आजाद की प्रशासनिक विफलताएं

-हरिवंश- भागवत झा आजाद, बिहार के ऐसे मुख्यमंत्री के रूप में याद किये जायेंगे, जिन्होंने नेक घोषणाओं और दृढ़ संकल्प के साथ बागडोर संभाली, लेकिन अपनी डपोरशंखी बातों के कारण हास्यास्पद बन कर रह गये. बदहाल बिहार को पटरी पर लाने और भ्रष्ट अधिकारियों / राजनेताओं के खिलाफ कार्रवाई की घोषणा कर, उन्होंने लोगों की […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 1, 2016 4:57 PM

-हरिवंश-

भागवत झा आजाद, बिहार के ऐसे मुख्यमंत्री के रूप में याद किये जायेंगे, जिन्होंने नेक घोषणाओं और दृढ़ संकल्प के साथ बागडोर संभाली, लेकिन अपनी डपोरशंखी बातों के कारण हास्यास्पद बन कर रह गये. बदहाल बिहार को पटरी पर लाने और भ्रष्ट अधिकारियों / राजनेताओं के खिलाफ कार्रवाई की घोषणा कर, उन्होंने लोगों की अतृप्त और सुप्त इच्छाओं को जगाया, लेकिन व्यावहारिक धरातल पर वह बड़बोले और फिसड्डी साबित हुए.

पूरे एक वर्ष के कार्यकाल में वह महज तीन उल्लेखनीय कार्य कर पाये. पहला, सहकारिता माफिया के खिलाफ कार्रवाई. दूसरा, पटना के एक कीमती सरकारी प्लॉट से एक कांग्रेस सांसद परिवार की बेदखली और तीसरा, लोहरदगा के सांसद द्वारा आदिवासियों की हड़पी जमीन पर बेदखल भूमिहीनों को कब्जा दिलाना. बाद में यह स्पष्ट हो गया कि उनके इन चंद कार्यों का मकसद, खुद को एक समानांतर ताकत के रूप में स्थापित करना था. श्री झा ने अपने राजनीतिक निर्णयों से यह सिद्ध कर दिया है कि सामूहिक नेतृत्व की क्षमता का उनमें नितांत अभाव है. अपने सहकर्मियों-विधायकों को आंकने का उनका पैमाना विचित्र है.

इस पैमाने से सामंती और सर्वसत्तावादी रुख की बू आती है. श्री झा ने उपरोक्त तीन कार्यों को अपने पक्ष में इस कदर भुनाने की कोशिश की कि उनकी असलियत खुल गयी, जो भ्रष्ट अधिकारी-राजनेता उनके साथ पांव से पांव मिला कर चलने लगे, वे उनके प्रशासन की नजर में पाक-साफ बन गये. प्रशासन, पार्टी और कानून-व्यवस्था बनाये रखने के मोरचे पर उनकी आत्मतुष्ट सरकार की घोषणाएं फ्रॉड सिद्ध हुईं, दूसरी तरफ सहकारिता माफिया, कोयला माफिया और भूमि माफिया उन्मूलन के नारे की असलियत भी उनके दावे के ठीक विपरीत है.

आजाद द्वारा प्रायोजित सफाई अभियान या भ्रष्टाचार उन्मूलन की तसवीर भी दागदार है. उन्होंने मिथिला विश्वविद्यालय के कुलपति एस रहमान को इसलिए हटा दिया, क्योंकि वह निडर हो कर भ्रष्ट लोगों के खिलाफ कार्रवाई कर रहे थे. आजाद जी से जब यह पूछा गया कि आपने श्री रहमान के खिलाफ क्यों कार्रवाई की, तो उनका जवाब था कि श्री रहमान कांग्रेस के समर्थकों के खिलाफ कार्रवाई कर रहे हैं. भोजपुर के जिलाधीश के स्थानांतरण के खिलाफ जब आंदोलन हुआ, तो उन्होंने जवाब दिया कि उक्त जिलाधीश केंद्रीय मंत्री कमलाकांत तिवारी की बात नहीं सुनते थे.

लेकिन दूसरे-सांसदों और कांग्रेसी मंत्रियों की सलाह पर उन्होंने किसी अधिकारी का स्थानांतरण नहीं किया. उन्होंने अपना एक गुट बना लिया, (जिसमें कुछ सांसद, उनके रिश्तेदार और विधायक शामिल हैं) जिसकी अनुशंसा पर वह ट्रांसफर-पोस्टिंग का अनवरत धंधा चलाते रहे. उल्लेखनीय है कि बिहार में सत्ता संभालते ही उन्होंने घोषणा की थी कि वह ट्रांसफर उद्योग पर पाबंदी लगा देंगे. उनके इस सलाहकार गुट के सौजन्य और सौदेबाजी से ही डीएन राम जैसा अधिकरी बेदाग सेवामुक्त हो गया.

