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प्रेस के युवा पाठक घट रहे हैं

-हरिवंश- 26.09 को आधिकारिक तौर पर पहला दिन था. निर्धारित समय पर होटल लॉबी में मिलते ही स्मिथ ने कहा कि औपचारिक बैठक है. टाई, सूट, चमड़े का जूता पहनें. बताया कि टाई तो पहनता ही नहीं. सूट भी नहीं. हां! जूता एक ही लाया हूं. वह टेनिस शू है. चलने में सुविधा होती है. […]

-हरिवंश-

26.09 को आधिकारिक तौर पर पहला दिन था. निर्धारित समय पर होटल लॉबी में मिलते ही स्मिथ ने कहा कि औपचारिक बैठक है. टाई, सूट, चमड़े का जूता पहनें. बताया कि टाई तो पहनता ही नहीं. सूट भी नहीं. हां! जूता एक ही लाया हूं. वह टेनिस शू है. चलने में सुविधा होती है. वह मन मसोस कर रह जाते हैं. कैसे बताऊं कि कम से कम कपड़ा ले चलने में यकीन है. महंगे कपड़े पहनता नहीं. टाई-सूट बांधता नहीं. अमेरिकी आम जीवनचर्या में बिल्कुल अनौपचारिक हैं.

पर आधिकारिक बातचीत-बहस में बिल्कुल औपचारिक और स्पष्ट. हमारे ‘स्कॉर्ट आफिसर’ हर्बर्ट स्मिथ मेरी बात पर मुस्कुराते हैं. आत्मीय और भले हैं.वह हमें ‘मेरीडीयन इंटरनेशल सेंटर’ ले जाते हैं. वहां मिलते हैं जूराज एलजे स्लाविक. प्रोग्राम आफिसर हैं. स्लोवाक (यूगोस्लाविया) के मूल वाशिंदे हैं. उनके सहायक हैं ब्रेयन एस हाल. बिल्कुल युवा, हंसमुख और ऊर्जावान, अमेरिकी सरकार की सूचना सेवा से सुश्री एलिस सिफलेट आयी हैं.

चार हम हैं. आठ लोगों की यह बैठक दो घंटे चलती है. सुश्री शिफलेट और स्वालिक कार्यक्रम का मकसद बताते हैं. कहते हैं कि पिछले पांच महीने से इस कार्यक्रम की तैयारी चल रही है. लता भी है. अमेरिका में हमारे पूरे कार्यक्रम का जिस तरीके से ब्योरा तैयार किया गया है, वह इसका स्पष्ट प्रकरण है. कहां ठहरना है. कब, किसके मिलना है. कहां लंच है. किन चीजों की बातचीत करनी है. भारत से आये हम चारों का ब्योरा है. रुचि का वर्णन है. अमेरिका में एक छोर से दूसरे छोर तक जहां-जहां आना-जाना है, उसका नक्शा है. खूबसूरत ढंग से पुस्तककार रूप में बुकलेट तैयार की गयी है, ‘इंटरनेशनल विजिटर प्रोग्राम ह्यूमन राइट्स’ (ए सिंगल कंट्री प्रोजेक्ट फॉर इंडिया) किसी काम की संपूर्णता और खूबसूरती का नमूना.

श्रमसाध्य पर उत्साहवर्द्धक. एक-एक कार्यक्रम पर सविस्तार चर्चा होती है. मकसद बताया जाता है. हमारी राय पूछी जाती है. यात्रा प्रबंध की लिखित जानकारी दी जाती है. एक परिचय पत्र दिया जाता है कि हम अमेरिका में सूचना सेवा के अतिथि हैं. हम जिसे भी यह कार्ड दिखायें, वह हमारी मदद करे. इंश्योरेंस कार्ड मिलता है. अमेरिका रहने तक (30 अक्तूबर तक वीसा है) हमारा यह इंश्योरेंस लागू है. 50 हजार डॉलर का. यानी लगभग 16 लाख रुपये का.

