभाव पड़ता है.

-अत्यधिक प्रोटीन से बुखार या डायरिया के समय कैल्शियम की हानि होती है, रोग प्रतिरोधक क्षमता प्रभावित होती है और डिहाइड्रेशन के साथ-साथ कमजोरी भी आती है.

डॉ. सलूजा ने कहा, "मां का दूध पोषण का एक बेहतरीन स्रोत है, जिसकी नकल नहीं की जा सकती. इसमें प्रोटीन की मात्रा डायनैमिक होती है. यह शिशु के शरीर की जरूरतों के अनुसार बदलती रहती है और उसे सही मात्रा में प्रोटीन उपलब्ध कराती है. शिशु के विकास के साथ-साथ मां के दूध में भी प्रोटीन की मात्रा उसकी जरूरत के अनुसार कम होती जाती है."

भारत में स्तनपान और पोषण के प्रयास हमेशा अपेक्षित स्तर से कम होते हैं. नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे रिपोर्ट्स के अनुसार, पहले छह महीनों में केवल 46% बच्चों को ही स्तनपान कराया जाता है.

डॉ. सलूजा ने कहा, "हम अपने बच्चों के लिए जो विकल्प चुनते हैं, उससे उनके विकास का निर्धारण होता है. शिशु के जीवन के पहले 1,000 दिन सबसे महत्वपूर्ण होते हैं. शिशु के लिए सर्वश्रेष्ठ पोषण एवं सही मात्रा में प्रोटीन प्रदान करना सबसे अधिक महत्वपूर्ण है. जब भी संदेह हो तो यह महत्वपूर्ण है कि आप अपने शिशु की वृद्धि एवं विकास के लिए अपने शिशुरोग चिकित्सक से संपर्क करें."

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