भारत-नेपाल रिश्ते में बढ़ती दरार
-हरिवंश- भारत-नेपाल के संबंध का मूल्यांकन अंतर्राष्ट्रीय राजनीति के तिकड़मी दांव-पेच या कठोर नियमों की कसौटी पर नहीं हो सकता. दोनों के बीच प्रगाढ़ता का समृद्ध अतीत रहा है, लेकिन अब इस धरोहर में पैबंद झलकने लगा है. हाल में भारत-नेपाल की सीमा से सटी पूर्वी नहर गंडक परियोजना की मरम्मत और सड़क निर्माण का […]
-हरिवंश-
भारत-नेपाल के संबंध का मूल्यांकन अंतर्राष्ट्रीय राजनीति के तिकड़मी दांव-पेच या कठोर नियमों की कसौटी पर नहीं हो सकता. दोनों के बीच प्रगाढ़ता का समृद्ध अतीत रहा है, लेकिन अब इस धरोहर में पैबंद झलकने लगा है. हाल में भारत-नेपाल की सीमा से सटी पूर्वी नहर गंडक परियोजना की मरम्मत और सड़क निर्माण का ठेका नेपाल ने चीन को दे दिया है. यह ठेका चार वर्षों के लिए चीन को मिला है. 81 किलोमीटर लंबी नहर नारायणी नदी से जुड़ी है. वीरगंज से पिपरा से रौतहट तक यह नहर भारतीय सीमा से सटी हुई है.
इस ठेके के लिए निविदा भरनेवालों में भारत, उत्तर कोरिया और चीन मुख्य देश थे. अंतत: चीन के ‘चाइना वाटर एडं इलेक्ट्रिक कॉरपोरेशन’ को यह ठेका मिला. इस तरह का एक ठेका दक्षिण कोरिया को भी मिला है. बाह्य तौर पर ये ठेके नेपाल-भारत रिश्ते में कटुता पैदा करने का एक प्रमुख कारण नहीं लगते, लेकिन दोनों देशों के बीच जो औपचारिक और आत्मीय रिश्ते रहे हैं, उस दृष्टि से नेपाल राजशाही के ये फैसले दोनों देशों के बीच अविश्वास पनपने के कारण बनेंगे.
पिछले कुछ वर्षों से नेपाल की राजनीति-अर्थनीति और समाज में जिस तरह चीनी घुसपैठ बढ़ी है, वह भारत के लिए चिंताजनक है. नेपाल में चीन समर्थक लॉबी एक लंबे अरसे से सुनियोजित रूप से काम करती रही है. नेपाल के विश्वविद्यालयों-कॉलेजों में पढ़नेवाले छात्रों के बीच वर्षों से चीन समर्थक तत्व, भारत के प्रति कटुता बढ़ाने का काम करते रहे हैं. 1969 में नेपाल सरकार ने भारत से हुए एक शस्त्र समझौते को अचानक रद्द कर दिया और तत्काल काठमांडू से भारतीय सैन्य मिशन और विभिन्न परियोजनाओं से जुड़े लोगों को हटाने की मांग की. इसके पीछे भी भारत विरोधी चीन लॉबी सक्रिय थी.
पिछले वर्ष जुलाई में नेपाल ने चीन से 400 ट्रक हथियार आयात किया. इसमें एंटी एयरक्राफ्ट बंदूकें और दूसरे अधुनातनशस्त्र थे. भारत-नेपाल के बीच 1965 में हुई संधि के तहत नेपाल को अपनी रक्षा आवश्यकताओं के संबंध में पहले भारत से राय-मशविरा करना था. नेपाल इस आयात से स्पष्ट करना चाहता है कि वह कहीं से भी हथियार आयात कर सकता है और उसे भारत के साथ हुई संधि की परवाह नहीं है. चीन से इन शस्त्रों को मंगाने के बाद पहली बार नेपाल के प्रधानमंत्री ने भारत से नेपाल पूर्वी हिस्से में हवाई घुसपैठ की शिकायत की.
