धूम्रपान घटाता है गर्भधारण की क्षमता
धूम्रपान से कैंसर होने से तो अधिकतर लोग परिचित हैं. मगर यह इसके अलावा भी कई तरह से नुकसान पहुंचाता है. तंबाकू के सेवन या धूम्रपान से गर्भधारण करने की क्षमता भी प्रभावित होती है, जिससे इन्फर्टिलिटी होती है. इससे बचाव के लिए धूम्रपान छोड़ना ही बेहतर विकल्प है. कैसे छोड़ें तंबाकू वैसे तो बाजार […]
धूम्रपान से कैंसर होने से तो अधिकतर लोग परिचित हैं. मगर यह इसके अलावा भी कई तरह से नुकसान पहुंचाता है. तंबाकू के सेवन या धूम्रपान से गर्भधारण करने की क्षमता भी प्रभावित होती है, जिससे इन्फर्टिलिटी होती है. इससे बचाव के लिए धूम्रपान छोड़ना ही बेहतर विकल्प है.
कैसे छोड़ें तंबाकू
वैसे तो बाजार में आजकल बीड़ी, सिगरेट, तंबाकू आदि लतों से छुटकारा पाने के लिए निकोटिन च्यूइंगगम भी आ गयी है. मगर यदि दृढ़ इच्छा शक्ति नहीं होगी, तो व्यक्ति चाह कर भी इस लत से पीछा नहीं छुड़ा सकता है. दृढ़ निश्चय कर के ही व्यक्ति इस लत से छुटकारा पा सकता है. यदि आप अधिक समय तक च्यूइंगगम का प्रयोग करते हैं, तो फिर बीड़ी, सिगरेट, तंबाकू से तो छुटकारा मिल जायेगा मगर च्यूइंगगम के आदी होने का खतरा बढ जायेगा.
होमियोपैथी भी है कारगर
-कैलेडियम सेगिनम : इस दवा से तंबाकू के प्रति घृणा उत्पन्न होती है. यह व्यक्ति की इच्छा को बदल देती है, जिससे आदत धीरे-धीरे छूट जाती है. अगर दवा छोड़ने के बाद हल्की आवाज से ही नींद टूट जाये, सिगरेट पीने से हार्ट बीट अनियमित हो जाये और दम फूलने की शिकायत हो, तो यह दवा उसे भी ठीक कर देती है. 30 शक्ति की दवा चार-चार बूंद रोज तीन महीने तक लें.
-टोबैकम : यह दवा होमियोपैथिक विधि द्वारा तंबाकू से ही तैयार की गयी है. इसके सेवन से रोगी के मुंह का स्वाद खराब हो जाता है. तंबाकू उत्पाद का सेवन करने पर उसका स्वाद खराब लगता है, जिससे व्यक्ति तंबाकू का सेवन करना छोड़ देता है. 200 शक्ति की दवा रोज सुबह चार बूंद कुछ महीने तक लें.
पुरुषों को कैसे पहुंचता है नुकसान
स्पर्म बाहरी कारणों से बहुत ही तेजी से प्रभावित होता है. कई इंवायरमेंट फैक्टर इसे नुकसान पहुंचा सकते हैं. खास तौर पर आहार, तापमान, वजन, तनाव, अल्कोहल और स्मोकिंग से पुरुषों की फर्टिलिटी प्रभावित होती है. धूम्रपान चाहे किसी भी प्रकार का क्यों न हो, उसका स्पर्म पर हानिकारक प्रभाव ही पड़ता है. अनेक अध्ययनों से पता चला है कि स्मोकिंग करने से –
-स्पर्म काउंट कम हो जाता है
-विकृत स्पर्म में बढ़ोतरी होती है
-स्पर्म का मूवमेंट भी प्रभावित होता है.
धूम्रपान के कारण कमजोर हुए स्पर्म एग को फर्टिलाइज भी नहीं कर पाते हैं. इसके अलावा निकोटिन के कारण रक्त संचार बाधित होने से प्रजनन अंगों में भी रक्त संचार कम होता है. इसके कारण प्रजनन तंत्रों की सेहत पर दुष्प्रभाव पड़ता है.
