बिहार पर कब्जा जगन्नाथ मिश्र का

-हरिवंश- बिहार की सरकार कौन चला रहा है, मुख्यमंत्री बिंदेश्वरी दुबे या डॉ. जगन्नाथ मिश्र? डॉक्टर मिश्र के समर्थक कहते हैं, जैसे मध्यप्रदेश का शासन अभी भी अर्जुन सिंह के इशारे पर चलता है, उसी तरह बिहार का शासन डॉ. मिश्र चला रहे हैं. कांग्रेस संगठन में उनके समर्थक अधिक हैं, अधिकांश विधायक उनके साथ […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 2, 2016 1:27 PM

-हरिवंश-

बिहार की सरकार कौन चला रहा है, मुख्यमंत्री बिंदेश्वरी दुबे या डॉ. जगन्नाथ मिश्र? डॉक्टर मिश्र के समर्थक कहते हैं, जैसे मध्यप्रदेश का शासन अभी भी अर्जुन सिंह के इशारे पर चलता है, उसी तरह बिहार का शासन डॉ. मिश्र चला रहे हैं. कांग्रेस संगठन में उनके समर्थक अधिक हैं, अधिकांश विधायक उनके साथ हैं, विरोध पक्ष में भी उनके लोग हैं और नौकरशाही की नकेल तो डॉ. मिश्र के हाथों में है ही. कितना सच है यह दावा? हरिवंश की रिपोर्ट. साथ में डॉ जगन्नाथ मिश्र के साथ बातचीत भी.

बिहार कांग्रेस (इं) के एक वरिष्ठ सदस्य बताते हैं, ‘यहां की सरकार दुबे जी चला रहे हैं और दुबे जी को डॉक्टर साहब चला रहे हैं. डॉक्टर साहब अब यहां मुख्यमंत्रियों को बनाते-बिगाड़ते हैं.’ डॉक्टर जगन्नाथ मिश्र के समर्थक उन्हें ‘डॉक्टर साहब’ कह कर पुकारते हैं. उल्लेखनीय है डॉ. श्रीकृष्ण सिंह (बिहार के प्रथम मुख्यमंत्री) को छोड़ कर इस गद्दी पर सबसे अधिक समय तक डॉ मिश्र ही बने रहे.


जगन्नाथ मिश्र के समर्थकों के इस दावे में दम है. बिहार की राजनीति में उनका जो महत्वपूर्ण स्थान है, उसे अनदेखा कर कोई भी मुख्यमंत्री नहीं चल सकता. आज भी प्रदेश के महत्वपूर्ण मंत्री, नेता, नौकरशाह डॉक्टर मिश्र के दरबार में ही अपनी फरियाद ले कर पहले पहुंचते हैं. वरिष्ठ रिटायर्ड अधिकारी उनके पांव छूते हैं. उनके समर्थन की याचना करते हैं, डॉक्टर मिश्र के निवास स्थान पर प्रतिदिन भारी भीड़ इकट्ठी होती है. इसमें सभी वर्गों के लोग होते हैं. वरिष्ठ नौकरशाहों-मंत्रियों से लेकर प्रदेश के विभिन्न कोने से फरियाद लेकर आये सामान्य लोग. लगता है कि वे अभी भी मुख्यमंत्री हैं.

मुख्यमंत्री की गद्दी पर न रहते हुए भी डॉक्टर मिश्र पहले की अपेक्षा ज्यादा प्रभावशाली और सक्रिय हैं. कांग्रेस संगठन पर उनका वर्चस्व है. प्रदेश कांग्रेस (इं) के तकरीबन सभी जिलाध्यक्ष उनके आदमी हैं. डॉक्टर मिश्र की कार्यशैली में उनके विरोधियों को पनपने का अवसर ही नहीं मिलता. इस कारण जो विक्षुब्ध है, वे भी अवसर मिलते ही आत्मसमर्पण कर देते हैं. विधायकों का बहुमत अभी भी उनके साथ है. लोग कहते भी हैं कि अर्जुन सिंह के इशारे पर जिस तरह मध्यप्रदेश की सरकार चल रही है, उसी तरह जगन्नाथ जी बिहार सरकार पर हावी हैं. जातिवाद के आधार पर चलनेवाली बिहार की राजनीति में डॉक्टर मिश्र की अलग रणनीति है. उनकी लोकप्रियता की बुनियाद है कि वे रूढ़ अर्थों में जातिवादी नहीं हैं. उनके समर्थक सभी वर्गों के लोग हैं.

