-हरिवंश-
मुझे भी फख्र हुआ कि मैं वह भारतीय हूं, जहां की रहनुमाई गांधी ने की. उस गांधी ने, जिनके बारे में आइंस्टीन ने कहा, आनेवाली पीढ़ियां, शायद ही यकीन करे कि हाड़-मांस का ऐसा कोई इंसान रहा होगा. 21वीं सदी के द्वार पर खड़ी दुनिया ने जिन्हें सबसे बड़ा नायक माना. जो ब्रिटिश हुकूमत में, संसार के सबसे ताकतवर ब्रिटिश सम्राट के दरबार में सभी पूर्व परंपरा तोड़ते हुए लंगोटी (अपनी शर्तों पर) पहन कर गये. भरे दरबार में ब्रिटिश साम्राज्य द्वारा भारत के शोषण की बात की. दरबार और दरबारी इस साहस के आगे स्तब्ध थे. जिसके बारे में पश्चिम के दार्शनिकों ने कहा, दुनिया के इतिहासकार जब इस सदी की उपलब्धियों का आकलन करेंगे, तब वे अणु बम की शताब्दी नहीं मानेंगे, बल्कि यह सदी गांधी युग मानी जायेगी.
यहीं ख़डे-ख़डे, अमेरिकी शांतिदूत किरबी पेज याद आये. वह 1957 में मरे. शांति के लिए दुनिया में घूमे. ’57 के पहले वह बीसवीं सदी के लगभग सभी जीवित महान इतिहास नायकों-राजनीतिज्ञों से मिल चुके थे. उन्होंने लिखा कि जब मैंने इन इतिहास नायकों से मुलाकात का ब्योरा लिखा, तब मेरी पुस्तक का शीर्षक था, ‘इज महात्मा गांधी द ग्रेटेस्ट मैन ऑफ द एज?’. अब मरने के करीब हूं, पर बहुत पहले इस शीर्षक के आगे लगा क्वेश्चन मार्क (?, सवालिया निशान) हट चुका है.
गांधी से जु़डे प्रसंगों की बाढ़ मस्तिष्क में है. हार्वर्ड, स्टैंडफोर्ड से लेकर भारतीय इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट्स (अहमदाबाद, बेंगलूर वगैरह) जैसे विश्व के टाप ‘सेंटर ऑफ एक्सेलेंस’ में नये सिरे से गांधी पढ़ाये जा रहे हैं. गांधी के प्रबंधन-मूल्यों की चर्चा हो रही है. ग्लोबल विलेज होती दुनिया के पास कोई अपने मूल्य-आदर्श तो हैं नहीं. ज्ञानयुग (नालेज एरा) और सूचना क्रांति ने भारी उपलब्धियां दीं, पर मूल्य, सिद्धांत, आदर्श, विचार और मानवीय-पारिवारिक रिश्ते संकट में हैं. इसलिए बिल गेट्स से लेकर अजीम प्रेमजी और नारायण मूर्ति गांधी की बात करते हैं.
सुबह पोरबंदर से 65 कि.मी. दूर एक गांव में (प्रसल्ला) युवा स्वामी धर्मबंधु जी की सुनी बातें याद आती हैं. दस हजार युवा लड़के-लड़कियों के शिविर को संबोधित करते हुए स्वामी जी ने कहा, 20वीं सदी में दो महापुरुष हुए. गांधी और लेनिन. एक अहिंसा का पथ प्रदर्शक, दूसरा हिंसा का अनुयायी. गांधी अहिंसक क्रांति के सूत्रधार. लेनिन हिंसक क्रांति के नायक.1916 में गांधी बिहार गये. चंपारण से शुरुआत की. 1916 में ही लेनिन रेल से मास्को गये. क्रांति की घोषणा करने.