इस तरह एक तरफ वह आम लोगों को भ्रष्टाचार से लड़ने का सपना दिखाते रहे. दूसरी ओर भ्रष्ट अफसरों के संरक्षक और हमसफर बन गये. कुछ महीनों पूर्व जब तत्कालीन मुख्य सचिव श्रीनिवासन ने बिहार धार्मिक ट्रस्ट बोर्ड के विशेष पदाधिकारी के भ्रष्टचार की शिकायत की, तो श्रीनिवासन को ही हटा दिया गया. कांग्रेस के ही एक नेता के खिलाफ एक मेडिकल कॉलेज में जालसाजी-घोटाले का गंभीर आरोप है. राज्य सरकार ने उक्त राजनेता के खिलाफ कार्रवाई का निर्णय काफी पूर्व लिया था, लेकिन यह कार्रवाई नहीं हो रही है, क्योंकि उक्त राजनेता अब मुख्यमंत्री के दाहिने हाथ हैं. अधिकारियों के चयन में भी उनका पैमाना ‘पुराना’ ही रहा. साहेबगंज-कटिहार स्टीमर दुर्घटना के लिए दोषी जिलाधीश को बेहतर जिले का कलक्टर बना दिया गया. आरोपों से घिरे अफसर को गृह सचिव का पद सौंपा गया.

भागलपुर में वह ऐसे व्यक्ति को कलक्टर बना कर ले गये, जिस पर तमाम आरोप हैं. भागलपुर जिलाधीश के अनेक समकक्ष अधिकारी अभी भी डीडीसी के पदों पर कार्य कर रहे हैं, क्योंकि उनका कोई आका या मददगार नहीं है. आजाद जी के कार्यकाल में नौकरशाही में वरिष्ठ और कनिष्ठ होने का कोई पैमाना नहीं रहा. उन्होंने कुछ मनपसंद लोगों को बार-बार जिलाधीश बनाया, तो कुछ लोगों को जानबूझ कर दरकिनार कर दिया. बिहार की अपाहिज नौकरशाही को आजाद ने और पंगु बना दिया. इस क्रम में खुद उनका असली चेहरा सामने आ गया. अपनी लंबी-चौड़ी घोषणाओं के बावजूद वह एक भी भ्रष्ट अधिकारी को पकड़ न सके, टांग तोड़ने की बात तो दूर रही.

दूसरी तरफ उन्होंने अपनी पार्टी कांग्रेस को ही लोगों की नजर में संदिग्ध बना दिया. राजनीतिक संकट आने के बाद उन्होंने खुलेआम कहा कि उनकी सरकार गिराने के लिए माफिया तत्व सक्रिय हैं, यानी श्री आजाद के अनुसार कांग्रेस के 160 विक्षुब्ध विधायक माफिया तत्वों के संरक्षण में पल रहे हैं. उन्होंने 2 फरवरी को विधानसभा के अंतिम सत्र में यह भी आरोप लगाया कि ‘थैली’ के बल लोग उनकी सरकार गिराना चाहते हैं.

श्री आजाद के उस भाषण का आशय था कि जो मेरे साथ नहीं, वह माफिया है. लेकिन सच्चाई इसके विपरीत है.मध्य बिहार में दशकों से होनेवाले नरसंहारों के लिए ‘जहानाबाद लॉबी’ कुख्यात रही है. नोन्हीं-नगवां हत्याकांड के बाद खुद श्री झा ने जहानाबाद के इस गांव में इन तत्वों के फन मरोड़ने की बढ़-चढ़ कर घोषणा की थी. लेकिन श्री आजाद द्वारा इस लॉबी के खिलाफ कार्रवाई करने की बात तो दूर रही, आज इस जहानाबाद लॉबी के पांच-छह विधायक मुख्यमंत्री के खास सिपहसालार बन गये हैं. श्री आजाद को सत्ता में बनाये रखने के लिए ये विधायक जी-जान से प्रेम मार्च कर रहे हैं. इनमें से एक विधायक पर सीआरपीएफ पर गोलियां चलाने और हत्या का आरोप है. यह दोहरा राजनीतिक चरित्र और मापदंड भागवत झा आजाद की सरकार की विशेषता बन गया था.

