-हरिवंश-
कहावत है कि एक मछुआरे ने एम्सटर्डम की नींव डाली. यह किंवदती आप मानें या नहीं, पर इतिहास भी ऐसा ही संकेत देता है. एमस्टल नदी के कछार-मुहाने से जन्मा है, एमस्टर्डम नेपोलियन ने इसे नदियों का गाद (कीचड़) कहा था. अनियंत्रित नदी, धार-दिशा बदलती नदी. बेचैन और उफनती नदी. मच्छरों और खर-पतवारों का बसेरा…
इसी धरती पर एमस्टर्डम बसा है. 1999 में पहली बार इस हवाई अड्डे पर उतरा था. तब लौटा भी इसी रास्ते. पर शहर-देश को नहीं जाना. इस बार भी सुरीनाम (दक्षिण अमेरिका) का पड़ाव यही था. पर लौटने में हम एमस्टर्डम रूके, इस हवाई अड्डे के दृश्य चमत्कृत और स्तब्ध करनेवाले हैं. एक साथ कई जहाज, उतरने-उड़ान भरते हैं. अनेक टर्मिनल हैं. नये टर्मिनल बन रहे हैं. एकदम अधुनातन. भारत के हवाई अड्डे पासंग में भी नहीं हैं. बाद में जाना. दुनिया को जोड़ने का बंदरगाह केंद्र भी यह रहा है. आज आसमान मार्ग से संसार को जोड़ता है. चमक-दमक, तीव्रता, इफीशियंसी, गति… एक बिल्कुल नयी दुनिया.
पर कीचड़-कछार पर यह दुनिया कैसे बनी? मशहूर डच लेखक सीस नुरेबुस का कथन सुना. यह धरती प्रकृति की सौगात नहीं. गढ़ी गयी. बनायी गयी. पर सिर्फ धरती ने ही आकार नहीं लिया, नये तरह के लोग भी उभरे. ऐसे लोग, जिन्हें जमीन दो नहीं गयी. न प्रकृति ने दी और न पुरखों ने. उन्होंने बाहुबल, श्रम और पौरुष से इसे आकार दिया. गढ़ा.
यह सब सुनते हुए अतीत में खो जाता हूं. वर्षों पहले इतिहास से जाना. अंगरेज, फ्रांसीसी और डच, गुलाम बनानेवाली कौमे रही हैं. इस कारण इनके प्रति मुझमें भी पूर्वाग्रह है. इसलिए इनके संघर्ष-इतिहास से अनभिज्ञ रहा. अब प्रतिप्रश्न उभरते हैं, आखिर कैसे ये छोटे-छोटे मुल्क दुनिया में छा-पसर गये? अपने देश को इतना सुंदर, साफ, मोहक और बेहतरीन कैसे बना दिया? नदी किनारे से हूं. गंगा-घाघरा का रौद्र रूप देखा है. दलदल-कछार और छाड़न में पला-बढ़ा. बाद में ब्रह्मपुत्र का रौद्र रूप देखा. पर इससे भी बदतर हालत, परिवेश और भूगोल से एमस्टर्डम-नीदरलैंड जन्मते हैं.
जिसे दुनिया के सबसे उपजाऊ बेल्ट के रूप में गिना जाता है, उस दोआब (उत्तर प्रदेश-बिहार) से निकले-कमाने गये युवा, कलकत्ता, दिल्ली और बंबई से भगाये जाते हैं? कहां खो गया, हमारा आत्मसम्मान, पौरुष और सामर्थ्य?
रात 11 बजे सूर्यास्त का समय, पर भारत बनाम एमस्टर्डम का यह सवाल, सोने नहीं हालैंड की धरती पर यह पहला दिन (11 जून) था. हालैंड, नीदरलैंड का अंतर रही. आकर स्पष्ट हुआ. हालैंड एक प्रांत है. नीदरलैंड देश है. दोनों पर्याप्त नहीं है. जैसे ब्रिटेन और इंग्लैंड एक नहीं है.
नीदरलैंड के पूरब में जर्मनी है. दक्षिण में बेल्जियम, उत्तर और पश्चिम में समुद्र, राजधानी एमस्टर्डम और द हेग. भाषा डच और फ्रिशियन.सबसे बड़ा आश्चर्य, नीदरलैंड की धरती नीचे है. कल्पना करें. नदी ऊपर, तो खाई की भूमि तो पानी में ही डूबी होगी न पर नीदरलैंड में यह संसार सिद्ध सच लागू नहीं है. इसलिए वहां के लोग कहते हैं. नीदरलैंड का इतिहास मूलत समुद्र के खिलाफ संघर्ष का इतिहास है. प्रकृति के खिलाफ मानवीय संघर्ष. न परास्त होने की मानवीय जिजीविषा. डच, समुद्र से लड़े. समुद्र से धरती छीनी. समुद्र से जमीन निकाल कर मोहक देश बना लिया. हरा-भरा भारी खेती, दूर-दूर तक खेतों में फैली हरियाली.
खेतों के बीच मेड़ नहीं सड़कें, नहरों का जाल, टुलिप के सुंदर फूलों से आच्छादित मीलों-मीलों की धरती, फूलों के तरह-तरह के रंग. धरती की हरियाली, खेतों की हरियाली, घास-पेड़, पौधों की हरियाली, हरेपन के तरह-तरह शेड्स, सैकड़ों की संख्या में खेतों में चरती सुंदर गायें. आकर्षक घोड़े. इतने जीवंत दृश्य इसके पहले नहीं देखा. मैं मनुष्य के पुरुषार्थ और पौरुष को प्रणाम करता हूं, फिल्मों और सुंदर रंगीन तसवीरों के जीवंत और साक्षात दृश्य.
