आधी आबादी के बिना कैसे पूरा हो विकास का सपना
गत महीने फेसबुक द्वारा किये एक सर्वे में यह बात सामने आयी कि भारत में हर पांच में से चार महिलाएं उद्यमी बनने की क्षमता रखती हैं, बशर्ते उनके सशक्तीकरण के प्रयास किये जायें. शोध के मुताबिक यदि अभी से शुरुआत की जाये, तो वर्तमान व्यवसाय और रोजगार के समस्त लक्ष्यों को सिर्फ 52 फीसदी […]
गत महीने फेसबुक द्वारा किये एक सर्वे में यह बात सामने आयी कि भारत में हर पांच में से चार महिलाएं उद्यमी बनने की क्षमता रखती हैं, बशर्ते उनके सशक्तीकरण के प्रयास किये जायें. शोध के मुताबिक यदि अभी से शुरुआत की जाये, तो वर्तमान व्यवसाय और रोजगार के समस्त लक्ष्यों को सिर्फ 52 फीसदी महिलाओं के दम पर ही वर्ष 2021 तक ही पूरा किया जा सकता है. फिर आखिर क्या कारण है कि आज भी हमारे देश में महिलाओं का आर्थिक योगदान मात्र 27 फीसदी पर ही सिमटा हुआ है?
इस बारे में बिहार महिला उद्योग संघ की फाउंडर प्रेसिडेंट पुष्पा चोपड़ा का कहती हैं कि, ‘बिहार सरकार ने महिला उद्यमियों को प्रोत्साहित करने के लिए स्टार्ट-अप के रूप में कौशल प्रशिक्षण कार्यक्रम की शुरुआत तो कर दी है, लेकिन प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद महिलाएं किस तरह से उससे लाभ प्राप्त करें, इस बारे में उन्हें कोई जानकारी या सहायता उपलब्ध नहीं है. ज्यादातर महिलाओं को तो यह भी पता नहीं कि प्रशिक्षण पाने के लिए वे कहां और किससे संपर्क करें. इसके लिए केवल सेमिनार और वर्कशॉप आयोजित करने से काम नहीं चलेगा, बल्कि इस दिशा में विशेष रूप से ध्यान देने की जरूरत है.’
फेसबुक के इस सर्वे रिपोर्ट के अनुसार 38 फीसदी महिलाओं के इस पिछड़ेपन का कारण निरंतर रूप से पारिवारिक जिम्मेदारियों के प्रति उनकी जबावदेही है, जबकि 29 प्रतिशत महिलाएं वित्त की कमी के चलते और करीब 30 प्रतिशत महिलाएं व्यक्तिगत रूप से वित्तीय सुरक्षा के बारे में सोच कर आगे बढ़ने से रह जाती हैं. अगर इन सभी महिलाओं को भारतीय अर्थव्यवस्था की मुख्यधारा से जोड़ दिया जाये, तो देश में करीब डेढ़ करोड़ नये व्यवसायों का सृजन होगा और तकरीबन साढ़े छह करोड़ रोजगार के नये अवसर भी सृजित होंगे, जिससे फिलहाल हमारा देश वंचित है.
किसी भी देश की आर्थिक प्रगति में महिला उद्यमिता महत्त्वपूर्ण योगदान होता है. ऐसा माना जाता है कि महिला उद्यमी न केवल अपने तथा अन्य लोगों के लिए नये रोजगार सृजित करती हैं, बल्कि समाज को बेहतर प्रबंधन, संगठन एवं व्यवसाय संबंधी समस्याओं के विभिन्न समाधान भी उपलब्ध कराती हैं. इस बात को ध्यान में रखते हुए ही भारत सरकार द्वारा अपने सहस्राबदी विकास लक्ष्य में महिला उद्यमशीलता को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं के सृजन एवं क्रियान्वयन पर ध्यान केंद्रित करना शुरू किया. इसके बावजूद सच तो यह है कि महिलाओं को अभी भी अपने सपनों को पूरा करने के लिए लंबा सफर तय करना बाकी है.
ज्यादातर महिलाओं को इस बात की जानकारी नहीं है कि वे कैसे और किस तरह से अपने लिए नये रोजगार सृजित कर सकती हैं और इसके लिए उन्हें कहां और किस विभाग में किन अधिकारियों से संपर्क करना होगा. इसके अलावा, महिला उद्यमियों को अकसर अपना व्यवसाय शुरू करने में लिंग-भेद आधारित बाधाओं का सामना करना पड़ता है. जैसे– भेदभावपूर्ण संपत्ति, विवाह एवं उत्तराधिकार कानून, सामाजिक व सांस्कृतिक परंपराएं, वित्त प्रणाली तक पहुंच न होना, सीमित गतिशीलता तथा सूचनाओं व नेटवर्क तक सीमित पहुंच आदि. इन सभी बाधाओं को दूर करके हमें उनके आर्थिक सशक्तीकरण की दिशा में एक बेहतर माहौल का निर्माण करना होगा.
