डायबीटीज का इलाज अब आपके पेट से ही!
कैसा लगेगा ये सुन कर कि आपकी डायबीटीज का इलाज आपके पास है! जी हाँ, इंसुलिन के इंजेक्शन, टेबलेट व खानपान की ढेरों बंदिशों से परेशान करोड़ों डायबीटीक रोगियों का इलाज खुद उनके पास ही है. कैसे ? आइये आपको बताते हैं… बोस्टन की हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में एक शोध ने यह निष्कर्ष दिया हैं कि […]
कैसा लगेगा ये सुन कर कि आपकी डायबीटीज का इलाज आपके पास है! जी हाँ, इंसुलिन के इंजेक्शन, टेबलेट व खानपान की ढेरों बंदिशों से परेशान करोड़ों डायबीटीक रोगियों का इलाज खुद उनके पास ही है. कैसे ? आइये आपको बताते हैं…
बोस्टन की हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में एक शोध ने यह निष्कर्ष दिया हैं कि डायबीटीज का इलाज मरीज के पेट में ही मौजूद है.
वैज्ञानिकों के अनुसार, पाचक ग्रंथि यानी अग्नाशय (पैन्क्रियाज) में बीटा कोशिकाएं नष्ट होने के कारण इंसुलिन बनना बंद हो जाता है. इससे रक्त में ग्लूकोज का स्तर अनियमित होने से शुगर रोग पैदा हो जाता है. नष्ट हो चुकी बीटा कोशिकाओं को बदलने का तरीका खोजने के लिए वषों अनुसंधान किया गया. कुछ अर्सा पूर्व विज्ञानियों ने पाचन ग्रंथि की डक्ट डिराइव्ड कोशिकाओं (एचडीडीसी) को पुन: योजनाबद्ध व समायोजित करते हुए शोध किया था ताकि ये बीटा कोशिकाओं की तरह कार्य करते हुए इंसुलिन पैदा करने लगें.
चूहों पर किए गये प्रयोगों के बाद यह बात सामने आई है. इस प्रयोग में चूहों के पेट की कोशिकाओं से विज्ञानियों ने छोटे आकार का अंग ‘मिनी स्टमक’ (लघु उदर) तैयार किया, उसे प्रत्यारोपित किया गया तो इससे इंसुलिन बनना शुरू हो गया. इस प्रयोग का लाभ मानव को भी जल्द मिलने की उम्मीद की जा सकती है.
क्या है पिलोरस रीजन
अब नए शोध में इससे भी आगे बढ़ते हुए पाया गया कि पेट के निचले हिस्से (पिलोरस रीजन) की कोशिकाओं को समायोजन के बाद बीटा की तरह काम लिया जा सकता है. ‘मिनी स्टमक’ को चूहे में प्रत्यारोपित किया गया तो उसके रक्त में ग्लूकोज का स्तर सामान्य हो गया. हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के डिपार्टमेंट ऑफ स्टेम सेल के डॉ क्विओ जोऊ और उनकी टीम ने चूहे को जेनेटिकली इंजीनियर्ड करते हुए तीन जीन का प्रयोग किया जिनमें सामान्य कोशिकाओं को बीटा में बदलने की क्षमता है.
इसके लिए एक चूहे में पोलीरस सेल को पुन: समायोजित किया गया जबकि दूसरे में अन्य कोशिकाओं को। अन्य कोशिकाओं वाले चूहे की आठ सप्ताह बाद मृत्यु हो गई लेकिन पोलीरस सेल के पुन:समायोजन वाले चूहे में इंसुलिन के साथ ग्लूकोज का स्तर नियंत्रित रहा और प्रयोग अवधि के दौरान चूहा स्वस्थ रहा.
डॉ क्विओ जोऊ ने कहा, यह चमत्कारी है, हम जिसे ढूंढ़ रहे थे, उसे पा लिया. पोलीरस रीजन की कोशिकाएं बीटा सेल में परिवर्तित होने के लिए सर्वाधिक उपयुक्त व अनुकूल हैं. छोटी आंत को पेट से जोड़ने वाले हिस्से को पोलीरस कहा जाता है.
प्रयोग का असर देखने के लिए अनुसंधानकर्ताओं ने चूहों में दोनों तरह की शुगर नियंत्रित करने वाली बीटा कोशिकाओं को नष्ट कर दिया.
वैज्ञानिकों ने कहा कि पोलीरस सेल और बीटा सेल में बहुत समानताएं हैं, इस वजह से वे दूसरे के स्थान पर वैसा ही काम करने में सक्षम हैं और इस तकनीक के मानव पर प्रयोग के लिए अभी और अनुसंधान करने की आवश्यकता है.
यह शोध सेलस्टेमसेल जर्नल में प्रकाशित किया गया है.