डॉ मिश्र की कार्यशैली बिहार के राजनीतिज्ञों से भिन्न है. अपने समर्थकों के काम के लिए वे किसी भी सीमा तक जाने को तैयार रहते हैं. विधानसभा चुनावों के समय कांग्रेस दल के प्रत्याशियों को दल की ओर से पैसा मिला, साथ ही डॉ मिश्र ने अपने उम्मीदवारों को अलग से भी वित्तीय सहायता दी. उनके यहां समय की पाबंदी नहीं. रोजाना चार-पांच घंटे वे अपने समर्थकों से मिलते हैं. वस्तुत: 50 व 60 के दशक में बिहार की राजनीति जाति की सीमा में आबद्ध थी. अपनी-अपनी जाति के आकाओं के यहां ही लोग अपनी व्यथा लेकर पहुंचते थे. इस माहौल में भी कुख्यात जातिवादी नेता अपनी जाति के ताकतवर-संपन्न व प्रभावशाली अधिकारियों से ही मिलते-जुलते थे. इस समीकरण में कहीं भी इनकी जाति का ही गरीब आदमी फिट नहीं बैठता था.


डॉक्टर मिश्र ने इस समीकरण को तोड़ा. अपने समर्थकों का दायरा बढ़ाया. आज यही कारण है कि बिहार में वे एकमात्र ऐसे राजनीतिज्ञ हैं, जिनकी पहुंच-लोकप्रियता सभी वर्गों के बीच है. मुसलिमों के बीच उनकी अच्छी पैठ है. इस तथ्य को वहां कोई राजनेता नजरअंदाज कर नहीं चल सकता है. अतीत में कांग्रेसी आलाकमान चाह कर भी इन कारणों से डॉक्टर मिश्र के खिलाफ कठोर कार्रवाई न कर सका. समय-समय पर पूरे प्रदेश का दौरा कर डॉक्टर मिश्र अपनी इस ‘पूंजी’ को बढ़ाने का प्रयास करते रहते हैं. वस्तुत: सत्ता से बाहर डॉक्टर मिश्र सत्ता के लिए ज्यादा सिरदर्द हैं.

नौकरशाही उनके कब्जे में है. अगर घुड़सवार मजबूत नहीं हुआ, तो घोड़ा बिदक जाता है. नौकरशाही के साथ भी यही हाल है. डॉक्टर मिश्र नकेल पकड़े रखने की कला में माहिर हैं. इस कारण बिहार की नौकरशाही की नकेल अभी भी उन्हीं के पास है. पदोन्नति, स्थानांतरण एवं ‘फेवर’ के लिए प्रदेश के बड़े-छोटे नौकरशाह अपनी फरियाद लेकर पहले डॉक्टर मिश्र के पास ही पहुंचते हैं. बिहार में चंद्रशेखर सिंह की असफलता के पीछे यह एक मुख्य कारण था. गोपनीय कागजात-आदेशों की प्रतियां डॉक्टरों मिश्र के पास तत्काल पहुंचती थीं. दुबे जी के राज में पुन: मिश्र समर्थक नौकरशाह महत्वपूर्ण पदों पर लौट आये हैं.

