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अविश्वास और टकराव की राजनीति

-हरिवंश- पंजाब-हरियाणा सीमा विवाद के दौरान उभरे मसले देश के लिए गंभीर चुनौती हैं. भाषा सर्वेक्षण के दौरान बरनाला ने आरोप लगाया कि हरियाणा ने पंजाब के खिलाफ जंग छेड़ दिया है. यह भी कहा कि पंजाब पर थोपे गये इस युद्ध का उपलब्ध साधनों के बल हम हर संभव प्रतिरोध करेंगे. भजनलाल भला कैसे […]

-हरिवंश-

पंजाब-हरियाणा सीमा विवाद के दौरान उभरे मसले देश के लिए गंभीर चुनौती हैं. भाषा सर्वेक्षण के दौरान बरनाला ने आरोप लगाया कि हरियाणा ने पंजाब के खिलाफ जंग छेड़ दिया है. यह भी कहा कि पंजाब पर थोपे गये इस युद्ध का उपलब्ध साधनों के बल हम हर संभव प्रतिरोध करेंगे. भजनलाल भला कैसे पीछे रहते. पंजाब पुलिस द्वारा किये गये जोर-जबरदस्ती और जुल्म का मुद्दा उन्होंने भी उठाया. इस विवाद में पंजाब और हरियाणा दोनों राज्यों के मुख्यमंत्री भूल गये कि वे एक ही देश के दो राज्यों का प्रतिनिधित्व करते हैं. एक ही संघ के दो राज्य, दो तार्किक परिणति समझना कठिन नहीं है.
हरियाणा-पंजाब सीमा पर बसा कंदूखेड़ा सिख बहुल गांव है, लेकिन वहां सरपंच हिंदू चुना जाता रहा. भिंडरावाले के समय में भी वहां कोई तनाव नहीं रहा. लेकिन कंदूखेड़ा और ऐसे अनेक गांवों में अब पहले जैसी स्थिति नहीं रही. आशंका और तनाव है, जहां रोटी-बेटी का का रिश्ता था, वहां राजनीति ने वैमनस्य, घृणा और अविश्वास के बीज बो दिये हैं. बरनाला, भजनलाल और राजीव गांधी अपनी कुरसी की लड़ाई में कब तक आपसी विश्वास, मैत्री और सद्भाव की हत्या करते रहेंगे? पंजाब समझौते के अगर ऐसे ही परिणाम निकलनेवाले हैं, तो भिंडरांवाले क्या बुरा था? एक तरफ राज्य एक-दूसरे को नीचा दिखाने की कोशिश में लगे हैं, दूसरी ओर केंद्र को शोषक करार करने का फैशन है. जायज हक और समतापूर्ण व्यवस्था की मांग वाजिब है, पर गुलाम भारत के अंगरेजी शासन से केंद्र की तुलना, उन करोड़ों लोगों की कुरबानियों का अपमान है, जिन्होंने इस देश की मुक्ति के लिए सब कुछ लुटा दिया.

राजीव गांधी की गलत नीतियों का उग्र विरोध और नेहरू वंश की आलोचना सही है, लेकिन भारतीय संघ-संविधान की अवमानना – अनादर देश की एकता पर आघात है. केंद्र के प्रति बढ़ती कटुता के साथ ही राज्यों में आपसी तकरार जिस रूप में बढ़ रही है, उससे संकीर्ण क्षेत्रीयता की जड़ें गहरी हो रही हैं. असम-नगालैंड की पुलिस में सीमा-विवाद को लेकर गोली चल चुकी है.


महाराष्ट्र-कर्णाटक सीमा विवाद का अनसुलझा सवाल फिर सुलग रहा है. यहां तक कि जनता पार्टी के मधु दंडवते इस विवाद पर कुछ कहते हैं, तो उनकी पार्टी के ही रामकृष्ण हेगड़े कुछ और बोलते हैं. उत्तरप्रदेश और बिहार की सीमा से दोनों राज्यों की पुलिस में आपसी झड़पों की खबरें बराबर ही आती रहती हैं. बिहार में छोटानागपुर का सवाल फिर तेजी से उभर रहा है. जमशेदपुर में बिहार के शोषण के खिलाफ ‘बिहार मैत्री संघ’ का गठन हुआ है. टिस्को-टेल्को में बिहारी प्रभुत्व के नाम पर गैर बिहारियों के अपमान की कुछेक घटनाएं हुई हैं.