दक्षिणी राज्यों की बेहतर है स्थिति
राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन (एनएनएसओ) के छठे आर्थिक गणना के अनुसार भारत में मात्र 14 फीसदी महिला उद्यमी ही हैं. इसका अर्थ है कि देश के लगभग छह करोड़ के व्यावसायिक उत्पादन क्षेत्र में महिला उद्यमियों का योगदान मात्र 0.8 फीसदी ही है. उसमें से भी ज्यादातर महिला उद्यमियों द्वारा चलाये जा रही कंपनियां लघु उद्योग पर आधारित है और उनमें से आधे से भी अधिक स्व-वित्तपोषित हैं. एनएसएसओ के अनुसार, महिला उद्यमशीलता के मामले में भारत के दक्षिणी राज्यों, विशेष कर तमिलनाडु (10.8 करोड़), केरल (9.1 करोड़) तथा आंध्रप्रदेश (5.6 करोड़) की स्थिति तुलनात्मक रूप से बेहतर है. विशेषज्ञों का मानना है कि इसकी एक प्रमुख वजह इन राज्यों में लिंगानुपात और महिला शिक्षा की स्थिति भी अन्य राज्यों की तुलना में बेहतर होना है.
बिहार की प्रमुख महिला आर्थिक विश्लेषक सुश्री मीरा दत्त के अनुसार, ‘दुनिया भर में किये जानेवाले कुल कार्यों का करीब 65 फीसदी कार्य महिलायें करती हैं. इस लिहाज से देखें तो निश्चित तौर से उनमें उद्यमशीलता अपेक्षाकृत अधिक है. बिहार, झारखंड आदि राज्यों में घर के पुरुष सदस्यों द्वारा काम की तलाश में बड़े शहरों में पलायन करने के बाद उनके पीछे घर की महिलाएं ही घर-बाहर की सारी जिम्मेदारियां संभालती हैं. गृहस्थी के तमाम दायित्व संभालते हुए वे स्वरोजगार या मजदूरी करके अपने घर-परिवार का खर्च निकालती हैं, पर अफसोस कि इसके बावजूद उसे रोजगार की श्रेणी में नहीं रखा जाता हैं. देश के सकल घरेलू आय में उनके योगदान की गणना नहीं की जाती. उनके श्रम को पारिवारिक दायित्व का नाम देकर नजरअंदाज कर दिया जाता है. इस तरह से हम देखें तो देश की 48 करोड़ से भी अधिक श्रमशक्ति के योगदान को आर्थिक गणना सूची से बाहर रखा जाता है, इसके बावजूद हम इस बात से इनकार नहीं कर सकते कि देश को आगे ले जाने में उनका महत्वपूर्ण योगदान है.’
भारत में महिला उद्यमियों के लिए नीतियां और योजनाएं
भारत में कुटीर, लघु तथा मध्यम उद्योग संगठन, विभिन्न राज्य लघु उद्योग विकास निगम, राष्ट्रीयकृत बैंक और कई गैर-सरकारी संगठनों द्वारा उन संभावित महिला उद्यमियों के लिए कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं, जो कम पढ़ी-लिखी एवं अकुशल हैं. इसके अलावा प्रत्येक राज्य में विशिष्ट समस्याओं का सामना करनेवाली महिला उद्यमियों को समन्वय एवं सहायता उपलब्ध करवाने के उद्देश्य से विकास आयुक्त के कार्यालय में भी एक वुमेन सेल का प्रावधान भी है.
केंद्र एवं राज्य स्तर की अनेक ऐसी सरकारी योजनाएं हैं, जो जरूरतमंद महिलाओं को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाने के उद्देश्य से प्रशिक्षण-सह-आय उपार्जक गतिविधियों की स्थापना के लिए सहायता उपलब्ध कराती हैं. भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक (सिडबी) भी महिला उद्यमियों के लिए विशेष योजनाओं का कार्यान्वयन करता है. इन योजनाओं के अंतर्गत महिला उद्यमियों को स्व-रोजगार स्थापना हेतु विशेष प्रोत्साहन और रियायतें प्रदान की जाती हैं. उदाहरणार्थ, प्रधानमत्री रोजगार योजना के अंतर्गत, महिला लाभार्थियों को वरीयता दी जाती है.