कहा तो यह भी जाता है कि हाल में बड़े पैमाने पर प्रशासनिक अधिकारियों के तबादले के पीछे डॉक्टर मिश्र की भूमिका रही है. भागलपुर के पूर्व आयुक्त अरुण पाठक (इनके समय में ही भागलपुर में ‘आंखफोड़ कांड’ हुआ था) अब वित्त विभाग में आयुक्त हो गये हैं. वह जगन्नाथ मिश्र के खास लोगों में से हैं. डॉक्टर मिश्र के रिश्तेदार मंत्रेश्वर झा, अब मुख्यमंत्री बिंदेश्वरी दुबे के प्रधान सचिव बन गये हैं. इस प्रकार दुबे जी के अंत:पुर पर भी डॉक्टर मिश्र का ही कब्जा है. जीआर पटवर्द्धन, जेसी कुंदा, चंद्रमोहन झा आदि ऐसे अनेक ताकतवर नौकरशाह हैं, जो डॉक्टर मिश्र के ‘खास आदमी’ माने जाते हैं. पुन: ये लोग महत्वपूर्ण पदों पर लौट आये हैं. भागलपुर क्षेत्र के पूर्व डीआइजी जी. नारायण अब आइजी (प्रशासन) हैं. मिश्र जी के चहेते भी. मिश्र जी के प्रसिद्ध पूजा समारोहों में बगल में जी. नारायण भी रहा करते थे. बिहार विधानसभा के सदस्य सुबोधकांत सहाय का कहना है कि ‘अधिकारियों का भ्रष्ट होना या अदालत द्वारा उनकी निंदा बिहार में योग्यता के प्रतीक हैं. इससे उन्हें पदोन्नति में भी सहायता मिलती है. फिलहाल ऐसे लोगों को ही ऊपर पहुंचाया जा रहा है.’
डॉक्टर मिश्र समर्थक नौकरशाह अन्य जगहों पर भी हावी हैं. दुबे जी ने पांच सदस्यीय नये विद्यालय बोर्ड का गठन किया है, इसके अध्यक्ष होंगे सत्यनारायण मिश्र, सेवानिवृत्त आइएएस अधिकारी. बिहार लोक सेवा आयोग के नये अध्यक्ष एकेएम हसन हुए हैं. विश्वविद्यालय सेवा आयोग के अध्यक्ष पद के लिए डीएन ओझा का चयन हुआ है. श्याम बिहारी, फिदा हुसैन अंसारी ऐसे अनेक नाम हैं, जो निगमों आदि के नये अध्यक्ष नियुक्त किये गये हैं. ये सभी डॉक्टर मिश्र के चहेते हैं. इससे यह स्वयं सिद्ध है कि डॉक्टर मिश्र की पकड़ नौकरशाही पर पहले की अपेक्षा ज्यादा बढ़ी है. मगध विश्वविद्यालय के कुलपति फहीमुद्दीन अहमद की तीन वर्षों के लिए पुनर्नियुक्ति के पीछे भी डॉक्टर मिश्र का समर्थन ही बताया जाता है. अहमद द्वारा उपकुलपति के रूप में किये कार्यों की काफी नुक्ताचीनी हो चुकी है.

कमलनाथ सिंह ठाकुर (एमएलसी) डॉक्टर मिश्र के खास लोगों में से एक हैं. उन्हें विधान परिषद का मुख्य सचेतक मनोनीत किया गया है. ठाकुर निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव जीते थे. इस कारण कांग्रेस (इं) के कुछ विधायक विक्षुब्ध भी हैं. हाल में मिथिला विश्व के चौदह प्रधानाचार्यों का एक साथ तबादला आदेश हुआ. कहा जाता है कि डॉक्टर मिश्र इन प्रधानाचार्यों से खुश नहीं थे. लेकिन डॉ. मिश्र की पकड़ कांग्रेस संगठन व नौकरशाही तक ही नहीं है. बिहार की जनता पार्टी तो ‘मिनी कांग्रेस’ ही है. इसमें उनके भतीजे सांसद विजय कुमार मिश्र हैं. दल के नेता रघुनाथ झा हैं- जगन्नाथ जी के खास लोगों में से एक निर्दलीय विधायक राजो सिंह, सदानंद सिंह ऐसे अनेक नाम हैं, जो डॉक्टर मिश्र के ही लोग हैं. अन्य दलों में भी डॉक्टर मिश्र के समर्थक हैं. समय व आवश्यकतानुसार ये लोग डॉ मिश्र की हर संभव सहायता करेंगे.

