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जोड़ों को लचीला बनाता है पाद प्रसार पश्चिमोत्तानासन

पाद प्रसार पश्चिमोत्तानासन भी सामने की तरफ झुक कर किया जानेवाला आसन है. इस आसन को करने के पूर्व पश्चिमोत्तानासन में दक्षता अनिवार्य है़ इस अभ्यास को भी किसी कुशल योग प्रशिक्षक के मार्गदर्शन में ही करना चाहिए़ आसन की विधि प्रथम प्रकारांतर : दोनों पैरों को परस्पर अलग रखते हुए, क्षमता के अनुसार, सामने […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 27, 2016 7:06 AM
पाद प्रसार पश्चिमोत्तानासन भी सामने की तरफ झुक कर किया जानेवाला आसन है. इस आसन को करने के पूर्व पश्चिमोत्तानासन में दक्षता अनिवार्य है़ इस अभ्यास को भी किसी कुशल योग प्रशिक्षक के मार्गदर्शन में ही करना चाहिए़
आसन की विधि
प्रथम प्रकारांतर : दोनों पैरों को परस्पर अलग रखते हुए, क्षमता के अनुसार, सामने फैला कर बैठ जायें अब हाथों को पीठ के पीछे ले जायेंं और उंगलियों को आपस में फंसा लें. यह अभ्यास की आरंभिक स्थिति है. अब धड़ को थोड़ा दाहिनी ओर मोड़ें और कमर को दाहिनी ओर घुमा कर हाथों को सीधा पीछे ऊपर उठायें और दाहिने पैर पर सामने की ओर झुकें. आपका सिर दाहिने घुटने की स्पर्श करे. कुछ देर बाद प्रारंभिक स्थिति में लौट जायें. इस प्रक्रिया को बायीं तरफ दुहरायें.
द्वितीय प्रकारांतर : प्रारंभिक अवस्था में दोनों पैरों को क्षमतानुसार फैला कर बैठें तथा हाथों को पीठ के पीछे ले जायें और हाथों की उंगलियों को आपस में पकड़ लें. यह प्रारंभिक अवस्था है़ अब भुजाओं को कमर के पीछे से ऊपर उठाते हुए सामने जमीन पर ललाट को टिकायें. क्रमश: छाती, पेट और श्रोणि प्रदेश को जमीन पर लायें. सिर को उठायें, जिससे कंठ और ठुड्डी जमीन पर आ जाये. यह अंतिम स्थिति है. इस अवस्था में क्षमतानुसार रुकें अब हाथों को ढीला छोड़ दें और प्रारंभिक स्थिति में लौट जायें. यह एक चक्र हुआ, परंतु आप अपनी क्षमतानुसार इसकी संख्या बढ़ा सकते हैं.
श्वसन : अभ्यास के प्रारंभ में श्वास लें. जब आप सामने झुकने लगते हैं, उस समय श्वास धीरे-धीरे छोड़ें. जब आप प्रारंभिक स्थिति में वापस आते हैं, उस समय धीरे-धीरे श्वास लें.
अवधि : इस अभ्यास को प्रारंभ में एक-दो चक्र करना उचित होगा़ किंतु पैर के निचले भाग और कमर में लचीलापन आ जाये, तो इस अभ्यास को तीन-पांच चक्र तक किया जा सकता है़
सजगता : अभ्यास के दौरान सजगता विभिन्न अंगों जैसे-दोनों पैर में पिछले हिस्से, पीठ, कंधों और पेट में होनेवाले संकुचन पर होनी चाहिए़ आपकी सजगता शरीर की गति के साथ श्वास के तालमेल पर होनी चाहिए अध्यात्मिक स्तर पर आपकी सजगता मूलाधार चक्र या स्वाधिष्ठान चक्र पर होनी चाहिए़
क्रम : इसे करने से पहले या बाद में तिर्यक भुजंगासन, चक्रासन, मत्स्यासन जैसे-पीछे कीओर झुकनेवाले आसन करना चाहिए. यदि संभव है, तो पश्चिमोत्तानासन करना काफी लाभकारी होगा़
सीमाएं : लिप डिस्क या सायटिका की शिकायत हो या, जिसे हाइ बीपी, हार्ट प्रॉब्लम या कोई गंभीर सर्जरी छह महीने के अंदर हुई हो, उन्हें इस अभ्यास से बचना चाहिए़ पश्चिमोत्तानासन में दक्षता के बाद ही इसका अभ्यास करना चाहिए़
आसन के क्या हैं लाभ
यह अभ्यास घुटने के पीछे की नस को फैलाता है और कूल्हे के जोड़ों का लचीलापन बढ़ाता है. इसके अभ्यास से यकृत, अग्न्याशय, प्लीहा, गुरदे और अधिवृक्क ग्रंथियों सहित पूरे उदर एवं श्रोणि प्रदेश पुष्ट बनते हैं और उनकी मालिश होती है.
यह इन क्षेत्रों में बढ़े हुए वजन में भी कमी लाता है और मूत्र-प्रजनन प्रणाली की शिकायतों की दूर करता है. यह मेरुदंड की तंत्रिकाओं और मांसपेशियों में रक्त संचार बढ़ाता है़ मासिक धर्म की गड़बड़ियों, सुस्त यकृत, मधुमेह, गुरदों की बीमारी, श्वासनली के शोथ तथा स्रोफीलिया के योगोपचार में इस आसन का प्रयोग होता है. इस आसन से वक्ष-स्थल का फैलाव भी पश्चिमोत्तानासन से अधिक होता है. इसका प्रभाव शरीर के ऊपरी एवं निचले दोनों भागों में होता है.

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