स्त्रियां छुपाएं नहीं खुल कर कहें परेशानी

महिलाओं की बात आते ही उनके हक की बात पर बहस छिड़ जाती है. हालांकि, बात जब उनके स्वास्थ्य की करनी हो, तो खुद महिलाएं भी इस बारे में बात करने से संकोच करती हैं. इसी कारण कई बार वे अंदर-ही-अंदर गंभीर रोगों की शिकार हो जाती हैं. इसलिए यह जरूरी है कि हम महिलाओं […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 24, 2017 1:08 PM

महिलाओं की बात आते ही उनके हक की बात पर बहस छिड़ जाती है. हालांकि, बात जब उनके स्वास्थ्य की करनी हो, तो खुद महिलाएं भी इस बारे में बात करने से संकोच करती हैं. इसी कारण कई बार वे अंदर-ही-अंदर गंभीर रोगों की शिकार हो जाती हैं. इसलिए यह जरूरी है कि हम महिलाओं की बात करें, तो उनके स्वास्थ्य के अधिकार की भी बात करें. उन्हें जागरूक करें. हर साल डब्ल्यूएचओ 28 मई को ‘इंटरनेशनल वीमेंस हेल्थ डे’ मनाता है. हमने भी कोशिश की है कि किशोरावस्था से वृद्धावस्था तक महिलाओं की शारीरिक और मानसिक परेशानियों पर विशेषज्ञों की राय आप तक पहुंचाएं.

हार्मोंस बचपन से बूढ़ापे तक शारीरिक बदलाव के कारण होते हैं. यह एक प्रकार का केमिकल मैसेंजर है, जो एक कोशिका से दूसरी कोशिका तक सिग्नल भेजता है. महिला या पुरुष के बीमार होने का अधिकतर कारण भी हार्मोंस का असंतुलन है. मुख्य रूप से स्त्रियों में शरीरिक बदलाव 10 से 12 साल की उम्र में शुरू हो जाता है. यह Oestrogen और LH (Luteinizing hormone) हार्मोंस के कारण होता है. महिलाओं में ज्यादातर परेशानी इन्हीं दो हार्मोंस के असंतुलन के कारण होती है.

Precocious puberty : इसमें LH व Oestrogen हार्मोंस की मात्रा समय से पहले बढ़ जाती है. इससे बच्चियों को आठ साल से पहले ही पीरियड शुरू हो जाते हैं. बॉडी में अचानक से बदलाव आने लगता है और वे उम्र से ज्यादा बड़ी दिखने लगती हैं. इसके लिए डॉक्टर हार्मोंस की मात्रा कम करने की दवाई देते हैं.

Delayed puberty : इस केस में लड़कियों को 14 साल के बाद भी पीरियड्स नहीं आते. ऐसे में उनकी जांच कर उनके शरीर में बाहर से हार्मोंस के लिए दवाईयां देनी पड़ती हैं. इसके कारण लड़कियों में 14 साल के बाद भी ब्रेस्ट डेवलप्मेंट नहीं होता.

Polycystic ovary disease : इसमें चेहरे, पेट, छाती, हाथ पर लकड़ों की तरह बाल उगने लगते हैं. चेहरा तैलीय हो जाता है. यह Testosterone हार्मोन के कारण होता है. इसमें पीरियड्स में अनियमितता आ जाती है.

Hypothyroid : हाइपोथाइरोइड के कारण मुख्य रूप से 14 से 25 साल तक लड़कियों में पीरियड्स ज्यादा आते हैं. ब्लीडिंग ज्यादा होती है. पीरियड्स 15 से 20 दिन के अंदर ही आने लगते हैं. इसमें टीएसएच जांच करके दवाई दी जाती है.

Prolactin hormone : इसके असंतुलन से पीरियड्स अचानक से बंद हो जाते हैं और कई बार महीनों तक नहीं आते. यह हार्मोन महिलाओं में गर्भावस्था के बाद दूध के उत्पादन के लिए जिम्मेवार होता है. साथ ही यह प्रजनन से जुड़ी समस्याओं का कारण भी होता है. शरीर में पनप रहे किसी ट्यूमर के कारण भी हो सकता है. इसमें ट्यूमर निकाल देना या हार्मोंस को बैलेंस करना ही उपाय है.

