सावधान! आपकी जान भी ले सकती हैं ‘दर्द निवारक’ दवाएं
हर बात पर दवाइयां लेने वाले लोग सावधान हो जाएं. क्योंकि अधिक पेनकिलर लेना आपकी जान को भी जोखिम में डाल सकता है. हालिया हुए एक शोध ने इस बारे में जानकारी दी है. सामान्य दर्द निवारक दवाओं के साइड इफेक्ट्स अनुमान से कहीं अधिक घातक हो सकते हैं. ये दवाएं अल्सर का कारण बनती […]
हर बात पर दवाइयां लेने वाले लोग सावधान हो जाएं. क्योंकि अधिक पेनकिलर लेना आपकी जान को भी जोखिम में डाल सकता है. हालिया हुए एक शोध ने इस बारे में जानकारी दी है.
सामान्य दर्द निवारक दवाओं के साइड इफेक्ट्स अनुमान से कहीं अधिक घातक हो सकते हैं. ये दवाएं अल्सर का कारण बनती हैं, रक्तचाप बढ़ाती हैं. हृदय रोगी को ये दवाएं लेते वक्त विशेष सतर्कता बरतनी चाहिए. यूरोप के 14 देशों की यूनिवर्सिटी और अस्पतालों ने इस बारे में संयुक्त रूप से शोध किया है.
मांसपेशी में खिंचाव से लेकर चोट के दर्द व सूजन को दूर करने व अन्य कई रोगों के लिए आजकल नॉन स्टेरॉयड एंटी इनफ्लेमेटरी ड्रग्स(एनएसएआइडी) धड़ल्ले से दी जा रही हैं. ये एंटीबायोटिक नहीं होतीं जिस कारण बैक्टीरिया से होने वाले संक्रमण को ठीक नहीं कर सकतीं. मरीजों को बुखार में भी ये दवाएं लिख दी जाती हैं.
डेनमार्क की आहरुस यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता मोर्टेन श्मिट ने बताया कि आर्थराइटिस की दवा हृदय रोगियों के लिए घातक है. एनएसएआइडी जिसे सीओएक्स-2 नाम से भी जाना जाता है, हार्ट अटैक का खतरा बढ़ा देती है.
हालांकि कुछ दवाओं को बाजार से हटा भी लिया गया लेकिन अब भी कई दवाएं, विशेष तौर पर डाइक्लोफिनाक मेडिकल स्टोरों पर आसानी से उपलब्ध हो जाती है, यह दवा भी दिल के लिए बड़ा खतरा है.
शोध के अनुसार चिंता की बात यह भी है कि पुरानी दवाएं कई देशों में चिकित्सक के बिना लिखे ही आसानी से मिल जाती हैं.
नया शोध हृदय रोगियों को सामने रखते हुए इन दवाओं के उपयोग के औचित्य को ध्यान में रखते हुए किया गया.
शोध में बताया गया कि पहली बार यूरोपीय सोसायटी ऑफ कार्डियोलोजी ने कई मानक तय किए हैं और चिकित्सकों को दर्द निवारक दवा लिखते वक्त इनका पालन करना होगा.
डेनमार्क की ही आल्बोर्ग यूनिवर्सिटी के क्रिश्चियन टोर्प ने बताया कि एनएसएआइडी दवा लिखने वाले चिकित्सक को हृदय रोग व रक्तस्राव के खतरे से संबंधित आकलन भी हर मरीज को बताना होगा. सामान्यतया यह दवा हृदय रोगियों को तो लिखी ही नहीं जानी चाहिए.
यह शोध यूरोपियन हार्ट जर्नल में प्रकाशित हुआ है.