अनाथाश्रम के बच्चों से प्यार जता कर तो देखिए

वीना श्रीवास्तव साहित्यकार व स्तंभकार, इ-मेल : veena.rajshiv@gmail.com, फॉलो करें – फेसबुक : facebook.com/veenaparenting ट्विटर : @14veena कभी-कभार ही सही आप किसी अनाथाश्रम में जरूर जाएं. वहां आपको जो आत्म संतुष्टि होगी, शायद पहले न हुई हो. आप उन बच्चों को अपना बना कर देखिए, आपको दुनिया अपनी लगेगी. आपके अपनेपन से उन बच्चों के […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 31, 2017 2:03 PM
वीना श्रीवास्तव
साहित्यकार व स्तंभकार, इ-मेल : veena.rajshiv@gmail.com, फॉलो करें –
फेसबुक : facebook.com/veenaparenting
ट्विटर : @14veena
कभी-कभार ही सही आप किसी अनाथाश्रम में जरूर जाएं. वहां आपको जो आत्म संतुष्टि होगी, शायद पहले न हुई हो. आप उन बच्चों को अपना बना कर देखिए, आपको दुनिया अपनी लगेगी. आपके अपनेपन से उन बच्चों के चेहरे पर फैली मुस्कान आपको किसी बाजार से नहीं मिलेगी. आप वह मुस्कान उनके चेहरों पर ला सकते हैं. उनसे जुड़ने के लिए जरूरी नहीं कि आप उन्हें घर लायें. बस आप यह बीड़ा उठाएं कि आप कुछ बच्चों की पढ़ाई करवायेंगे. उनकी जरूरतें पूरी करेंगे.
बहुत से लोग अनाथाश्रम से बच्चों को गोद लेना चाहते हैं, उन्हें पढ़ाना चाहते हैं, मगर पारिवारिक कारणों से गोद नहीं ले पा रहे हैं. ये कारण वैचारिक मतभेद हैं. आपसी सहमति का न होना है. जब हम परिवार में रहते हैं, तो कहीं-न-कहीं समझौते होते ही हैं. जिन मुद्दों पर परिवार में मतभेद हों, वह भी ऐसे मुद्दे जिनसे जीवन भर का नाता हो, उन मुद्दों को छोड़ना ही बेहतर है. बच्चा गोद लेने की इच्छा रखनेवाले लोगों के लिए एक सुझाव है.
जरूरी नहीं कि आप बच्चे को घर लेकर ही आएं. अगर आप पत्नी – पति या फिर आपके माता – पिता किसी भी कीमत पर तैयार नहीं हैं कि आप किसी बच्चे को गोद लें तो जिस बच्चे को शिक्षा और प्यार का जो हक आपके द्वारा मिलने वाला था, उस बच्चे के हक को मारिये मत. आप अनाथाश्रम जाइए और उस बच्चे की पढ़ाई की जिम्मेवारी उठाइए. जितने में आप एक बच्चे को घर में रखकर उसका पालन- पोषण करते, वहां दो बच्चों की शिक्षा की जिम्मेवारी आप उठा सकते हैं. साथ ही त्यौहार में सभी बच्चों के लिए मिठाई वगैरह ले जा सकते हैं.
पारिवारिक सदस्यों के जन्मदिन पर समय निकालकर दिन में एक बार उनके पास जरूर जाइए. उनकी परीक्षा के परिणाम के दिन भी जाइए और उनके अच्छे परिणाम पर उनका हौसला बढ़ाइये.
त्योहारों पर आप परिवारीजन के लिए कपड़े खरीदते हैं, माना कि आप सब बच्चों के लिए कपड़े न खरीद पाएं तो कोई बात नहीं, आप उनके लिए कॉपी, पेन या कलर वगैरह खरीद सकते हैं. कुछ ऐसे गेम्स दें जिसे सब बच्चे मिलकर खेल सकें. आपके मन में जो बच्चे को गोद लेने की इच्छा थी, वो काफी हद तक जरूर पूरी होगी. जितना आप उनके करीब जाएंगे, उनसे जुड़ेंगे, वो आपसे जुड़ेंगे, उनको जो आपसे अपनापन मिलेगा, उस अपनेपन के बदले वो आपसे इतना प्यार करेंगे कि आप संभाल नहीं पायेंगे. आपको अंदर से खुशी महसूस होगी.
कहते हैं ‘जिसका पेट सदा भरा होता है, उसे भूख की तड़प का एहसास नहीं होता’. ‘जिसके सामने हर वक्त पकवान रहे, भोजन के तमाम विकल्प रहें, उसे अन्न का महत्व कैसे पता होगा ? मगर जिसे मुश्किलों से ‘दो वक्त की रोटी’ मिलती हो और ‘विकल्प’ का तो विकल्प ही न हो, तो उसे ‘अन्न- देवता के रूप’ में ही नजर आयेगा. बस ऐसा ही ‘प्यार’ के साथ भी है. अनाथाश्रम में ऐसे ही बच्चे रहते हैं, जो परिवार का ‘प’ नहीं जानते. पारिवारिक रिश्ते, प्यार, आपस की तकरार नहीं जानते. जिनके अपने मां, पापा, चाचा, मामा, बुआ, मौसी, चाची वगैरह नहीं होतीं. वे उन रिश्तों के लिए तरसते हैं.
