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मेरुदंड को मजबूत बनाता है पाद हस्तासन

‘पाद हस्तासन’ सामने की तरफ झुकनेवाला आसन है, जिसके अभ्यास से मेरुदंड को लचीला बनाया जा सकता है तथा पीठ, गरदन और सिर की पीड़ाओं को दूर किया जा सकता है. यह अभ्यास थकावट को भी दूर करने में काफी सहायक है.पाद संस्कृत शब्द है, जिसका अर्थ है पैर और हस्त का अर्थ है हाथ. […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | February 10, 2016 9:00 AM
‘पाद हस्तासन’ सामने की तरफ झुकनेवाला आसन है, जिसके अभ्यास से मेरुदंड को लचीला बनाया जा सकता है तथा पीठ, गरदन और सिर की पीड़ाओं को दूर किया जा सकता है. यह अभ्यास थकावट को भी दूर करने में काफी सहायक है.पाद संस्कृत शब्द है, जिसका अर्थ है पैर और हस्त का अर्थ है हाथ. अत: इस आसन में हाथ को पैरों पर अथवा उनके बगल में रखा जाता है.
आसन की विधि : जमीन के पर सीधे खड़े हो जाएं. दोनों पैरों को एक साथ रखें. हाथों को शिथिल होने दें तथा उन्हें शरीर के दोनों बगल में लटकने दें. संपूर्ण शरीर को शांत व शिथिल करने का प्रयास करें. यह प्रारंभिक स्थिति है. शरीर के भार को दोनों पंजों पर समान रूप से बांटें.
अब आप धीरे-धीरे आगे की ओर झुकें. पहले ठुड्डी को वक्ष की ओर ले जाते हुए सिर को झुकाएं, फिर कंधों को ढीला करते हुए धड़ के ऊपरी भाग को झुकाएं और भुजाओं को ढीला होकर झूलने दें. पूरे शरीर को तनाव से मुक्त अनुभव करें. हाथों की उंगलियों को पैरों की उंगलियों के नीचे रखें या हथेलियों को जमीन पर दोनों पंजों के बगल में रखें. अब हाथ की उंगलियों के अग्र भाग से जमीन को स्पर्श करने का प्रयास करें. अंतिम स्थिति में शरीर आगे की ओर झुका रहेगा और घुटने सीधे रहेंगे. कोशिश करें कि आपका ललाट घुटनों को स्पर्श करे. इस स्थिति में आप अपनी क्षमतानुसार रूकें. फिर धीरे-धीरे उल्टे क्रम में प्रारंभिक स्थिति में वापस लौटें. यह एक चक्र हुआ आप इसे पांच-सात चक्र कर सकते हैं.
श्वसन : इस अभ्यास के दौरान श्वास-प्रश्वास नासिका द्वारा ही होनी चाहिए. आरंभिक स्थिति में श्वास सामान्य रहेगी. जब सामने की ओर झुकेंगे, तो श्वास बाहर की तरफ जायेगी. अंतिम स्थिति में धीमे और गहरा श्वसन करेंगे एवं प्रारंभिक अवस्था में वापस लौटते समय श्वास अंदर लेंगे.
अवधि : अभ्यास को शुरू में पांच चक्रों तक कर सकते हैं. किंतु धीरे-धीरे चक्रों की संख्या को बढ़ा सकते हैं. आगे चल कर अंतिम स्थिति में तीन से पांच मिनट तक रुकने का अभ्यास करें.
सजगता : अभ्यास के समय सजगता शरीर की गति पर, पीठ की मांसपेशियों के शिथिलीकरण एवं श्वास की गति पर रहनी चाहिए. अध्यात्मिक स्तर पर आपकी सजगता स्वाधिष्ठान चक्र पर होगी.
क्रम : अभ्यास पीछे झुकनेवाले आसनों के पूर्व या पश्चात करना चाहिए. अधिक लचीलापन प्राप्त करने के लिए आगे झुकनेवाले अन्य आसनों के पूर्व प्रारंभिक आसन के रूप में इसका उपयोग करें.
सावधानियां : अभ्यास में बलपूर्वक नहीं झुकना चाहिए. नियमित अभ्यास से मेरुदंड की मांसपेशियां धीरे-धीरे लचीली बनेंगी तथा उन्हें ज्यादा प्रभावित किया जा सकेगा.
सीमाएं : इसे वैसे लोगों को नहीं करना चाहिए, जिन्हें स्लिप डिस्क, हृदय रोग, उच्च रक्तचाप, हर्निया या गंभीर सायटिका है. अभ्यास शुरू करने के लिए कुशल योग प्रशिक्षक का मार्गदर्शन लें. जरूरी है कि पहले अपनी शारीरिक अवस्था को जानें.
एकाग्र बनाता है यह आसन
यह आसन पाचन अंगों की मालिश करके उन्हें कार्य करने योग्य सुचारू बनाता है. पाचन में सुधार होता है एवं कब्ज दूर होता है. यह अभ्यास मेरुदंड की समस्त तंत्रिकाओं को उद्दीप्त कर मजबूत बनाता है, जिसके चलते पीठ, गरदन एवं सिर का दर्द दूर होता है. धड़ को उल्टा करने से मस्तिष्क में रक्त संचार में वृद्धि होती है तथा पिट्यूटरी एवं थायरॉयड ग्रंथियों में रक्त संचरण में काफी सुधार आता है. इससे चयापचय में सुधार, एकाग्रता में वृद्धि तथा नाक एवं गले की बीमारियों के उपचाार में लाभ मिलता है. यह अभ्यास पैर के पिछले हिस्से की नसों और मांसपेशियों में खिंचाव लाता है और शरीर पहले की तुलना में लचीला बनता जाता है. पेट के लिए भी काफी लाभकारी है. नियमित अभ्यास से मेरुदंड की मांसपेशियां धीरे-धीरे लचीली बनेंगी.

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