अगर आप अपने बच्चे को घर में ही पढ़ा रहे हैं, तो जरा गौर करें कि कहीं आपका बच्चा ज़्यादा देर सोता तो नहीं है. अधिक पढ़ाई करते हुए सुस्ती आना सामान्य बात है लेकिन यदि वह हर वक़्त सुस्त रहता है तो ये चिंता की बात है.
हालिया हुए एक शोध के अनुसार, नियमित स्कूल जाने वाले बच्चों की तुलना में घर में पढ़ने वाले बच्चे अधिक सोते हैं.
इस निष्कर्ष तक पहुंचने के लिए शोधकर्ताओं ने करीब 2,612 स्टूडेंट्स की नींद से संबंधित आदतों का आंकलन किया, इन स्टूडेंट्स में घर में पढ़ने वाले करीब 500 बच्चे भी शामिल थे,
अध्ययन के दौरान ज़्यादा सोने वाले और कम सोने वाले दोंनों ही कारकों का आंकलन किया गया. शोध से पता चला कि घर पर पढ़ने वाले बच्चों की तुलना में निजी और सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले 44.5% बच्चे नींद पूरी न होने की शिकायत करते हैं. जबकि घर में पढ़ने वाले बच्चों का यह आंकड़ा 16.3% है.
डेनवर के नैशनल ज्वूइश हेल्थ से इस अध्ययन की मुख्य लेखक लीसा मेल्टजर ने कहा ‘हमारे यहां के स्कूलों का प्रिंसिपल होता है, जिसका समय बिलकुल निश्चित होता है. कम उम्र के बच्चों का स्कूल जल्दी शुरू होता है, जाहिर सी बात है कि ऐसे में वे जल्दी उठते हैं. वहीं उम्र बढ़ने के साथ बच्चे अधिक नींद लेने लगते हैं’.
उन्होंने बताया कि ‘छोटे बच्चों को पूरे 9 घंटे की नींद की ज़रूरत है और अगर वे केवल 7 घंटे ही सोते हैं, तो वे हफ्ते में 10 घंटे की कम नींद लेते हैं और ये उनके कामकाज को प्रभावित करता है’.
यही नहीं, नींद की कमी स्वास्थ्य के साथ मानसिकता को भी प्रभावित करती है.
मेल्टजर ने बताया कि ‘नींद के अभाव से ध्यान केंद्रित करने और याद करने की क्षमता भी प्रभावित होती है. इसलिए शरीर और मानसिक स्वास्थ्य के लिए पर्याप्त और तय मात्रा में नींद लेना काफी आवश्यक है’.
यह शोध ‘बिहेवियरल स्लीप मेडिसिन’ जर्नल में प्रकाशित हुआ है.