अगर आप अपने बच्चे के अक्सर जुकाम रहने या साँस की तकलीफ होने से परेशान हैं तो ये लेख आपकी मदद कर सकता है. हालिया हुए एक शोध के अनुसार, सर्दियों में पैदा होने वाले बच्चे दमा तथा फेफड़ों की अन्य बीमारियों के अधिक शिकार होते हैं.
एक बड़े स्तर पर किए गए इस शोध के अनुसार, नवंबर से जनवरी के बीच पैदा हुए बच्चे जब युवा होते हैं तो उनमें सांस से संबंधित बीमारी अधिक होने लगती है.
नार्वे की बर्गेन यूनिवर्सिटी का डिपार्टमेंट ऑफ ग्लोबल हेल्थ एंड प्राइमरी केयर और बर्गेन विश्वविद्यालय के शोधकर्ता डॉ सेसिलिया स्वांस और उनकी टीम ने नौ से 11 वर्ष तक के 12 हजार से अधिक बच्चों तथा उसके बाद 40 से 70 वर्ष आयु के लोगों के फेफड़ों की कार्यप्रणाली के आंकड़े एकत्र किए हैं. शोध का आधार यह बनाया गया कि एक बार में फेफड़े से कितनी वायु बाहर छोड़ी जाती है.
इस शोध के बाद यह निष्कर्ष निकाला गया कि फेफड़ों की क्षमता कम होने के अन्य कारण भी हैं जैसे संक्रमण, अधिक उम्र में बच्चे का जन्म या मां द्वारा धूमपान करना लेकिन एक बहुत बड़ा कारण तो सर्दी में पैदा होना ही बताया है. यह भी बताया गया कि पालतू जानवर फेफड़ों की मजबूती का कारण बन सकते हैं.
फेफड़ों की कमजोरी से दमा के साथ एक अन्य घातक बीमारी सीआपीडी( क्रोनिक, आब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज) का भी प्रकोप होने की आशंका लगातार रहती है.
शोधकर्ताओं के अनुसार जन्म के समय का मौसम फेफड़ों की क्षमता में कमी के लिए सीधे तौर पर जिम्मेदार है. पिछले शोधों में बताया गया था कि सर्दी में पैदा होने वाले बच्चों को गर्भकाल में ही वायरल संक्रमण तथा एलर्जी की अधिक आशंका रहती है.
सर्दी में पैदा होने वाले बच्चे आरंभिक कुछ महीनों में सांस से संबंधित संक्रमण के शिकार होते हैं जो बाद में चल कर फेफड़ों के कमजोर होने का स्थायी कारण बन जाता है. डॉ स्वांस ने कहा, आरंभिक जीवन की कुछ बातें शरीर को स्वस्थ रखने के लिए अहम होती हैं.
यह भी हो सकते हैं कारण…
कुछ लोग कुछ खास तरह के रसायन, गंध या पदार्थ को सहन नहीं कर सकते , हमने अपने शोध में यही तलाश की कि इसका कारण क्या है. फेफड़े मजबूत नहीं होंगे तो प्रदूषण, धूमपान तथा अन्य कारकों, कारणों से बीमारी तत्काल आ घेरेगी. शोध ब्रिटेन समेत यूरोप के कई क्षेत्रों में की गई.
यह शोध पीएलओज जर्नल में प्रकाशित हुआ है.