बिहार में हत्याओं का एक और दौर

-हरिवंश- अपने हक की मांग करनेवाले हरिजनों को हमेशा के लिए चुप रहने की ताकीद के रूप में ही सामंतों ने जहानाबाद के नोन्हीं-नगवां गांव में कत्लेआम किया. आधी रात के लगभग सैकड़ों की संख्या में मुंह बांधे सशस्त्र हमलावर हरिजन टोले में आये. 19 लोगों की हत्या और अनेक लोगों को घायल करने के […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | June 28, 2016 4:17 PM

-हरिवंश-

अपने हक की मांग करनेवाले हरिजनों को हमेशा के लिए चुप रहने की ताकीद के रूप में ही सामंतों ने जहानाबाद के नोन्हीं-नगवां गांव में कत्लेआम किया. आधी रात के लगभग सैकड़ों की संख्या में मुंह बांधे सशस्त्र हमलावर हरिजन टोले में आये. 19 लोगों की हत्या और अनेक लोगों को घायल करने के बाद हत्यारों की यह फौज अंधेरे में गुम हो गयी. अपने पीछे छोड़ गयी मारे गये लोगों के अबोध बच्चों की चीत्कार और उजड़े भविष्य को निहार कर बिलखते अधीर स्वजनों की बड़ी तादाद. इन गांवों से लौट कर हरिवंश और जयशंकर गुप्त की रिपोर्ट. तसवीरें ली हैं कृष्णमुरारी किशन ने.
जहानाबाद जिले में एक गांव है, नोन्हीं. गांव के दक्षिण ओर बसे हरिजनों का टोला भागलपुर है. टोले के अधिकांश हरिजन हाल के कुछ वर्षों के दौरान आसपास के गांवों से भाग कर यहां आ बसे. संभवत: इसीलिए टोले का नाम भागलपुर पड़ गया. कुछ वर्षों पूर्व लालदास पासवान भी यहां अपनी ससुराल में आ बसा था. वह यहां अपनी पत्नी-बच्चों और अंधी सास के साथ रहता था. करीब छह माह पूर्व उसके घर लड़की पैदा हुई थी. लालदास ने बड़े लाड़ से अपनी बेटी का नाम पिंकी रखा. नोन्हीं गांव के कुछ बाबू साहबों (भूमिहार जमींदारों) को यह नामकरण नागवार गुजरा. भला आभिजात्य नाम हरिजनों के बेटे-बेटियों के कैसे हो सकते हैं? लालदास ने डर कर पिंकी का नाम दौलतिया रख दिया.

लालदास पासवान का गुनाह सिर्फ यही नहीं था. टोले के अन्य हरिजनों के साथ लालदास ने भी इंडियन पीपुल्स फ्रंट की सदस्यता ले ली थी. इन लोगों ने गांव की गैर मजरुआ जमीन और पोखर पर अपना हक जमाना शुरू कर दिया था. न्यूनतम मजदूरी और भूमि सुधार कानूनों को लागू करवाने की मांग करने लगे थे. लालदास ने गांव के राजनंदन सिंह से करीब एक हजार रुपये उधार लिया था. वह उनका हलवाहा था. कुछ दिनों से लालदास, बाबू साहब से उनके यहां जमा अपना 10-15 मन अनाज वापस मांग रहा था. उसका कहना था कि वह भरपूर मजदूरी दें, तो वह उनके पैसे लौटा देगा. और आगे भी काम करेगा.

वह बगल के नगवां गांव के राजनंदन मोची के साथ मिल कर पड़ोस में खालिसपुर गांव छोड़ कर भाग चुके लोगों को पुनर्वास दिलाने, हरिजनों के साथ जुलूस बना कर भी गया था. इन सब ‘गुनाहों’ की सजा और सबक लालदास पासवान, राजनंदन मोची तथा गांवों में उनके साथी समर्थकों को मिलना ही था. 16 जून की रात नोन्हीं-नगवां में हरिजन बस्ती पर हमलावरों ने हमला कर 19 हरिजनों को मौत के घाट उतार दिया. एक दर्जन लोगों को गंभीर रूप से घायल कर दिया. इस घटना के माध्यम से सामंतों ने आसपास के भूमिहीन-खेतिहर मजदूरों को यह सबक देने की कोशिश की है कि भू-सामंतों और अपराधी गिरोहों के खिलाफ सिर उठाने का अंजाम क्या होता है?


16 जून की रात करीब 11-12 बजे हथियारबंद लोगों का एक गिरोह (जिनके पास सर्विस राइफलों-बंदूकों के साथ लाठी तथा अन्य धारदार हथियार थे) तीन तरफ से भागलपुर टोले में घुसा. इससे पहले ये लोग नोन्हीं मठ के दक्षिण ओर बगीचे में जमा हुए थे. विश्वस्त सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार, पिछले दिनों विष्णुगंज पुलिस चौकी से लूटे गये राइफल भी इस हमले में इस्तेमाल किये गये. टोले में घुसते ही इन लोगों ने हरिजनों के घरों-झोंपड़ों पर कहर बरपाना शुरू कर दिया. लालदास की पत्नी मालती से लालदास के बारे में पूछा.

उसने बताया कि वह घर से बाहर गये हैं. हमलावरों ने उसे भद्दी गाली दी और उसके लड़के उमेश पासवान (साढ़े सात वर्ष) को गोली मार दी. अपने लड़के को मरते देख लालदास घर से निकल आया. वह हमलावरों से उलझा भी, लेकिन उसे और उसकी छह माह की बेटी पिंकी को लड़का समझ कर अपराधियों ने गोलियों से भून दिया. उस समय पिंकी लड़कों जैसा कपड़ा पहने थी. एक गोली लालदास की पत्नी मालती की जांघ में लगी, लेकिन वह बच निकली. हमलावरों ने इसी तरह देवचरण दास और उसके बेटे नगेंद्र दास (10 वर्ष) को भी मार डाला. देवचरण दास की मां को सिर में गोली लगी, पर वह बच निकली. देवचरण का लड़का टटन दास भाग कर पास के पोखर में चला गया.

हमलावरों के जाने तक वह वहीं छिपा रहा. साहेबदास के साथ ही उसके तीन बेटों को भी हमलावरों ने गोलियों से छलनी कर दिया.

इस तरह टोले में 85 वर्ष के फगुनी दास समेत सत्रह हरिजन घटनास्थल पर ही मार डाले गये. भागलपुर हरिजन टोले में करीब एक घंटे तक उत्पात मचाने के बाद यह गिरोह नगवां गांव की हरिजन बस्ती की ओर गया. वहां से ये लोग सीधे राजनंदन मोची के दरवाजे पर पहुंचे और ‘साथी दरवाजा खोलो’ कह कर दरवाजा पीटने लगे. राजनंदन मोची इंडियन पीपुल्स की काको अंचल कमिटी के सदस्य हैं. नाम पूछने पर हमलावरों ने गालियां दी और दरवाजे पर धक्का देने लगे.

दरवाजा खुल गया और हमलावरों ने गोली चलानी शुरू कर दीं. राजनंदन को पैर में गोली लगी और वह चारपाई के नीचे छिप गये. लेकिन उनका एक बेटा रविंदर दास मारा गया. दूसरा लड़का सविंदर भाग कर धान के खेत में छिप गया. हमलावर पूछते थे- रजनंदवा कहां है? राजनंदन के घर से हट कर हमलावरों ने कारुदास को मारा. हमलावरों की अंधाधुंध गोली से कुछ और लोग गंभीर रूप से घायल हुए. विश्वस्त सूत्रों के अनुसार नगवां गांव में भी ढेर सारे हरिजन मारे गये होते, पर हमलावरों के जवाब में गांव के कुछ मुसलिम परिवारों ने भी गोलियां चलानी शुरू कर दीं, जिससे हमलावर वहां से खिसक गये.

भागलपुर टोली में लालदास पासवान को मार रहे लोगों में से कुछ को उसकी पत्नी मालती देवी ने पहचाना. उसके अनुसार हमलावरों में विपिन बिहारी सिंह, नवल सिंह, योद्धा सिंह आदि नोन्हीं गांव के ही भूमिहार भू-सामंत थे. नवल सिंह, राजनंदन सिंह का बेटा है. लालदास पासवान उनके यहां काम करते थे. कुछ दिनों से मजदूरी के सवाल पर दोनों पक्षों में तनाव चल रहा था. घटना से कुछ दिन पहले राजनंदन सिंह एवं उनके परिवार के लोग लालदास पर खेत में चल कर काम करने तथा न करने पर पैसा लौटाने की मांग कर रहे थे. घटना के एक दिन पूर्व भी भू-सामंतों ने लालदास तथा अन्य हरिजनों को काम पर न लौटने पर सबक सिखाने की धमकी दी थी.

लालदास का कहना था कि मजदूरी बढ़ायी जाये, तथा राजनंदन सिंह उसके अनाज को लौटायें. इसके अलावा गांव में गैर मजरुआ जमीन पर कब्जा करने, घर-झौंपड़े बनाने तथा पोखर में मछली मारने के सवाल पर भी तनाव चल रहा था. भागलपुर टोले में बने हरिजनों के झोंपड़ों से भू-सांमतों के ट्रैक्टर और बैलगाड़ी के गुजरने का रास्ता अवरुद्ध होता था. सामंत अकसर इन हरिजनों को गैर मजरुआ जमीन से हट जाने की धमकी देते थे. घटना के कुछ ही दिन पूर्व गांव में भू-सामंतों ने एक लड़की के साथ बदसलूकी की थी, हरिजनों ने इसका विरोध किया था.

लेकिन क्या मात्र यही कारण थे, जिनके चलते भागलपुर टोला और नगवां में हरिजनों का नरसंहार हुआ? क्या नरसंहार में सिर्फ नोन्हीं गांव के भूमिहार भू-सामंत ही शामिल थे? 16 जून की रात हमलावरों की गोलियों से घायल राजनंदन मोची ने जहानाबाद सरकारी अस्पताल में बताया कि उन्होंने कुछ हमलावरों को पहचाना. उनमें हरेराम गिरोह के बल्लम यादव, दीना यादव, राजदेव यादव, बिहारी यादव, राजेंद्र यादव, जंगबहादुर यादव आदि अपराधी थे. राजनंदन के अनुसार इस अपराधी गिरोह को स्थानीय सांसद एवं भाकपा नेता रामाश्रय प्रसाद सिंह यादव का समर्थन एवं संरक्षण प्राप्त है. राजनंदन के अनुसार भूमिहार भू-सामंतों एवं यादव जाति के अपराधियों ने मिल कर यह नरसंहार किया. राजनंदन के इस वक्तव्य की पुष्टि जहानाबाद, नोन्हीं तथा आसपास के गांवों में अन्य सूत्रों से भी हुई.

लोकसभा के पिछले चुनाव में जहानाबाद से भाकपा के रामश्रय प्रसाद सिंह (यादव) ने कांग्रेस के किंग महेंद्र को हराया था. श्री यादव को तब इंडियन पीपुल्स फ्रंट, मजदूर किसान संग्राम समिति जैसे संगठनों के साथ ही कांग्रेस के कुछ वरिष्ठ नेताओं ने समर्थन किया था. रामानंद यादव, हरेराम यादव, राजदेव यादव आदि के अपराधी गिरोहों ने भी मतदान में उनकी मदद की थी. इधर इंडियन पीपुल्स फ्रंट का इस इलाके में जनाधार व्यापक हो रहा था. यादव जाति के लोग भी फ्रंट में से जुड़ रहे थे. इंडियन पीपुल्स फ्रंट के चुनाव लड़ने की घोषणा के चलते स्थानीय सांसद को अपनी लोकसभा सीट असुरक्षित होती दिखने लगी. उनका झुकाव स्वजातीय अपराधी गिरोहों को संरक्षण देने तथा कुछ भूमिहार नेताओं-सामंतों के साथ गंठजोड़ की ओर बढ़ा.

