-हरिवंश-
नेपाल-बिहार सीमा तस्करी के लिए कुख्यात है. सीमावर्ती क्षेत्रों में बिहार के राजनेता प्राय: मनपसंद पुलिस अधिकारी तैनात कराने का प्रयास करते रहे हैं, ताकि तस्करी में व्यवधान न हो. बड़े राजनेताओं-वरिष्ठ अधिकारियों का परिवार अकसर क्रय-विक्रय करने के लिए अपनी गाड़ी से नेपाल जाता है, मनचाही चीजें खरीद कर बिना रोक-टोक के वापस आ जाता है. सीमावर्ती क्षेत्रों में अंतरराष्ट्रीय तस्कर भी सक्रिय है. जिनके ‘गॉड फादर’ दिल्ली व पटना में महत्वपूर्ण जगहों पर आसीन हैं. पिछले दिनों यहां यूरेनियम की तस्करी का एक मामला रंगे हाथों पकड़ा गया, जिसे अब दबाने की कोशिश हो रही हैं.
आरके राय, थाना प्रभारी फारबिसगंज व अंचल के आरक्षी निरीक्षक रामदेव तिवारी को रात 15 जुलाई को एक गुप्त सूचना मिली सूचना थी कि भारत से प्रतिबंधित पदार्थ यूरेनियम की तस्करी जोगबनी के रास्ते से होती है. नेपाल ले जा कर इसे काफी कीमत पर विदेशी तस्करों के हाथ बेच दिया जाता है. वहां से इसे पाकिस्तान व चीन भेजा जाता है. इसी सूचना के क्रम में पता चला कि दिनांक 15-7-85 की शाम तस्करों के बीच यूरेनियम का आदान-प्रदान मिटयारी गांव में होनेवाला है. इस सूचना के आधार पर इन अधिकारियों ने आरक्षी अधीक्षक पूर्णिया से संपर्क किया. छापामारी के लिए उनसे वरिष्ठ अधिकारियों व अत्याधुनिक अस्त्र-शस्त्र भेजने का आग्रह किया.
फारिबसगंज से जोगबनी हो कर नेपाल जानेवाली सड़क पर मिटयारी गांव है. इस गांव में लगभग 300 गज पूरब में एक बड़ा पुराना बागीचा है. पुलिस को प्राप्त सूचना के अनुसार तस्कर इसी जगह यूरेनियम का आदान-प्रदान करनेवाले थे. आरके राय के नेतृत्व में पुलिस के जवान वहीं जा कर छिप गये. पुलिस जीप को भी छिपा कर रखा गया. करीब सात बजे शाम को फारिबसगंज से एक बुलेट मोटरसाइकिल आयी. इस पर सवार दो व्यक्ति उतरे व दोनों किसी की प्रतीक्षा में खड़े हो गये. कुछ समय बाद फारिबसगंज की ओर से एक जीप आयी.
इस जीप से भी दो व्यक्ति उतर कर वहीं खड़े हो गये. जीप जोगबनी की ओर चली गयी. कुछ देर बाद जोगबनी की ओर से एक एंबेसेडर कार आयी. उसे घुमा कर जोगबनी की ओर ले जाने की दृष्टि से वहीं खड़ा कर दिया गया. इन लोगों की बातचीत और गतिविधियों से पुलिस को संदेह हुआ. पुलिस ने इनकी घेराबंदी की. कुछ लोग भाग निकले, पर तीन व्यक्ति पकड़े गये. गिरफ्तार व्यक्तियों के पास से, आरक्षी अधीक्षक पूर्णिया की रिपोर्ट के अनुसार, ‘पोलिथिन के पैकेट में करीब रिपोर्ट के अनुसार, ‘पोलिथिन के पैकेट में करीब पांच किलो वजन का यूरेनियम प्राप्त हुआ.’
