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दवाएं हैं डायबिटीज का कंट्रोल पैनल

डायबिटीज की दवाओं पर मरीज ताउम्र निर्भर रहता है. कई दवाएं हैं, जो मरीज के जीवन को आसान बनाती हैं. मगर अधिकतर दवाएं महंगी होने से हर कोई इनका लाभ नहीं ले पाता. टाइप 2 डायबिटीज की प्रमुख दवा है ग्लिप्टिन. अब इसी फैमिली की एक नयी दवा बाजार में आयी है, जिसका नाम टेनेलीग्लिप्टिन […]

डायबिटीज की दवाओं पर मरीज ताउम्र निर्भर रहता है. कई दवाएं हैं, जो मरीज के जीवन को आसान बनाती हैं. मगर अधिकतर दवाएं महंगी होने से हर कोई इनका लाभ नहीं ले पाता. टाइप 2 डायबिटीज की प्रमुख दवा है ग्लिप्टिन. अब इसी फैमिली की एक नयी दवा बाजार में आयी है, जिसका नाम टेनेलीग्लिप्टिन मॉलीक्यूल है. यह दवा कहीं ज्यादा सस्ती व असरकारी है. डायबिटीज के लिए उपलब्ध दवाओं व इलाज पर खास जानकारी दे रहे हैं दिल्ली व पटना के एक्सपर्ट.
डॉ अनूप मिश्रा
फोर्टिस सी-डॉक हॉस्पिटल, दिल्ली
डा यबिटीज टाइप 2 के इलाज में शुरू में मरीजों को इंसुलिन देने की जरूरत नहीं पड़ती है. कुछ अन्य दवाओं से ब्लड शूगर लेवल को कंट्रोल में रखा जा सकता है. डायबिटीज की ऐसी ही एक प्रमुख दवा है ग्लिप्टिन. लेकिन महंगी होने के कारण इसका प्रयोग अभी कम हो पाता है. अब एक नयी दवा बाजार में आयी है, जिसका नाम है टेनेलीग्लिप्टिन.
यह दवा इस फैमिली की पहले की दवाओं से काफी सस्ती है. ग्लिप्टिन फैमिली में टेनेलीग्लिप्टिन मॉलिक्यूल टाइप 2 डायबिटीज के लिए थर्ड जेनरेशन ओरल डायबिटिक एजेंट (एंटीडायबिटिक) है. ये दवाएं शरीर में पहुंच कर ग्लूकाजोन को रिलीज करने में मदद करती हैं, जिससे बॉडी में इंसुलिन की मात्रा बढ़ती है और ब्लड शूगर लेवल कम होता है. ग्लिप्टिन फैमली की अन्य दवाइयां काफी महंगी थीं. नयी दवा काफी सस्ती है.
कितना आता है खर्च
टेनेलीग्लिप्टिन का खर्च लगभग 10 रुपये प्रतिदिन आता है, जबकि अभी तक मरीज को ग्लिप्टिन फैमिली की अन्य दवाओं के लिए प्रतिदिन लगभग 40 से 50 रुपये तक का खर्च आता था. भारत में लगभग डेढ़ दर्जन कंपनियां इस दवाई को लेकर बाजार में आ रही हैं. दवा की कीमत कम हो जाने से अब यह आम लोगों की पहुंच में आ जायेगी. इस दवा की खासियत यह है कि अभी मौजूद अन्य सस्ती दवाओं की तुलना में इस दवा का साइड इफेक्ट कम होता है. इस कारण इसका प्रयोग सुविधाजनक है. अभी महंगी होने के कारण डॉक्टर इस दवा का प्रयोग कम करते हैं.
कैसे करें कंट्रोल
टाइप 2 डायबिटीज को कंट्रोल करने के लिए दवाइयों के अलावा वेट कंट्रोल करने और नियमित व्यायाम की सलाह दी जाती है. दवा के माध्यम से ब्लड शूगर लेवल कंट्रोल किया जाता है. इसके लिए कभी एक तो कभी दो या तीन दवा दी जाती है. इसके लिए बहुत सी दवाइयां बाजार में हैं.
डॉक्टर मरीज के लक्षणों को ध्यान में रखते हुए ड्रग्स या इंसुलिन का चुनाव करते हैं. बाजार में उपलब्ध ड्रग्स का मैकेनिज्म भी अलग-अलग होता है, जैसे-पेन्क्रियाज से ज्यादा इंसुलिन रिलीज करानेवाला ड्रग, लिवर से ग्लूकोज के रिलीजिंग प्रोसेस को रोकनेवाला ड्रग इत्यादि.
बातचीत व आलेख : कुलदीप तोमर
टाइप 1 डायबिटीज का उपचार
टाइप 1 डायबिटीज में इंसुलिन का बनना बंद हो जाता है. इसे कंट्रोल में रखने के लिए इंसुलिन लेना पड़ता है. ऐसे में खाना खाने से पहले शूगर लेवल 70-130 एमजी/डीएल और खाना खाने के दो घंटे बाद तक 180 एमजी/डीएल से अधिक नहीं होना चाहिए. मरीज को ताउम्र इंसुलिन लेनी पड़ती है.
टाइप 1 डायबिटीज का ट्रीटमेंट करने के लिए डॉक्टर नियमित रूप से मरीज की कार्बोहाइड्रेट काउंटिंग एवं ब्लड शूगर मॉनिटरिंग करते हैं. इसी के अनुसार मरीज को इंसुलिन दी जाती है. साथ ही मरीज को पौष्टिक व संतुलित आहार का सेवन करने की सलाह देते हैं. इसके इलाज के लिए तीन प्रकार के इंसुलिन होते हैं-रैपिड एक्टिंग इंसुलिन, लॉन्ग एक्टिंग इंसुलिन और इंटरमीडिएट आॅप्शन.

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