इस पृष्ठभूमि में नोन्हीं से सटे खालिसपुर गांव की घटना भी भागलपुर टोला और नगवां गांव में हुए हत्याकांड का कारण बनी. खालिसपुर गांव के लोग इंडियन पीपुल्स फ्रंट के घटक बिहार प्रदेश किसान सभा के नेतृत्व में एक अरसे से वहां सक्रिय अपराधी हरेराम यादव के गिरोह की गतिविधियों के खिलाफ आंदोलन चला रहे थे. अपराधी गिरोह इस गांव में डकैती, अपहरण और फिरौती वसूलने से ले कर हत्या करने, शराब की अवैध भट्ठियां चलाने, महिलाओं की इज्जत लूटने के साथ ही न्यूनतम मजदूरी और सामाजिक शोषण खत्म करने आदि की लड़ाई के खिलाफ भू-सामंतों का साथ देते थे.

पिछले 5 अप्रैल को हरेराम-रामजी यादव के इस गिरोह ने खालिसपुर में डाका डालने के क्रम में मेघनाथ महतो और लालबाबू यादव की हत्या कर दी थी. इसके खिलाफ गांव के ग्रामीण इंडियन पीपुल्स फ्रंट के नेतृत्व में जिलाधिकारी के यहां प्रदर्शन करने जा रहे थे. रास्ते में रेलवे स्टेशन के सामने सड़क पर रामजी यादव मिल गया. ग्रामीणों ने उसकी हत्या कर दी. डकैतों के जवाबी हमले से भयभीत खालिसपुर गांव के करीब 80 घरों के ग्रामीण गांव छोड़ कर भाग गये. यह गांव जहानाबाद जिला मुख्यालय से करीब पांच-छह कि.मी. दूर सड़क पर स्थित है. इस रिपोर्ट के लिखे जाने तक खालिसपुर अभी भी खाली है.


13 अप्रैल को इंडियन पीपुल्स फ्रंट के नेतृत्व में आसपास के गांवों से सैकड़ों लोग खालिसपुर के विस्थापितों को साथ ले कर खालिसपुर पहुंचे, पर फ्रंट का आरोप है कि वहां मौजूद उपपुलिस अधीक्षक ने इन लोगों को खदेड़ दिया. खालिसपुर गये लोगों में नोन्हीं और नगवां तथा गोलकपुर गांव के हरिजनों की महत्वपूर्ण भूमिका थी.

खालिसपुर के विस्थापितों को बसाने की योजना तो विफल हो गयी, लेकिन उन्हें बसाने गये नोन्हीं- नगवां, गोलकपुर आदि गांवों के गरीब, हरिजन, खेत मजदूर अपराधी गिरोहों की नजर में चढ़ गये. अपराधी गिरोह इन्हें सबक सिखाने की योजना बनाने लगे. रामजी यादव की हत्या के बाद अपराधियों ने धमकी दी कि वे ऐसा बदला लेंगे कि दुश्मनों की पत्नियां भी रामजी यादव की विधवा की तरह बिलख-बिलख कर आर्तनाद करेंगी. इसी कारण हमलावरों ने इस नरसंहार में महिलाओं को बख्श दिया. 13 मई की रात इस अपराधी गिरोह ने गोलकपुर गांव में धावा बोल कर इंडियन पीपुल्स फ्रंट के चार समर्थकों की हत्या कर दी. फ्रंट के चार समर्थकों की हत्या कर दी. फ्रंट का आरोप है कि हत्यारों को जहानाबाद के सांसद का संरक्षण प्राप्त है. उन्होंने इन्हें बचाने की भी भरपूर कोशिश की.

गोलकपुर में चार लोगों की हत्या के बाद इन अपराधियों ने एक सुनियोजित षडयंत्र के तहत नोन्हीं गांव के कुछ भू-सामंतों तथा पारसबीघा हत्याकांड के मुख्य अभियुक्त विनय सिंह (जो इन दिनों फरार हैं) को साथ लिया. 14 जून को इस हत्याकांड की योजना बनी. उस योजना के तहत हत्याकांड के एक दिन पहले ही हरेराम यादव ने आत्मसमर्पण कर दिया. 16 जून की रात भूमिहार भूसामंतों और हरेराम यादव के अपराधी गिरोह ने भागलपुर टोला और नगवां गांव में हरिजनों को सबक सिखाने के लिए हमला किया. हरेराम यादव तथा रामजी यादव का संबंध कभी मजदूर किसान संग्राम समिति (पार्टी यूनिटी) से भी था. शायद इसीलिए इस हत्याकांड के बाद प्रचारित किया गया कि यह हत्याकांड दो नक्सली संगठनों पार्टी यूनिटी तथा आइपीएफ (लिबरेशन गुट) के आपसी झगड़े के चलते हुआ. लेकिन अगले ही दिन इंडियन पीपुल्स फ्रंट तथा पार्टी यूनिटी अरविंद गुट ने इसका खंडन करते हुए कहा कि यह हत्याकांड भूमिहार भू-सामंतों एवं अपराधी यादव गिरोह द्वारा हरिजनों को सबक सिखाने के लिए किया गया है.

