करें अंगदान, मुरझाये चेहरों को दे मुस्कान
II रचना प्रियदर्शिनी II 9 मार्च, 2017 को प्रकाशित एक खबर के अनुसार राजधानी दिल्ली के एक दंपती ने दिल का दौरा पड़ने से मृत हुए अपने सात दिन के नवजात बेटे के शरीर को चिकित्सा शोध के लिए एम्स के डॉक्टरों को दान कर एक मिसाल पेश की. दूसरी ओर लाखों ऐसे लोग भी […]
II रचना प्रियदर्शिनी II
9 मार्च, 2017 को प्रकाशित एक खबर के अनुसार राजधानी दिल्ली के एक दंपती ने दिल का दौरा पड़ने से मृत हुए अपने सात दिन के नवजात बेटे के शरीर को चिकित्सा शोध के लिए एम्स के डॉक्टरों को दान कर एक मिसाल पेश की. दूसरी ओर लाखों ऐसे लोग भी हैं, जिन्हें अंगदान के विषय में पर्याप्त जानकारी नहीं है या जिन लोगों को जानकारी है भी, वे भी इसे लेकर तत्पर नहीं दिखते. जरा सोचिए पूजा-पाठ, धर्म के नाम पर हम न जाने कितना दान-पुण्य करते हैं, लेकिन सबसे बड़ा दान तो वह दान है न, जो किसी को नयी जिंदगी दे दे और किसी मुरझाये चेहरे को मुसकान दे.
क्या कहते हैं डॉक्टर ?
डॉ प्रवीण चंद्रा, निदेशक, स्वास्थ्य विभाग, रांची
‘झारखंड के सरकारी अस्पतालों में फिलहाल ह्यूमन ऑर्गन ट्रांसप्लांटेशन की सुविधा उपलब्ध नहीं है, हालांकि कुछ अस्पतालों ने इस दिशा में अपनी रुचि दिखायी है, तो इस पर गंभीरता से विचार किया जा रहा है. अभी झारखंड सरकार द्वारा ह्यूमन ऑर्गन ट्रांसप्लांटेशन के तहत किडनी ट्रांसप्लांट के लिए एनओसी जारी किया जाता है. एनओसी प्राप्त कोई व्यक्ति किसी भी अन्य अस्पताल में, जहां किडनी ट्रांसप्लांटेशन की सुविधा है, जाकर किडनी ट्रांसप्लांट करवा सकता है. इसके अलावा, बरियातू में बिहार आइ बैंक (वर्तमान में झारखंड आइबैंक) स्थापित है, जो कि एक ट्रस्ट द्वारा संचालित होता है.’
डॉ सच्चिदानंद कुमार, पूर्व अध्यक्ष, आइएमए
‘स्वास्थ्य जागरूकता को लेकर बिहार सरकार में इच्छाशक्ति की भारी कमी है. गौरतलब है कि यहां के सरकारी अस्पतालों में दवाएं तो ढंग से उपलब्ध हैं नहीं, ऐसे में अंगदान की बात की करना बेमानी है. पीएमसीएच में पिछले 10 वर्षों से ऑन पेपर आइ बैंक और ट्रांसप्लांटेशन कमिटी दोनों संचालित हो रही है, लेकिन व्यवहारिक तौर पर यह अब तक शुरू नहीं हो पाया है. अपने अध्यक्षता काल में मैंने कुछ सहयोगियों के साथ मिल कर एक अंगदान समिति बनायी थी. कई लोग इसके लिए आगे भी आये थे, पर सरकारी उदासीनता की वजह से यह काम आगे नहीं बढ़ पाया. सरकार को इस दिशा में अपने स्तर से प्रयास करना चाहिए, ताकि अधिक-से-अधिक लोगों को इसका लाभ मिल सके.’
हमारे देश में अंगदान की कमी से हर साल लाखों लोगों की जान चली जाती है. आंकड़ों की मानें, तो भारत में अंग दान करनेवालों की संख्या प्रति 10 लाख पर एक से भी कम है. अंग दान के क्षेत्र में मांग और पूर्ति के बीच कितना अंतर है, यह इसी बात से जाना जा सकता है कि हर साल देशभर में जहां लगभग 1,75,000 लोगों को किडनी की जरूरत होती है, वहीं उपलब्धता मात्र 5000 की है. यही वजह है कि भारत में अंगों की बिक्री कानूनी रूप से अवैध होने के बावजूद यह व्यापार तेजी से फल-फूल रहा है.