दोनों की सादगी, ईमानदारी, सच्चाई, प्रतिबद्धता, इतिहास की उज्जवल धरोहर हैं. लेनिन तीन वर्ष में ही कामयाब हुए. 1919 में रूस में क्रांति हो गयी. गांधी को 30 वर्ष से अधिक लगे, आजादी पाने में.पर आज कहां है, लेनिन का रूस? कई देशों में टूट-बंट गया. 6000 से अधिक अणु बम रखनेवाली दुनिया की सबसे बड़ी महाशक्ति बिखर गयी.
स्वामी जी ने गिनाया, मार्टिन लूथर किंग के अलावा, गांधी के रास्ते पर चलनेवाली दो महान जीवित हस्तियां हैं. नेल्सन मंडेला और बर्मा में कई दशकों से तानाशाहों की कैद में एकांतवास झेल रहीं आंग सू की. वह यह भी बताते हैं कि दुनिया के बड़े देशों में प्रतिवर्ष कहीं-न-कहीं गांधी की कई मूर्तियां लग रही हैं.
गांधी की जन्मस्थली पर खड़े-खड़े, उनकी आत्मकथा, ‘द स्टोरी ऑफ माइ एक्सपेरीमेंट्स विद ट्रुथ’ के अंश याद आते हैं. यहीं किसी कमरे में गांधी ने ‘ब्रह्मचर्य’ का संकल्प लिया. अपनी पिता की मृत्यु के मार्मिक क्षणों को साहस के साथ लिखा. अपने पाप बोध के बारे में लिखा. अपनी गलती का पत्र पिता को लिखा. प्रायश्चित स्वरूप. इस जन्मस्थल से जुड़े और भी अनेक तथ्य याद आते हैं. इसी घर में गांधी ने सत्य का व्रत लिया. परिवर्त्तन का वह क्षण, जब गांधी सामान्य से ऊपर उठ गये, यहीं घटित हुआ होगा. जो क्षण महान विभूतियों के जीवन को नयी दिशा दे देते हैं, वे क्षण गांधी के जीवन में यहीं आये थे. यहीं बुद्ध के ‘महाभिनिष्क्रमण’ जैसा बदलाव घटित हुआ. यहीं विवेकानंद के कन्याकुमारी अनुभव की पुनरावृत्ति हुई होगी.
क्रिस्टोफर ईशरवुड ने कन्याकुमारी में विवेकानंद के अनुभव के बारे में लिखा है. ‘जब वह प्रार्थना कर चुके, तब उन्होंने समुद्र की ओर देखा, जहां एक चट्टान खड़ी थी. उनके भीतर सहसा कुछ उपजा और वह समुद्र में कूद गये और चट्टान की तरफ तैरते हुए बढ़ने लगे. वहां पहुंच कर वह उस पर बैठ गये और देर तक ध्यान में खोये रहे. यह जीवन का ऐसा क्षण था, जब कोई व्यक्ति कुछ देर रुक कर अपने को तौलता है, अपनी नियति के प्रति सचेत होता है, उन निर्णयों को स्वीकार करता है, जो शायद अवचेतन में पहले से ही मौजूद थे, किंतु जिन्हें अभी तक पहचाना नहीं गया था. …..’
वे क्षण, उज्जवल ऐतिहासिक धरोहर का वह बोध, जिसने गांधी का जीवन बदल दिया, फिर देश बदला, इतिहास बदला, दुनिया को एक नयी रोशनी दी, वहीं मैं खड़ा हूं. यह उदात्त बोध पुन:-पुन: होता है. गांधी की आत्मकथा ‘सत्य के प्रयोग’ अद्भुत है. इसके पहले या फिर बाद में ‘आत्मकथा ’ की विद्या, आत्मप्रशंसा-स्वउपलब्धि का दस्तावेज माना जाता था, उस विद्या को ही गांधी की आत्मकथा ने बदल दिया.गांधी से जुड़े प्रसंगों की स्मृति से निराशा छंटती है. वर्षों बाद मन गौरव बोध से भर आता है.