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स्वीटमीट्स : क्यूट मुलाकातें

हां मीट क्यूट… क्या बोल रही हो? ऐसा शब्द नहीं है. है…है ऐसा शब्द…याद है हमारी शुरुआत की कुछ मुलाकातें? जानते हो, दो प्यार करनेवालों की वैसी मुलाकातें, जब दोनों एक-दूसरे से अनजान रहते हैं, वे प्यारी और यादगार मुलाकातें होती हैं. दोनों एक-दूसरे की तरफ खिंचे चले जाते हैं. वही मीट क्यूट होता है. […]

हां मीट क्यूट… क्या बोल रही हो? ऐसा शब्द नहीं है.
है…है ऐसा शब्द…याद है हमारी शुरुआत की कुछ मुलाकातें? जानते हो, दो प्यार करनेवालों की वैसी मुलाकातें, जब दोनों एक-दूसरे से अनजान रहते हैं, वे प्यारी और यादगार मुलाकातें होती हैं. दोनों एक-दूसरे की तरफ खिंचे चले जाते हैं. वही मीट क्यूट होता है. हमारी शुरू की मुलाकातें भी ऐसी ही थीं.
अब यह कैसा लॉजिक है मैडम? विजय ने हैरानी भरी नजरें सुषमा पर डालते हुए कहा.
बकवास नहीं है यह. कुछ पढ़ा-लिखा करो. जाने कितनी फ़िल्में बनी हैं और कितनी किताबों में जिक्र है इस मीट क्यूट का…और तुम हो कि कुछ पता ही नहीं. तुम्हें सुनना है हमारे कौन-कौन से मीट क्यूट हुए थे?
हां, सुनाओ..
तो सुनो…वैसे तो बहुत सी हैं, लेकिन पहली तीन मुलाक़ात, जिसके बाद हम एक-दूसरे के करीब आये वह तुम्हें बताती हूं.
याद है जब तुम कॉलेज में डिबेट कॉम्पिटिशन में फर्स्ट प्राइज जीते थे और मैं सिंगिंग कॉम्पिटिशन में चौथे स्थान पर आयी थी. उस दिन हम एक दोस्त के जरिये पहली बार मिले थे. तुमने मुझसे पूछा, तुम्हारा कॉम्पिटिशन कैसा रहा. मैंने जवाब दिया था, अच्छा होता, यदि तुम्हारे जितनी बड़ी ट्रॉफी मेरे पास भी होती. तुम समझ गये थे मेरे कहने का मतलब और अपनी ट्रॉफी मुझे देते हुए कहा था…किसने कहा तुमने कुछ नहीं जीता, यह लो प्राइज. इसे पास ही रखो. इन लोगों को कोई अक्ल ही नहीं किसकी आवाज़ सुरीली है और किसकी घिसी हुई और जज बने फिरते हैं.
मैं तो उस वक़्त निहाल ही हो गयी थी. तुमने मुझे ट्रॉफी थमायी और प्यार से मेरी तरफ देखा. हमने अनजाने ही एक-दूसरे का हाथ थाम लिया. यू नो, वह हमारा पहला मीट क्यूट था.
दूसरी मुलाक़ात… याद है तुम्हें? मुलाकातें तो हर दिन होती थीं, पर तुम बुद्धू थे, बात ही नहीं करते थे और मैं सोचती थी यह कब बात करने आयेगा. उस दिन भी तुम कितने डरे हुए थे. याद है न तुम्हें लाइब्रेरी में वह मुलाकात? शनिवार होने से स्टूडेंट्स और स्टाफ दोनों ही कम थे.
मैं एक कोने में साइकोलॉजी की बुक पढ़ रही थी और तुम जाने कौन-सी बुक लेकर पास आकर बैठ गये. बस मुझे चुपचाप देख रहे थे और मैं हर बार की तरह यही सोच रही थी, यह बेवकूफ बात क्यों नहीं कर रहा है. जबकि हम दोनों अकेले थे वहां. तभी अचानक एक स्टाफ ने तुम्हें टोका था ‘जनाब किताब तो सीधी पकड़ लीजिये..कहीं पे निगाहें कहीं पर निशाना’. तुम एकदम से हड़बड़ा गये थे. नहीं नहीं…कहते रह गये और हंस-हंस के मैं दोहरी हो गयी थी. घर वापसी के लिए मैं उसी बस में बैठ गयी, जिसमें तुम बैठे थे. पूरी बस खाली थी फिर भी जानबूझ तुम्हारे बगल में ही आकर मैं बैठ गयी थी. तुम कोई किताब पढ़ रहे थे और मैंने पूछा था