Premature menopause : 40 साल या उससे पहले पीरियड्स खत्म होने की अवस्था आ जाये. इसमें ओवरी समय से पहले सूख जाती है. इसे प्रीमैच्योर ओवेरियन फेल्योर भी कहा जाता है. इसमें LH और एफएसएच बंद हो जाते हैं. यह कई कारणों से हो सकता है, जिसमें कीमोथेरेपी, रेडिएशन ट्रीटमेंट, सर्जरी से ओवरी को निकाल देना आदि प्रमुख हैं. इसके लिए कम-से-कम 45 साल तक बाहर से दवाई देकर हार्मोंस को बढ़ाया जाता है.

हार्मोंस का असंतुलन है कई रोगों का कारण

Perimenopausal : यह ऐसी अवस्था है, जो 45 से 52 साल की महिलाओं को पीरियड्स बंद होने के कारण आती है. इसमें पीरियड्स अनियमित हो जाते हैं. गरमी अधिक लगती है. पसीना बहुत निकलता है. चेहरा लाल होने लगता है, कई बार रात में नींद टूट जाती है. मिजाज चिड़चिड़ा होने लगता है और वह डिप्रेशन की शिकार हो जाती है. यह इस उम्र की सभी महिलाओं में होता है, पर यदि वह खुद को शारीरिक या मानसिक रूप से परेशानी में महसूस करे, तो उन्हें Oestrogen supplements देने पड़ते हैं.

Delayed menopause : 55 से अधिक उम्र में पीरियड्स आना भी हार्मोंनल डिसऑर्डर के लक्षण हैं. इसका कारण ओवरी या यूट्रस में ट्यूमर हो सकता है. इसके कारण Endometrial cancer भी हो सकता है, जिसमें पीरियड्स की तरह ही खून का स्राव होता है. यदि जांच में यह कैंसर पता चले, तो यूट्रस या ओवरी या दोनों को सर्जरी कर निकाल देना ही उपाय है. इसके अन्य ट्रीटमेंट पर कई देशों में शोध हो रहा है.

Post menopausal osteoporosis : यह पीरियड्स खत्म होने के बाद की परेशानी है. ऑस्टियोपोरोसिस में कैल्शियम की भारी कमी हो जाती है और हल्की चोट पर भी हड्डियां टूटने लगती हैं. यह भी हार्मोंस के असंतुलन के लक्षण हैं. इसके लिए हार्मोंस के संतुलन के लिए दवाई देने के साथ ही खान-पान पर भी विशेष ध्यान देना होता है. इसमें कई बार दवाई देकर फिर से पीरियड्स शुरू भी कराया जाता है.

Vaginal atrophy : अमूमन 50 के बाद महिलाओं में सेक्स की इच्छा नहीं होती, पर लेट से शादी के कारण कई महिलाएं अधिक उम्र में भी सेक्स की चाहत रखती हैं. ऐसे में मेनोपॉज के कारण उनका वजाइना ड्राइ होता है और सेक्स की क्रिया में काफी तकलीफ होती है. बिहार-झारखंड में भी अब महिलाएं ऐसी परेशानी लेकर आती हैं. डॉक्टर उन्हें Oestrogen cream का सहारा लेने की सलाह देते हैं.

बच्चे और मां का अहम योगदान

बचपन से जवानी तक मां-बाप बच्चों का ख्याल रखते हैं, पर जब मां-बाप बुजुर्ग हो जाते हैं, तब कई बार बच्चे उनका ख्याल नहीं रख पाते या नहीं रखना चाहते हैं. मां और बेटी के बीच अगर बेटी के बचपन से ही दोस्ताना व्यवहार रहे, तो बेटियां कई रोगों से बचने के अलावा गलत रास्तों पर भी जाने से बच जाती हैं. करीब 12 साल की उम्र में बच्चियों में शारीरिक बदलाव शुरू होते हैं. इनमें ब्रेस्ट का निकल आना शामिल है. इसके साथ ही पीरियड्स भी शुरू हो जाते हैं, जिससे शरीर में ऐंठन और ब्लीडिंग होती है, जो दो से पांच दिनों तक होती है. शरीर में आये अचानक बदलाव से लड़कियां घबरा जाती हैं.