आखिर क्यों है यह उदासीनता
भारत में अंगदान की राह में कुछ प्रमुख बाधाएं है: पहला, लोगों में इस बारे में जागरूकता की कमी. दूसरा, सरकारी उदासीनता. चूंकि इस मामले में कई तरह के लॉजिस्टिक, कानूनी कार्यवाही व अन्य वित्तीय मसले शामिल होते हैं, इसलिए डॉक्टर्स अकसर इन पचड़ों से बचने की कोशिश करते हैं. तीसरी प्रमुख चुनौती किसी मरीज को ब्रेन डेड घोषित करने की है. हर साल भारतीय अस्पतालों में दो-चार प्रतिशत मरीजों की मौत ब्रेन डेड के कारण होती है, लेकिन समय से ब्रेन डेड घोषित न किये जाने के कारण उनके अंगों का उपयोग नहीं हो पाता. चौथा, छोटे या मध्यमवर्गीय शहरों में प्रत्यारोपण सुविधाओं का अभाव है. व्यक्ति की मृत्यु के 12 से 72 घंटे के भीतर अंगों को प्रत्यारोपित किया जाना चाहिए. इसमें देरी होने पर अंगों की उपयोगिता खत्म हो जाती है. फोर्टिस ऑर्गन रिट्रीवल ऐंड ट्रांसप्लांटेशन के निदेशक अवनीश सेठ कहते हैं, अंग कुदरती चीज हैं और इनके खराब होने और संक्रमित होने का जोखिम ज्यादा होता है.
कौन कर सकता है अंगदान
शून्य से लेकर सौ साल तक का कोई भी व्यक्ति अंगदान कर सकता है. हालांकि बच्चों के मामले में पैरेंट्स की सहमति अनिवार्य है. कैंसर, एचआइवी, इन्फेक्शन अथवा इंट्रावेनस ड्रग का उपयोग करनेवाले मरीजों को अंगदान की प्रक्रिया से बाहर रखा गया है. हालांकि कैंसर के मरीज अपना कॉर्निया दान कर सकते हैं. जिन लोगों को हेपेटाइटिस-बी या हेपेटाइटिस-सी की बीमारी है, वे इन्हीं बीमारियों से पीड़ित लोगों को ही अंगदान कर सकते हैं. अंगदान में सबसे बड़ी भूमिका मृत व्यक्ति के रिश्तेदारों व परिजनों की होती है, क्योंकि मरनेवाला तो मर जाता है, अगर समय रहते उसके परिजन इस दिशा में उचित कदम नहीं उठाते, तो व्यक्ति की इच्छा होने के बावजूद कुछ नहीं किया जा सकता. अंग दान की एक अच्छी बात यह भी है कि डोनर फैमिली को कोई पैसा खर्च नहीं करना पड़ता. ऑपरेशन और मेंनटेनेंस के सारे खर्चे की जिम्मेदारी रिसीवर फैमिली या हॉस्पिटल की होती है.
भारत में कई गैर-सरकारी संस्थान व संगठन अंगदान के प्रति जागरूक फैलाने और इसके लिए लोगों को को मदद करने का काम कर रहे हैं. इनमें से कुछ प्रमुख संस्थाएं है : मोहन फाउंडेशन, शतायु फाउंडेशन, गिफ्ट अ लाइफ फाउंडेशन, गिफ्ट योर लाइफ फाउंडेशन तथा केंद्र सरकार द्वारा संचालित दधिचि मिशन. जो लोग अंगदान को इच्छुक हैं, वे इन संस्थानों की बेबसाइट पर जाकर अपना रजिस्ट्रेशन करवा सकते हैं. जरूरत पड़ने पर ये संस्थान आपसे या आपके परिजनों से संपर्क करते हैं.
जागरूकता के अभाव में दम तोड़ते सरकारी प्रावधान
केंद्र सरकार द्वारा ह्यूमन ऑर्गन एंड टिश्यूज को निकालने और संग्रहित करने के लिए एक राष्ट्रीय नेटवर्क (NOTTO) स्थापित किया गया है. इसके अंतर्गत पांच क्षेत्रीय नेटवर्क (ROTTO) तथा प्रत्येक क्षेत्र के प्रत्येक राज्य एवं संघशासित क्षेत्र में (SOTTO) की स्थापना का प्रावधान है.
ट्रांसप्लांटेशन ऑफ ह्यूमन ऑर्गन एक्ट 1994 के अनुसार, जीवित व्यक्ति केवल अपने रक्त संबंधियों को ही अंग दान कर सकता है. फिलहाल इस कानून का दायरा बढ़ा कर इसमें स्वैप डोनेशन की अनुमति भी दी गयी, जिसके तहत दो जरूरतमंद डोनर के बीच अंगों की अदला-बदली की जा सकती है, बशर्ते उनके अंग आवश्यकता के अनुसार मैच कर रहे हों. इन तमाम सरकारी प्रावधानों के बावजूद लोगों को इस बारे में जानकारी न होने से वे इसका समुचित लाभ नहीं उठा पा रहे हैं.
