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जब बच्चा आपसे कुछ कहना-बताना चाहे, तो बिना देर किये उसकी बात सुनिए
वीना श्रीवास्तव साहित्यकार व स्तंभकार, इ-मेल : veena.rajshiv@gmail.com, फॉलो करें – फेसबुक : facebook.com/veenaparenting ट्विटर : @14veena पिछली बार मैंने जिस बेटी की मृत्यु का जिक्र किया था उसके बारे में जो पता चला वह शायद उन सभी माता-पिता के लिए जानना जरूरी है जिनके बच्चे बाहर पढ़ते हैं. पहली बात तो यह है कि […]
वीना श्रीवास्तव
साहित्यकार व स्तंभकार, इ-मेल : veena.rajshiv@gmail.com, फॉलो करें –
फेसबुक : facebook.com/veenaparenting
ट्विटर : @14veena
पिछली बार मैंने जिस बेटी की मृत्यु का जिक्र किया था उसके बारे में जो पता चला वह शायद उन सभी माता-पिता के लिए जानना जरूरी है जिनके बच्चे बाहर पढ़ते हैं. पहली बात तो यह है कि वह कुछ समय से उदास रहती थी. इस बार घर से वापस हॉस्टल नहीं जाना चाह रही थी लेकिन उसे जाना ही पड़ा. कुछ दिन बाद ही उसने फोन करके मम्मी-पापा को अपने पास बुलाया, जिद की आने की. वह कुछ कहना चाहती थी, बताना चाहती थी. मां ने रिजर्वेशन कराया. पिता दूसरे शहर में थे. उन्होंने फ्लाइट बुक की लेकिन वह बच्ची एक दिन का इंतजार नहीं कर सकी. रात में करीब चार बजे छत पर जाकर नीचे कूद गयी.उसके बारे में सब बताते हैं कि वह सीधी और सरल थी.
अगर बच्चे बाहर पढ़ रहे हैं, तो कृपया उन पर ध्यान दीजिए. यह मत सोचिए कि वे बड़े हैं. अपने फैसले खुद ले सकते हैं, अपने मामले खुद सुलझा सकते हैं या आपका बच्चा आपको बुलाये और आप सोचें कि समय मिलेगा, तो चले जाएंगे. अगर आपका बच्चा आपसे कहे कि वह आपसे कुछ कहना-बताना चाहता है या आपकी याद आ रही है, मिस कर रहा है, तो अपने सभी काम स्थगित कर उसके पास पहुंचें.
बड़े बच्चे जल्दी अपनी बातें पेरेंट्स को नहीं बताते, बहुत सारी बातें वे पेरेंट्स से शेयर ही नहीं करते. हर परेशानी से, हर मामले से वे खुद ही निकलने का प्रयास करते हैं. ऐसे में अगर आपके बच्चे को आपकी जरूरत महसूस हो रही है, तो समझिए कि जरूर कोई गंभीर बात है. अगर कोई गंभीर बात न भी हो और वह आपको याद कर रहा है, तो उससे मिलने जरूर जाएं. हो सकता है आस-पास के माहौल से परेशान होकर कुछ समय अपनी मां के सीने से लगना चाह रहा हो या पिता के मजबूत हौसले की उसे जरूरत हो!
हो सकता है कि वह बचपने, नासमझी या बिंदास स्टाइल से किसी मुसीबत में हो. ऐसा समय उसको भावनात्मक सपोर्ट देने का होता है, उसकी कमियां बताने, डांटने या उलाहना देने का नहीं होता. जब वह उस परेशानी से बाहर निकल जाये, सामान्य स्थिति में आये, तब आप उसे उसकी कमियां या उससे कहां गलती हुई, यह समझा सकते हैं. वह आपकी बात सुनेगा और समझेगा भी.
परेशानी और गुस्से में हम सही-गलत में फर्क करने की शक्ति खो देते हैं. विवेक नहीं रहता. जब हम शांत होकर स्वयं का आकलन करते हैं, तो हमें वास्तविक स्थिति नजर आती है.