प्रशासनिक विफलता के मुद्दे पर आजाद ने सभी पूर्ववर्ती मुख्यमंत्रियों को पीछे छोड़ दिया है. उनके एक वर्ष के मुख्यमंत्रित्वकाल में नरसंहार, पुलिस द्वारा बलात्कार और लूटपाट की घटनाओं में अप्रत्याशित वृद्धि हुई है. नोन्हीं-नगवां, दमुंहा-खगड़ी, पड़रिया, घटियारी, सोनाहातू, घुटुआ, सासाराम, भभुआ, पंतिथ, नारायणपुर, कोल्हुआ, भागलपुर तो चंद नाम हैं, जो पूरे राज्य के लोगों की जुबान पर हैं. आजाद जी के कार्यकाल में लभभग 500 छोटे-बड़े हिंसक हादसे हुए हैं.

सरकारी आंकड़ों के अनुसार वर्ष 1988 में 3935 हत्याएं दर्ज की गयीं. वर्ष 1887 में 3334 लोग अस्वाभाविक मौत मरे थे. इस तरह आजाद शासन में अराजक तत्वों का बोलबाला बढ़ता गया. लेकिन कानून-व्यवस्था की इस बिगड़ती स्थिति के खिलाफ उनकी अंतरात्मा नहीं सुगबुगायी.

आज जब उनकी कुरसी खतरे में पड़ गयी है, तो वह ‘प्रेम मार्च’ का स्वांग कर रहे हैं. उनके आला अफसर बताते हैं कि पटना में वर्ष 1988 में 300 लोगों की हत्याएं हुईं. 211 डकैती और 252 हिंसक वारदातें पुलिस रेकॉर्ड में दर्ज की गयीं. पटना में दिन-दहाड़े हत्या और लूट की घटनाएं आम हो गयी हैं, लेकिन ऐसे आड़े समय में मुख्यमंत्री ने सड़क मार्च नहीं किया. पटना की गंदगी दूर करने और वहां नागरिक सुविधाओं को बढ़ाने के लिए मुख्यमंत्री ने कभी पैदलयात्रा नहीं की, जब डॉक्टरों की हड़ताल के कारण आम आदमी अस्पतालों में दम तोड़ रहे थे, उस वक्त आजाद जी का विवेक सत्ता के पिजड़े में बंद था. इस कारण उन्होंने घूम-घूम कर लोगों का कष्ट नहीं देखा-सुना.

‘प्रेम मार्च’ के आरंभिक दौर में जो घटनाएं हुईं, उनसे आजाद और उनके सिपहसालारों का असली चरित्र उजागर होता है. आजाद की टोली जब सत्ता में टिके रहने के लिए पटना की गलियों की खाक छान रही थी, उसी समय जहानाबाद के ढकनी बिगहा ईंट-भट्ठे पर काम करनेवाली पांच आदिवासी महिलाओं के साथ गुंडों के एक दल ने सामूहिक बलात्कार किया. लेकिन सत्ता-भूख से अंधी इस टोली को इन महिलाओं की सुध नहीं आयी.

श्री आजाद पटना की सड़कों पर ढिंढोरा पीटते हुए घूम रहे हैं कि उन्होंने सहकारिता माफिया, भूमि माफिया और धनबाद माफिया के खिलाफ सख्त कार्रवाई की, इस कारण उनके दल के स्वार्थी विधायक उन्हें सताच्युत्त करने का अभियान चला रहे हैं. एकतरफ वह सहकारिता सम्राटों पर हमले की दुहाई देते हैं, दूसरी तरफ सहकारिता जगत के चर्चित ‘राजो सिंह’ को इस कार्रवाई के बाद समम्मान कांग्रेस में वापस लिया गया. जब आजाद ने सहकारिता माफिया के खिलाफ अभियान छेड़ा, उस समय राजो सिंह निर्दलीय विधायक थे. इस कार्रवाई के कुछ ही दिनों बाद वह कांग्रेस में वापस बुला लिये गये. यह आजाद सरकार का असली चेहरा हैं.

भूमि माफिया उन्मूलन के मोरचे पर एक भी बड़े जागीरदार या सामंत की हदबंदी से फाजिल भूमि, सरकार ने अधिग्रहित नहीं की है. हाल के महीनों में आजाद सरकार ने ताबड़तोड़ घोषणाएं की हैं कि लाखों-हजारों एकड़ जमीन भूमिहीनों के बीच वितरित की गयी है. लोगों को परचे-कागजात सौंपे गये हैं. दरअसल, यह गहन जांच का विषय है कि राज्य में पिछले 17-18 वर्षों के दौरान बड़े भू-स्वामियों, (जिनमें पांच हजार से पांच सौ एकड़ जमीन रखनेवाले मौजूद हैं) के खिलाफ आज तक कार्रवाई क्यों नहीं हुई? भागवत झा की सरकार भी फरजी आंकड़े पेश कर अपनी उपलब्धियों का ढिंढोरा पीट रही है.

