चाय पीना हुआ पुराना, अब चबा कर चाय का आनंद लीजिए.
आप चाय पीने के शौकीन हैं लेकिन चाय बनाने का कष्ट नहीं लेना चाहते तो यह लेख निश्चित रूप से आपके लिए ही है. अब चाय के चाहेतों के लिए चाय बनाने को नहीं बल्कि चबाने को मिल सकती है. आइये आपको बताते हैं कैसें? इस चबाने वाली चाय का एक लाभ यह भी है […]
आप चाय पीने के शौकीन हैं लेकिन चाय बनाने का कष्ट नहीं लेना चाहते तो यह लेख निश्चित रूप से आपके लिए ही है. अब चाय के चाहेतों के लिए चाय बनाने को नहीं बल्कि चबाने को मिल सकती है. आइये आपको बताते हैं कैसें?
इस चबाने वाली चाय का एक लाभ यह भी है कि यह नई चबाने वाली चाय धूम्रपान करने वालों में निकोटीन के प्रभाव को ‘कम’ करने में मदद करेगी.
उटी स्थित ‘डोड्डाबेट्टा टी फैक्ट्री‘ एवं ‘टी म्युजियम‘ के महाप्रबंधक एल वरदराज ने बताया कि जर्मनी के कुछ हिस्सों में तो लोग अपनी सुस्ती दूर करने के लिए कुछ उसी तरह से चाय की सफेद पत्तियों को चबाते हैं जैसे कि भारत में लोग ‘पान मसाला‘ चबाकर करते हैं.
वरदराज की फैक्ट्री यूरोपीय देशों के कुछ हिस्सों में सफेद चाय का निर्यात करती है.
उन्होंने कहा, ‘यह वाकई में बहुत दिलचस्प है कि लोग वहां (जर्मनी में) तरोताजा महसूस करने के लिए सफेद चाय को पान मसाले की तरह लेना पसंद करते हैं.‘
चाय उद्योग में सफेद चाय की किस्म बहुत महंगी है. इनकी पत्तियों को हाथों से तोड़ा जाता है और निर्यात से पहले इन्हें धूप में सुखाया जाता है.
उन्होंने कहा कि अन्य किस्मों से इतर सफेद पत्तियां अप्रसंस्कृत होती हैं और इसीलिए उनमें अधिक मात्रा में एंटी ऑक्सीडेंट मौजूद होता है. यहां तक कि सेहत के लिहाज से भी इसे ग्रीन टी से ज्यादा फायदेमंद माना जाता है.
वरदराज ने बताया, ‘सफेद चाय का निर्माण चाय की पत्तियों से नहीं, बल्कि इसकी कोपलों (नई और नर्म पत्तियों) से होता है.
उपभोक्ता इसे मुंह में चबाते हैं और धूम्रपान करने वालों के बीच इसे निकोटीन की विषाक्तता कम करने के तौर पर भी जाना जाता है.