सरकार द्वारा इन योजनाओं में महिलाओं की भागीदारी सरल बनाने के लिए कई प्रकार की छूट दी जाती है. एमएसएमइ मंत्रालय के एमएसइ समूह विकास कार्यक्रम के तहत महिलाओं के स्वामित्व और प्रबंधनवाले समूहों के लिए परियोजना लागत के 90% राशि का अंशदान मंत्रालय करता है. इसी प्रकार, सूक्ष्म एवं लघु उद्यम ऋ ण गारंटी निधि योजना के तहत दिये जानेवाले ऋण के लिए महिलाओं को 80% तक गारंटी उपलब्ध होती है.
झारखंड महिला उद्योग संघ की सचिव कृष्णा दत्त कहती हैं कि, ‘वर्ष 2015 में स्थापित अपने स्वयंसेवी संस्थान के माध्यम से हम झारखंड की लोक कला, विशेष कर आदिवासी क्षेत्रों की कलाओं को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने की कोशिश कर रहे है. हमारे कौशल प्रशिक्षण कार्यक्रम में कई आदिवासी महिलाएं और कुछ किन्नर भी शामिल हैं. सरकार की तरफ से इस दिशा में कोई खास सहयोग नहीं है. हालांकि पिछले दिनों सूरजकुंड मेले में महिला उद्यमिता को बढ़ावा देने की दिशा में सरकार द्वारा उन्हें पुरस्कृत किया जाना एक बेहतर कदम है, परंतु इसके अलावा और विभागीय स्तर पर काफी कुछ किया जाना बाकी है.’
नहीं मिलती है उचित आमदनी
वर्ष 2008 में प्रस्तुत अर्जुन सेन गुप्ता कमीशन की रिपोर्ट के अनुसार ‘भारत के तकरीबन 10 करोड़ लोग स्व-रोजगार चलाते हैं. देश की 93 फीसदी श्रमशक्ति असंगठित क्षेत्र में कार्यरत है जिसमें मध्यम, लघु, कुटीर उद्योग आदि सभी शामिल हैं. इनमें महिलाओं की संख्या पुरूषों से कहीं ज्यादा हैं. असंगठित क्षेत्र का कोई भी ऐसा कार्य नहीं है, जिससे आज महिलाएं न जुड़ी हों. इसके बावजूद उन्हें उचित आमदनी नहीं मिल पाती. इन महिलाओं द्वारा घर पर रह कर किये जानेवाले कार्यो को देश की जीडीपी में शामिल नहीं किया जाता. जो महिलाएं घर से बाहर जाकर काम करती हैं, उन्हें काम को महत्व दिया जाता है.’ बहुत से काम ऐसे भी हैं जिसमें महिलाएं थोक में कच्चा माल घर में लाकर उससे तरह-तरह के सामान बनाती हैं और फिर बहुत कम कीमत पर उन्हें बेच देती है, जैसे- सूप, टोकरी, डगरा, बीड़ी, पत्तल, पापड़, बड़ी, बेसन, सत्तू, अगरबत्ती, आसनी, दरी, कढ़ाई, कशीदाकारी इत्यादि.
शहरों में थैले की सिलाई से लेकर बिन्दी के ग्रुस तैयार करने व लहठी में नग चिपकाने जैसे बारीक तथा धैर्य से किये जानेवाले कार्य महिलाओं के अलावा कोई और नहीं कर सकता, लेकिन इसके लिए उन्हें न के बराबर आमदनी होती है. उदाहरण के तौर पर, बिहार के ग्रामीण क्षेत्रों में ज्यादातर महिला वार्ड प्रतिनिधि 50 पैसे प्रति माला बनाने का कार्य करती हैं. इससे दिन भर में 15 रूपये तक कमाई हो जाती है, क्योंकि पंचायतों में प्रतिनिधियों को वेतन नहीं मिलता. अधिकांशत गरीब होती हैं. इसी तरह झारखंड के सूदूर ग्रामी क्षेत्रों जैसे खूंटी, पाकुड़, सिमडेगा आदि में महिलाएं केंदु के पत्तों से बीड़ी बनाने का काम करती हैं. एक दिन में प्रति हजार बीड़ी की एवज में उन्हें मात्र 126 रुपये मिलते हैं. यही नहीं अकसर ठेकेदारों द्वारा निर्मित बीड़ियों में कुछ कमी बता कर तीन-चार सौ बीड़ियों को रिजेक्ट कर दिया जाता है. इस वजह से उन्हें या तो अतिरिक्त बीड़ी बनाना पड़ता है या फिर उनकी दैनिक मजदूरी से पैसे कट जाते हैं.