शैक्षणिक व प्रचार कार्यों के लिए डॉक्टर मिश्र के पास साधन हैं. पटना स्थित ‘ललित नारायण मिश्र आर्थिक एवं सामाजिक अध्ययन संस्थान’ में समय-समय पर सामाजिक विषयों पर सेमिनार आयोजित कराये जाते हैं. यह सब डॉ. मिश्र की पहल पर होता है, वे इसके अध्यक्ष भी हैं. हाल ही में डॉक्टर मिश्र की दो पुस्तकें भी प्रकाशित हुई हैं. उनका विमोचन भी बिंदेश्वरी दुबे ने यहीं से किया. उनका अखबार ‘पाटलिपुत्र टाइम्स’ भी अच्छी तरह चल रहा है. मुजफ्फरपुर में ‘बिजनेस मैनेजमेंट’ संस्थान है. दरभंगा में टेक्नालॉजी प्रशक्षिण संस्थान है. इन महत्वपूर्ण संस्थानों के माध्यम से डॉक्टर मिश्र की पकड़ समाज के प्रबुद्ध वर्ग पर है. अपने समर्थकों को इन संस्थाओं के माध्यम से वे लाभ पहुंचाते रहते हैं. आर्थिक दृष्टि से भी इन संस्थाओं की उपयोगिता है.

इस प्रकार कांग्रेस संगठन, नौकरशाही, विरोध पक्ष व महत्वपूर्ण संस्थानों के माध्यम से डॉक्टर मिश्र ने बिहार की राजनीति पर अपना वर्चस्व कायम किया है. इसे कमजोर बनाना आसान नहीं है. दुबे मंत्रिमंडल के अधिकांश सदस्य भी जगन्नाथ मिश्र के ही आदमी हैं.

वस्तुत: बिंदेश्वरी दुबे को जो अवसर मिला है, पिछले कई मुख्यमंत्रियों को यह नसीब नहीं हुआ. कांग्रेस दल व मंत्रिमंडल स्तर पर उनका कोई मुखर विरोधी गुट नहीं है. चंद्रशेखर सिंह व जगन्नाथ मिश्र का उन्हें समर्थन मिल रहा है. लेकिन काम के स्तर पर यह मंत्रिमंडल खरा नहीं उतरा है. पिछले दिनों यह खबर आयी कि कोशी बांध टूटने के दोषी इंजीनियरों को सरकार ने निलंबित करने का आदेश दिया है. राम जयपाल सिंह यादव (दुबे जी के सहयोगी मंत्री) ने इस पूरे मामले की छानबीन की थी. साथ ही दोषी अपराधियों को दंडित करने, उनके विरुद्ध फौजदारी मामले चलाने का सुझाव दिया था. उल्लेखनीय है कि कोशी तटबंध टूटने से पिछले वर्ष भयानक क्षति हुई थी. पहले सरकार ने इस पर कार्रवाई करने का निर्णय किया.

बाद में किन्हीं कारणों से सरकार पीछे हट गयी. अगर इस प्रकार के महत्वपूर्ण मसलों पर सरकार की यह ढुलमुल नीति चलती रही, तो दुबे जी की सरकार की विश्वसनीयता समाप्त हो जायेगी. राहत आयुक्त ने इस रिपोर्ट में आशंका व्यस्त की है कि करोड़ों रुपये, जो इस तटबंध के लिए स्वीकृत किये गये थे, उसमें धांधली हुई, इस कारण तटबंध टूटा व लाखों लोगों का जीवन संकट में पड़ा. करोड़ों का नुकसान हुआ. ऐसे संगीन मामलों में सरकार दोषियों को दंड न दे सके, तो उसकी उपयोगिता पर प्रश्नचिह्न खड़ा होता है. पटना व आसपास में अपराध बढ़े हैं. ट्रेन व बसों में खुलेआम डकैतियां हो रही हैं. लेकिन सरकार सख्त कदम नहीं उठा पा रही है. लगता है, दुबे जी की राजनीति अभी भी कोयलांचलों तक ही सीमित है. उनकी रुचि उसी इलाके में है, जहां से उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की थी. यह दुबे जी की विवशता भी है.


