‘फेसबुक’ अब एक ऐसा माध्यम बन गया है, जो लोगों को अपने मन की बात रखने की खुली छूट देता है. साथ ही इस मीडियम की विशेषता यह है कि इससे आपकी बात अनगिनत लोगों तक पहुंच जाती है. आमतौर पर महिलाएं अपने मन की बात रखने और कहने में संकोच करती रही हैं, लेकिन […]
By Prabhat Khabar Digital Desk |
April 5, 2017 12:12 PM
‘फेसबुक’ अब एक ऐसा माध्यम बन गया है, जो लोगों को अपने मन की बात रखने की खुली छूट देता है. साथ ही इस मीडियम की विशेषता यह है कि इससे आपकी बात अनगिनत लोगों तक पहुंच जाती है. आमतौर पर महिलाएं अपने मन की बात रखने और कहने में संकोच करती रही हैं, लेकिन फेसबुक ने उनकी दुनिया बदल दी. अगर आप उनके फेसबुक वॉल पर जायेंगे तो पायेंगे कि महिलाएं ना सिर्फ अपनी बातों को मजबूती के साथ रख रही हैं, बल्कि उनकी बातों को वाहवाही भी मिल रही है. प्रेम, स्त्री-पुरुष संबंध, समाज में व्याप्त कुरीतियां, राजनीति सहित कई मुद्दों पर महिलाएं खुलकर अपनी बात रख रही हैं और बेबाकी से रख रही हैं. यह समाज में एक बड़े परिवर्तन का सूचक है. हमारे समाज में महिलाओं को शक्तिस्वरूपा मानकर उनकी पूजा तो की जाती है, लेकिन आज भी वे अपने अधिकारों से वंचित हैं और उन्हें देह से इतर नहीं समझा जाता. ऐसे में महिलाओं के मन की बात बहुत मायने रखती है.
रांची की रहने वाली उदिता पाल ( सेंट्रल यूनिवर्सिटी से मॉस कम्यूनिकेशन की पढ़ाई की) अपने फेसबुक वॉल पर काफी बोल्ड कंटेंट पोस्ट करती हैं. उन्होंने अपने पोस्ट में बताया है कि किस तरह जब वो सात साल की थीं, तो उनके एक रिश्तेदार ने उसका यौन शोषण किया था. उन्होंने पूरी घटना को अपने पोस्ट में शामिल किया है.
इन्होंने काफी बोल्ड तसवीरें भी पोस्ट की हैं, जो एक स्त्री के बदलते सोच का प्रतीक है. एक स्त्री के त्वचा के रंग पर जो सामाजिक सोच है, उसपर भी उदिता ने प्रहार किया है और बताया है कि किस तरह लोग काली त्वचा वालों पर व्यंग्य करते हैं और उन्हें खूबसूरत नहीं मानते.
पेशे से पत्रकार मनीषा पांडे लिखती हैं- एक चीज है सेक्सुअल हैरेसमेंट और सेक्सुअल क्राइम और दूसरी चीज है- सेक्स.
पेशे से इंजीनियर निकिता सचान राजनीति पर काफी बेबाकी से अपनी राय रखती हैं. उन्होंने अपने पोस्ट में राजनेताओं की खूब क्लास लगायी है. साथ ही महिला अधिकारों की बात भी करती रही हैं.
इनका एक पोस्ट है – ये जो लोग सुबह शाम जय भीम ,नीला सलाम , नमो बुद्धाय करते घूमते है उनमें से कितनो ने बाबा साहेब को पढ़ा है वाकई में ?
बाबा साहेब की एक किताब भी पढ़ी है
आप बाबा की मूर्ती तोड़े जाने के लिए बाकियों को गरियाते घूमते है कभी बाबा साहेब की बातों को समाज और अपने आसपास पढ़ाने की कोशिश की है संघ के अच्छे और बुरी सभी बातों को किताब में न सही सोशल मीडिया में पढ़ा है आप कितना बाबा साहेब की किताब की कुछ पंक्तियां लिखते है फेसबुक पर सिवाय ब्राह्मणवाद को गरियाने के अलावा
यदि आप वाकई समतावादी है तो जिस व्यक्ति का आप नाम तोते की तरह रटते है उनको लोगो से अवगत कराइए वर्ना आपमें और उन कट्टर संघियो में मुझे कोई फर्क नजर नहीं आता.
बिहार के सिवान की रहने वाली पुष्पा यादव लिखती हैं -अगर आप ये सोचते हैं कि जैसे पाकिस्तान में भारतीय फिल्में बैन हो रही वैसे ही भारत में पाक कलाकार बैन हो……..
अगर आप ये सोचते हैं कि पाक कलाकारों या खिलाड़ियो के भारतीय प्रशंसक राष्ट्रद्रोही हैं जैसा कि क्रिकेटर कोहली के पाक प्रशंसक के साथ हुआ………
तो बधाई हो……….
आप भारत को पाकिस्तान बनाने की ओर अग्रसर हैं.
दिल्ली यूनिवर्सिटी में कार्यरत नीलिमा चौहान ने स्त्री अधिकारों पर काफी मजबूती से अपनी बात रखी है, साथ ही सामाजिक मुद्दों पर ही शानदार तरीके से अपनी बात रखी है. उनका एक पोस्ट जो स्त्री की सेक्सुएलिटी से जुड़ा है-
कौन जानता था कि शेफाली जरीवाला के ‘कांटा लगा’ वाले गाने से जिस स्त्री सेक्सुएलिटी का आगाज हुआ वह अंतत: पोर्न अभिनेत्री सनी लियोन के स्टारत्व के खुले उत्सवीकरण तक जा पहुंचेगी और इतनी खुली यौनिक अभिव्यक्ति को सहर्ष स्वीकारने वाले हमारे समाज में स्त्री की सेक्सुएलिटी एक हश हश टॉपिक ही रहेगी !
दरअसल हमारे समाज में स्त्री स्वातंत्रय और स्त्री की सेक्सुएलिटी को एकदम दो अलग बातें मान लिया गया है ! पुरुष की सेक्सुएलिटी हमारे यहां हमेशा से मान्य अवधारणा रही है ! चूंकि पुरुष सत्तात्मक समाज है इसलिए स्त्री की सेक्सुएलिटी को सिरे से खारिज करने का भी अधिकार पुरुषों पास है और और अगर उसे पुरुष शासित समाज मान्यता देता भी है तो उसको अपने तरीके से अपने ही लिए एप्रोप्रिएट कर लेता है !