अपराधी अफसरों की बढ़ती तादाद
-हरिवंश- 10 जनवरी, उत्तरप्रदेश के फतेहपुर रेलवे स्टेशन पर रात 10 बजे तूफान एक्सप्रेस पहुंचती है. ट्रेन में सवार 22 वर्षीय गर्भवती लीलावती के पेट में पीड़ा होती है. सहयोगियों की सलाह पर उसका पति नानक उसे वहीं उतारता है. हालांकि उन्हें पटना जाना था. सामान उतारते-उतारते गाड़ी खुल जाती है. कुछ सामान गाड़ी में […]
-हरिवंश-
फतेहपुर से उसे बताया जाता है कि उसकी पत्नी सुरक्षित है. वह आश्वस्त भी है, क्योंकि फतेहपुर जंक्शन पर, जब उसकी पत्नी उतरी तो दो रेलवे सिपाही वहां मौजूद थे, उन्होंने भी उसे निश्चिंत रहने को कहा था और अगली ट्रेन से सामान लेकर आने तक देखभाल का विश्वास दिलाया था.
रात 12 बजे नानक फतेहपुर स्टेशन वापस लौटा, तो उसकी पत्नी वहां मौजूद नहीं थी. वह सबसे पूछताछ करने लगा. उपस्थित लोगों ने अनभज्ञिता जाहिर की. रेलवे सुरक्षा पुलिस के दोनों सिपाही भी नहीं थे. सुबह पांच बजे उसे अपनी पत्नी के कपड़े फतेहपुर के प्लेटफॉर्म नंबर एक पर मिले. नानक परेशान इधर-उधर भागदौड़ कर रहा था. सुबह आठ बजे उसे सूचना मिली की स्टेशन से 2-3 किलोमीटर दूर एक क्षत-विक्षत लाश पड़ी है. फतेहपुर रेलवे पुलिस की जहां चौहद्दी खत्म होती है, वहां नानक को अपनी पत्नी की लाश मिली. लाश का आधा हिस्सा गायब था.
जेवरात चुरा लिये गये थे. कुछ दूरी पर उसका नवजात मृत पुत्र पड़ा था. नानक अपनी पत्नी के साथ फतेहपुर स्टेशन पर दो अटैची छोड़ गया था. उनमें कुछ जेवरात और पैसे थे, वे भी गायब थे. नानक की पत्नी के साथ बलात्कार किया गया, उससे सामान छीन लिये गये. फिर उसकी हत्या कर दी गयी. हत्या के बाद शव के कुछ महत्वपूर्ण टुकड़े गायब कर दिये गये. बाकी हिस्सा व मृत नवजात शिशु ट्रेन की पटरियों पर फेंक दिये गये. स्थानीय लोगों ने चंदा कर नानक को हर संभव सहयोग दिया.
रामस्वरूप की घटना पर दो मंत्रियों से इस्तीफे लेनेवाले एवं पश्चिमी संस्कृति को आदर्श माननेवाले युवा शासकों के लिए इस घटना का कोई अर्थ भले ही न हो, लेकिन इस घटना पर अपेक्षित प्रतक्रिया न होना, हमारे संवेदनहीन होते समाज और अन्याय के खिलाफ प्रतिकार करने की दम तोड़ती इच्छा के सबूत हैं.
जिस समाज में जंगली कानून ही असली हों, पुलिस दरिंदों की माफिक पेश आये, शासक ऐसे मुद्दों को अनदेखा करें, सिनेमा के टिकट के लिए जहां आंदोलन हो, नकल करने पर पाबंदी के खिलाफ जहां के युवक आंदोलित होते हों. लेकिन ऐसी घटनाएं उन्हें छू भी नहीं पाती हों, उस समाज को बिखरने से कौन रोक सकता है. यह एक घटना काफी है, जिसके आधार पर उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री को अपनी गद्दी छोड़ने के लिए विवश किया जा सके. ऐसे समय लोग अकसर पूछते हैं कि इसमें मुख्यमंत्री का क्या हाथ है? वस्तुत: प्रशासन में नीचे से लेकर ऊपर तक के तबके द्वारा जो कुछ भी किया जाता है, उसके प्रतिनिधि हैं, मुख्यमंत्री. अपने मातहतों पर अगर वे लगाम न लगा सकें, तो उन्हें रहने का क्या औचत्यि है. नौकरशाही की अच्छाई-बुराई का प्रतिनिधत्वि मुख्यमंत्री करते हैं. न्याय देनेवाला अन्यायी और क्रूर न हों, इसकी पहरेदारी तो मुख्यमंत्री को ही करनी है.
24 जनवरी को उत्तर प्रदेश के ही हरिद्वार में अधिशासी अभियंता आरके अग्रवाल और उनके पुत्र की घर पर हत्या कर दी गयी, बाद में स्वर्गीय अग्रवाल की स्तब्ध पत्नी ने आग लगा कर आत्महत्या कर ली. शाम के समय हत्यारे अग्रवाल के कमरे में अचानक घुसे, किसी ठेका को लेकर विवाद हुआ. अग्रवाल दफ्तर से लायी हुई फाइलें देख रहे थे. हत्यारे अंदर गये और कुछ ही क्षणों बाद अग्रवाल को बाहर खींच कर लाये. बाहर सरेआम उन्हें गोली मारी. अग्रवाल के लड़के को भी गोली मार दी गयी. हत्यारे ठेकेदार थे. हत्या के काफी बाद तक पुलिस निष्क्रिय बनी रही. अग्रवाल अपने विभाग में ईमानदारी के लिए जाने जाते थे. सरेआम उनकी, उनके पुत्र की ठेकेदार हत्या कर दे, शोक विह्वल उनकी पत्नी जल मरे, फिर भी प्रशासन मूक और अकर्मण्य बना रहे, इसका क्या इलाज है. कौन नहीं जानता कि उत्तर भारत के अधिकांश ठेकेदार अपराधी हैं.
पिछले दिनों बिहार के आदिवासी बहुल लोहरदगा जिले के पुलिस सुपरिटेंडेंट का तत्काल तबादला किया गया. कारण, वहां शराब के एक ठेकेदार और कांग्रेस के प्रमुख नेता के अपराधों का चिट्ठा खोलने का उक्त अधिकारी ने दुस्साहस किया था. खास कर उत्तर प्रदेश और बिहार में छात्र जीवन के लफंगे और हत्यारे, पहले ठेकेदार बनते हैं, फिर राजनेता.
उत्तरप्रदेश और बिहार के जिन माफिया लोगों को हम बराबर अखबार की सुर्खियों में देखते हैं, ये मूलत: ठेकेदार हैं. इन्हें ऊपर से राजनीतिक संरक्षण प्राप्त है. खुद कुछ ठेकेदार प्रभावशाली नेता-मंत्री हैं. सत्ता में हिस्सा न मिलने पर जगह-जगह आंदोलन करवानेवाले उत्तरप्रदेश के विरोधी नेताओं ने इन मुद्दों को क्यों नहीं उठाया? पदयात्रा, लोकजागरण और जनशक्ति की बात करनेवालों को किसने रोका था? नानक के लिए फतेहपुर की जनता ने साहसिक संघर्ष किया, बिना राजनेताओं के इस आंदोलन की स्थानीय जनता ने जिस बहादुरी से अगुवाई की, वह काबिले तारीफ है.