दुबे जी मंत्रिमंडल के कुछ सदस्य अपने कार्यों से सरकार की साख गिराने पर तुले हैं. कोई अफसरों के साथ दुर्व्यहार करता है, तो कोई अपने विरोधियों को प्रताड़ित करने में लगा है. एक मंत्री हैं, ओपी लाला. पहले उनके पास शराब का धंधा भी था. आजकल अपने प्रतिस्पर्द्धी मजदूर नेताओं को परेशान करने में ही वे अपनी ऊर्जा लगा रहे हैं. कतरास के सरदार मंगल सिंह के घर जा कर पुलिस ने अतिवादियों की छानबीन की. सरदार मंगल सिंह तीन पीढ़ियों से बिहार में रह रहे हैं, मजदूर आंदोलनों से संबद्ध हैं. पर प्रभावशाली गुट के विरोधी हैं, अत: उनके घर पुलिस गयी. इंटक के नेता सीसीएल व बीसीसएल में ईमानदार अधिकारियों के पीछे पड़े हैं. दुबे जी के मुख्यमंत्री बनने के बाद इंटक के लोगों का सीसीएल व बीसीसीएल में हस्तक्षेप बढ़ गया है. उन्हें लगता है विरोधियों से बदला चुकाने का यह स्वर्णिम अवसर है. अपने ही दल के जो लोग अनुकूल नहीं हैं, उन पर भी इन लोगों की निगाह है. यह सब दुबे जी के नाम पर हो रहा है. संभवतया दुबे जी इन चीजों से अवगत भी न हों, पर उनके समर्थक ही उनकी छवि बिगाड़ रहे हैं. कांग्रेस (इं) के एक विधायक बताते हैं कि कुछ निहित स्वार्थवाले लोग जानबूझ कर ऐसी स्थिति उत्पन्न कर रहे हैं, जिससे लगे कि प्रदेश की समस्याओं को सुलझाने में वर्तमान मंत्रिमंडल अक्षम है. आरंभ में दुबे जी से लोगों को उम्मीद थी, विश्वास था कि वे अपनी घोषणाओं को क्रियान्वित करेंगे, पर कार्यान्वयन के स्तर पर अभी तक कोई उल्लेखनीय कार्य सरकार ने नहीं किया है.

