तंत्रिका संतुलित करता है एकपाद प्रणामासन

एकपाद प्रणामासन तंत्रिका संतुलन का विकास करता है, जिससे व्यक्ति शारीरिक और मानसिक स्तर पर अधिक संतुलित हो जाता है. यह अभ्यास पढ़ाई करनेवाले बच्चों के लिए काफी लाभदायक है. इसका अभ्यास मन की चंचलता को समाप्त करता है, साथ ही पैरों, टखनों और पैरों की मांसपेशियों को भी मजबूत बनाता है. धर्मेंद्र सिंह एमए […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 29, 2017 12:41 PM

एकपाद प्रणामासन तंत्रिका संतुलन का विकास करता है, जिससे व्यक्ति शारीरिक और मानसिक स्तर पर अधिक संतुलित हो जाता है. यह अभ्यास पढ़ाई करनेवाले बच्चों के लिए काफी लाभदायक है. इसका अभ्यास मन की चंचलता को समाप्त करता है, साथ ही पैरों, टखनों और पैरों की मांसपेशियों को भी मजबूत बनाता है.

धर्मेंद्र सिंह

एमए योग मनोविज्ञान

बिहार योग विद्यालय, मुंगेर

ए कपाद प्रणामासन शारीरिक और मानसिक संतुलन को बढ़ाने में लाभकारी है. इसके अभ्यास से मस्तिष्क का केंद्र और लघु मस्तिष्क विकसित होता है, जो हमारी शारीरिक और मानसिक गतिविधियों को नियंत्रित करता है. इस आसन के अभ्यास से अचेतन रूप से शरीर में होनेवाली हलचलें समाप्त हो जाती हैं. यह शारीरिक संतुलन के साथसाथ अपने जीवन के प्रति अधिक परिपक्व दृष्टि का विकास करने में भी मदद करता है.

आसन की विधि :

अपने दोनों पैरों को मिला कर सीधे खड़े हो जाएं, अपने ठीक सामने दीवार पर एक निश्चित केंद्र बिंदु बना कर अपनी दृष्टि को केंद्रित कर लें. अब अपना दाहिना पैर मोड़ कर अपने टखने को पकड़ लें और दाएं पैर के तलवे को अपने जांघ के भीतरी भाग पर रखें. अब हाथों के सहारे एड़ी को अपने पेरिनियम (मुलाधार) से लगा दें. आपका दाहिना घुटना बाहर की ओर रहेगा. दोनों हाथों को उठाएं तथा अपने हथेलियों को परस्पर मिला कर प्रार्थना की मुद्रा में छाती के सामने रखें.

इस दौरान अपनी आंखों को सामने एक बिंदु पर केंद्रित रखें. यह इस अभ्यास की अंतिम अवस्था है. सांस सामान्य रूप से लें. शरीर का संतुलन बनाये रखते हुए इस स्थिति में एक मिनट या कुछ अधिक समय तक रुकें. अब अपने मुड़े हुए पैर को धीरे से नीचे जमीन पर ले जाएं. अब इसी अभ्यास को अपने पैर को बदल कर करें.

अवधि :

इस अभ्यास को दोनों पैरों से तीनतीन बार करेंगे तथा अभ्यास की अंतिम अवस्था में दो मिनट तक रुकेंगे. यदि किसी व्यक्ति को तंत्रिका तंत्र में असंतुलन की समस्या हो, तो दीवार के सहारे प्रारंभ में इस अभ्यास को ज्यादा चक्रों में भी करवाया जा सकता है. शारीरिक क्षमतानुसार ही इसे करना उचित है.

कहां हो सजगता :

संपूर्ण अभ्यास काल में अपनी सजगता को अपने सामने दीवार पर एक निश्चित बिंदु पर अपनी आंखों को केंद्रित रखना आवश्यक है, किंतु आध्यात्मिक स्तर पर आपकी सजगता आज्ञा या अनाहत चक्रपर होनी चाहिए.

एक पाद प्रणामासन की अंतिम स्थिति में स्वयं को लाएं तथा दृष्टि को आंखों की ठीक सीध में किसी बिंदु पर एकाग्र करते हुए सांस लें और दोनों हथेलियों को एक साथ रखते हुए अपनी भुजाओं को सिर के ठीक ऊपर उठायेंगे. अपने सांस को अंदर रोक कर इस स्थिति में रुकेंगे और सांस को बाहर निकालते हुए अपने हाथों को नीचे वक्ष के सामने ले आयेंगे. अब इसी अभ्यास को दूसरे पैर से पुनरावृत्ति करेंगे. इस अभ्यास को खड़े होकर नीचे जानेवाले आसन के बाद अंत में किया जाना चाहिए. इससे विशेष लाभ प्राप्त होता है.

सीमा :

यह अभ्यास उन लोगों को नहीं करना चाहिए, जिनकी हाल में कोई बड़ी सर्जरी हुई हो, पैर में चोट हो या आंखों से सही नहीं दिखता हो तथा निम्न रक्तचाप से ग्रसित हो. जिन्हें पैर की कोई कमजोरी हो, उन्हें भी इसे करने से बचना चाहिए.

लाभ : यह आसन तंत्रिका संतुलन का विकास करता है, जिससे व्यक्ति शारीरिक और मानसिक स्तर पर अधिक संतुलित हो जाता है तथा जीवन के प्रति उनकी दृष्टि काफी स्पष्ट और सकारात्मक हो जाती है.

यह अभ्यास विशेषकर पढ़ाई करनेवाले बच्चों के लिए काफी लाभदायक है. इसका अभ्यास मन की चंचलता को समाप्त करता है, साथ ही पैरों, टखनों और पैरों की मांसपेशियों को भी मजबूत बनाता है.

नोट : नये अभ्यासियों को किसी विशेषज्ञ की देखरेख में ही आसन करना चाहिए, अन्यथा नुकसान भी हो सकता है.

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