बौरा गये हैं आजाद

फिलहाल बिहार में राजनीतिक अस्थिरता का दौर चरम पर पहुंच चुका है, और भागवत झा आजाद का भविष्य अनिश्चय के भंवर में फंसा है. ऐसी स्थिति में उनके अंदर की छटपटाहट अक्सर बौखलाहट के रूप में बाहर आती है. हालांकि जो मुख्यमंत्री की आदत से वाकिफ हैं, वे जानते हैं कि मुख्यमंत्री के लिए ऐसा करना कोई नयी बात नहीं है. राज्य में व्याप्त राजनीतिक संकट की घड़ी में पूरा बिहार आजाद की ओर टकटकी लगाये ताक रहा है. राजनीतिक संकट से त्रस्त आजाद के बौरा जाने की खबर पूरे राज्य में फैल चुकी थी, लेकिन उनके इस रूप के प्रत्यक्ष दर्शन का मौका हर किसी को मिल पाना मुमकिन नहीं हो पा रहा था. आजाद जी ने अपने करतबों से जनता को यह मौका दे दिया. उनकी हाल की दो पदयात्राओं के दौरान राज्य की जनता ने उनके अजीब तेवर देखे. उनकी यह पदयात्राएं चार व सात फरवरी को पटना व पटना सिटी में हुईं. इन्हीं पदयात्राओं के दौरान एक अजीब घटना हो गयी.

घटना इस प्रकार है- दिल्ली से प्रकाशित इंडिया टुडे की वीडियो मैगजीन ‘न्यूजट्रैक’ की एक महिला पत्रकार बिहार की राजनीतिक अव्यवस्था को टीवी कैमरे में कैद करने पटना आयी थीं. वह आजाद जी की पटना पदयात्रा के दौरान भी उनके साथ थीं. उनसे विशेष बातचीत करने के लिए जब वह आजाद जी के साथ बैठीं, तो दो-एक सवालों के बाद ही आजाद जी अपने जाने-पहचाने तेवर में आ गये. वे उखड़ गये और तमतमाते हुए उन्होंने उस महिला पत्रकार से कहा, ‘बंद करो यह सब. तुरंत उठो व निकल जाओ यहां से. मैं कुछ भी कहना नहीं चाहता.’ अपने स्टाफ की ओर भी उसी अंदाज में इशारे करते हुए उन्होंने कहा, ‘निकाल लो कैसेट उसमें से?’ अब बारी थी महिला पत्रकार की. उसने कहा, ‘खबरदार, जो मेरे सामान में हाथ लगाया. वह मेरा है. ठीक है, मैं जा रही हूं.’ आजाद जी ने कहा, ‘हां-हां जाइए, जितना नुकसान पहुंचाना था, आप पहुंचा चुकीं.

पदयात्रा के दौरान भी आजाद जी के चेहरे पर तनाव और आक्रोश स्पष्ट झलक रहे थे. माला पहनाते वक्त किसी की उंगली चश्मे पर लग जाने पर भी वे अपना आक्रोश दबा नहीं पाते थे. कई बार वे बड़बड़ाये, भुनभुनाये, फिर अपना चश्मा खोल कर उन्होंने जेब में रख लिया. पदयात्रा के दौरान कभी-कभी वे अपने साथ चल रहे लोगों को छोड़ कर काफी तेजी से दौड़ जाया करते थे. ऐसे में साथ चल रहे सुरक्षाकर्मियों को बेहद दिक्कतें पेश आ रही थीं. पदयात्रा के बाद मुख्यमंत्री निवास पर भी वे काफी चुपचाप व शांत बैठे हुए थे, लेकिन उनके अंदर की मानसिक परेशानी उनके चेहरे पर साफ झलक रही थी.

आजाद के पास विधायकों का समर्थन नहीं है. उनको गिने-चुने विधायकों का ही समर्थन प्राप्त है. पदयात्रा के बाद कुछ विधायक मुख्यमंत्री निवास के बरामदे में खड़े, मुख्यमंत्री से मिलने की प्रतीक्षा कर रहे थे. सचिव ने जब मुख्यमंत्री को इस बात की सूचना दी, तो मुख्यमंत्री ने जवाब दिया. ‘बगैर पूछे कैसे-क्यों चले आते हैं. कह दो, फुरसत में नहीं हैं. जरूरी बातचीत कर रहे हैं.’ जबकि हकीकत यह है कि उस वक्त मुख्यमंत्री अपने कक्ष में बिलकुल फुरसत में अकेले बैठे थे.

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