कुछ अनाथाश्रमों में मैं भी जाती हूं. वहां जो बड़ी लड़कियां होती हैं, छोटे बच्चे उनके पीछे ‘दीदी’ कह कर ऐसे लगे रहते हैं, जैसे वे उनके लिए दीदी न हों, बल्कि ‘मां’ हों और वह भी छोटे बच्चों को उसी तरह प्यार करती हैं, डांटती और समझाती भी हैं. वहां एक अलग माहौल होता है. ‘बच्चों का अपना परिवार होता है, जो बच्चों से शुरू होकर बच्चों पर ही खत्म होता है’. वहां प्यार भी है और अनुशासन भी. समय से खाना और समय से सोना.
अगर हममें से कोई गोद न भी ले, तो कभी-कभार ही सही अनाथाश्रम जरूर जाएं. हो सकता है, कई लोग जाते हों. मगर जो नहीं गये, वे एक बार तो जरूर जाएं. आपको जो आत्म संतुष्टि होगी, शायद पहले न हुई हो. आप उन बच्चों को अपना बनाकर देखिए, आपको दुनिया अपनी लगेगी. आपके अपनेपन से उन बच्चों के चेहरे पर फैली मुस्कान आपको किसी बाजार में नहीं मिलेगी.
वह रुपये-पैसे से नहीं खरीदी जा सकती, लेकिन आप अपनेपन और प्यार से वह मुस्कान उनके चेहरों पर ला सकते हैं. उनसे जुड़ने के लिए जरूरी नहीं कि आप उन्हें घर ही लायें. बस आप यह बीड़ा उठाएं कि आप कुछ बच्चों की पढ़ाई करवायेंगे. उनकी जरूरतें पूरी करेंगे. इससे आप अपने मन की आवाज भी सुन सकेंगे और अपनी इच्छा अनुसार कुछ कर भी सकेंगे. वैसे भी हम सबका समाज के प्रति कर्तव्य भी है. साथ ही हम अपने घर के सदस्यों की इच्छा का मान रख सकेंगे. ऐसे मामलों में आप जबरदस्ती भी नहीं कर सकते. पति या पत्नी के विरुद्ध जाकर बच्चा घर नहीं ला सकते. यह तभी संभव है जब दोनों सहमत हों.
अगर आप वाकई चाहते हैं कि किसी बच्चे की पढ़ाई कराएं या अपने आस- पास किसी ऐसे बच्चे को जानते हैं, जो बहुत होनहार है, पढ़ाई में बहुत तेज है, लेकिन फीस के कारण नहीं पढ़ पा रहा है, ऐसे बच्चों की जरूर मदद करिए. अगर आप सक्षम हैं, तो आप बच्चे की जिम्मेवारी लेकर अच्छे हॉस्टल में भेजिए, जिससे उसे अच्छी शिक्षा मिल सके. समय- समय पर जाकर उससे मिलते रहिए. उसे आभास कराइए कि वह अकेला नहीं, आप उसके साथ हैं.
अनाथाश्रम ही क्यों, वृद्धाश्रम भी जाना चाहिए. शायद हमारे ही किसी अपने की आंखें खुलें और कोई बुजुर्ग वृद्धाश्रम जाने से बच जाये. साथ ही बच्चों को भी ले जाइए जिससे उनमें मानवीय संवेदनाएं गहरे पैठ बना सकें. बच्चे वैसे भी बहुत भावुक होते हैं, क्योंकि वे मन से सच्चे होते हैं. उनमें छल-कपट नहीं होता. ये सारे गुण (नकारात्मक) उम्र के साथ हमारे अंदर आते हैं. अगर बच्चों में मानवीय संवेदनाएं होंगी, तो वे कभी कोई गलत कदम उठाते हुए सौ बार सोचेंगे.
किसी को कष्ट नहीं पहुंचायेंगे. आप उन्हें अनाथाश्रम ले जायेंगे, तो उन्हें रिश्तों का महत्व समझ आयेगा. उनको पता चलेगा कि मां-पापा के साथ, परिवार के साथ रहने का महत्व क्या है. आपके बच्चों में अनाथाश्रम के बच्चों के प्रति दया नहीं, बल्कि प्यार होना चाहिए. आप उनके प्रति ‘बेचारेवाली’ भावना मत प्रदर्शित करिए, बल्कि उनमें ‘स्वाभिमान’ जगाइए.क्रमश:

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