गिरफ्तार व्यक्तियों ने अपना नाम कार्तिक विरामी, सुनील कुमार तथा खगेंद्र सिंह बताया. पूछताछ के क्रम में सुनील कुमार ने बताया कि ‘बरामद यूरेनियम जादूगोड़ा जिला सिंहभूम की खान से चोरी कर के लाया गया है. इसकी तस्करी नेपाल हो कर पाकिस्तान को की जाती है.’ यूरेनियम के साथ ही वहां एक मोटरसाइकिल (नंबर डब्ल्यू जी एस 3957) भी बरामद हुई. कुछ अभियुक्त खड़ी कार में सवार हो कर भाग निकलने में सफल हो गये. भागनेवालों में राजेंद्र चौधरी, गंगा चौधरी और अनिल चौधरी थे. गहन पूछताछ के बाद अभियुक्तों ने खुलासा किया कि ‘फरार होनेवाले लोग विराटनगर (नेपाल) के टाटा मिष्टान्न भंडार के मालिक दुर्गाप्रसाद साह को यूरेनियम सौंपनेवाले थे, जिसका संबंध कुछ विदेशियों से है.’
बाद में पुलिस ने इस तस्करी में शामिल अभियुक्तों के संबंध में पता किया. फारबिसगंज में लोगों ने बताया कि विराटनगर के दुर्गाप्रसाद साह इस तरह की तस्करी में काफी दिनों से लगे हैं व स्थानीय लोगों को उनकी गैरकानूनी गतिविधियों के संबंध में जानकारी है. अभियुक्तों ने पहले दुर्गाप्रसाद साह से सौदा तय किया, इसके बाद गंगा चौधरी, सुनील कुमार और राजेंद्र चौधरी के घर गये. राजेंद्र चौधरी के पास ही यूरेनियम था. वहीं आदन-प्रदान का कार्यक्रम व जगह तय हुई. दुर्गाप्रसाद पैसों के साथ घटनास्थल से बच कर भाग निकला.
यूरेनियम बरामद होने के बाद स्थानीय सीमा शुल्क पदाधिकारियों से पुलिस ने संपर्क किया. पुलिस ने मुख्यालय, पटना से भी संपर्क किया व इस गंभीर मामले में तत्काल जांच की मांग की गयी. बरामद यूरेनियम की जांच विशेषज्ञ से कराने का अनुरोध भी किया गया.
बेगूसराय पुलिस के सहयोग से जांच के क्रम में यह भी पता चला कि राजेंद्र चौधरी का संबंध बेगूसराय के कुख्यात तस्कर कामदेव सिंह से रहा है. कामदेव सिंह उत्तर बिहार के आतंक थे. उन्हें बिहार के वरिष्ठ राजनेताओं-मंत्रियों का संरक्षण प्राप्त था. कुछ वर्षों पूर्व पुलिस मुठभेड़ में उनकी मृत्यु हो गयी. स्थानीय सीमा शुल्क अधिकारियों ने जांच के क्रम में बताया कि यूरोनियम तस्करी की सूचना उन लोगों को भी मिलती रही है. उनके रेकॉर्ड में दर्ज है कि ‘दुर्गाप्रसाद साह, मालिक टाटा मिष्ठान्न भंडार, विराटनगर (नेपाल), यूरेनियम व ऐसे पदार्थों की तस्करी से संबंधित रहा है.’
आरक्षी अधीक्षक, पूर्णिया ने दिनांक 31.7.85 ज्ञापांक 2654 सीआर में दर्ज किया है कि ‘उपलब्ध साक्ष्य से स्पष्ट होता है कि इस पूरे कांड में राजेंद्र चौधरी तस्करी की घटना के लिए मुख्य रूप से जिम्मेदार है. इसके बारे में सुना जाता है कि यह कुख्यात तस्कर कामदेव सिंह का सहयोगी रहा है.’
अपने निष्कर्ष में आरक्षी अधीक्षक ने उल्लेख किया है कि ‘जादूगोड़ा खान के स्थानीय कर्मचारियों की सांठगांठ से काफी मात्रा में कच्चे यूरेनियम की चोरी करने के बाद आपराधिक षडयंत्र तथा अधिक धन कमाने के लोभ में यूरेनियम जैसे बहुमूल्य पदार्थ की तस्करी की कार्रवाई इन लोगों ने की, जिसे नेपाल के माध्यम से राष्ट्रीय हित के विरुद्ध पाकिस्तान तथा चीन भेजे जाने की योजना थी. स्थानीय पदाधिकारियों को गुप्त रूप से इसकी सूचना मिल जाने पर अभियु्कत इस कार्य में सफल नहीं हो सके और कच्चे यूरेनियम के साथ गिरफ्तार कर लिये गये.