इस तरह के काम करानेवाले चंद तथाकथित कांग्रेसी मजदूर नेता हैं. हालांकि बिहारियों के शोषण का सवाल उठानेवाले जमशेदपुर के ये तथाकथित रहनुमा छोटानागपुर में स्वयं आदिवासियों का शोषण कैसे करते है. इस पर कभी शायद इन्होंने नहीं सोचा.

वस्तुत: राज्य आपस में तो लड़ ही रहे हैं, राज्य के अंदर भी विभिन्न क्षेत्रों के लोगों में एक-दूसरे को शोषक करार करने की होड़ है. अपनी संस्कृति, बोली को सर्वश्रेष्ठ मनवाने की लड़ाई चल रही है. कुछ ही दिनों पहले मिथिलांचल की समस्याओं के लिए दरभंगा में रेल रोको आंदोलन चला. सांसद हुकुमदेव नारायण यादव और विजय कुमार मिश्र ने इसकी अगुवाई की. इन दोनों लोगों ने इस आंदोलन की तुलना करते हुए कहा कि ‘यह आंदोलन असम और पंजाब में चले आंदोलनों की तरह है. मिथिलांचल की मांगें तब तक पूरी होने की संभावना नहीं है, जब तक हम असम-पंजाब की राह पर नहीं चलेंगे. ‘देश नाजुक मोड़ पर है, से समय विघटनकारी तत्वों को हवा देनेवाले इन राजनेताओं का चरित्र क्या है. हमें इस समझना होगा.’

राजनीति में इस टूट, बिखराव और पतन के मूल कारण हैं कि पहले तपे-तपाये, योग्य और निष्ठावान लोग ही राजनीति में आते थे, उन्हें देश, दुनिया, समाज और संस्कृति की समझ थी. अब जिसे कहीं प्रवेश नहीं मिलता, वह लुंपेन राजनीति में आता आता है. पिछले 15-20 वर्षों से ऐसे लोगों का प्रवेश हो रहा है. आज यही लुंपेन सत्ता में महत्वपूर्ण पदों पर हैं. संसद-विधानसभाओं में बहस का स्तर और व्यवहार इनकी योग्यता के प्रत्यक्ष सबूत हैं. वस्तुत: इस देश को बदलने का ठेका जिन लोगों ने लिया है, उनमें से अधिकांश मूढ़, अहंकारी और अवैज्ञानिक हैं.

ऐसे लोगों के कारण ही संघर्ष और तनाव सर्वव्यापी है. बिहार में मिथिलांचल, गैर मिथिलांचल का सवाल है, तो आंध्र में तेलंगाना और रायलसीमा का. कमोबेश सभी राज्यों में ऐसा है. बिहार में तो एक क्षेत्र के विभिन्न पड़ोसी जिलों में बंदूकें तनी हैं. पड़ोसी गांव एक-दूसरे के खिलाफ जंग छेड़े हुए हैं. ऊंच-नीच की लड़ाई तो है ही, पद-कुरसी का भी तिकड़म है. पिछले दिनों बिहार में एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने बड़े ओहदे पर आसीन कुछ पुलिस अधिकारियों पर एक करोड़ के गोलमाल का प्रामाणिक आरोप लगाया. सीबीआइ से जांच कराने की संस्तुति दी.

इस गोलमाल में शामिल दो आइजी स्तर के अधिकारी भी हैं. लेकिन इन लोगों का कुछ नहीं हुआ. क्योंकि इस घोटाले में शामिल वे सभी सवर्ण हैं. बिहार जैसे राज्य में भ्रष्टाचार के आरोप में एकमात्र विश्राम प्रसाद आइएएस पुलिस हिरासत में पकड़ गये. समाचार पत्रों ने इस खबर को प्रमुखता से छापा और यह भी उल्लेख किया कि विश्राम प्रसाद हरिजन हैं. विश्राम प्रसाद से गंभीर घोटाले करनेवाले कम से कम दो दर्जन वरिष्ठ अधिकारी बिहार में हैं. चूंकि ये राजपूत, भूमिहार, कायस्थ और ब्राह्मण हैं. अत: इनका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता. विश्राम प्रसाद की गिरफ्तारी पर विधायक नवल किशोर शाही की प्रतिक्रिया बिल्कुल सटीक है कि ‘चोर जेल में हैं और डकैत सचिवालय में.’

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