स्मारकों से ऊर्जा ग्रहण करता शहर

-हरिवंश- वाशिंगटन में एक से एक शानदार स्मारक है. अमेरिका का शानदार अतीत या इतिहास नहीं रहा है, पर पिछले 200-300 वर्षों में यहां जो उल्लेखनीय व्यक्तित्व हुए, उनके अद्भुत स्मारक हैं. अमेरिकी भाव विभोर होकर इन स्मारकों का उल्लेख करते हैं. हवाला देते हैं, संजोते हैं, वहां जाते हैं, और उनसे ऊर्जा ग्रहण करते […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 31, 2016 11:23 AM

-हरिवंश-

वाशिंगटन में एक से एक शानदार स्मारक है. अमेरिका का शानदार अतीत या इतिहास नहीं रहा है, पर पिछले 200-300 वर्षों में यहां जो उल्लेखनीय व्यक्तित्व हुए, उनके अद्भुत स्मारक हैं. अमेरिकी भाव विभोर होकर इन स्मारकों का उल्लेख करते हैं. हवाला देते हैं, संजोते हैं, वहां जाते हैं, और उनसे ऊर्जा ग्रहण करते हैं. एक सुखद और शानदार भविष्य का.
चाहे वशिंगटन स्मृति हो या लिंकन मेमोरियल या वियतनाम स्मारक या ऐसे दूसरे समारक. यहां पहुंच कर अमेरिकी डूब जाते हैं. लिंकन स्मृति में लिंकन की भव्य-विशाल मूर्ति है. नीचे खंड में ‘लाइट-साउंड’ प्रोग्राम है. लिंकन के भाषण के महत्वपूर्ण अंश सुन सकते हैं. तसवीरें देख सकते हैं. चुपचाप खड़े लोग डूब कर सुनते हैं. अचानक मैं भटक जाता हूं. हमारे अद्भुत और विलक्षण महापुरुषों का आज क्या हाल है? दुनिया, जिनमें रोशनी तलाशती है, उनके स्मृति चिह्नों को हम कैसे मिटा चुके हैं.
गांधी, बिहार के जिस चंपारण में आये, वहां उनके आश्रम का क्या हाल है? ‘भितिहरवा आश्रम’, राजनीतिक पैंतरेबाजी का अड्डा बन गया है. गंदा और जीर्ण-शीर्ण. वर्धा की हालत भी अच्छी नहीं है. साबरमती और गांधी जी के जन्म स्थान पर तो तस्करों का असर है. तिलक, विनोबा, जयप्रकाश, नेहरू, खान अब्दुल गफ्फार खां, राम मनोहर लोहिया वगैरह जैसे लोगों की चर्चा ही छोड़ दें. इतिहास के महापुरुषों को तो हम दफना ही चुके हैं, भारत के नव निर्माण के महापुरुषों को भी हम भूल रहे हैं. किस ताकत-प्रेरणा या ऊर्जा स्त्रोत से देश बनेगा? बिहार में कौन नेता, प्रेरणा स्त्रोत हैं- राम विलास पासवान, शरद यादव, सुबोधकांत, लालू प्रसाद, तारिक अनवर, सुशील मोदी वगैरह! यही तो इस पीढ़ी के नेता हैं.
वियतनाम मेमोरियल की भी अद्भुत कहानी है. वियतनाम हो या हैती, अमेरिका में हमेशा शासन की नीति के खिलाफ जन आक्रोश फूटा. वियतनाम से लौटे अमेरिकी सैनिकों ने पाया कि वियतनाम में मारे गये अमेरिकी सैनिकों का स्मारक होना चाहिए, ताकि ऐसी घटनाएं लोकस्मृति में दर्ज रहें. वियतनाम युद्ध के ही एक बुजुर्ग सैनिक ने पहल की. विभिन्न कंपनियों से चंदा मिला. सरकार ने तीन एकड़ की दलदल जमीन दे दी.
इस समिति ने आर्किटेक्टों-कलाकारों की प्रतियोगिता आयोजित की. भारी पैमाने पर लोग आये, पर प्रतियोगिता जीती 19 वर्षीया लड़की माया इनलेन ने. उसने (वी) आकार का स्मारक बनाया. 70 फीट दोनों ओर. इसमें 58191 उन अमेरिकी सैनिकों के नाम दर्ज हैं, जो मार दिये गये या लापता हो गये. लापता सैनिकों के नाम के आगे क्रास (+) का चिह्न है. जब किसी लापता सैनिक के मरने की पुष्टि होती है, तो उसके नाम के आगे फुल स्टॉप लगाते हैं.

1982 में यह बना. बेंगलूर से लाये गये काले संगमरमर पर. ठीक उसके सामने तीन सैनिकों की प्रतिमा फेड्रिक हार्ट ने बनायी. इसमें से एक सैनिक व्हाइट है, दूसरा काला यानी पूरे अमेरिका का प्रतिनिधित्व. आगे चर्चा चली कि इसमें महिलाओं की उपेक्षा हुई है. वियतनाम में आठ अमेरिकी महिलाएं भी मारी गयी थीं! फिर एक मूर्ति बनी है, जिसमें एक महिला नर्स की गोद में एक घायल अमेरिकी सैनिक है. इस स्मारक पर आकर अमेरिकी मौन हो जाते हैं.

शोर नहीं. फूल या माला लाते हैं. मार्मिक पत्र छोड़ जाते हैं.अमेरिकी सरकार की ऐसी नीतियों के खिलाफ अमेरिका में एक ताकतवर और मुखर वर्ग है. यह बार-बार वियतनाम की याद दिलाता है. कई लोग स्मारक के आगे अपनी पीठ पर और सामने नारे लिख कर चुपचाप खड़े रहते हैं. युद्ध के खिलाफ. इस मुखर वर्ग का एहसास सरकार को भी रहता है, अन्यथा हैती में क्लिंटन बहुत आगे जा सकते थे.

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