(डॉ मीना सामंत से बातचीत)
क्या होते हैं खतरे
– धूम्रपान एवं पैसिव स्मोकिंग द्वारा गर्भधारण करने की दर 40% तक कम हो जाती है.
– धूम्रपान ओवेरियन रिजर्व, ओवेरियन रिस्पॉन्स, वीर्य की गुणवत्ता एवं फर्टिलाइजेशन को कम कर देता है एवं गर्भपात की दर को बढ़ाता है.
– धूम्रपान से भ्रूण की यूटेराइन रिसेप्टिविटी प्रभावित होती है. अत्यधिक धूम्रपान (प्रतिदिन 10 सिगरेट से ज्यादा) से गर्भ धारण करने की दर 50% तक कम हो जाती है.
– गर्भावस्था के दौरान एवं उसके बाद धूम्रपान से अंडों में क्रोमोजोम की विकृति होने का खतरा बढ़ जाता है.
– धूम्रपान करनेवालों में इन्फर्टिलिटी का खतरा धूम्रपान न करनेवालों के मुकाबले दो गुना हो सकता है.
– जो महिलाएं धूम्रपान करती हैं, उनमें धूम्रपान न करनेवाली महिलाओं के मुकाबले गर्भ धारण करने में एक साल अधिक समय लग सकता है.
अध्ययन के अनुसार आइवीएफ कराने से कम-से-कम दो-तीन माह पहले धूम्रपान छोड़ देने से गर्भधारण की संभावना बढ़ जाती हैं. वैज्ञानिक प्रमाणों के आधार पर एडवांस्ड फर्टिलिटी केयर फिजिसियन भी धूम्रपान को छोड़ने की सलाह देते हैं.
तंबाकू सेवन से होनेवाले अन्य रोग
सीओपीडी : लंबे समय से धूम्रपान करनेवाले लोगों के गले में खराश होने लगती है क्योंकि निकोटिन से शरीर में कार्बन मोनोआक्साइड की मात्रा बढ़ जाती है. इसके अलावा धूम्रपान करनेवाले लोगों में सूखी खांसी भी ज्यादा होती है. यदि इसका इलाज न हो, तो यह टीबी जैसी घातक बीमारी का रूप ले सकती है. धुएं के कारण श्वासनली संकरी हो जाती है. इसके कारण क्रॉनिक आॅब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी) हो सकता है. इसके कारण खांसी के साथ दम फूलने की भी शिकायत होती है.
लिवर और पेट रोग: निकोटिन के अत्यधिक सेवन से लिवर सिरोसिस का खतरा होता है. इसका इलाज केवल लिवर ट्रांसप्लांट है. निकोटिन के सेवन से लिवर की कोशिकाओं में ब्लड सरकुलेशन धीरे-धीरे कम होने लगता है, जिससे लीवर के टिश्यू खराब हो जाते हैं. लिवर के ठीक से कार्य नहीं कर पाने से कई अन्य रोग भी हो जाते हैं.
घटता है दवाइयों का असर : तंबाकू का सेवन करनेवाले व्यक्ति को यदि कोई रोग हो जाता है, तो ट्रीटमेंट में दवाइयां भी ठीक से असर नहीं करती हैं. ऐसा शरीर में निकोटिन की अधिक मात्रा के कारण होता है. ऐसे लोगों में बीमारी जल्दी ठीक नहीं हो पाती.
हृदय रोग का खतरा : निकोटिन के ज्यादा सेवन से खून की नली ब्लॉक होने पर खून का प्रवाह बाधित होता है. हृदय रोगों का खतरा बढ़ जाता है. ऐसे लोगों को हार्ट अटैक और हाइपरटेंशन का खतरा अधिक होता है.
इनपुट : कुलदीप तोमर
होता है कैंसर का खतरा
धूम्रपान करनेवाले को फेफड़े के कैंसर का भी खतरा होता है. महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर का खतरा 25% तक बढ़ जाता है. तंबाकू के कारण मुंह और गले के कैंसर होने का खतरा बढ़ जाता है. यह कैंसर जानलेवा है. हर वर्ष इससे हजारों लोगों की जान जाती है.
