कैंसर पीड़ित बच्चों पर इस्तेमाल किए जाने वाले कीमोथेरेपी टॉक्सिन्स बच्चों को कैंसर रोग से उबार तो लेते हैं, लेकिन उनकी आंखों पर अपना बुरा प्रभाव छोड़ देते हैं.
हालिया किए गये एक शोध ने यह दावा किया है कि कीमोथेरेपी बच्चों की आँखों को नुकसान पंहुचा देती है.
स्वीडन की लुंड यूनिवर्सिटी से इस अध्ययन के शोधार्थी पर-एंडर्स फ्रैंन्सन का कहना है, ‘हमने अध्ययन किया है कि ऐसे बहुत से रोगी अपनी आंखों को सुचारु रूप से घुमा नहीं पाते हैं.’
फ्रैंसन ने बताया कि आंखों की गतिशीलता के प्रभावित होने से हमारी आंखें किसी वस्तु पर ध्यान केंद्रित करने में परेशानी महसूस करती हैं. इससे सिरदर्द और चक्कर आने की समस्या भी हो सकती है.
इस शोध में 20-30 वर्ष की आयु के 23 लोगों को शामिल किया गया था, जिन्हें बचपन में कैंसर रोग से गुजरना पड़ा था. इनकी तुलना समान उम्र के 25 हेल्दी लोगों से की गई. शोध के दौरान बचपन में कैंसर रोगी रहे ज्यादातर प्रतिभागियों में यह विकार देखे गए.
जिन प्रतिभागियों को सिस्प्लैटिन, मीथोट्रिक्सेट और इफोसफैमीड जैसे कीमो के प्रकार दिए गए थे, उनमें रक्त-मस्तिष्क बाधा के लक्षण देखने को मिले, जो बाद में तंत्रिका तंत्र को नुकसान पहुंचाते हैं.
शोधकर्ताओं ने पाया है कि इन प्रतिभागियों में अधिकांश अपने कैंसर के उपचार के लगभग 15 साल बाद भी उपचार के प्रभाव से पीड़ित हैं. अध्ययन के अनुसार, कम उम्र के रोगियों में यह उपचार काफी प्रभाव डालता है.
स्वीडन के लुंड शहर के स्केन यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल से थॉमस वीब कहते हैं कि बच्चों में मस्तिष्क पूरी तरह से विकसित नहीं हो पाता है, ऐसे में जटिल उपचार से यह अतिसंवेदनशील बन जाता है.