अंग प्रत्यारोपण की मांग और पूर्ति में मौजूद अंतर को कम करने के लिए इस क्षेत्र में पब्लिक-प्राइवेट-पार्टनरशिप को भी बढ़ावा दिया जाना चाहिए, ताकि बुनियादी ढांचा सुदृढ़ हो सके और अधिकाधिक लोग इस सुविधा से लाभान्वित हो सकें.
वैश्विक परिदृश्य में कहां है हम
वैश्विक परिदृश्य की बात करें तो दुनिया में हर 10 लाख लोगों में भारत में 0.34, अर्जेंटीना में 12, जर्मनी में 16, इटली में 20, ऑस्ट्रिया में 23, अमेरिका में 24, फ्रांस में 25, क्रोएशिया में 33.5 और स्पेन में 34 लोग अंगदान करते हैं.
वहीं अगर भारतीय राज्यों की बात करें, तो भारत में अंगदान से जुड़ी अग्रणी संस्था गैर-सरकारी संगठन मोहन फाउंडेशन के आंकड़ों के मुताबिक तमिलनाडु में प्रति 10 लाख की आबादी पर 136, केरल में 58, महाराष्ट्र में 52, आंध्रप्रदेश में 52, कर्नाटक में 39, गुजरात में 28, दिल्ली-एनसीआर में 28, उत्तरप्रदेश में 7, चंडीगढ़ में 6, पुडुचेरी में 1.3 लोग अंगदान करते हैं.
बिहार और झारखंड की बात करें, तो बिहार में मात्र आइजीआइएमएस, पटना में ऑर्गन डोनेशन एंड ट्रांसप्लांटेशन (केवल आंख और किडनी) की सुविधा उपलब्ध है. वर्ष 2013 से अब तक करीब सवा सौ मरीज आइ ट्रांसप्लांटेशन का लाभ उठा चुके हैं, वहीं वर्ष 2016 में शुरू हुए किडनी ट्रांसप्लाटेशन से अब तक करीब 20 मरीज लाभान्वित हो चुके हैं. झारखंड के किसी भी सरकारी अस्पताल में फिलहाल ट्रांसप्लांटेशन की सुविधा नहीं है. कुछ प्राइवेट अस्पताल किडनी ट्रांसप्लांटेशन की सुविधा प्रदान कर रहे हैं. इस लिहाज से देखें, तो भारत के उत्तरी और पूर्वी राज्यों की तुलना में दक्षिणी राज्य अंगदान के प्रति अधिक जागरूक हैं.
इन अंगों को कर सकते हैं दान
डॉक्टरों के मुताबिक मौत के बाद अंगदान करके एक व्यक्ति कम-से-कम आठ लोगों की जान बचा सकता है. अंगदान तीन तरीके से किया जा सकता है : कोई व्यक्ति जीवित रहते हुए अपना खून, बोनमैरो, किडनी तथा पैनक्रियाज, लीवर और फेफड़ा (3/4 हिस्सा, क्योंकि 4-6 हफ्तों में ये अपने सामान्य आकार में विकसित हो जाते हैं) दान कर सकता है.
यदि किसी व्यक्ति की मौत प्राकृतिक कारणों (डूबने, गिरने, हृदयाघात होने आदि) से हुई हो, तो उसकी आंखें, हार्ट वाल्व, स्किन, हड्डी व तंतु, कार्टिलेज, धमनियों एवं शिराओं तक को दान किया जा सकता है. हालांकि अब तक इस बारे में कोई गाइडलाइंस नहीं बनी है. कार्डियक डेथ के बाद 30 से 60 मिनट के भीतर अंग निकालना जरूरी होता है. इसके लिए यह जरूरी है कि जिस हॉस्पिटल में मरीज की मौत हुई हो, वहां प्रत्यारोपण की सारी तैयारी (अंग प्रत्यारोपण करनेवाले डॉक्टर सहित) उपलब्ध हो, पर ज्यादातर मामलों में ऐसा संभव नहीं होता.
ब्रेन डेड घोषित होने के बाद सभी अंग डोनेट किए जा सकते हैं. इसके लिए परिजनों की स्वीकृति लेना अनिवार्य है. ब्रेन डेड मरीज की किडनी, लीवर, फेफड़ा, पैन्क्रियाज, छोटी आंत, वॉयस बॉक्स, हाथ, यूट्रस, ओवरी, फेस, आंखें, मिडल इयर बोन, स्किन, बोन, कार्टिलेज, तंतु, धमनी व शिराएं, कोर्निया, हार्ट वाल्व, नर्व्स, अंगुलियां और अंगूठे दान किये जा सकते हैं.