जहानाबाद में सामाजिक समीकरण बड़ा गडमड हो गया है. वर्ग के हित के नाम पर बड़े संपन्न किसान, चाहें वे किसी भी जाति के हों, एक हो जाते हैं, समाजवादियों द्वारा पिछड़ों को आगे बढ़ाने के नारे और कामों से ‘60 के दशक में बिहार में यादव और कुरमी जातियां ही सर्वाधिक लाभान्वित हुईं. अब ये जातियां भी राजपूतों और भूमिहारों की तरह आक्रामक और शोषक हो गयी हैं. क्रूरता में पुरानी सामंती जातियों को इन्होंने मात दे दी है. पटना में बैठे इनके राजनेता चाहे वे किसी भी दल में हों, खुलेआम अपनी जाति के अपराधियों की रक्षा-मदद करते हैं.

जहानाबाद में अधिकांश यादव गिरोह हो अपराध में संलग्न हैं. हालांकि यहां स्पष्ट करना माकूल होगा कि पारंपरिक अर्थ में जातीय दीवार इस इलाके में टूट रही हैं. अनेक राजपूत, भूमिहार, ब्राह्मण, कुरमी और यादव नेता विभन्नि नक्सली गुटों के साथ हैं और पिछड़ों के लिए लड़ रहे हैं. इन जातियों के अधिकांश गरीबों की सहानुभूति और समर्थन आइपीएफ, मजदूर किसान संग्राम समिति और किसान सभा को है. लेकिन इन जातियों के बड़े जागीरदार सामंत अभी भी कमोबेश कांग्रेस के समर्थक हैं. जहानाबाद लॉबी इस संदर्भ में कुख्यात है. इसमें भूमिहार सामंतों और नवधनाढ्यों का बोलबाला है.

पिछले चुनाव में यहां से कांग्रेस के टिकट पर किंग महेंद्र लोकसभा का चुनाव लड़े थे. लेकिन हारने के बावजूद कांग्रेस नेतृत्व ने उन्हें पिछले दरवाजे से राज्यसभा में पहुंचा दिया. बिहार विधानसभा चुनावों में किंग महेंद्र ने अपने लोगों को ही टिकट दिलवाये. उधर रामाश्रय प्रसाद सिंह का टिकट कट गया. बाद में वह बिहार में मंत्री बनाये गये, फिर एम.एल.सी. जहानाबाद के कांग्रेसी चंद्रिका यादव का आरोप है कि जिन लोगों को जनता ने चुनाव में परास्त किया, उन्हें पुन: सांसद या कांग्रेस का प्रभावशाली नेता बना कर अलोकतांत्रिक काम हुआ. इससे एक खास जाति के हाथ में कांग्रेस को सिमटते देख दूसरे लोग बिदकते गये. इस तरह से जहानाबाद में सामंतों की पार्टी के रूप में कांग्रेस की छवि विकसित हुई.


इन सामंतों के हितों पर नक्सली गुट चोट करते हैं. इस कारण सामंतों ने अपराधी यादव गिरोहों की बड़ी चालाकी से इस नरसंहार में मदद ली. जहानाबाद में अवैध धंधा भी अधिकांश यादव अपराधी गिरोह करते हैं. हरेराम गिरोह की जहरबीघा और दूसरे गांवों में अवैध शराब भट्ठियां चलती हैं. जहानाबाद स्टेशन के पश्चिम में रोजाना शराब बनाने के बाद सैकड़ों टोकरी महुआ फेंका जाता है. यह खुलेआम होता है.

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