मलेरिया, चर्म रोग व जॉन्डिस में उपयोगी है कालमेघ
नीलम कुमारी , टेक्निकल ऑफिसर झाम्कोफेड कालमेघ हमारे जंगलों में बहुतायात में पाये जानेवाला प्रमुख औषधीय पौधा है़ यह पौधा पूरे भारत में पाया जाता है, लेकिन झारखंड, पश्चिम बंगाल, असम, बिहार, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान, आंध्रप्रदेश, कर्नाटक आदि राज्यों में प्रचुर मात्रा में उपलब्धता है़ झारखंड में यह प्राय: सभी जिलों में पाया […]
नीलम कुमारी , टेक्निकल ऑफिसर झाम्कोफेड
कालमेघ हमारे जंगलों में बहुतायात में पाये जानेवाला प्रमुख औषधीय पौधा है़ यह पौधा पूरे भारत में पाया जाता है, लेकिन झारखंड, पश्चिम बंगाल, असम, बिहार, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान, आंध्रप्रदेश, कर्नाटक आदि राज्यों में प्रचुर मात्रा में उपलब्धता है़ झारखंड में यह प्राय: सभी जिलों में पाया जाता है़ यह पौधा वर्षा ऋतु में अधिक संख्या में पाया जाता है़ इसका वानस्पतिक नाम एंडोग्रेफिस पैनिकुलाटा है़ संस्कृत में इसे कालमेघ कल्पनाथ, हिंदी व बांग्ला में कालमेघ, तमिल में नीलावेम्बु, संथाल में मुनिम्भ, कालमेघ आदि नामों से जाना जाता है़
इसका पौधा एक से दो फुट ऊंचा, तना चतुष्कोण, नीचे चिकना व ऊपर रोमश होता है़ पत्तियां रेखा कर, दो-तीन इंच लंबी होती है़ं फूल छोटे, श्वेत या हल्के नीले रंग के होते है़ं फल गोल व विक्त होता है़ वर्षा के अंत में शीतकाल तक पुष्प व फल लगते है़ं
यह है औषधीय उपयोग
इसके पत्तों में सुंगधित तेल व कालमेघ है़ यह एक प्रमुख रक्त शोधक है़ इसका प्रयोग रक्त विकार, अग्निमंध, मलेरिया, पुराने बुखार, विभिन्न प्रकार के चर्म रोग, जॉन्डिस व अन्य लीवर संबंधित विकारों काे दूर करने में किया जाता है़ यह डायबिटीज में भी उपयोगी है़ यह रक्त शर्करा को नियंत्रित करता है़ मलेरिया में इसका प्रयोग काली मिर्च के साथ किया जाता है़, बल्कि मलेरिया के दौरान नष्ट हुई कोशिकाओं को भी ठीक करता है़ इसके पंचांग को साफ करके पानी में फुलायें, फिर उसे छान कर रोज एक गिलास पीने से रक्त साफ होता है़
सावधानी भी रखें
ध्यान रहे लंबे समय तक इसका सेवन किडनी को नुकसान पहुंचा सकता है़ इसलिए सावधानी पूर्वक किसी अच्छे आयुर्वेद चिकित्सक के परामर्श से इसका उपयोग करना चाहिए़ घाव व फोड़ा-फुुंसी होने पर कालमेघ को पानी में उबाल कर उस पानी से घाव को साफ करने पर घाव जल्दी ठीक होता है़ गैस व एसिडिटी में इसके पत्ते का रस पानी में मिला कर सेवन करने से लाभ पहुचंता है़ बुखार में इसके पत्ते का रस एक दो चम्मच दिन में तीन बार लेना फायदेमंद होता है़
बच्चों के पेट के कीड़े को मारने में भी यह उपयोगी है़ इसके लिए इसके पत्तों का रस पांच बूंद, कच्ची हल्दी का रस 30-35 बूंद चीनी में मिला कर प्रयोग में लाया जाता है़ चूंकि यह वार्षिक पौधा है, इसलिए वर्षा ऋतु के अंत में यह शीत ऋतु के आरंभ में इसका संग्रहण कर सुरक्षित भंडारण करना चाहिए.