आरक्षी अधीक्षक ने फरार अभियुक्तों को तत्काल गिरफ्तार करने व उनके विरुद्ध कठोर कार्रवाई की मांग की. उन्होंने तत्काल परमाणु विशेषज्ञों से यूरेनियम की जांच कराने के संबंध में भी लिखा. जादूगोड़ा यूरेनियम खदान में कौन-कौन से लोग से कार्यों में लिप्त हैं, यह पता लगाने के लिए तत्काल वहां पुलिस के जाने व इसके बारे में पूर्ण छानबीन के संबंध में भी आरक्षी अधीक्षक ने मुख्यालय से पत्राचार किया.
आरक्षी अधीक्षक पूर्णिया ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि यह एक अंतरराष्ट्रीय गिरोह है. हिंदुस्तान की सुरक्षा का सवाल इससे जुड़ा है. अत: इस कांड की जांच सीबीआइ द्वारा जल्द से जल्द होनी चाहिए. बाद में आरक्षी उप महानिरीक्षक, अपराध अनुसंधान विभाग, पटना ने इस मामले को एक जुलाई 1985 को अपने ज्ञापांक 915 एनजीओ दिनांक 25-7-85 द्वारा अपने नियंत्रण में ले लिया. प्राप्त सूचनाओं के अनुसार आरक्षी उप महानिरीक्षक ने अपराध अनुसंधान विभाग के आरक्षी निरीक्षक मोतीचंद्र राम को जांच का भार सौंपा व विधायक अजित सरकार के अनुसार ‘अगस्त 1985 में इसे रफा-दफा करा दिया गया.’
प्रशासनिक सूत्रों के अनुसार इन तस्करों की पहुंच ऊपर तक है. जैसे ही यूरेनियम बरामद हुआ, पटना में इन तस्करों के आका इन्हें बचाने के लिए सक्रिय हो गये. उन्होंने भागदौड़ शुरू की व इस मामले को पूर्ण छानबीन के बगैर ही खत्म कराने का प्रयास किया.यह गंभीर मामला है, राष्ट्र की सुरक्षा से जुड़ा सवाल है. इस संबंध में पूर्णिया के आरक्षी अधीक्षक ने मुख्यालय को लिखा था कि इसकी जांच सीबीआइ द्वारा होनी चाहिए. बरामद पदार्थ की जांच विशेषज्ञ से करायी जानी चाहिए. जादूगोड़ा में से कौन-से तत्व तस्करी में लगे हैं, इसकी जांच हो. लेकिन इन कार्यों को पूरा किये बिना ही एक मामूली अधिकारी (जो आरक्षी अधीक्षक से पद में काफी छोटा है) की रिपोर्ट पर इसे समाप्त करना कहां तक तर्कसंगत है? बरामद पदार्थ यूरेनियम है या नहीं. इसकी जांच एक मामूली पुलिस अधिकारी कैसे कर सकता है?
बिहार विधानसभा के मुखर सदस्य अजित सरकार (सीपीएम) इस मामले की गंभीरता को देखते हुए इस सवाल पर पूरे देश को आंदोलित करना चाहते हैं. उनका मानना है कि सत्तासीन नेता व शासन में बैठे बड़े पदाधिकारी अब राष्ट्रीय हितों पर भी सौदेबाजी करने लगे हैं. सरकार के अनुसार ‘ऐसे कार्यों से ईमानदार पुलिस अधिकारियों का मनोबल टूटता है. जिन अधिकारियों ने इन राष्ट्रदोही अपराधियों को पकड़ा है, उनके लिए आरक्षी अधीक्षक ने मुख्यालय को पुरस्कार देने का अनुमोदन किया था. अब ये पुलिस अधिकारी इस मुकदमे को राजनीतिक प्रभाव के कारण खत्म होते देख क्या सोचेंगे.