किडनी का कितना रखते हैं ख्याल
आज हर दस में से एक व्यक्ति किडनी रोग से ग्रस्त है. गलत खान-पान, फिजिकल एक्टिविटी में कमी, दबाव व चिंता से यह रोग हमें चपेट में ले रहा है. अत्यधिक एंटीबायोटिक और पेन किलर कासेवन भी किडनी की क्षमता पर बुरा प्रभाव डाल कर लोगों को बीमार कर रहा है. जबकि, हाइ बीपी और […]
आज हर दस में से एक व्यक्ति किडनी रोग से ग्रस्त है. गलत खान-पान, फिजिकल एक्टिविटी में कमी, दबाव व चिंता से यह रोग हमें चपेट में ले रहा है. अत्यधिक एंटीबायोटिक और पेन किलर कासेवन भी किडनी की क्षमता पर बुरा प्रभाव डाल कर लोगों को बीमार कर रहा है. जबकि, हाइ बीपी और डायबिटीज में किडनी फेल्योर का खतरा बढ़ जाता है. वर्ल्ड किडनी डे पर किडनी रोग व उपचार पर समुचित जानकारी दे रहे हैं हमारे एक्सपर्ट.
डॉ सुनील आर
एमबीबीएस, एमडी, असिस्टेंट प्रोफेसर डिपार्टमेंट आॅफ नेफ्रोलॉजी, डीएम नेफ्रोलॉजी, बेंगलुरु
आजकल की जीवनशैली के कारण किडनी रोग आम हो चुका है. इसके कई कारण हो सकते हैं. इसके शुरुआती लक्षण इतने सामान्य होते हैं कि रोग का पता भी नहीं चल पाता है. किडनी फेल्योर होने पर शरीर से अवशिष्ट पदार्थ बाहर नहीं निकल पाते हैं. इससे कई समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं और इससे जान भी जा सकती है. एक बार किडनी फेल हो जाने के बाद किडनी प्रत्यारोपण ही एकमात्र विकल्प है. इस सिचुएशन में जब तक मरीज को कोई डोनर नहीं मिलता है, तब डायलिसिस ही वह प्रक्रिया है, जिससे मरीज की जान बचायी जा सकती है.
किडनी कैसे करता है काम
शरीर में एक जोड़ी किडनी होते हैं, जो पसली के ठीक नीचे होते हैं. किडनी के अंदर लाखों छोटे-छोटे यूनिट होते हैं, जिन्हें नेफ्रॉन कहते हैं. हर यूनिट फिल्टर का काम करता है. किडनी खून को फिल्टर करता है शरीर से अविशष्ट पदार्थ जैसे पानी, यूरिया आदि व्यर्थ पदार्थों को मूत्र के जरिये शरीर से बाहर निकाल देता है. किडनी की प्रक्रिया से शरीर में रसायनों का संतुलन भी बना रहता है. यह नमक, पोटैशियम और एसिड की मात्रा का संतुलन बनाये रहता है. इससे कई ऐसे हॉर्मोन भी निकलते हैं जो रेड ब्लड सेल्स के बनने में मददगार हैं और कुछ हॉर्मोन बीपी को भी कंट्रोल करते हैं. इसी कारण किडनी फेल होने की स्थिति में बीपी भी बढ़ जाता है. अगर यह काम करना बंद कर दे, तो गंदगी शरीर में ही रह जाता है. जो शरीर की प्रक्रियाओं में बाधा उत्पन्न करते हैं.
शरीर का फिल्टर है किडनी
क्रॉनिक किडनी डिजीज के कारण यदि किडनी ठीक से काम नहीं कर पाता है या फेल्योर हो जाता है, तो कृित्रम रूप से खून को िफल्टर करना पड़ता है. इसके लिए डायलििसस की जाती है. इससे किडनी ट्रांसप्लांट होने तक मरीज की जान बचायी जा सकती है. अच्छा तो यही है कि इसकी नौबत ही न आये. अगर हम रोग के लक्षणों को जानें व जीवनशैली ठीक रखें, तो किडनी डैमेज को रोका जा सकता है.