कई बार वे शर्म के कारण इस बारे में किसी को नहीं बतातीं. इससे उन्हें जननांगों में इन्फेक्शन आदि की समस्या से दो-चार होना पड़ता है. इसलिए बेहतर होगा कि पीरियड्स शुरू होने के पहले से ही मां इसके बारे में बच्ची से बात करते रहें और उन्हें बतायें कि यह एक सामान्य प्रक्रिया है.

मां को साफ-सफाई और सावधानी के बारे में बताना चाहिए . बच्चियों को लगने लगता है कि सब की नजर उनके ब्रेस्ट पर है. इस कारण वे छुप-छुपा के बार-बार ब्रेस्ट को टच करती हैं. इससे ब्रेस्ट का विकास तेजी से होता है. बच्चियों का मन खेल-कूद या पढ़ाई में मन नहीं लगता है. मां की काउंसेलिंग ही इसका बेस्ट उपाय है. दिक्कत हो, तो डॉक्टर से मिलें.

शादी के बाद की अवस्था : 20 से 30 साल की उम्र में लड़कियों की शादी और बच्चा पैदा करने की उम्र होती है. शादी के बाद जब वह अनजान घर में जाती हैं, तो कई बार वह मानसिक रूप से तैयार नहीं होती. पति का प्रेम तो उसे अच्छा लगता है, पर वह शारीरिक रिश्ता बनाने से कतराती है और कई बार लड़ने-झगड़ने भी लगती है. इसमें भी मां की महत्वपूर्ण भूमिका होती है. मां को ही शादी के बाद के फिजिकल रिलेशन के बारे में बताना चाहिए.

यदि मां को किसी कारणवश प्रताड़ित हुई हो, तो मानसिक रूप से वह बच्चे के लिए तैयार नहीं होतीं. इसमें भी मां द्वारा काउंसेलिंग जरूरी है. यदि दिक्कत हो, तो मनोरोग विशेषज्ञ से मिला जा सकता है.

मेनोपॉजल दौर : स्त्री के लिए सबसे कठिन दौर है. मेनोपॉज के कारण पीरियड्स अनियमित होते हैं. ब्लीडिंग ज्यादा होने लगती है. कई बार ट्यूमर के कारण ओवरी और यूट्रस को हटाना भी पड़ता है. ऐसे में उन्हें लगने लगता है कि उनका जीवन खत्म होनेवाला है क्योंकि उनके नारीत्व की पहचान उनसे अलग हो चुकी होती है. यहां बच्चों की भूमिका बढ़ जाती है. वे बच्चों के साथ बाहर घूमना, फिल्म देखना और खरीदारी करना तो चहती हैं, पर किसी से कुछ कहती नहीं. इसलिए बच्चों की जिम्मेवारी बनती है कि वे उनसे बात करें, उनको बाहर घुमाने ले जायें, बराबर बातचीत करते रहें.

प्यूबर्टी एज स्टेज

हार्मोंस का स्राव 10-12 साल की उम्र की लड़कियों में शुरू होता है, इसे प्यूबर्टी स्टेज कहते हैं. प्यूबर्टी स्टेज में ही पीरिड्स शुरू होता है. पहले 3-6 महीने में जो ब्लीडिंग होती है, पर एग्स नहीं होते. ब्रेस्ट का विकास शुरू हो जाता है, अंडर आर्म्स और जननांगों पर बाल आने शुरू हो जाते हैं. पसीने की ग्रंथियां एक्टिव होने से पसीने में गंध आनी शुरू हो जाती है.

परेशानियां : इस उम्र में कुछ को ज्यादा ब्लीडिंग होने या पेट दर्द की शिकायत होती है. इससे कमजोरी महसूस होती है. पीरियड्स में हाइजीन का ध्यान न रखने से स्किन इन्फेक्शन भी हो जाता है. उनमें गुस्सा, तनाव, चिड़चिड़ापन आ जाता है.

उपचार : बच्चियों की काउंसेलिंग हो. घर पर मां या दीदी इस बारे में बताएं कि इन शारीरिक बदलावों की बदौलत ही एक लड़की भविष्य में मां बनती है. साफ-सफाई व डायट का ध्यान देना चाहिए. एनीमिया से बचने के लिए आयरन, कैल्शियम और प्रोटीन रिच बैलेंस डायट लेना चाहिए.