हालांकि मुंह का कैंसर होने से पहले ओरल सबम्यूकस फाइब्रोसिस नामक समस्या होती है. इस में मरीज का मुंह पूरी तरह नहीं खुल पाता है. ओरल कैविटी के म्यूकोसा के निचले स्तर में इन्फ्लेमेशन से फाइब्रोसिस होता है. आम तौर पर लोग गुटखा और पान-मसाला को चबाते समय अपने मुंह में कुछ मिनट से लेकर कुछ घंटो तक मुंह में दबा कर रखते हैं.
इसी कारण यह समस्या उत्पन्न होती है. मुंह सूख जाता है और छाले पड़ जाते हैं. उसके बाद के स्टेजेस में मुंह पूरा खुल नहीं पाता है. जीभ सफेद हो जाती है और उसके मूवमेंट में परेशानी होती है. इस बीमारी को तीन स्टेज में बांटा गया है स्टोमाटाइटिस, फसइब्रोिसस और ओरल सबम्यूकस फाइब्रोसिस. स्टोमाटाइटिस में मुंह में सूजन आ जाती है.
खाने, बोलने आदि में परेशानी होती है. दूसरे स्टेज फाइब्रोसिस में ओरल म्यूकोसा का रंग सफेद पड़ जाता है और जीभ पर धारियां पड़ जाती हैं. तीसरे स्टेज ओरल सबम्यूकस फाइब्रोसिस में रोगी की समस्या काफी बढ़ जाती है. बोलने के अलावा सुनने में भी परेशानी होती है.
इसका ट्रीटमेंट बीमारी के स्टेज पर निर्भर करता है. यदि शुरुआत में ही मरीज गुटखा का सेवन छोड़ दे, तो बीमारी खुद ही ठीक हो जाती है. यदि बीमारी गंभीर स्टेज में पहुंच गयी है, तो ट्रीटमेंट दो प्रकार से होता है. मेडिकल और सर्जिकल. पहले बायोप्सी की जाती है. मेडिकल ट्रीटमेंट में विभिन्न दवाइयों और इंजेक्शन से उपचार किया जाता है. वहीं सर्जिकल ट्रीटमेंट में रिकंस्ट्रक्टिव सर्जरी की जाती है.
(आइजीआइएमएस, पटना के डॉ दिनेश कुमार सिन्हा से बातचीत)
क्यों होते हैं नशे के आदी
कोई भी आदत मूर्च्छा के कारण पैदा होती है. इस दिशा में सोचे बगैर, कोई भी अभियान दूरगामी रूप से असरकारक साबित नहीं होगा. कई प्रयोग हैं, जिनसे मूर्च्छा आसानी से टूट सकती है और हम भीतर की आदतों की गुलामी से मुक्त हो सकते हैं. सम्मोहन के प्रयोग से इन आदतों को छोड़ना आसान है. ध्यान रहे कि सारा सम्मोहन आत्म-सम्मोहन ही होता है. इसके लिए हमें यह ख्याल करने की जरूरत नहीं कि ये आदतें कैसे छूटें. इसके उलट, हमें पॉजिटिव संकल्पना भीतर डालनी होगी.
जैसे, उस चित्र को याद करें जब आप सुडौल शरीर के स्वामी थे और सोचें कि मैं फिर वैसा हो गया हूं. नेगेटिव सजेशन के खिलाफ लड़ कर कोई नहीं जीत सकता. हमें पॉजिटिव पिक्चर भीतर डालनी होगी. हो सकता है, जिससे आप मुक्ति पाना चाहते हैं, वह एक से अधिक कारणों से हो. रिलैक्स होकर ख्याल करें कि इसकी शुरुआत कहां से हुई. आपसे अच्छी खोजबीन और कोई नहीं कर सकता. चिंतन-मनन से नहीं, भीतर से जवाब आने दें.
-डॉ ओशो शैलेंद्र