इस प्रकार एक ओर वर्तमान बिहार सरकार की विश्वसनीयता धीरे-धीरे समाप्त हो रही है, दूसरी ओर डॉ. मिश्र अपनी कार्यशैली के कारण मजबूत होते जा रहे हैं. उन्हीं के एक समर्थक के शब्दों में ‘धीरे-धीरे स्थिति बनती जा रही है कि विवश हो कर कांग्रेस आलाकमान को बिहार की गद्दी डॉ. जगन्नाथ मिश्र को सौंपनी पड़ेगी.’
‘पहले की सरकार जन-विरोधी थी’ : जगन्नाथ मिश्र
सवाल : लोगों में यह धारणा है कि बिहार की सरकार आप ही चला रहे हैं, आपका क्या कहना है?
जवाब : यह गलत है, शत-प्रतिशत गलत है. राजनीतिक समर्थन देने के अतिरक्ति मैं कुछ नहीं करता. मैं व मेरे मित्र, देश के हित में, कांग्रेस के हित में, राज्य के हित में बिना शर्त दुबे जी की सरकार को समर्थन दे रहे हैं. हमारा प्रयास है कि दुबे जी सफल हों. बिहार को वे आगे भी ले जा सकें. वे इस क्षेत्र में आगे जा भी रहे हैं. मेरा विश्वास है कि अगर उन्हें पूरा राजनीतिक समर्थन मिले, तो वे अवश्य कामयाब होंगे.
सवाल : आपके निकट के कई नौकरशाह पुन: महत्वपूर्ण पदों पर वापस लौटे हैं. कहा जाता है कि मुख्यमंत्री के निजी सचिवालय तक में आपका कब्जा है?
जवाब : लोगों से व्यक्तिगत रिश्ता बना लेना मेरी आदत है. यह मेरा स्वभाव है. अब इसे आप क्या करेंगे? चंद्रशेखर सिंह रहें, या कोई, मेरे जो परिचित हैं, निकट के लोग हैं, वे रहेंगे ही. इसमें कोई क्या कर सकता है? चंद्रशेखर जी के जमाने में भी नौकरशाही स्तर पर मेरे सभी कार्य होते थे. राजनीतिक स्तर पर हमें अपमानित भले ही किया जाता हो, पर हमारे कार्यकर्ताओं की समस्याओं, उनके इलाके में विकास कार्यों हेतु चंद्रशेखर सिंह के शासन के दौरान भी जो संभव था, होता था. लोगों से जो मेरा परिचय-संबंध है, वह मेरे निजी प्रयासों से संभव हुआ है. किसी के चाहने से वह कैसे बिगड़ेगा?
सवाल : पिछले साल कोशी तटबंध टूटने के तत्काल बाद आपने दोषी अधिकारियों के विरुद्ध सख्त कार्रवाई की मांग की थी. अब जांच के लिए गठित समिति की रिपोर्ट आ जाने के बाद भी सरकार चुप है, इस पर आपकी प्रतिक्रिया?
जवाब : कार्रवाई तो उसी समय होनी चाहिए थी. चंद्रशेखर सिंह ने तो उस समय कोई कार्रवाई नहीं की. अब ‘इंजीनियरिंग संघ’ कहता है कि इस प्रकरण की जांच तकनीकी लोगों द्वारा ही हो. चूंकि यह तकनीकी समस्या है, इस कारण इसकी जांच भी ऐसे ही लोगों द्वारा होनी चाहिए. इसके बाद दोषी लोगों पर कार्रवाई हो.
सवाल : क्या कोशी तटबंध में आपके किसी नजदीकी आदमी ने भी ठेका लिया था?
जवाब : आप एक भी उदाहरण दे दे. यह बात मैंने विधानसभा में सदानंद सिंह से भी कही थी. आप ऐसा एक नाम नहीं बता सकते. यह सब गलत है. सरासर झूठ है. मैं इस संबंध में सबको चुनौती देता हूं.
सवाल : वर्तमान सरकार के कार्यों के संबंध में आपकी राय क्या है?
जवाब : पिछली सरकार से यह सरकार काफी बेहतर है. बड़ा ही गुणात्मक फर्क है. यह सरकार जनता की समस्याओं के प्रति जागरूक है. जनता की समस्याओं के प्रति कदम उठाये जा रहे है. इसके पहले की सरकार जनता-विरोधी हो गयी थी. नौकरशाही के पास ही सब कुछ जकड़ा हुआ था. दुबे जी की सरकार अच्छी है. हर समस्या का समाधान तो नहीं हो पाया है, पर प्रयास सही दिशा में हो रहे हैं. समय दिया जाये व पूरा समर्थन मिले, तो यह सरकार जन समस्याओं का समाधान कर सकती है. यह संवेदनशील सरकार है.