ठेकों और सड़क बनाने के नाम पर बड़ी संख्या में चीनी नेपाल आते हैं. विश्वस्त सूत्रों के अनुसार इसमें फौज के लोग अधिक हैं. 1985 में चीनी आयोग ने दस लाख सैनिकों की कटौती का निर्णय किया था. इन लोगों को विभिन्न परियोजनाओं को पूरा करने के काम में लगाया गया. नेपाल में चीन द्वारा चलायी जा रही परियोजनाओं में अधिकांश ऐसे चीनी मजदूर खट रहे हैं, जो चीनी सेना से संबंधित रहे हैं. उल्लेखनीय तथ्य है कि नेपाल में अनेक परियोजनाओं की शुरुआत भारत के सहयोग से ही हुई है. 1951 में गंडक परियोजना आरंभ हुई. इस परियोजना से दोनों देश लाभान्वित हो रहे थे. आरंभ से ही इस परियोजना के रख-रखाव पर भारत काफी खर्च करता रहा है.
उपलब्ध जानकारी के अनुसार सत्तर के दशक में भारत के तत्कालीन राजदूत श्रीमन नारायण ने नेपाल सरकार से एक समझौता किया था. इस समझौते के तहत यह व्यवस्था की गयी थी कि भारत, नेपाल-चीन सीमा पर नेपाली कार्यों का ठेका नहीं लेगा. साथ ही चीन को भी भारतीय सीमा पर नेपाली ठेके नहीं दिये जायेंगे, लेकिन अब इन समझौतों पर नेपाल अमल करने के लिए तैयार नहीं लगता.
भारत ने नेपाल को समय-असमय मुंहमांगी मदद दी है. सन ‘50 में नेपाल को सामंतशाही से निकाल कर संवैधानिक राजतंत्र बनाने का श्रेय भी भारत को ही है. एक सार्वभौम और स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में नेपाल अपनी मुक्त विदेश नीति तय करने और उसका अनुगमन करने के लिए स्वतंत्र है. लेकिन शक्ति संतुलन के इस रास्ते पर चल कर उसे भारत की सीमा को अशांत करने का हक नहीं है. संयम और मर्यादा के तहत भारत ने कभी नेपाल-चीन सीमा पर कोई ठेका नहीं लिया. भारत-नेपाल के बीच प्रगाढ़ संबंधों का आधार दोनों देशों के बीच हुई सन ’50 की संधि भी है. इस संधि के स्पष्ट प्रावधानों को क्रियान्वित करने से भी नेपाल मुकर रहा है. भारतीयों के नेपाल आवागमन पर रोक की मांग होती रही है. फिलहाल भारत ने नेपाल को दी जानेवाली सहायता में कटौती पर अपनी प्रतिक्रिया जाहिर की है. नेपाल को यह भी शिकायत रही है कि नेपाली कांग्रेस और भारतीय जनतांत्रिक शक्तियों के बीच एक ऐतिहासिक संबंध रहा है. यह सही भी है, लेकिन कभी भी भारत सरकार ने नेपाल विरोधी गतिविधियों को भारत में प्रायोजित नहीं किया.
हाल में नेपाल विशेषज्ञ लीओ ई रोज ने भी कहा है कि नेपाल की समृद्धि भारत के साथ स्वस्थ संबंध बनाने पर ही निर्भर है. श्री रोज कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय में राजनीतिशास्त्र के प्राध्यापक हैं. रोज के अनुसार नेपाल का अस्तित्व भारत पर टिका है. एक तिहाई नेपाली लोगों ने रोजगार और व्यापार की तलाश में भारत में आ कर शरण ली है. दक्षिणी नेपाल की पूरी अर्थव्यवस्था भारत पर निर्भर है. इस क्षेत्र के लोग सुगमता से भारत आते-जाते हैं और अपनी आर्थिक स्थिति पुख्ता करते हैं. भारत-नेपाल सीमा अगर बंद कर दी जाये, तो नेपाल व इस अंचल की अर्थव्यवस्था चौपट हो जायेगी. इससे भारत को नुकसान नहीं होगा. रोज के अनुसार आगामी 50 वर्षों तक चीन नेपाल में भारत का स्थान नहीं ले सकता.