बिहार सरकार द्वारा उठाये गये कदम
बिहार सरकार द्वारा वर्ष 2010 में राज्य के युवाओं को कौशल प्रशिक्षण देने के उद्देश्य से ‘बिहार कौशल प्रशिक्षण विकास कार्यक्रम’ की शुरुआत की गयी. इसके अलावा, वर्ष 1995 में स्थापित बिहार महिला उद्योग संघ नामक एनजीओ विशेष रूप से महिलाओं-लड़कियों के आर्थिक सशक्तीकरण हेतु कार्यरत है. इसका मुख्य उद्देश्य महिला उद्यमियों की पहचान करके उनके द्वारा उत्पादित उत्पादों को राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय बाजार उपलब्ध करवाना. इसके अंतर्गत साल में दो बार उद्योग मेलों का आयोजन किया जाता है. इसमें बड़ी संख्या में दूर-दराज के क्षेत्रों में रहनेवाली महिला उद्यमी भागीदारी निभाती हैं. आज इस संघ का लाखों का वार्षिक टर्नओवर है.
इसके कुछ प्रमुख उत्पाद विनायक भोग लड्डू, अथक सत्तू , अक्षत नमकीन आदि हैं. संघ का विजन और मिशन राज्य भर में कुटीर घरेलू उद्योगों का जाल फैला कर कमजोर तबके की महिलाओं को रोजगार से जोड़ना. वर्तमान में लगभग दस हजार ग्रामीण महिलाएं इसके अंतर्गत रोजगार पाने में सफल हुई हैं. साथ ही विलुप्त होते बिहारी हैंडीक्राफ्ट, मिथिला पेंटिंग, एप्लिक वर्क, टिकुली क्राफ्ट, सूजनी वर्क आदि कलाओं को भी राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली है.
झारखंड सरकार द्वारा उठाये जा रहे कदम
झारखंड इंडस्ट्रियल इंवेस्टमेंट प्रोमोशन पॉलिसी-2016 के तहत झारखंड सरकार किसी भी महिला को अपनी व्यावसायिक ईकाई स्थापित करने के लिए कुल लागत में 5 फीसदी वैट की छूट देती है. रेशम कीट पालन ईकाई की स्थापना को प्रोत्साहित करने के लिए कुल 90 करोड़ रुपये का बजट प्रस्तावित है.
व्यवसाय की शुरुआत के संबंध में महिला उद्यमियों को ध्यान देना चाहिए कि वे –
– ऐसा व्यवसाय शुरू करें, जो उनके व्यक्तिगत और पारिवारिक जीवन के लिए सुगम या उपयुक्त हो.
– उत्पाद अथवा सेवा के बारे में पर्याप्त अनुसंधान करें.
– बाजार में उसकी मौजूदा कीमत और प्रभाव का मूल्यांकन करें.
– आगे के तीन महीनों की अग्रिम निधि का हिसाब रख कर ही व्यवसाय शुरू करें.
– अधिक-से-अधिक लोगों को उससे जोड़ने के लिए मजबूत नेटवर्किंग करें.
– इस क्षेत्र के मौजूदा सफल एवं पेशेवर उद्यमियों से परामर्श करें.
– व्यवसाय में होनेवाली लाभ या हानि का सामना करने के लिए खुद को तैयार रखें.
कहां संपर्क करें:
भारतीय महिला उद्यम परिसंघ (एफआइडब्ल्यूइ)www.fiwe.org
महिला उद्यमी सहायता-संघ (सीडब्ल्यूइआइ)
www.cwei.org
स्व-रोजगार महिला संघ (एसइडब्ल्यूए)
www.sewa.org
बिहार महिला उद्योग संघ
www.biharmahilaudyogsangh.com
फोन नंबर : 0612-3201435
झारखंड ग्रामीण विकास विभाग
http://www.jharkhand.gov.in/rural-dev
इन बिंदुओं पर ध्यान देने की है जरूरत :
– महिलाओं की शिक्षा को बढ़ावा देना और उनके साथ होनेवाले भेदभाव को खत्म करना
– रोजगार के नये अवसरों को सृजित करने के अलावा लोक कलाओं और कौशलों को प्रोत्साहित करना
– जानकारी के लिए सिंगल विंडो सिस्टम की व्यवस्था करना
– वित्त प्रणाली को आसान बनाना
– सुदूर क्षेत्रों में सरकारी योजनाओं को पहुंचाने के लिए जन जागरूकता कार्यक्रम चलाना
– सरकारी नीतियों और कार्यक्रमों को आसान और सुगम बनाना