लेकिन एक मेरा सवाल है. जगन्नाथ मिश्र शासन में रहे तो, या शासन के बाहर रहें तो, उन्हें ही जबरन क्यों लक्ष्य बना कर घसीटा जाता है. आजकल मैं बौद्धिक कार्यों में अपना समय लगा रहा हूं. हाल ही में मेरी दो किताबें छपी हैं. संघ के वित्तीय ढांचे से संबंधित जो सवाल-विवाद हैं, उन प्रश्नों को मैंने उठाया है. उसका विमोचन हुआ, तो मैंने कहा भी था कि यह जगन्नाथ मिश्र की शैक्षणिक प्रतिभा है, इसको भी लोग गलत ढंग से पेश करते हैं. लेकिन लोगों को इस दिशा में पूरी छूट होनी चाहिए. मेरे विरोधी मुझे गलत ढंग से उद्धृत करेंगे. कहेंगे कि केंद्र के खिलाफ मैंने कुछ भी नहीं कहा है. सही बातें कही हैं. हां, लोगों ने कुछ भी कहा, पर मैंने अपना मत नहीं बदला है.
सवाल : आजकल आपका क्या कार्यक्रम रहता है?
जवाब : मेरा कार्यक्रम है आम लोगों से रोजाना 4-5 घंटे मिलना. उनकी समस्याओं पर बातचीत करना. 4-5 घंटे अपने संस्थान में जा कर काम करना. ‘पाटलिपुत्र टाइम्स’ के लिए आर्थिक विषयों पर लेख लिखता हूं. समाजसेवा सिर्फ राजनीति के माध्यम से ही नहीं हो सकती. हम लोगों ने समाज में सत्ता को अधिक महत्व दे दिया है. क्या अपने देश में ही कभी अध्ययन हुआ कि सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन के जितने कानून बने हैं, उन कानूनों का क्या हश्र हुआ है? अपने संस्थान के माध्यम से हम ऐसे सवालों पर शोध कराने जा रहे हैं. यह प्रश्न मैंने वकीलों को संबोधित करते हुए भी उठाया था. स्वतंत्रता के बाद जितने कानून बने हैं, उनका क्रियान्वयन नहीं हुआ, तो क्यों नहीं हुआ. समीक्षा आवश्यक है. कानून असफल हुए, तो क्यों? इसका अध्ययन भी अति आवश्यक है. इन कानूनों में क्या त्रुटियां रह गयी थीं, उनका समाज पर क्या प्रभाव पड़ा? संसद के प्रत्येक सत्र में कानून बन जाते हैं. लेकिन उनका हश्र क्या होता है?

लोगों में जागरूकता पैदा करना अति आवश्यक है. कोई भी राजनीतिज्ञ लोगों को जागरूक बनाना अपना फर्ज नहीं मानता. वोट लेने के अलावा राजनीतिक दलों का कोई फर्ज है या नहीं. धनबाद, पलामू में मजदूरों का शोषण बंद हो, इसलिए मैंने कानून बनाये, पर उस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई. यह चिंतन की बात है. अपने राष्ट्रीय जीवन में आज ऐसी घड़ी आयी है, जहां इन सब बातों का मूल्यांकन होना चाहिए. इस बात की अपेक्षा राजीव गांधी से भी है. वे भी पिटे-पिटाये पुराने रास्ते पर चलते रह गये, कानूनों में उलझ कर रह गये, तो युवा वर्ग में जो उनके प्रति नया उत्साह पैदा हुआ है. वह ठंडा पड़ जायेगा.
सवाल : आपकी भावी राजनीति क्या है?
जवाब : हम स्वैच्छिक संगठन तैयार करेंगे. ‘टास्क फोर्स’ बनायेंगे. जिला मुख्यालयों पर दहेज विरोधी सम्मेलन आयोजित करेंगे. उसमें सामाजिक कार्यकर्ताओं को आमंत्रित करेंगे. इसके साथ ही समाज के अन्य महत्वपूर्ण सवालों को उठायेंगे. हरिजनों पर अत्याचार व सामाजिक विषमता के खिलाफ भी आवाज उठायेंगे. कानूनों का क्रियान्वयन हो, इसके लिए अधिकारियों को बाध्य करेंगे. लोगों को उनके हक व अधिकार की जानकारी देंगे. कानूनों के प्रचार के लिए जगह-जगह गोष्ठी भी आयोजित करेंगे. हम अपने कार्यकर्ताओं को इधर लगायेंगे. यह सकारात्मक राजनीति होगी. राजनीति का हमारे यहां अर्थ है, चुनाव-फिर चुनाव की तैयारी. शासन में लाओ-शासन से निकालो यानी सरकार में घुसने की राजनीति. क्या वोट लड़ना, जीतना ही मात्र राजनीति है, विधायक या सांसद चुन लिये जाने से समस्या का समाधान नहीं निकलनेवाला. सरकार बनाना ही मतदाता का कर्तव्य नहीं है. सरकार का कानून बीडीओ, सीओ, जिलाधीश की फाइलों में बंद रहता है. हम ऐसी स्थिति में बदलाव लाना चाहते हैं. हमारा कार्यक्रम इसी दिशा में होगा.

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