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किडनी रोगों में कैसा हो आहार

अर्चना नेमानी डायटीशियन व डायबिटीज एजुकेटर ‘आहार क्लिनिक’ बैंक रोड, मुजफ्फरपुर किडनी रोगों में प्रोटीन, सोडियम और पोटैशियम की मात्रा कम लेनी चाहिए. ये तत्व अधिक मात्रा में लेने पर हानिकारक हैं, जबकि शरीर के लिए जरूरी भी हैं. इस कारण इन्हें पूरी तरह से लेना बंद भी नहीं किया जा सकता है. अत: इस […]

अर्चना नेमानी
डायटीशियन व
डायबिटीज एजुकेटर
‘आहार क्लिनिक’
बैंक रोड, मुजफ्फरपुर
किडनी रोगों में प्रोटीन, सोडियम और पोटैशियम की मात्रा कम लेनी चाहिए. ये तत्व अधिक मात्रा में लेने पर हानिकारक हैं, जबकि शरीर के लिए जरूरी भी हैं. इस कारण इन्हें पूरी तरह से लेना बंद भी नहीं किया जा सकता है. अत: इस रोग में डायट के मामले में काफी परहेज रखना पड़ता है.
किडनी शरीर से अनावश्यक और जहरीले पदार्थों को बाहर निकाल कर डिटॉक्सीफिकेशन का कार्य करता है. किडनी की विभिन्न बीमारियों और विभिन्न अवस्थाओं में खान-पान का परहेज अलग-अलग होता है. यह कई बातों पर निर्भर करता है. खान-पान में परहेज करके किडनी के कई रोगों से बचा जा सकता है. इसके परहेज में मुख्यत: प्रोटीन, पोटैशियम, सोडियम, फॉस्फोरस व तरल पदार्थों की मात्रा आती है. सामान्यत: जानकारी के अभाव में मरीज अनावश्यक परहेज करने लगते हैं, जिससे भोजन स्वादहीन, रंगहीन और पौष्टिकता विहीन हो जाता है. लगातार ऐसा भोजन करने से मरीज शिकायत करने लगते हैं कि धीरे-धीरे जीभ का स्वाद जा रहा है.
ये सावधानियां बरतें
प्रोटीन : प्रोटीन की मात्रा संयमित की जाती है. ज्यादा प्रोटीन बीमारी बढ़ा सकता है. चूंकि प्रोटीन कोशिकाओं और शारीरिक क्रियाकलापों के लिए जरूरी है. अत: इसे बंद करने के बजाय कम किया जाता है. सामान्यत: किडनी रोग में 0.5-0.8 मिग्रा/ किलोग्राम रोज के हिसाब से प्रोटीन युक्त फूड दिया जाता है.
सोडियम : एक चम्मच नमक दिन भर के लिए काफी है. प्रोस्सड फूड, जंक फूड आदि में ज्यादा मात्रा में सोडियम और प्रिजर्वेटिव होते हैं. अत: इनसे बचना चाहिए. दो ग्राम नमक में 400 मिग्रा सोडियम होता है.
पोटैशियम : गुरदे की कुछ बीमारियों में पोटैशियम की मात्रा बढ़ने लगती है, जो खतरनाक है. भोजन में पोटैशियम की मात्रा का निर्धारण बीमारी के स्तर को देख कर किया जाता है.
फॉस्फोरस : ज्यादा मात्रा में फॉस्फोरस किडनी फेल्योर के साथ-साथ हड्डी रोग या हृदय रोग के लिए भी जिम्मेदार हो सकता है. इसकी मात्रा भी संतुलित होनी चाहिए.
पेय-पदार्थ : पानी तभी पीएं जब ज्यादा प्यास लगी हो. 500-700 मिली पानी रोज अन्य पेय पदार्थों के अलावा दिया जाता है. नमक ज्यादा खाने से प्यास भी ज्यादा लगती है. ज्यादा प्यास लगने पर मुंह पोंछने से लाभ होता है.
भोजन में स्वाद बढ़ाने के लिए नीबू, शिमला मिर्च, लहसुन, प्याज का प्रयोग करें. इनमें पोटैशियम कम और विटामिन सी, ए , बी 6, फॉलिक एसिड, फाइबर इत्यादि अच्छी मात्रा में होता है, जो लाभदायक है.
बाजरा, ज्वार, मकई, चना, चना दाल, मटर, खेसारी दाल, लाल चना, धनिया पत्ती, अरबी, शक्करकंद, मूली, बैगन, कटहल, धनिया, जीरा, गाय व बकरी का दूध, फूलगोभी, चुकंदर, कटहल मीटर, शरबत, आइसक्रीम, मिल्क शेक, आचार, पापड़, चटनी, बेकिंग पाउडर इत्यादि. स्किम्ड मिल्क, छाछ, कद्दू, खीरा, भिंडी, हरा पपीता, झिंगनी, कुम्हरा, परवल, करेला, आलू, गाजर, सेब, अंगूर, पपीता (हल्का उबाल कर पानी हटा देने से सोडियम-पोटािशयम की मात्रा में कमी आ जाती है) अत: इन्हें किडनी रोग में दे सकते हैं.

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