शांत होकर ही सही फैसला लिया जा सकता है. आप खुद सोचिए अगर आप परेशान हों, उस समय आपके घरवाले और परिचित आपको उपदेश देने लगें, तो आप क्या कहेंगे, यही न- “क्या लगा रखा है, एक तो वैसे ही परेशान हूं और आप उपदेश दिये जा रहे हैं, मैं उपदेश सुनने के मूड में नहीं हूं.” जब आप ऐसा बोल सकते हैं तो बच्चे क्यों नहीं? वैसे भी परेशानी में कभी अपनी गलती नजर नहीं आती. इसलिए जब बच्चे एग्रेसिव हों उनसे तर्क मत करिए. जब वह शांत हो, तब उनको पास बिठा कर समझाएं, वे जरूर समझेंगे. आप माता-पिता हैं, उन्हें हर तरह से समझाने का प्रयास आपको ही करना है.
जब भी उन्हें आपकी जरूरत हो आप सब कुछ छोड़ कर उनके पास जाइए. कहीं ऐसा न हो बहुत देर हो जाये. इसके साथ ही उनके हॉस्टल-कॉलेज के दोस्तों के बारे में, कुछ बच्चे अकेले या कुछ किराये का घर लेकर साथ रहते हैं या फिर वे पेइंग गेस्ट हैं, तो सबके बारे में पूरी जानकारी रखें. सभी दोस्तों के पेरेंट्स को भी मेलजोल रखना चाहिए जिससे आप अपने बच्चों की बातें, उनकी कमजोरी, उनकी आदतें भी शेयर कर सकें और बच्चों को एडजस्ट करना सिखा सकें. बच्चों को भी लगे कि उनके माता-पिता एक-दूसरे को जानते हैं, जिससे वे आपसे जल्दी झूठ नहीं बोल पाएंगे. आप सब सभी बच्चों पर नजर रख सकेंगे.
दूसरे दोस्तों से भी एक-दूसरे के दोस्तों की जानकारी लेते रहिए. कभी-कभी बिना बताये रात में, दिन में फ्लाइंग विजिट कर सकते हैं. अगर बच्चा हॉस्टल में हैं, तो वह अपने सीनियर्स से तो नहीं डरता. किराये पर रह रहा है, तो उसके रूम पार्टनर कहां से हैं, कैसे हैं, उनका बैकग्राउंड क्या है, फैमिली में कौन हैं, आस-पास का माहौल कैसा है?
सबके बारे में जानकारी रखिए. कोशिश करिए बच्चे कॉलेज के पास रहें. अगर पेइंग गेस्ट हैं, तो उस परिवार के लोग कैसे हैं, घर में बच्चे छोटे हैं या बड़े, यह जरूर ध्यान रखिए. जब बच्चा आपसे कुछ कहना-बताना चाहे, तो बिना देर किये उसकी बात सुनिए. कहीं ऐसा न हो, उसका विचार बदल जाये या आपको देर हो जाये, तो फिर आपके सामने ऐसे नतीजे आएंगे जिसे आप कभी नहीं भूल पाएंगे. जैसा उस बेटी के साथ हुआ. उसकी मां को अफसोस है कि अगर वह फ्लाइट से गई होती, तो अपनी बेटी को बचा लेती. पता नहीं बेटी किस तकलीफ, किस दर्द में थी, जो पहले तो वापस ही नहीं जाना चाहती थी. फिर मां-पापा को बुलाया लेकिन उनके आने का भी इंतजार नहीं कर सकी और जान दे दी.
ये बातें आपको ही सोचनी हैं. आज का माहौल देखते हुए चार कदम आगे बढ़ कर अपने बच्चों की सुरक्षा करनी है. वे जितने भी बड़े हो जाएं, फिर भी आपसे उतने वर्ष छोटे रहेंगे, जितना आपका और उनकी उम्र का फर्क है.
आखिर इतने वर्षों का अनुभव आपके पास उनसे ज्यादा है. ज़माने को देखने का उनका नजरिया अलग होगा. उनके और आपके समय के हालात भी बदले होंगे, फिर भी अनुभव की धूप में आप उनसे ज्यादा तपे हैं. यह बात माता-पिता और बच्चों दोनों का याद रखनी होगी.
क्रमश:
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