16.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

पंद्रह वर्षों बाद सिकंदराबाद केस का फैसला

-हरिवंश- 40 लाख खर्च कर भी सरकार निर्दोष लोगों को सजा नहीं दिला पायी मशहूर सिकंदराबाद षडयंत्र केस के अभियुक्तों के खिलाफ आंध्रप्रदेश सरकार अपना आरोप साबित नहीं कर सकी. लगभग 15 वर्षों तक चले इस मुकदमे की गूंज पूरे देश में हुई थी. यह केस जे वेंगलराव के मुख्यमंत्री बनने के समय शुरू हुआ. […]

-हरिवंश-

40 लाख खर्च कर भी सरकार निर्दोष लोगों को सजा नहीं दिला पायी

मशहूर सिकंदराबाद षडयंत्र केस के अभियुक्तों के खिलाफ आंध्रप्रदेश सरकार अपना आरोप साबित नहीं कर सकी. लगभग 15 वर्षों तक चले इस मुकदमे की गूंज पूरे देश में हुई थी. यह केस जे वेंगलराव के मुख्यमंत्री बनने के समय शुरू हुआ. इसके बाद आंध्र में तीन आम चुनाव हुए. पांच मुख्यमंत्री बदलने से उन निर्दोष अभियुक्तों की मुसीबतें कम नहीं हुईं. मुकदमे की सुनवाई से विलंब का असर राजकोष पर भी पड़ा. सरकार ने इस मामले को निबटाने के लिए विशेष अदालत गठित की. तीन सरकारी वकील रखे गये. अलग ‘नक्सलवादी सेल’ बनाया गया. इस क्रम में पूरे 40 लाख रुपये खर्च हुए. नंदमूरि तारक रामराव की तेलुगु देशम पार्टी जब सत्ता में आयी, तो रामराव (जिन्हें लोग आंध्र में ‘ड्रामाराव’ के नाम से पुकारते हैं) ने नक्सलवादियों को ‘महान देशभक्त’ करार दिया.

सिकंदराबाद कांसिपरेसी केस (षडयंत्र केस) के तहत नक्सलवादी कार्यकर्ताओं और समर्थकों पर राजद्रोह का मुकदमा चलाया गया था. इसमें क्रांतिकारी लेखक संघ (आरडब्ल्यूए) के कुछ सदस्यों को अभियुक्त बनाया गया था. इनमें साहित्यिक पत्रिका सर्जना के तत्कालीन संपादक वरवर राव, के.वी. रमन्ना रेड्डी, एम.टी. खान, एम. रंगनाथन और चेरबंड राजू शामिल थे. इस मुकदमे के अभियुक्तों ने ‘पीपुल्स वार ग्रुप’ के चर्चित कोंडापल्ली सीतारमय्या, के.जी. सत्यमूर्ति, मुकु सुब्बा रेड्डी और तत्कालीन स्टूडेंट्स यूनियन के नेता मल्लिकार्जुन शर्मा भी थे. अभियुक्तों पर हत्या, डकैती, साजिश और सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए हथियारबंद बगावत की तैयारी का आरोप लगाया गया था. सरकारी पक्ष ने इसमें पांच सौ गवाहों के नाम दिये थे, पर ढाई सौ गवाह ही पेश किये गये.

अभियुक्तों के वकील थे मानवाधिकारों के लिए लड़नेवाले देश के मशहूर अधिवक्ता कन्नाबिरन. उल्लेखनीय है कि नक्सलियों ने कुछ माह पूर्व जब आंध्र के सात आइएएस अफसरों का अपहरण किया, तो राज्य सरकार ने पी.यू.सी.एल. के उपाध्यक्ष कन्नापिरन से मध्यस्थता की गुजारिश की. उनके प्रयास से ही यह मामला सलटा. कन्नाबिरन ने बगैर शुल्क लिये सभी अभियुक्तों को अपनी ओर से हर संभव मदद दी. कन्नाबिरन के अनुसार बेकसूर लोगों की हत्या और उन्हें प्रताड़ित करने में रामाराव सरकार पिछली सभी सरकारों से आगे निकल गयी है.

5 मई 1988 को अतिरिक्त मेट्रोपोलिटन सेशन जज पी.वी. रामशर्मा ने इस मुकदमे के निर्णय का पहला हिस्सा सुनाया. इस फैसले में नौ अभियुक्त बरी कर दिये गये. 27 फरवरी को उन्होंने अपने ऐतिहासिक फैसले में बाकी अभियुक्तों को बरी कर दिया. न्यायमूर्ति शर्मा की दृष्टि में क्रांति के लिए काम करने की अपील या भाषण देने भर से राजद्रोह नहीं होता. उन्होंने उल्लेख किया कि क्रांति प्रगति का निशान है. न्यायाधीश महोदय ने इस लंबी सुनवाई के दौरान न्याय व्यवस्था में भरोसा रखने के लिए अभियुक्तों की प्रशंसा की. साथ ही मुकदमे के निबटारे में देर के लिए उनसे क्षमायाचना की.

इन 15 वर्षों की कठिन यातना से गुजरने के बाद अभियुक्त भले ही बरी हो गये हों, लेकिन उनका यह सवाल कि ‘हमें तो अपने जीवन का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा जेल में गुजारना पड़ा,’ अनुत्तरित है. इस मुकदमे की सुनवाई के दौरान ही क्रांतिकारी कवि चेराबंड राजू की बीमारी के कारण मौत हो गयी. फैसला सुनाये जानेवाले दिन चेराबंड राजू की पत्नी श्यामला भी अदालत में मौजूद थीं.

चेराबंड की चर्चा करते ही उनके मित्र और सिकंदराबाद षडयंत्र केस में अभियुक्त रहे एटी खान का गला रूंध जाता है. वह कहते हैं, ‘जीवन में मां-बाप का चुनाव आकस्मिक है. उसमें इंसान का बस नहीं होता. वैचारिक साम्यवाले मित्रों का चुनाव तो व्यक्ति की निजी पसंद है. उनसे बिछड़ने का दर्द शब्दों में नहीं बांधा जा सकता.’ चेराबंड राजू की याद में उनके मित्र और इस षडयंत्र केस के अभियुक्त ज्वालामुखी भी भावुक हो जाते हैं.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें