डॉ वशिष्ठ की हत्या की जा रही है

-हरिवंश- आजकल किसी मामूली राजनेता को भी खांसी होती है, या पेट में दर्द होता है, तो इलाज वह अमेरिका में ही कराता है. सार्वजनिक कोष से उसे मदद मिलती है, मानो जनता का पैसा राजनेताओं के निजी ऐशो-आराम के लिए है, पर डॉ. वशिष्ठ को बढ़िया चिकित्सा कराने या विदेश भेजने के लिए इस […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | June 29, 2016 4:28 PM

-हरिवंश-

आजकल किसी मामूली राजनेता को भी खांसी होती है, या पेट में दर्द होता है, तो इलाज वह अमेरिका में ही कराता है. सार्वजनिक कोष से उसे मदद मिलती है, मानो जनता का पैसा राजनेताओं के निजी ऐशो-आराम के लिए है, पर डॉ. वशिष्ठ को बढ़िया चिकित्सा कराने या विदेश भेजने के लिए इस देश का सार्वजनिक कोष काम नहीं आता.वर्तमान व्यवस्था के व्याकरण के अनुसार डॉ वशिष्ठ की कोई अहमियत नहीं है. मौजूदा माहौल में उनकी चर्चा प्रगति विरोधी और दकियानूसी लेखन का सबूत है.

कारण, वह न तो राजनेता है और न फिल्म अभिनेता. न ही उन्होंने मलखान सिंह या चार्ल्स शोभराज जैसे करिश्मे दिखाये हैं, न दलबदलू नेताओं की तरह पलटे खाये हैं. उनका संगीन अपराध तो उस परिवार में उनका पैदा होना है, जो योजना आयोग द्वारा परिभाषित गरीबी रेखा के चश्मे से भी ओझल है. फिलहाल डॉ वशिष्ठ रांची के केंद्रीय मानसिक आरोग्यशाला में भरती हैं. पिछले 14 सालों से वह बीमार हैं. आरा (बिहार) जिले के बसंतपुर गांव में गरीब सिपाही के घर वशिष्ठ पैदा हुए. शुरू से ही उनमें अद्भुत प्रतिभा थी.

देश के मशहूर नेतरहाट स्कूल में उनका चयन हुआ. बाद में पटना विश्वविद्यालय में भरती हुए. हर जगह डॉ वशिष्ठ ने अभूतपूर्व कीर्तिमान स्थापित किया. फिर बुलावे पर अमेरिका गये. डॉ वशिष्ठ से मिलने के बाद वर्कले विश्वविद्यालय के विश्व प्रसिद्ध गणितज्ञ प्रो केली ने कहा, ‘यह विश्व का अपूर्व गणितज्ञ है.’


अमेरिका में उन्हें बढ़िया नौकरी मिली. भौतिक संदर्भों में उच्च मध्यम वर्ग जिन चीजों का ख्वाब देखता है, डॉ वशिष्ठ को वह सब पाने का मौका मिला. हिंदुस्तान के सबसे पिछड़े जिले और गरीब परिवार में पैदा हो कर भी डॉ वशिष्ठ ने दुनिया के मशहूर विद्वानों के बीच भारत का गौरव बढ़ाया. बहुत ही कम उम्र में पूरी दुनिया में अपनी अलग पहचान कायम की, लेकिन गरीब परिवार में पैदा हुए और आगे बढ़े लोगों के दिमाग में अपने वतन लौटने और देश-सेवा करने के कीड़े कुलबुलाते रहते हैं. यही विडंबना है. इसी कारण इस देश के शोषक राजनेता देश की एकता-अखंडता के मोहक नारे उछाल कर दलितों-गरीबों का वोट अपनी झोली में डलवा लेते हैं.

वस्तुत: यह गरीबों की भावनाओं का सरासर शोषण है. डॉ वशिष्ठ भी इसी भावना के शिकार हुए. विश्व प्रमुख शिक्षण संस्थान की नौकरी पर लात मार कर देश लौटने में उन्हें रत्ती भर भी समय नहीं लगा. जो आदमी ऐसे परिवार में पैदा हुआ, जहां दो जून के भोजन का जुगाड़ सबसे कठिन समस्या थी, वह आदमी सब सुख ऐश्वर्य क्षण भर में छोड़ कर देश लौट आया. कलकत्ता के एक महत्वपूर्ण संस्थान में उन्हें बढ़िया पद भी मिला.


दुर्भाग्य से यहां आने के कुछ ही दिनों बाद डॉ वशिष्ठ बीमार हो गये. उन्हें गांव ले जाया गया. झाड़-फूंक हुई. पैसे के अभाव में उनकी चिकित्सा नहीं हो सकी. मानसिक रूप से वह विक्षिप्त हो चुके थे. काफी दिनों तक उन्हें अपने घर पर रहना पड़ा. तब तक देर हो चुकी थी. उन्हें मानसिक चिकित्सालय में भरती किया गया. समुचित इलाज के अभाव में उनकी हालात निरंतर बिगड़ती गयी. काफी हो-हल्ला के बाद बिहार सरकार ने कुछ मदद की. पिछले 14 सालों से विभिन्न पागलखानों में उपेक्षित जीवन जीने को वह विवश हैं. उनके बदन पर गंदे कपड़े रहते है. बढ़े-बिखरे केश-दाढ़ी और बेतरतीबी से कपड़ा डाले डॉक्टर वशिष्ठ रांची के पागलखाने में अब चाय के लिए तरसते हैं. उनके कमरे में कोई सुविधा नहीं है. 10-20 पैसे के लिए डॉ वशिष्ठ हाथ फैलाते हैं. अस्पताल का उन पर 7,919.03 रुपये बकाया है. लेकिन डॉ वशिष्ठ के लिए आवाज उठानेवाला आज कोई नहीं है.

बिहार विधानमंडल में निरर्थक बहस-मुबाहिसे, गाली-गलौज के लिए सरकार प्रति मिनट लाखों रुपये खर्च करती है. मंत्रियों के पुत्र-पुत्री, पत्नी सरकारी विमानों में सैर करते-मौज उड़ाते हैं. सार्वजिनक कोष का पैसा नौकरशाही राजनेताओं की बपौती है, दिनदहाड़े उसकी लूट मची है. लोगों की गाढ़ी कमाई से प्राप्त राजस्व से राजनेता गुलछर्रे उड़ाने, शान-शौकत दिखाने के लिए स्वतंत्र हैं, लेकिन डॉ वशिष्ठ मरने के लिए अभिशप्त हैं. आजकल किसी मामूली राजनेता को भी खांसी होती है, या पेट में दर्द होता है, तो इलाज वह अमेरिका में ही कराता है.

सार्वजनिक कोष से उसे मदद मिलती है, मानो जनता का पैसा राजनेताओं के निजी ऐशो-आराम के लिए है. पर डॉ वशिष्ठ को बढ़िया चिकित्सा कराने या विदेश भेजने के लिए इस देश का सार्वजनिक कोष काम नहीं आता. विधवाओं और गरीबों के कल्याण के लिए बने कोष से बिहार के मुख्यमंत्री अपने मनपसंद पत्रकारों पर लाखों खर्च कर उन्हें विदेश की सैर करा सकते हैं, पर डॉ वशिष्ठ को बढ़िया चिकित्सा उपलब्ध कराने की बात कौन करे, रांची मानसिक आरोग्यशाला की बकाया राशि 7,919.03 रुपये का भुगतान नहीं हो पा रहा है.

चूंकि इस मुल्क में बोलने और वोट देने की आजादी है, मनपसंद रोजगार करने की छूट है और सबको समान अवसर हैं, इसलिए डॉ वशिष्ठ के साथ हो रहे सलूक की तोहमत इस व्यवस्था में शरीक कोई व्यक्ति लेने को तैयार नहीं है. मद्रास के एक होटल से कुछ दूरी पर स्थित शूटिंग स्थल पर अमिताभ बच्चन को पहुंचाने के लिए ही हेलीकॉप्टर तैयार रहता है, जिसमें प्रति घंटे कई लाख रुपये लगते हैं. यह इसी व्यवस्था में संभव है.


बिहार में अपराधी विधायकों या राजनेताओं का हाजमा गड़बड़ होता है, तो राज्य सरकार के विमान से डॉक्टर एक कोने से दूसरे कोने पहुंचाये जाते हैं, आर्थिक मदद दी जाती है. भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी करोड़ों का घपला करते हैं, स्पष्ट सबूत-साक्ष्य मिलते हैं, फिर भी बिहार सरकार कार्रवाई नहीं करती, कारण सबके हाथ रंगे हैं. सैकड़ों लोगों को जहरीली शराब पिला कर और मार कर जिस राज्य में लोग मंत्री बनते हैं, हिंसा-शोषण और सामंतवादी प्रवृत्ति जहां के राजनेताओं-नौकरशाहों की रग-रग में है, वहां डॉ वशिष्ठ को जीते-जी मौत के द्वार तक ठेलने के लिए आप किसी को दोषी नहीं ठहरा सकते. अगर एक व्यक्ति हत्या करता है, तो मौजूदा हालात में उसे फांसी की सजा दी जाती है, पर अगर पूरी व्यवस्था किसी व्यक्ति की हत्या के लिए जिम्मेदार है, तो उसे दंडित करने के लिए कोई प्रावधान नहीं है.

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