यह कौन सी किताब पढ़ रहे हो तुम?
प्यार की किताब पढ़ रहा हूं…तुम भी पढ़ना.
प्यार की किताब पढ़ना मतलब? मैंने झूठमूठ का गुस्सा दिखाते हुए पूछा था और तुम फिर एकदम से हड़बड़ा गये.
अरे…मेरे कहने का मतलब था रोमांटिक नॉवेल है ये…सॉरी कुछ गलत लगा हो तो…
तुम एकदम से डर कर सफाई देने लगे थे मुझे, कितने क्यूट लग रहे थे उस वक्त और मुझे लगातार हंसी आ रही थी.चिल यार..मैं बस मजाक कर रही थी. तुम भी फिर मेरी तरफ देखकर मुस्कराने लगे थे. वह हमारा दूसरा मीट क्यूट था.
और तीसरी मुलाक़ात..वह तो मुझे जिंदगी भर याद रहेगी. हम दोनों एक ही मार्केट में एक ही दुकान में थे. तुम पहले से वहां थे और मैं आ गयी…एंड लेट मी रिमांइड यू अगेन, मैं तुम्हें फ़ॉलो नहीं कर रही थी, यह खुशफहमी जाने क्यों तुम्हें आज तक बनी रह गयी. को-इंसिडेंस यू नो..को-इंसिडेंस. दुकान से निकलते ही बारिश शुरू हो गयी. मैं अपना छाता लिये सड़क के किनारे आकर ऑटो के इंतजार में खड़ी हो गयी और तुम स्टाइल मारते हुए अपनी बाइक से मेरे पास आकर खड़े हो गये.
ऑटो नहीं मिलेगी…छोड़ दूं तुम्हें घर? तुमने पूछा और मैं आश्चर्यचकित रह गयी. यह कैसे हो गया आज? तुम इतना हिचकते थे बात करने में और खुद आकर पूछा. मैं भी झट से पीछे बैठ गयी. मेरे लिए तो परफेक्ट मोमेंट था वह. पूरे रास्ते मैं बारिशोंवाले गाने गाते आ रही थी और तुम मुस्कुरा रहे थे, मुड़-मुड़ के बहाने से मेरी तरफ देख रहे थे. मैंने जब कहा आगे देख कर चलाइए हुज़ूर, कहीं एक्सीडेंट न हो जाये. तब तुमने मेरा हाथ पकड़ कर जवाब दिया था ‘तुम्हें कुछ भी नहीं होने दूंगा, घबराओ मत’. हमने बारिश में भीगते हुए चाय पी और चंदू के दुकान के भुट्टे भी खाये थे. मेरे लिए वह बारिश डेट थी तुम्हारे साथ. तुम पहली बार खुल कर बात कर रहे थे और मैं खुश हुए जा रही थी. कितना रूमानी दिन था न वह. हमारा तीसरा मीट क्यूट.
अगर सोचो, तो हमारी हर मुलाक़ात अब तक एक मीट क्यूट ही तो थी. कितनी अच्छी यादें हैं न हर मुलाकात की. हम बेहद खुशनसीब हैं…पता है यहां लोगों को एक मीट क्यूट नहीं मिल पाता और हमारे देख लो कितने मीट क्यूट हुए हैं. जैसे सच्चा प्यार हर किसी को नहीं मिल पाता न, ठीक वैसे ही मीट क्यूट सबके लिए नहीं होते, लेकिन हमारे लिए थे और वह भी इतने सारे…स्वीटमीट्स क्यूट मुलाकातें..
स्वीटमीट्स क्यूट मुलाकातें? लो तुम्हारा घर आ गया. ऑटो रोकते हुए विजय ने कहा.हां, स्वीटमीट्स : क्यूट मुलाकातें. कितनी मीठी मुलाकतें होती हैं हमारी, तो उन मीठी मुलाकातों को हम क्या कहेंगे? स्वीटमीट्स : क्यूट मुलाकातें ही न! अब अगली बार बताउंगी.

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