क्रॉनिक किडनी डिजीज
क्रॉनिक किडनी डिजीज को इसके असामान्य व्यवहार से मार्क किया जाता है जैसे-प्रोटीन का अधिक बनना, या किडनी की कार्य क्षमता में गिरावट आना. यह डायबिटीज या किसी अन्य रोग के कारण भी हो सकता है. ब्लड शूगर बढ़ने के कारण नस डैमेज हो जाते हैं, जिससे यह रोग होता है.
कभी-कभी यह आनुवंशिक या जन्मजात भी हो सकता है] क्योंकि इस बीमारी में कोई लक्षण नहीं दिखता है. हाइ ब्लड प्रेशर के कारण नसों पर दबाव होता है. इससे भी किडनी डैमेज हो जाता है. इसके कारण अचानक से गुरदा काम करना बंद कर सकता है. इसका सबसे अधिक खतरा उच्च रक्त चाप और मधुमेह के रोगियों को ही होता है.
क्या हो सकते हैं लक्षण
किडनी फेल होने के कई कारण हो सकते हैं. हाइ बीपी, डायबिटीज और स्टोन से भी किडनी फेल हो सकता है. इसका प्रमुख लक्षण उलटी होना, शरीर में सूजन, भूख कम लगना, सिर में दर्द और कमजोरी हो सकती है. कभी-कभी एक्यूट किडनी इंज्यूरी में भी किडनी फेल्योर हो सकता है. इसमें अचानक किडनी काम करना बंद कर देता है. इसके कई कारण हो सकते हैं. जैसे– किडनी तक खून नहीं पहुंचना – किडनी डैमेज -पेशाब का किडनी में वापस जाना -डायरिया या डिहाइड्रेशन से भी ऐसा होता है.
इन्फेक्शन से किडनी इंज्यूरी
एथलीट को एक्यूट किडनी इंज्यूरी की दिक्कत होती है. पानी कम पीने से किडनी पर ज्यादा भार पड़ता है. कई बार इन्फेक्शन की वजह से भी किडनी इंज्यूरी होता है. इसलिए खेल के दौरान भी व्यक्ति को भरपूर पानी पीने की सलाह दी जाती है. इसके लिए जरूरी है कि रोज आधे घंटे की एक्सरसाइज की जाये. साथ ही पानी भी खूब पीना चाहिए. किसी भी तरह के शक या समस्या उत्पन्न होने पर तुरंत डॉक्टर की सलाह लें, ताकि समय पर उसका उपचार हो सके.
पीयें भरपूर पानी
किडनी फेल्योर के लिए हमारी आदतें भी जिम्मेवार हैं. आजकल लोग पानी पीने में कंजूसी करते हैं. इसके कारण भी दिक्कत होती है. इसलिए रोज दो लीटर पानी जरूर पीयें. रोज व्यायाम करें. शूगर, हाइ बीपी और मोटापे से बचें. यदि डायबिटीज या हाइ बीपी है, तो इलाज और परहेज पर ध्यान दें. साथ ही समय पर चेकअप कराते रहें. इन छोटी बातों का ध्यान रख कर बड़ी समस्यों से बचा जा सकता है. किडनी रोग से बचने के लिए नमक पांच ग्राम से ज्यादा नहीं खाएं.
– क्रोनिक हेपेटाइटिस बी और सी के वायरस के इन्फेक्शन से भी यूरिन में प्रोटीन लॉस होता है.
– अनकॉमन बीपी, मधुमेह, क्रॉनिक इन्फेक्शन इसके अलावा पेन किलर भी ज्यादा लेने पर दुष्प्रभाव पड़ता है. अनुवांशिक किडनी फेल्योर के चांसेज पांच प्रतिशत से भी कम है.