दोपहर का लंच मशहूर ब्रूकिंस संस्थान में है. मुख्य अतिथि हैं, डेविड एर फिलिप्स. वह कांग्रेसनल ह्यूमन राइट्स फाउंडेशन के अध्यक्ष हैं. दो वर्ष बेंगलूर में रहे हैं, अपने को भारत प्रेमी कहते हैं. चीन, पाकिस्तान, थाईलैंड, तिब्बत मसले पर काफी काम किया है. सामाजिक न्याय, पर्यावरण, सुरक्षा, लोकतंत्र और मानवाधिकार जैसे महत्वपूर्ण 20 से अधिक संगठनों से जुड़े हैं. वह भारत के बारे में सविस्तार सुनते हैं. हममें से एक-एक छोटा-छोटा ब्योरा पूछते हैं. आठ माह पूर्व कश्मीर होकर आये हैं. मानते हैं कि कश्मीर मुद्दा भारत के लिए निर्णायक है. हमारे एक मित्र उनसे पूछते हैं कि अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर अमेरिकी धौंस के बारे में उनका क्या कहना है? वह साफगोई से बात करते हैं.

अमेरिकी जनता और अमेरिकी सरकार के बीच फर्क बताते हैं. अमेरिकी जनता कैसे बुनियादी सवालों के प्रति सचेत हैं, इसका उदाहरण गिनाते हैं. हैती प्रकरण पर कहते हैं कि अमेरिकी प्रशासन पर दबाव है कि वह कैसे अपनी सेना वापस बुलाये, क्योंकि अमेरिकी नागरिक नहीं चाहते कि उनके सैनिक मारे जायें. वियतनाम स्मृति में है. वह कहते हैं देखिये अमेरिका में लोग कैसे अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हैं, पर उल्लेखनीय तथ्य है कि वे कर्तव्यों के प्रति अधिक तत्पर हैं. यह देखिये और लिखिये. दुनिया में बड़ा काम होगा. अमेरिका में मानवाधिकारों के लिए सजग संगठनों और उनके कार्यों का ब्योरा देते हैं.

दिलचस्प बातचीत और सवाल-जवाब का यह दौर लगभग तीन घंटे चलता है. दूसरे दौर की बातचीत मेरिडीयन इंटरनेशनल सेंटर में है. प्रमुख वक्ता हैं, सुश्री जेन क्रिटले, ‘रिपोर्ट्स कमेटी और फ्रीडम ऑफ द प्रेस’ की ‘एक्जिक्यूटिव डायरेक्टर’ हैं. पहले पत्रकार थीं, अब वकालत करती हैं. पत्रकारों की मददगार हैं. मुफ्त कानूनी मदद देती हैं. प्रेस की स्वतंत्रता की अंध पक्षधर हैं.

दरअसल अमेरिका में सुश्री जेन क्रिटले की तरह अनेक लोग हैं, जो बगैर पैसे के विभिन्न क्षेत्रों में स्वतंत्रता और नागरिक अधिकार के लिए उल्लेखनीय काम कर रहे हैं. ऐसे लोगों ने ही लोकतांत्रिक संस्थाओं की जड़ें मजबूत बनायी हैं, जिसे कोई शासक खत्म करने का साहस नहीं करता. वह कहती हैं कि अमेरिका में प्रेस सबसे ताकतवर है. सवाल के जवाब में कहती हैं कि माफिया ग्रुप या दूसरे अवैध संगठन भंडाफोड़ करनेवालों पर अमेरिका में हमला नहीं करते. हत्या नहीं करते. कभी-कभार दूसरे राज्यों में एकाध घटनाएं 10-20 वर्षों पूर्व हुईं, तो भयावह स्थिति हुई. दोषी लोगों को सख्त दंड मिला. अमेरिका का प्रेस आमतौर पर व्यवस्था विरोधी है.

क्लिंटन के चुनाव के वक्ता प्रेस का रुख क्लिंटन के पक्ष में था. राष्ट्रपति बनते ही प्रेस ने सच लिखना शुरूकिया, तो वह नाराज हो गये. कहने लगे कि मैं सीधे मतदाताओं से बात करूंगा. प्रेस-राजनेताओं का यह अफसाना हर जगह एक सा है. पत्रकार क्या पैसे या फेवर लेकर रिपोर्ट करते हैं? क्या प्रभावी पत्रकार सरकार की नीतियों को कुछ खास लोगों-वर्गों के पक्ष में प्रभावित (दलाली) करते हैं? इन सवालों के जवाब में वह कहती हैं कि ये सवाल पहली बार अफ्रीका से आये लोगों ने पूछा था या फिर आप लोग पूछ रहे हैं? अमेरिका में पत्रकार भ्रष्ट हों, ऐसा कोई सोच भी नहीं सकता.

