बीमार राज्य के अनोखे सरकारी महकमे

-हरिवंश- बिहार में शासन कौन कर रहा है, यह कहना कठिन है. आम आदमी का सर्वस्व-जीवन, संपत्ति वगैरह विभिन्न अपराधी खेमों के पास बंधक है. विभिन्न समाचारपत्रों में बिंदेश्वरी दुबे की सरकार रहने-गिरने संबंधी अटकलबाजियों को देख कर आभास होता है कि राज्य में सरकार नाम की कोई चीज है. इस सरकार का काम रोजाना […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | June 21, 2016 1:17 PM

-हरिवंश-

बिहार में शासन कौन कर रहा है, यह कहना कठिन है. आम आदमी का सर्वस्व-जीवन, संपत्ति वगैरह विभिन्न अपराधी खेमों के पास बंधक है. विभिन्न समाचारपत्रों में बिंदेश्वरी दुबे की सरकार रहने-गिरने संबंधी अटकलबाजियों को देख कर आभास होता है कि राज्य में सरकार नाम की कोई चीज है. इस सरकार का काम रोजाना कुछ अधिकारियों का फेरबदल करना है. यह जगजाहिर है कि बिहार में ‘ट्रांसफर’ सौदेबाजी है और राजनेताओं की आय का मुख्य स्रोत भी. इस दिशाहीन सरकार का हर विभाग भानुमति का पिटारा है. उसे खोलिए या तह में जाइए, हैरत में डालनेवाली चीजें मिलेंगी.

बीमार बिहार के स्वास्थ्य विभाग ने 1982 में ही नालंदा मेडिकल कॉलेज के प्लास्टिक सर्जरी विभाग में एक सर्जन को नियुक्त करने का आदेश जारी किया, लेकिन इस पद पर 1985 जनवरी में ही डॉ प्रमोद कुमार वर्मा की बहाली हो सकी. अस्थायी तौर पर उन्हें पटना मेडिकल कॉलेज के सर्जरी विभाग में रखा गया. अक्तूबर 1985 तक नालंदा मेडिकल कॉलेज (पटना) में सर्जरी विभाग बना, लेकिन डॉ वर्मा के अतिरिक्त आठ और सर्जन हैं, लेकिन सरकार डॉ वर्मा को नालंदा मेडिकल कॉलेज नहीं भेज सकी. कुछ वर्षों पूर्व स्वास्थ्य विभाग के तत्कालीन सचिव वी. एस. दुबे को ‘डाइट और न्यूट्रिशन’ संबंधी प्रशिक्षण लेने के लिए विदेश भेजा गया. प्रशिक्षण ले कर लौटने पर सरकार ने उन्हें अपने कार्मिक विभाग में कमिश्नर बना दिया.

एक और आइएएस अधिकारी बी. बी. सहाय को 1984-85 में डायरिया और स्वास्थ्य संबंधी बुनियादी प्रशिक्षण के लिए विदेश भेजा गया. प्रशिक्षित हो कर जब वह लौटे, तो नगर विकास में उन्हें पदस्थापित किया गया. पिछले माह इस विभाग के विशेष सचिव पीएन नारायण को ‘हाइजिन व ट्रॉपिकल डिजीज’ संबंधी प्रशिक्षण के लिए लंदन भेजा गया है. लौटने पर शायद तबादला संबंधी आदेश उनका भी इंतजार कर रहा हो. समय-समय पर यूनिसेफ व विश्व स्वास्थ्य संगठन के बुलावे पर ऐसे अनेक अधिकारी सरकारी खर्च पर तफरीह कर आये हैं. पहला प्रारंभिक सवाल उठता है कि स्वास्थ्य संबंधी प्रशिक्षण डॉक्टरों को मिलना चाहिए या आइएएस अधिकारियों को? अगर इस विभाग में कार्य करनेवाले अधिकारियों को ही यह प्रशिक्षण देना है, तो फिर चलंत अधिकारियों को ही यह प्रशिक्षण क्यों? जो अधिकारी स्थायी तौर पर स्वास्थ्य विभाग में हैं, उन्हें ऐसे प्रशिक्षण के लिए नामजद क्यों नहीं किया जाता?