– प्रत्यारोपण के बाद ग्रुप मेडिसन दी जाती है, जिसे जिंदगी भर लेना पड़ता है. साथ ही डॉक्टर का रेगुलर फॉलोअप और साफ-सफाई भी जरूरी है.
– किडनी प्रत्यारोपण के लिए एक लाइव डोनर या कैडवर की जरूरत होती है.
किन बातों का रखें ध्यान
-फिट और एक्टिव रहें
– ब्लड शूगर का लेवल कंट्रोल में रखें – वजन को नियंत्रित रखें – पेन किलर कम खाएं
– साल में एक बार किडनी चेकअप जरूर कराएं
– नमक कम खाएं
– पानी खूब पीएं
डायलिसिस के प्रकार
डायलिसिस के दो प्रकार होते हैं-
-हीमो डायलिसिस : इस प्रक्रिया में मशीन कृत्रिम किडनी का काम करती है. यह शरीर के व्यर्थ पदार्थों को बाहर करती है खून में केमिकल को संतुलित करता है. इसके लिए डॉक्टर सर्जरी की मदद से बांह या पैर की नसों से रास्ता बनाते हैं. इसके लिए जहां पर आर्टरी और वेन को जोड़ा जाता है वहां पर एक िफस्टुला का निर्माण होता है. यह व्यवस्था परमानेंट या टेंपरोरी हो सकती है.
यदि बलड वेसेल्स से यह काम नहीं हो पाता है, तो इसके लिए सॉफ्ट प्लास्टिक का प्रयोग होता है. इसे ग्राफ्ट कहते हैं. इसकी मदद से बॉडी के ब्लड को निकाल जाता है और उसे मशीन से फिल्टर करके फिर से बाॅडी में चढ़ाया जाता है. मशीन खून को फिल्टर करती है. साथ ही शरीर में सोडियम और पोटैशियम के लेवल को भी बनाये रखती है. यह प्रक्रिया सप्ताह में कई बार की जा सकती है. इसमें समय किडनी की स्थिति के अनुसार लगता है, जैसे — किडनी किस हद तक काम कर रही है. -पिछले डायलसिस के बाद मरीज ने कितना फ्लूड लिया है. -कितना व्यर्थ पदार्थ शरीर में एकत्र हुआ है. -मरीज का वजन -किस तरह की मशीन का इस्तेमाल हो रहा है आदि. औसतन इसमें चार घंटे लगते हैं.
-पेरीटोनियल डायलिसिस : इसके लिए अस्पताल जाने की जरूरत नहीं होती है. इस डायलसिस को मरीज खुद या परिवार का कोई भी सदस्य कर सकता है. इस प्रकार की डायलिसिस रोज करनी पड़ती है. इसके लिए डॉक्टर पेट में एक छोटी सर्जरी करते हैं. इस दौरान एक कैथेटर पेट में डाली जाती है. इसके बाद कैथेटर की मदद से डायलसेट डाला जाता है. इस दौरान मरीज सो भी सकता है और दूसरे काम भी कर सकता है.
बातचीत व आलेख : दीपा श्रीवास्तव
क्या है डायलिसिस
जिन लोगों की किडनी फेल हो चुकी है या फिर सही ढंग से काम नहीं कर रही हो, उनके लिए यह जीवनरक्षक प्रक्रिया है. इस प्रक्रिया में विशेष तकनीक का इस्तेमाल करके कृत्रिम रूप से खून को फिल्टर किया जाता है. अर्थात् इस प्रक्रिया में किडनी का काम मशीन करती है. खून को मशीन से होकर गुजारा जाता है, जिसमें वह िफल्टर होता है.
कब जरूरत पड़ती है
जब दोनों किडनी फेल हो जाते हैं, तो डायलिसिस की नौबत आती है. हमारे शरीर में करीब 1,500 लीटर ब्लड किडनी रोज फिल्टर करती है. किडनी फेल होने पर या जीएफआर 15 मिली प्रति मिनट ही कर पा रहा हो, तो फिर डायलिसिस की जरूरत पड़ती है.