रिप्रोडक्टिव एज स्टेज

मासिक धर्म चक्र शुरू होने के बाद लड़कियों की लंबाई 19 साल तक बढ़ती है. इसके बाद हड्डियां आपस में जुड़ जाती हैं. महिलाओं में आमतौर पर प्रजनन की उम्र 35-40 साल तक रहती है. इस दौरान ओवरी, यूट्रस, सेक्सुअल आॅर्गन्स का पूर्ण विकास हो जाता है. इस उम्र में महिलाएं अक्सर प्रीमेंस्ट्रुअल सिंड्रोम (पीएमएस) से जूझती हैं. यह भी हार्मोंस की वजह से होता है. पीरियड आने के चक्र के दौरान हार्मोंस का उतार-चढ़ाव होता है, यह हार्मोन मुख्य रूप से प्रेग्नेंसी और मासिक धर्म को नियमित रखने का काम करता है, पर विभिन्न कारणों से यदि मासिक धर्म से पूर्व यदि ओवरी में इसकी मात्रा बढ़ जाती है, तो पीएमएस देखे जाते हैं. यह शारीरिक से ज्यादा मानसिक परेशानी का कारण है.

परेशानियां : महिलाओं की बाॅडी में ब्लाॅटिंग होने लगता है, ब्रेस्ट का साइज बढ़ जाता है. चिड़चिड़ापन, थकान, सिरदर्द, घबराहट, अत्यधिक पसीना, पेल्विक एरिया में दर्द, जैसी समस्याएं आती हैं.

उपचार : पीएमएस की स्थिति से उबरने के लिए जरूरी है हेल्दी डायट. ज्यादा मीठी चीजें खाने से परहेज करें. नियमित 30 मिनट व्यायाम, एरोबिक्स, योग या वाक जरूरी है.

पेरी मेनोपाॅज स्टेज

पेरीमेनोपोजल ऐसी अवस्था है, जो 45 से 52 साल की महिलाओं को पीरियड्स बंद होने के कारण आती है. इसमें पीरियड्स अनियमित हो जाते हैं.

परेशानियां : मानसिक रूप से इसके लिए तैयार न होने के कारण उनमें तनाव, अवसाद जैसे भावनात्मक विकार भी आने लगते हैं. उन्हें आॅस्टियोपोरोसिस और हृदय रोग का खतरा बढ़ जाता है. रक्त धमनियों में एस्ट्रोजन हार्मोंस का लेवल कम होने और लिपिड ब्लड फैट बढ़ने के कारण महिलाओं को हार्ट स्ट्रोक का खतरा रहता है. फ्रैक्चर के चांस बढ़ जाते हैं. घुटनों व कमर दर्द, सायटिका जैसी बीमारियां देखने को मिलती हैं. महिलाओं में पीरियड्स अनियमित होने लगते हैं.

उपचार : इस स्टेज में महिलाओं को कैल्शियम, आयरन और प्रोटीन से भरपूर डायट लेना जरूरी है. फिट रहने के लिए नियमित रूप से व्यायाम, योग या वाॅक करना जरूरी है. अगर महिला को वजाइनल एरिया में ज्यादा इचिंग हो या ब्लीडिंग ज्यादा हो, तो उसे तुरंत डाॅक्टर से संपर्क करना चाहिए और अपना रूटीन चेकअप कराते रहना चाहिए.

साफ-सफाई से संक्रमण रहेगा दूर

शारीरिक विकास और अंदरूनी बदलावों से महिलाओं को कई तरह की परेशानी से गुजरना पड़ता है. जानकारी के अभाव में वे इस बारे में न किसी को बताती है और न सफाई रख पाती हैं. निम्न उपाय लाभकारी हैं.

– 12% महिलाएं ही देश में पीरियड्स के दौरान सैनेट्री नैपकीन का उपयोग करती हैं. इन्फेक्शन से बचाव के लिए यह बेहद जरूरी है.

– अब भारत में रीयूजेबल सैनेट्री नैपकीन भी आने लगे हैं, जिसे साफ कर फिर से यूज किया जा सकता है.

– अब मेंस्ट्रूएशन कप और टैंपोन्स भी आते हैं, जो या तो गंदे खून को जमा करते हैं या सोख लेते हैं.

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