पत्रकार किसी नीति को प्रभावित करने की कोशिश नहीं करते. पाठकीय जागरूकता है. अपने काम से भटकते पत्रकारों पर पाठक निगाह रखते हैं. यह बात वह कबूलती हैं कि तथ्यों को दोबारा जांचे-परखे बगैर खबरें छपने की प्रवृत्ति बढ़ी है. इसे वह चिंताजनक मानती हैं. अमेरिका में फिलहाल पत्रकारों को अदालतों से ज्यादा खतरा है. जज किसी महत्वपूर्ण घटना को छापने से रोक सकते हैं. इससे लोग चिंतित हैं. इस संदर्भ में भारत का प्रेस संपूर्ण रूप से स्वतंत्र हैं. पर उसे अपने स्वतंत्रता का आभास नहीं है, इस कारण दुरुपयोग बढ़ रहा है, यह खतरनाक है. पर अधिकांश भारतीय पत्रकार इस खतरे को भांप नहीं रहे.

अमेरिका में प्रेस पर दूसरा खतरा है. अखबारों के पाठक 40 के ऊपर के लोग हैं. युवा अखबार नहीं पढ़ते. टेलीविजन देखते हैं. टेलीविजन के अनेक चैनल हैं. चौबीस घंटे बनते हैं. अमेरिकी प्रिंट मीडिया में युवा पाठकों की घटती संख्या से भारी चिंता है. अखबारों के बंद होने की संभावना लगातार बढ़ रही है.
विचित्र राग-रंग है. वेष भूषा. स्वर है, धुन है. कहीं सड़क किनारे दूसरी तुरही बजा रहा है. कोई गिटार तो कोई बड़ा बाजा भों-भों, तेज रफ्तार से भागती कारों के बीच कोई सर से साइकिल पर निकल जाता है. भाग दौड़ में किसी के लिए कोई फुरसत नहीं है. आसपास से बीतरागी. पर कार्यालयों में जाइये. काम के दौरान चौकस और समय के पाबंद. यह दौड़ की संस्कृति है. थकने वालों के लिए जगह नहीं, सो बड़े-बूढ़ों के लिए अलग व्यवस्था हो रही है. गाडि़यों में, सार्वजनिक स्थानों पर बड़े-बूढ़ों को प्राथमिकता है. अपंग लोगों को प्राथमिकता है. सिर्फ शब्दों में नहीं, व्यवहार में भी. कोई कहीं पंक्ति नहीं तोड़ेगा.

अनुशासित और सार्वजनिक स्थानों को बेहतर बनाये रखने की भूख है. किसी-किसी बड़े स्टोर के सामने कोई डिब्बा लेकर बैठा मिल जायेगा. इनमें अधिकतर काले होंगे. नशीली दावाओं का जो बढ़ रहा है. वाशिंगटन, पांच-छह वर्षों पूर्व तक बिल्कुल अपराधमुक्त शहर था. अब दवाओं के व्यापारी फैले हैं. जागरूक लोग चिंतित हैं, इस शहर में 34-35 हजार डॉलर में एक कमरे का फ्लैट उपनगरों में मिल जाता है. दुनिया के सुंदर शहरों में से एक वाशिंगटन इस संदर्भ में सस्ता है. बंबई-दिल्ली में एक कमरे का फ्लैट 5-8 लाख में मिलेगा. बंबई के अच्छे उपनगरों में तो दो रूम के प्लैट का दाम करोड़ों तक पहुंच गया है. यह ब्लैकमनी का कमाल है. अमेरिका में करदाता शायद ही कर चुराते हैं, पर सरकार के दिये कर से पग-पग पर सुविधा लेने के लिए भी वे जागरूक हैं.

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