बिहार सरकार का एक और महकमा है, जेल विभाग. इस विभाग का आलम यह है कि ढीले-ढाले और अकुशल जेल सिपाहियों के बल सरकार कुख्यात अपराधियों की निगरानी चाहती है. डंडे से लैस सिपाही स्टेनगन और बम चलानेवाले खतरनाक कैदियों का मुकाबला करें, यह सरकार की अपेक्षा है. सैकड़ों वर्ष पुराने कई जेल असुरक्षित व खस्ता हालत में है, पर उन्हें बनाने के लिए सरकार को फुरसत नहीं है. बिजली के अभाव में बिहार के तीन चौथाई शहर अंधेरे में डूबे रहते हैं, पर सरकार अंधेरे व असुरक्षित जेलों में वैकल्पिक बिजली की व्यवस्था करने के लिए राजी नहीं.

हां, चार्ल्स शोभराज के भागने के बाद जेलों में चौकसी संबंधी आदेश सरकार रोज जारी करती है. जेल विभाग में होनेवाली खरीद-फरोख्त में अलबत्ता मंत्रियों- अधिकारियों की रुचि है. पहले इस विभाग में थामस हांसदा मंत्री थे,वह खुद चोरी के आरोप में पुलिस हवालात की हवा खा चुके हैं. फिलहाल वह दूसरे विभाग में मंत्री हैं. पिछले दिनों इस विभाग में पांच हजार कंबलों की खरीद में बड़ा घोटाला प्रकाश में आया है. इसमें पूर्व मंत्री समेत कई बड़ी हस्तियां शामिल हैं. चूंकि सरकार ऐसे लोग ही चला रहे हैं, इस कारण इनका कुछ नहीं होगा.

अरवल में नरसंहार हुआ. दुनिया में हो-हल्ला मचा. लेकिन बिहार सरकार के मुख्यमंत्री वहां नहीं गये. विधायकों-मंत्रियों के रिश्तेदारों की जिस शहर में शादी होती है, वहीं बिहार के मंत्रिमंडल की बैठक आयोजित की जाती है. सरकारी कोष से बिना काम करोड़ों का अपव्यय होता है, पर जहां 20 हरिजन मारे जाते हैं, वहां मुख्यमंत्री को जाने की फुरसत नहीं मिलती.

सरकार को ईमानदार-कार्यकुशल अधिकारियों से परहेज है. देवघर में अजय कुमार उपायुक्त थे. करोड़ों की संख्या में सावन में यहां दर्शनार्थी आते हैं. देवघर स्थित शिव गंगा की सफाई के लिए उपायुक्त महोदय ने बिना सरकारी मदद के बड़े पैमाने पर उल्लेखनीय कार्य किया. बिहार में आम आदमी सरकारी अधिकारियों के साहबी रौब से दूर भागता है. लेकिन वहां श्री कुमार ने प्रशासन में लोगों को शरीक किया. लाखों रुपये जनता से चंदा उगाह कर इकट्ठा किया गया. यह पिछड़े जिले की उन्नति के लिए हर संभव प्रयास करनेवाले उपायुक्त से कुछ राजनेता नाराज थे. अत: श्री कुमार को तत्काल तबादला कर दिया गया.

रांची में दिनदहाड़े सड़क पर हत्याएं हो रही हैं. इस अनियंत्रित शहर को तत्कालीन उपायुक्त मदन मोहन झा ने नियंत्रित करने की कोशिश की, तो रुकावटें डाली गयीं. अपेक्षित सहयोग नहीं मिला. फिलहाल उनका भी तबादला हो गया है. माफिया को नेस्तानाबूद करने के लिए बिहार सरकार ने केबी सहाय जैसे ईमानदार अधिकारी को हजारीबाग का कमिश्नर बनाया. पर आज वह सबसे हताश व्यक्ति हैं. कारण, कार्रवाई संबंधी जो भी रिपोर्ट सरकार के पास जाती है, उस पर राजनेता-मंत्री कुंडली मार कर बैठ जाते हैं.

तथ्य यह है कि बिंदेश्वरी दुबे का कोई जनाधार नहीं है. न नौकरशाही उनके साथ है और न खुद श्री दुबे जननेता हैं. जिन श्रमिकों का अगुवा होने का वह दावा करते हैं, वहां भी उनकी पैठ नहीं है. इस कारण चोर मंत्रियों और हेराफेरी करनेवाले नौकरशाहों के खिलाफ बड़े कदम उठाने का नैतिक साहस भी दुबे सरकार में नहीं है.

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