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संतुलन बढ़ाने के लिए करें पाद अंगुष्ठासन
कुछ लोगों में संतुलन की कमी होती है. इसके कारण उन्हें कई प्रकार की परेशानियों का सामना करना पड़ता है. ऐसे में पाद अंगुष्ठासन के नियमित अभ्यास से संतुलन बढ़ता है और पैर की मांसपेशियां मजबूत होती हैं. इससे प्रजनन तंत्रों में भी सुधार होता है. ‘पाद’ शब्द का अर्थ पैर, ‘अंगुष्ठ’ शब्द का अर्थ […]
कुछ लोगों में संतुलन की कमी होती है. इसके कारण उन्हें कई प्रकार की परेशानियों का सामना करना पड़ता है. ऐसे में पाद अंगुष्ठासन के नियमित अभ्यास से संतुलन बढ़ता है और पैर की मांसपेशियां मजबूत होती हैं. इससे प्रजनन तंत्रों में भी सुधार होता है.
‘पाद’ शब्द का अर्थ पैर, ‘अंगुष्ठ’ शब्द का अर्थ अंगूठा और आसन का अर्थ है-शरीर की स्थिति. अत: इसे पैर के अंगूठेवाला आसन कह सकते हैं. यह आसन दिखने में सरल लगता है, किंतु इसका अभ्यास कठिन है. अत: अभ्यास हेतु उचित शारीरिक एवं मानसिक संतुलन आवश्यक होता है.
अभ्यास की विधि : जमीन पर बैठ जाएं और एड़ियां उठा कर उंगलियों के अग्र भाग पर शरीर को संतुलित करें. अब एड़ियों को थोड़ा नीचे की ओर झुकाएं एवं एक पैर की एड़ी को इस प्रकार व्यवस्थित करें कि वह पेरिनियम के क्षेत्र पर दबाव डाले. दूसरे पैर को पहले पैर की जांघ पर रखें. अब शरीर संतुलित करते हुए हथेलियों को प्रार्थना मुद्रा में जोड़ कर छाती के सामने रखें. इस स्थिति में क्षमता के अनुसार रुकें. यह अभ्यास की अंतिम अवस्था है. ऊपर उठे हुए पैर को नीचे ले आएं. कुछ समय बाद इसी अभ्यास को दूसरे पैर से पूरी सजगता के साथ दुहराएं.
श्वसन : अभ्यास के दौरान आपकी सजगता पूर्ण रूप से सामान्य बनी रहनी चाहिए तथा श्वास की गति धीमी रहेगी.अवधि : इस अभ्यास को हर पैर के साथ तीन-तीन बार करना चाहिए बाद में इसकी गिनती को बढ़ाया जा सकता है तथा अंतिम व्यवस्था में भी आप अपनी क्षमता के अनुसार ज्यादा देर तक रुक सकते हैं.
सजगता : इस अभ्यास के दौरान शारीरिक स्तर पर आपकी सजगता सामने के किसी निर्धारित बिंदु पर होनी चाहिए. अपनी दृष्टि को उसे बिंदु पर केंद्रित किये रखना है तथा शरीर को पूर्णत: संतुलन में रखने का प्रयास करें. आध्यात्मिक स्तर पर सजगता मूलाधार चक्र पर रहेगी.
सीमाएं : इस अभ्यास के लिए कोई विशेष सीमा नहीं है. इस अभ्यास को कोई भी व्यक्ति अपनी सुविधा और क्षमता के अनुसार कर सकता है, किंतु यदि कोई कुशल योग प्रशिक्षक मिल जाये, तो बेहतर और उचित होगा.
संकेत : -इस अभ्यास में शरीर के संतुलन हेतु आप अपने दोनों हाथों का उपयोग कर सकते हैं अर्थात् अावश्यकतानुसार हाथों को ऊपर-नीचे करते जाएं.
-प्रारंभ में इस अभ्यास को दीवार के नजदीक करें, जिससे जरूरत के अनुसार सहारा लिया जा सके. आगे चल कर आप इस अभ्यास को कमरे के मध्य भाग में बिना किसी सहारे के भी करने का प्रयास कर सकते हैं.
-अभ्यास के दौरान अपने शरीर को संतुलित रखने के लिए सामने दीवार पर एक बिंदु के ऊपर अपना ध्यान केेंद्रित करें. अभ्यास के दौरान जमीन की ओर न देखें, इससे शरीर का संतुलन बिगड़ जाता है.
अभ्यास से बढ़ता है संतुलन
इस अभ्यास से संतुलन की भावना विकसित होती है और शरीर के विभिन्न अंगों में उचित समन्वय आता है. इन आसनों का अभ्यास मानसिक एकाग्रता और स्थिरता बढ़ाने हेतु अत्यंत उपयोगी है. यह आसन ब्रह्मचर्य पालन में सहायक है. यह प्रजनन प्रणाली को नियमित करता है और शुक्र-क्षय को राकता है. यह चपटे तलवों को ठीक करता है और पंजों एवं टखनों का मजबूत बनाता है.
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