हर स्थान का अपना नकारात्मक और सकारात्मक ऊर्जा का संतुलन मौजूद होता है जो वहां रहने वाले लोगों को भी प्रभावित करता है. नया घर लेते समय या जमीन लेते समय इस ऊर्जा के संतुलन पर ध्यान देना जरुरी हो जाता है वरना परिवार को इसका हानिकारक परिणाम भी झेलना पड़ सकता है. कैसे जाने की आपके घर में कोई नकारात्मक ऊर्जा है? यदि है तो इसके क्या उपाय हो सकते हैं? आइये हम आपको बताते हैं…
हमारे शास्त्रों में हर दिशा का अपना महत्व है. उसी के अनुरूप उस जगह पर नकारात्मक अथवा सकारात्मक शक्तियों का वास होता है.
वास्तु में सूर्य को ब्राह्म में ऊर्जा का स्त्रोत माना जाता है. इसी कारण पूर्व दिशा ऊर्जा का केंद्र रहती है पश्चिम में सूर्य अस्त होता है जहां उसकी उर्जा का हास होता है और इसी दिशा पर शनिदेव वास करते हैं.
शास्त्रों में दैवीय ऊर्जा का उद्गमन उत्तर पूर्व दिशा कही गई है. इसे ईशान कोण भी कहा जाता है. इसी दिशा से सारी दैवीय शक्तियां संचालित होती हैं. यही स्थान ईश्वर को भी समर्पित है.
इसके विपरीत दक्षिणी पश्चिम दिशा अर्थात साउथ वैस्ट दिशा पर दैत्यों और पिशाचों का काल वास होता है.
जब किसी घर में पूर्व से सूर्य की किरणों को प्रवेश करने में बाधा उत्पन्न हो, उत्तर पश्चिम दिशा से वायु का संचालन बंद हो जाए, उत्तर पूर्व दिशा से जल का स्थान दूषित हो जाए, देव स्थान या घर का मंदिर दूषित हो जाए तो उन जगहों पर नकारात्मक शक्तियों का वास हो जाता है तथा भूत-प्रेत अपना बसेरा बना लेते हैं.
जिस स्थान पर 43 दिन तक सूर्य की किरणों का संचालन न हो तथा वहां की दिवारों पर नमी के कारण सीलन हो तथा हवा के न संचालित होने से दुर्गुन्ध आती हो ऐसे स्थान पर भूत प्रेत निवास करते हैं.
जिस जमीन पर पूर्वजों का मरघट स्थान हो तथा उस जगह पर कोई व्यक्ति अपना आशियाना बना ले तो वहां नकारात्मक शक्तियां अपना वास बना लेती हैं.
पीपल अथवा बरगद को काट कर घर बनाया गया हो. वहां भी पिशाच वास करते हैं.
जो घर किसी कॉलोनी अथवा सड़क का अंतिम घर हो और जिसके आगे जाकर रास्ता समाप्त हो जाता हो वहां पर भी नकारात्मक शक्तियों का वास होता है.