इस छोटे देश ने सिर्फ प्रकृति को ही नहीं बांधा, कला, चित्रकारी, साहित्य और विज्ञान में भी शिखर छुआ. आज इसकी राजधानी म्यूडिजम, कैफे, कल्चर (संस्कृति) और कनाल (नहरों) का केंद्र है. यहां भी नाइटलाइफ (रात), बार, कॉफी दुकानें मशहुर है, पश्चिमी इसे फन (आनंद) का केंद्र मानते हैं.कहते हैं, यह शहर ‘फुट (पैदल), बाइक (गा़डी), ट्राम और वोट (नाव)’ से घूम सेक्स और ड्रग का केंद्र. पर एम्सटर्डम-हॉलैंड लगभग अपराध मुक्त हैं. सुरक्षित कोई स्लम-गंदगी नहीं. पर अपनी भाषा के प्रति आग्रहशील, अंगरेजी जानते सब हैं. पर प्रयोग डच का. हाल तक वहां कोई अंगरेजी अखबर नहीं था. अब इंटरनेशनल हेरल्ड ट्रिब्यून मिलता है, लेकिन उसमें भी डच भाषा के पेज होते हैं.
आज यह धरती जीवंत, उर्वर और स्वप्नलोक जैसी है. पहले यहां कीचड़, पानी और गाद था. बांध बना कर लोगों ने जमीन सुखाये. फिर पर बने. सदियों पहले इमस्टल नदी पर ऐसा ही बड़ा बांध बना, जिसका नाम था एमस्टरलेखेम इस डच शब्द का शब्दार्थ है. ‘एमस्टल नदी का बांध’. फिर नहरों का जाल बिछा, किनारे-किनारे सुंदर उद्यान पार्क बने. बहस, संवाद और रोमांस के केंद्र कवियों, कलाकारों का उद्भव हुआ. रेंब्रा की अनेक मशहूर पेंटिंग, नीदरलैंड की पुराने जीवनशैली पर आधारित है.
बंदरगाह, समुद्री यातायात और जहाज से हॉलैंड दुनिया से जुड़ा. समुद्री ताकत बढ़ी फिर उद्योगों को बढ़ावा. चॉकलेट और इत्र-सुगंध के उत्पादन बढ़े-फिलिप कंपनी का मुख्यालय यहीं है. यह डच बहुराष्ट्रीय कंपनी आज भी एमस्टल नदी में अपना जहाज चलाती है. यात्रियों के लिए दुनिया की इतनी ब़डी कंपनी, फिर भी जहाज चलाने का मामूली काम. लोग आश्चर्य करते हैं. पर इस कंपनी का अपने देश के प्रति अलग समर्पण है.
भारत की धरती से बड़ी बनी कंपनियां, क्या ऐसा मामूली काम करना पसंद करेगी? इन देशों ने अपनी ही भूषा, भाषा, भोजन और भवन की शैली विकसित की. छोटे होकर भी. दरअसल एशिया (खासतौर से भारत) और यूरोप . बड़ा फर्क, माइंडसेट (दिमागी बनावट) और एटीट्यूड (सोच) का है.
डच में एक कहावत है. भगवान ने समुद्र बनाया और डच लोगों ने बंदरगाह यह अर्थपूर्ण है. हमें जो धरती, प्रकृति और परिवेश मिले हैं. उन्हें सुंदर बनाना हमारा सामर्थ्य, पौरुष, कर्म और सोच पर निर्भर है. कीचड़ और कछार पर एमस्टर्डम विकसित हो सकता है. कू़डे के ढेर और दलदल पर वाशिंगटन शहर बस सकता है. मछुआरों की बस्ती से सिंगापुर का जन्म हो सकता है. कैसे? मनुष्य के कर्म, पराक्रम और श्रम से डेढ़ करोड़ की आबादी का देश हालैंड. 112 करोड़ की आबादी का देश भारत, डेढ़ करोड़ लोग अपने बाहुबल, परिश्रम और एप्रोच से दुनिया में छा सकते हैं और 112 करोड़ की आबादी का देश भारत, दुनिया के स्तर पर कोई हैसियत न रख पाये.
यह सच मुझे बेचैन करता है. परनिंदा, अकर्म और आलस्य बिना श्रम, पैसा कमाने की जठराग्नि. हमारा मुल्क कहां पहुंचेगा?
सार्वजनिक जीवन में स्वअनुशासन-मर्यादा है. आयु के लिए आदर, .., ट्रामों, ट्रेनों और हवाई जहाजों में पहले बू़ढे, अपाहिज और बच्चे बैठते हैं. फिर अंधे-अशक्त लोगों के लिए लोग रास्ता छोड़ते हैं. मदद करते हैं. पैदल चलनेवालों के लिए गाड़ी रोकते हैं. मुझे अपना मुल्क-परिवेश याद आता है, क्या करूणा-मैत्री हम बातों तक ही सीमित रखेंगे?
दक्षिण अमेरिका-यूरोप के कुछ देशों की यात्रा से लौट कर.